मशरूम उत्पादन (Mushroom Farming): कभी मज़दूरी का काम किया करती थीं ये महिलाएं, जानिए ‘जय माँ दुर्गा’ की सफलता की कहानी
मशरूम की खेती से मिला स्वरोजगार, आत्मनिर्भर हुईं महिलाएं
मध्य प्रदेश का एक स्वयं सहायता समूह सफलतापूर्वक मशरूम उत्पादन करके कईयों के लिए प्रेरणा बना है। कैसे इस स्वयं सहायता समूह का गठन हुआ और कैसे इन महिलाओं के लिए स्वरोजगार के रास्ते खुले, जानिए इस लेख में।
कृषि विज्ञान केंद्र देशभर में ग्रामीण इलाकों में किसानों को प्रशिक्षण देकर कौशल सुधार का काम कर रहे हैं ताकि किसान स्थायी आजीविका प्राप्त कर सकें। किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए सेमीनार, ट्रेनिंग और फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन का सहारा लिया जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र, बैतूल की मदद से मध्य प्रदेश का एक स्वयं सहायता समूह सफलतापूर्वक मशरूम उत्पादन करके कईयों के लिए प्रेरणा बना है। इस स्वयं सहायता समूह का नाम है जय मां दुर्गा। इसमें शामिल सभी महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
16 महिलाओं का समूह
जय मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की स्थापना मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के गजपुर गांव की 16 महिलाओं ने 2018 में की। इन महिलाओं के पास बहुत कम ज़मीन थी और वह मज़दूरी करके आजीविका चलाती थीं। इस समूह के गठन का श्रेय BAIF डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन को जाता है। जब ये संस्था एक महिला मजदूर कृष्णा साहू के संपर्क में आई तो उन्होंने आजीवीका में सुधार के लिए महिलाओं का एक समूह बनाने की सलाह दी।

प्रशिक्षण से मिली मदद
महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए ट्रेनिंग देने के लिए BAIF इंस्टीट्यूट ने कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक से संपर्क किया। उनके मार्गदर्शन में महिला किसानों को ट्रेनिंग दी गई। एक हफ़्ते की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद महिलाओं ने गांव में ही मशरूम उत्पादन इकाई शुरू करने का फैसला लिया।
एक किसान ने दिए बीज
मशरूम की खेती के लिए शुरुआत में स्वयं सहायता समूह को सिलपटी गांव के किसान राम किशोर कहार ने कम कीमत पर मशरूम के स्पॉन (बीज) मुहैया कराए। राम किशोर कहार खुद मशरूम उत्पादक किसान हैं और अब उनकी मशरूम उत्पादन इकाई बहुत सफल बन चुकी है। प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को मशरूम उत्पादन की प्रैक्टिकल जानकारी मिली, जिससे वह आत्मनिर्भर बनीं।
समूह की ख़ासियत
जय मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की ख़ासियत यह है कि समूह की महिलाएं समूह के लिए बनाए फंड के ज़रिए एक दूसरे की आर्थिक मदद भी करती हैं। इस समूह को HDFC बैंक से आर्थिक सहयोग मिला। BAIF ग्रुप ने लोन लेने व मशरूम उत्पादन के लिए सामग्री प्रदान करने में मदद की। अब यह समूह सफलतापूर्वक मशरूम का उत्पादन कर रहा है।

मशरूम की खेती
पिछले कुछ सालों में बहुत से किसान मशरूम की खेती करके अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। भारत में व्हाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसकी खेती बंद कमरे में की जाती है। इसे उगाने के लिए चावल की भूसी, भूसा तथा अन्य फसलों की आवश्यकता होती है। भूसे को काटकर उबाला जाता है। इसे बहुत अधिक उबाला जाता है, फिर ठंडा करके इसे बोरो में भर दिया जाता है। उसमें बीज डालकर बोरे के मुंह को बंद कर देते हैं। बोरे में नमी बनाए रखना ज़रूरी है तभी मशरूम उगते हैं। मशरूम उगाने के लिए ठंडे तापमान की ज़रूरत होती है। मशरूम लगाने के करीब 30-40 दिन बाद तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
मशरूम से बनें उत्पाद
सब्ज़ी के अलावा मशरूम से कई मूल्य संवर्धन उत्पाद (Value Added Products) भी तैयार किए जाते हैं जैसे जैम (अंजीर मशरूम), ब्रेड, खीर, कुकीज, सेव, बिस्किट, चिप्स, सप्लीमेन्ट्री पाउडर, सूप, पापड़, सॉस, टोस्ट, चकली जैसे कई उत्पाद बनाए जाते हैं।
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