मशरूम की खेती के मशहूर ट्रेनर तोषण कुमार सिन्हा से मिलिए और जानिये उनकी टिप्स, ट्रेनिंग भी देते हैं बिल्कुल मुफ़्त
मशरूम की खेती एक रात की चांदनी नहीं, लगती है कड़ी मेहनत
तोषण कुमार सिन्हा न सिर्फ़ मशरूम की खेती की फ़्री में ट्रेनिंग देते हैं, बल्कि कम दरों में किसानों को बीज भी मुहैया कराते हैं।
मशरूम की खेती को बड़े पैमाने पर सरकार बढ़ावा दे रही है। इसकी वजह भी है। इसकी अलग-अलग किस्मों की खेती से किसान सालभर अच्छी कमाई कर सकते हैं। सरकार की इस मुहिम को कई लोग अपने-अपने स्तर पर बढ़ावा भी दे रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले के कुर्रा गाँव के रहने वाले तोषण कुमार सिन्हा। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे तोषण मशरूम की खेती को अपने क्षेत्र में बढ़ावा दे रहे हैं। अब तक करीबन हज़ार से ऊपर महिलायें को उन्होंने ट्रेनिंग दी है और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में तोषण ने मशरूम की खेती से जुड़े अपने अनुभव हमसे साझा किए और किसानों को किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया।
कैसे आया मशरूम की खेती करने का विचार
बीएससी ऐग्रिकल्चर से ग्रेजुएट तोषण कुमार सिन्हा जब सेकंड इयर में थे, तब उन्होंने मशरूम के बारे में पढ़ा। इसी दौरान मशरूम की खेती में उनकी रुचि हुई। उन्होंने पाया कि मशरूम की खेती अच्छे से की जाए तो इसमें बहुत संभावनाएं हैं। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के बारे में बताते हुए तोषण कहते हैं कि उनके इलाके में पराली की समस्या ज़्यादा होती है। पराली या तो पशुओं खिला दी जाती है या फिर जला दी जाती है। उन्होंने जाना कि मशरूम की खेती में इस पराली को बतौर भूसे के रूप में इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

शुरुआती निवेश 25 हज़ार रुपये
कॉलेज करते हुए ही तोषण ने मशरूम की खेती शुरू कर दी। 25 हज़ार रुपये का निवेश लगाया। शुरुआत अपने घर से ही की। हर शनिवार को वो धमतरी से अपने गाँव कुर्रा आते और अगले दिन मशरूम लगाकर वापस पढ़ाई के लिए धमतरी चले जाते। फिर जो उत्पादन होता परिवार वाले बाज़ार में बेच देते।
अपने इलाके की बीज समस्या को किया दूर
2015 में तोषण ने एनजीओ में काम करते-करते मशरूम उत्पादन को और विस्तार देने के के बारे में सोचा। तोषण बताते हैं कि समय रहते बाज़ार में मशरूम के स्पॉन यानी कि बीज नहीं मिलते थे। जो मिलते भी थे उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती थी। फिर उन्होंने छोटे स्तर पर ही सही बीज उत्पादन का काम भी शुरू कर दिया। बड़ा सा कुकर लेकर अपने घर के पीछे ही मशरूम के बीज बनाने शुरू कर दिए।
जैसे जैसे बीज की मांग बढ़ने लगी, तोषण ने अपनी यूनिट की मशीनरी बढ़ा दी। तोषण बताते हैं कि अभी उनकी यूनिट में एक दिन में 1 क्विंटल यानी कि 100 किलो बीज तैयार होता है। सीज़न के हिसाब से मशरूम की अलग-अलग किस्मों के बीज का उत्पादन होता है।

फ़्री में देते हैं मशरूम की खेती से लेकर मार्केटिंग की ट्रेनिंग
अब तक तोषण करीबन हज़ार से ऊपर महिलाओं को मशरूम की खेती के गुर सीखा चुके हैं। वो फ्री में ट्रेनिंग देते हैं। दूर-दराज इलाकों से लोग, खासतौर पर युवा उनसे मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने आते हैं। तोषण मुफ़्त में लोगों को ट्रेनिंग देते हैं और बाज़ार की तुलना में कम दाम में मशरूम के बीज भी मुहैया कराते हैं।
महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
तोषण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करे रहे हैं। उन्होंने कई गांवों में स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाए हुए हैं। इनसे जुड़ी महिलाओं को वो मशरूम से जुड़ी जानकारी देते हैं। इसके अलावा, सरकार द्वारा संचालित कई एनजीओ की महिलाओं को तोषण की यूनिट में तैयार हो रहे बीज मुहैया कराए जाते हैं। तोषण राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों को भी मशरूम की खेती से जुड़ी ट्रेनिंग देते हैं।

अब फ़ूड प्रोसेसिंग से आमदनी को बढ़ाने के लक्ष्य पर करेंगे काम
तोषण का अगला लक्ष्य महिलाओं के लिए मार्केटिंग की व्यवस्था को और दुरुस्त करना है। इसको लेकर वो काम पर लग गए हैं। तोषण बताते हैं कि धनतेरी, कांकेर ज़िले समेत कई इलाकों में महिलाओं को मशरूम की उपज बेचने में दिक्कत आ रही है। एक ही गाँव की 5 से 10 महिलायें मशरूम का उत्पादन कर रही हैं तो इससे दाम में गिरावट की समस्या देखने को मिलती है। इसके लिए तोषण महिलाओं को एक साथ संगठित कर एक स्टोर खोलने की सोच रहे हैं। इससे महिलाओं को अपनी उपज बेचने के लिए यहां-वहां भटकना नहीं पड़ेगा। साथ ही मशरूम को प्रोसेस कर इससे बनने वाले बाय प्रॉडक्ट्स जैसे नमकीन, बड़ी, पापड़ के कार्य से जोड़ने का भी लक्ष्य है।
क्षेत्र के हिसाब से अपनाएं तकनीक
तोषण रस्सी बांधने की विधि से मशरूम की खेती करते हैं। इसमें रस्सियों के सहारे भूसे की थैली को बांधा जाता है। तोषण कहते हैं कि किसान अपने आस-पास उपलब्ध चीजों से ही इसके संसाधन जुटा सकते हैं। उदाहरण देते हुए तोषण बताते हैं कि उनके गाँव में बांस महंगा पड़ता है, तो वो रस्सी के इस्तेमाल से मशरूम बैग्स को लटकाते हैं। वहीं कांकेर ज़िले में लकड़ी सस्ती पड़ती है, तो वो वहां के किसानों को बांस विधि से ही मशरूम की खेती करने की सलाह देते हैं। आज मशरूम उत्पादन से लेकर इसके बीज उत्पादन से उन्हें हर महीने तकरीबन 40 हज़ार रुपये का सीधा मुनाफ़ा होता है।

तोषण की टिप्स: शॉर्ट कट अपनाएंगे तो होगा नुकसान
मशरूम की खेती कर रहे किसान साथियों को सलाह देते हुए तोषण कहते हैं कि उनके पास ज़्यादातर युवा वर्ग मशरूम की खेती के बारे में जानकारी लेने आता है। वो इसके मुनाफ़े को तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियों को सीखने के लिए जो समय देना पड़ता है, उससे बचते हैं । तोषण कहते हैं कि लोग एक सीढ़ी चढ़ने के बाद सीधा चौथी सीढ़ी पर चढ़ना चाहते हैं। खेती में ऐसा नहीं होता। हर चीज़ आपको स्टेप बाय स्टेप, यानी एक – एक कदम आगे बढ़ा कर करनी होती है।

बारीकियों को जानेंगे तो होगा मुनाफ़ा
तोषण बताते हैं कि जब तक किसान मशरूम की खेती को समझेगा नहीं वो मुनाफ़ा नहीं कमा सकता। इसकी बारीकियों को जानकार ही आप रोजगार और अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। मशरूम की खेती जो शुरू करता है उनमें 80 फ़ीसदी तो बीच में ही छोड़ देते हैं, सिर्फ़ 20 प्रतिशत की आगे बढ़ पाते हैं। इसलिए पूरा सोच-समझ कर ही मशरूम की खेती में उतरना चाहिए।

ट्रेनिंग लेने के बाद ही शुरू करें मशरूम की खेती
तोषण कहते हैं कि किसी के बहकावे और जुमलेबाज़ी में न आयें। कई कंपनियां ऐसी हैं जो सपने तो बड़े-बड़े दिखाती हैं, जबकि ज़मीनी हक़ीक़त बिल्कुल ही अलग होती है। तोषण बताते हैं कि उनके वहां 10 किलो के बीज का जो पैकेट 1500 रुपये में मिलता है, ये कंपनियां 5 से 6 हज़ार रुपये में बेचती हैं।
उनकी राय है कि मशरूम की खेती की सटीक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारियों, कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क कीजिए। कोई अगर आस-पास का किसान मशरूम की खेती कर रहा है तो उसके पास जाइए। कहीं से ट्रेनिंग लेकर ही आगे बढ़ें।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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