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Baby corn farming: पद्मश्री किसान कंवल सिंह चौहान ने बेबीकॉर्न की खेती में हजारों किसानों को अपने साथ जोड़ा, जानिए कम समय में ज़्यादा कमाई और उपज का फॉर्मूला

हरियाणा में सोनीपत ज़िले के अटेरना गाँव के प्रगतिशील किसान ने 10 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की लागत से कमाया 30 हज़ार का मुनाफ़ा

बेबीकॉर्न की खेती को रबी और खरीफ़ दोनों मौसम में कर सकते हैं। इसकी देखभाल की लागत भी ज़्यादा नहीं है। अन्तः फ़सल (intercropping) से जो उपज प्राप्त होती है उससे बेबीकॉर्न की खेती में चार चाँद लग जाते हैं क्योंकि किसानों के लिए ये अतिरिक्त लाभ होता है। शहरी आबादी में सेहतमन्द और पौष्टिक खाद्य सामग्रियों की ख़ूब माँग रहने की वजह से बेबीकॉर्न का अच्छा दाम मिलने में दिक्कत नहीं होती।

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किसानों के नज़रिये से देखें तो बेबीकॉर्न बहुत कम समय में उपज मिलने लगती है। खरीफ़ वाले बेबीकॉर्न की उपज जहाँ दो-ढाई महीने में मिल जाती है, वहीं रबी की उपज करीब चार महीने बाद मिलती है। बेबीकॉर्न की देखभाल की लागत भी ज़्यादा नहीं है। बेबीकॉर्न की फ़सल को पूर्णतः शुद्ध माना जाता है, क्योंकि पत्तियों में लिपटा होने की वजह से ये कीटनाशक दवाईयों के दुष्प्रभाव से मुक्त होते हैं। वैसे बेबीकॉर्न में किसी तरह का रोग या कीट नहीं लगता। इसकी बालियाँ पत्तियों के कवच में रहने की वजह से घातक कीटों और बीमारियों से मुक्त रहती हैं। इसीलिए बाज़ार में इसका दाम भी बढ़िया मिलता है। कुलमिलाकर, कम वक़्त में ज़्यादा कमाई देने के लिहाज़ से बेबीकॉर्न की खेती लाज़बाब है।

बेबीकॉर्न की बड़े शहरों में ख़ूब माँग रहती है, इसीलिए जो किसान इनके नज़दीक रहते हैं उनके लिए बेबीकॉर्न की खेती बढ़िया कमाई का सबब बन सकती है। रबी की फसलों के रूप में बेबीकॉर्न के साथ आलू, मटर, राजमा, मेथी, धनिया, गोभी, शलजम, मूली, गाजर इत्यादि अन्तः फ़सल (intercropping) के रूप में ली जाती हैं। अन्तः फ़सल से जो उपज प्राप्त होती है उससे बेबीकॉर्न की खेती में चार चाँद लग जाते हैं क्योंकि किसानों के लिए ये अतिरिक्त लाभ होता है।

स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार है बेबीकॉर्न

देश की शहरी आबादी में सेहतमन्द और पौष्टिक खाद्य सामग्रियों की ख़ूब माँग देखी जाती है। इसीलिए बेबीकॉर्न की खपत में लगातार और तेज़ी से वृद्धि हो रही है। बेबीकॉर्न से ढेरों उत्पाद बनाये जाते हैं। इसलिए भी इसकी खेती में काफ़ी सम्भावनाएँ देखी जा रही हैं। स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार होने की वजह से बेबीकॉर्न को सेहत के लिए शानदार और सुरक्षित पाया गया है। बेबीकॉर्न का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार, कैंडी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी, लड्डू, हलवा, खीर इत्यादि के रूप में होता है।

बेबीकॉर्न के पोषक तत्व

बेबीकॉर्न को मक्के के अनिषेचित पौधे (unfertilized plants) से ही प्राप्त किया जाता है। इसे मक्के की फ़सल में रेशमी बाल यानी ‘सिल्क’ के उगले के 2-3 दिनों के भीतर तोड़ लिया जाता है। इसलिए ये काफ़ी मुलायम होता है। बेबीकॉर्न को तोड़ने में यदि देरी की जाती है कि वक़्त बढ़ने के साथ इसकी गुणवत्ता भी गिरने लगती है। बेबीकॉर्न, कॉलेस्ट्रॉल रहित और बेहद कम कैलोरी वाला आहार है, इसीलिए हृदय रोगियों के लिए काफ़ी लाभदायक है। इसमें भरपूर फॉस्फोरस पाया जाता है तथा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह तल्व और विटामिन भी ख़ूब होता है। ये रेशेदार तत्वों यानी फ़ाइबर से भी भरपूर होते हैं इसीलिए सुपाच्य (digestible) होते हैं।

बेबीकॉर्न की खेती
तस्वीर साभार: AgriFarming

कैसे करें बेबीकॉर्न की खेती?

बेबीकॉर्न की खेती के लिए जीवांशयुक्त (germy) दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसकी बुआई से पहले खेत की तैयारी करने के तहत पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाक़ी जुताई देसी हल या रोटावेटर या कल्टीवेटर से करने के बाद पाटा लगाकर करना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी के साथ-साथ खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए। बेबीकॉर्न की खेती के लिए कम समय में पकने वाली और मध्यम ऊँचाई वाली एकल क्रॉस संकर किस्में ज़्यादा बेहतर होती हैं, क्योंकि रबी की फसल में इनमें सिल्क आने की अवधि 70 से 75 दिन की होती है तो खरीफ़ में इसकी मियाद 45 से 50 दिन की होती है। इस तरह से बेबीकॉर्न की खेती करने पर दो से ढाई महीने के बीच उपज मिलने लगती है।

बेबीकॉर्न के बीज की उन्नत किस्में किस्में
किस्म गुल्ली का रंग जीरा निकलने की अवधि (दिन) उत्पादन क्षमता (क्विंटल/हेक्टेयर)
छिलका सहित छिलका रहित
आज़ाद कमल क्रीमी सफ़ेद गुल्ली 70-75 42-45 15-20
HM-4 क्रीमी सफ़ेद गुल्ली 80-85 45-50 15-20
BL-42 सफ़ेद गुल्ली 70-75 42-45 17-20
प्रकाश सफ़ेद गुल्ली 70-75 45-50 16-18

 

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बेबीकॉर्न के लिए बुआई का मौसम, विधि और बीज दर

उत्तर भारत में बेबीकॉर्न को फरवरी से नवम्बर के बीच किसी भी वक़्त बोया जा सकता है। बुआई विधि के लिहाज़ से देखें तो बेबीकॉर्न को मेड़ों पर बोना फ़ायदेमन्द रहता है। इसके लिए एक मेड़ से दूसरे मेड़ की दूसरी करीब 2 फ़ीट और एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी करीब 6 इंच रखनी चाहिए। बेबीकॉर्न की उन्नत किस्मों के लिए बीजों के आकार पर बीज दर निर्भर करेगी, लेकिन मोटे तौर पर 22-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की बीज दर उपयुक्त होती है।

बेबीकॉर्न की खेती में खाद का इस्तेमाल

बेबीकॉर्न की बढ़िया उपज पाने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञों की ओर से खाद के इस्तेमाल को उपयोगी और आवश्यक बताया गया है। इसके लिए फॉस्फोरस, पोटाश, ज़िंक सल्फेट और नाइट्रोजन की एक तिहाई को बुआई के समय इस्तेमाल करना चाहिए। बाक़ी बचे दो तिहाई भाग में से एक तिहाई का इस्तेमाल बुआई के 25 दिनों के बाद तथा शेष एक तिहाई हिस्से को को 40 दिनों की फसल होने पर डालना चाहिए। यदि बेबीकॉर्न की रबी मौसम वाली फसल हो तो उपरोक्त खाद को तीन हिस्से की जगह चार भाग में करके देना चाहिए। इस चौथाई मात्रा में से पहला हिस्सा बुआई के समय, दूसरा बुआई के 25 दिन बाद, तीसरा हिस्सा 60 से 80 दिनों के बीच और चौथा हिस्सा 80 से 110 दिनों पर देना चाहिए।

बेबीकॉर्न की खेती के लिए खाद
खाद प्रति हेक्टेयर मात्रा
गोबर की खाद 8-10 टन
नाइट्रोजन 150 किग्रा
फॉस्फोरस 60 किग्रा
पोटाश 60 किग्रा
ज़िंक सल्फेट 25 किग्रा

खरपतवार नियंत्रण और फसल सुरक्षा

बुआई के 15-20 दिनों बाद पहली बार तथा 30-35 दिनों बाद दूसरी बार निराई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए। इससे जड़ों में हवा का संचार होता है और उन्हें दूर तक फैलकर पौधों के लिए पोषक तत्व जुटाने में मदद मिलती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए सीमाजीन की 105 किग्रा प्रति हेक्टेयर को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। ये छिड़काव खेत में बेबीकॉर्न के बीजों के अंकुरण से पहले करना चाहिए। इससे जहाँ खरपतवार नहीं जमते, वहीं फ़सल तेज़ी से बढ़ती है। फसल सुरक्षा के लिहाज़ से बेबीकॉर्न की खेती में किसी ख़ास चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि इसमें आसानी से किसी रोग या कीट का हमला नहीं होता है। इस लिहाज़ से पत्तियों में लिपटी रहने के कारण बेबीकॉर्न की फसल बेहद सुरक्षित रहती है।

बेबीकॉर्न की तुड़ाई, पैदावार और बिक्री

बेबीकॉर्न की गुल्ली को उस वक़्त ज़रूर तोड़ लेना चाहिए, जब इसके सिल्क यानी जीरा की लम्बाई 3-4 सेमी की हो जाए। गुल्ली की तुड़ाई के वक़्त उसके ऊपर की पत्तियों को हटाना नहीं चाहिए। वर्ना, मुलायम बेबीकॉर्न बहुत जल्दी ख़राब हो जाएँगी। रबी के मौसम में एक से दो दिन के फ़ासले पर गुल्ली की तुड़ाई करनी चाहिए। एकल क्रॉस संकर मक्का में 3 से 4 बार तुड़ाई करना ज़रूरी है। अभी तक की प्रक्रिया से छिलकेदार बेबीकॉर्न हासिल होगा। इसके बाद बेबीकॉर्न का छिलका उतारने और उन्हें प्लास्टिक की टोकरी, थैले या कंटेनर में रखने का काम अलग से करना चाहिए। फिर उपज को यथाशीघ्र मंडी पहुँचाकर बेचना चाहिए। इस तरह खेती करने से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल बेबीकॉर्न की छिलका-रहित उपज प्राप्त होती है। इसके अलावा 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पशुओं के लिए हरा चारा भी मिल जाता है।

‘पद्मश्री’ कंवल सिंह चौहान की उपलब्धि

खेती-किसानी में नवाचारों (नये प्रयोग करने) के शौक़ीन और ‘पद्मश्री’ से सम्मानित हरियाणा के सोनीपत ज़िले के अटेरना गाँव के निवासी कंवल सिंह चौहान ने अपने गाँव में सबसे पहले बेबीकॉर्न की खेती की शुरुआत की। उन्होंने अपने खेत पर बेबीकॉर्न की HM-4 संकर किस्म की बुआई के बाद सही वक़्त पर फसल की देखभाल से जुड़े बाक़ी सभी काम किये। उन्हें बेबीकॉर्न की खेती की लागत क़रीब 10 हज़ार रुपये प्रति एकड़ पड़ी। लेकिन जब उन्होंने अपनी उपज को दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में बेचा तो उन्हें 30 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा हुआ।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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