प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) तकनीक से महिला किसान सरोजा ने टमाटर की उन्नत किस्म उगाकर की अच्छी कमाई, जानिए कैसे?
जानिए प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक से सरोजा ने कौन-कौन सी सब्जियां उगाई
कर्नाटक की प्रगतिशील महिला किसान सरोजा ने KVK की मदद से कई सब्ज़ियों में प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक अपनाई और अपने क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्रोत बनकर सामने आई हैं। जानिए कैसे हुआ उन्हें मुनाफ़ा?
प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) तकनीक: जो किसान खेती में हमेशा नए प्रयोग करने और नई तकनीक अपनाने के लिए तैयार रहते हैं उनका मुनाफ़ा लगातार बढ़ता रहता है। ऐसी ही एक प्रगतिशील महिला किसान हैं सरोजा, जो नई तकनीक से न सिर्फ टमाटर की खेती कर रही हैं, बल्कि प्लास्टिक मल्चिंग के तहत बहु फसल उगाकर दूसरे किसानों के लिए रोल मॉडल भी बन गई हैं।
कब की शुरुआत?
सरोजा कर्नाटक के तुमकूर ज़िले के देवरायपटना गांव की रहने वाली शिक्षित महिला किसान हैं। वह एक ग्रेजुएट हैं और अपने पति के साथ 2 एकड़ खेत में सब्ज़ियों और फूलों की खेती कर रही हैं। 2013-14 में कृषि विज्ञान केंद्र हिरेहल्ली ने उन्हें सब्ज़ियां और फूलों की उन्नत किस्मों के बारे में बताया। तभी से सरोजा ने उन्नत किस्मों की खेती शुरू कर दी, जिसका परिणाम बेहतरीन रहा। शुरुआत उन्होंने टमाटर की उन्नत किस्म अर्का सम्राट से की। उन्होंने प्लास्टिक मल्चिंग के तहत इसका उत्पादन शुरू किया।
मुख्य व्यवसायिक फसल है टमाटर
टमाटर भारत की मुख्य व्यवसायिक फसल है। टमाटर उगाने वाले किसानों को भी मौसम में बदलाव, कीट व बीमारियों के प्रकोप, सूखे, बोरवेल के सूखने और मजृदूरों की कमी की समस्या झेलनी पड़ती है। पिछले 3-4 सालों में लेट ब्लाइट और लीफ कर्ल रोग, टमाटर की फसल के लिए बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। साथ ही खेती की लागत बढ़ने से किसानों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरोजा भी कोई अपवाद नहीं थीं।
इन समस्याओं के समाधान के लिए KVK हिरेहल्ली ने 2013-14 के दौरान उनके खेत में फ्रंट लाइन डिमॉन्स्ट्रेशन (एफएलडी) के तहत टमाटर की फसल में ड्रिप सिंचाई के साथ प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक का प्रदर्शन शुरू किया। श्रीमती सरोजा पहले मॉनसून में रागी और धान की फसल ही उगाती थी, क्योंकि उन्हें अधिक लाभ देने वाली फसलों की जानकारी नहीं थी। जब उन्होंने केवीके, हिरेहल्ली का दौरा किया तो वैज्ञानिकों ने उन्हें प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक से टमाटर की उन्नत किस्म अर्का सम्राट की खेती की जानकारी दी।
ये भी पढ़ें: फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा है प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक, जानिए कैसे?
टमाटर की बढ़ी पैदावार
वैज्ञानिकों के सुझाव के आधार पर उन्होंने गर्मियों में टमाटर की खेती का फैसला किया और एक एकड़ में टमाटर की हाइब्रिड किस्म अर्का सम्राट का उत्पादन प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक से किया। सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक अपनाई। वह अक्सर वैज्ञानिकों से सलाह लेती रहती थीं। मल्चिंग से नमी संरक्षण, खरपतवार दमन और मिट्टी की संरचना के रखरखाव में मदद मिली। उर्वरक की बर्बादी रोकने में मदद मिली, साथ ही कीटों और वायरल रोगों में कमी आई।
इससे अच्छी फसल प्राप्त हुई। बुवाई के 65 दिन बाद उनकी टमाटर की फसल तैयार थी और प्रति एकड़ 32.50 टन टमाटर प्राप्त हुआ। इसे 10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचने पर उनकी करीब 3.25 लाख रुपये प्रति एकड़ की बिक्री हुई। टमाटर की खेती में कुल लागत 60,000 रुपए आई। इस तरह उन्हें 2.65 लाख का मुनाफ़ा हुआ।
अन्य किसान भी उनकी प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक से प्रभावित हुए क्योंकि इसमें पानी और खाद भी कम मात्रा में इस्तेमाल हो रहे थे। साथ ही पौधों में कीट व बीमारियां भी नहीं हो रही थीं और और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर थी। इसीलिए बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत भी मिल रही थी।
बहु फसल का सुझाव
मल्च और ड्रिप सिंचाई में किए गए निवेश से अधिक लाभ उठाने के लिए श्रीमती सरोजा को बहु फसल उगाने की सलाह दी गई। टमाटर के बाद दूसरी फसल फ्रेंच बीन्स थी। ये बुवाई के 55 दिन बाद काटने के लिए तैयार थी और प्रति एकड़ 3.5 टन बीन्स प्राप्त हुई । इसे 22 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर उन्हें करीब 77,000 रुपए की कुल आय हुई। लागत घटाने के बाद आमदनी 64,500 रुपए हुई।
Follow Kisan of India on Youtube
इसके बाद तीसरी फसल के रूप में उन्होंने गेंदे के फूल लगाए। उन्होंने अर्का बांगरा किस्म लगाई जिसे कटिंग से उगाकर उसी पॉली मल्च में लगाया गया जिसमें टमाटर और बीन्स उगाए गए थे। 45 दिन बाद उन्हें 1800 किलो फूल प्राप्त हुए जिन्हें 20 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर करीब 36000 रुपए की आमदनी हुई। लागत घटाने के बाद 27,500 रुपए का शुद्ध लाभ हुआ। इस तरह तीनों फसलों से उन्हें कुल करीब साढ़े तीन लाख रुपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ।
मिल चुका है सम्मान
श्रीमती सरोजा को उनकी उपलब्धियों के लिए 2014 में आईआईएचआर की ओर से अभिनव कृषि महिला पुरस्कार मिला। अब इलाके के अन्य किसानों के लिए वह प्रेरणास्रोत बनकर सामने आई हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- विश्व दुग्ध दिवस (World Milk Day): महिला किसान ने अपने बलबूते पर खड़ा किया डेयरी फ़ार्म (Dairy Farm), रोज़ाना 1200 लीटर दूध का उत्पादनदूध का उत्पादन, डेयरी व्यवसाय किसानों के लिए किस तरह फ़ायदे का बिज़नेस बन रहा है, इसको लेकर महिला किसान सरनजीत कौर ने किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत की। जानिए डेयरी फ़ार्मिंग (Dairy Farming) से जुड़ी उनकी कई सलाहों के बारे में।
- लाख कीट पालन: अरहर पर लाख कीट पालन है मुनाफ़े का सौदा, जानिए इसका तरीकालाख एक कीट है जिसकी खेती आमतौर पर पालस, कुसुम और बेर के पेड़ों पर की जाती है। अरहर पर लाख कीट पालन अन्य पेड़ों की अपेक्षा आसान है और बिना अधिक मेहनत के किसान इससे अतिरिक्त मुनाफ़ा प्राप्त कर सकते हैं।
- सजावटी झींगा पालन (Ornamental Prawn Cultivation) से आत्मनिर्भर बन रहीं लक्षद्वीप (Lakshadweep) की महिलाएंबिखरे हुए द्वीपों वाले लक्षद्वीप में मछली पालन के अलावा, ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए, वैकल्पिक आय का कोई स्रोत नहीं था। अब ICAR-NBFGR ने सजावटी झींगा पालन के रूप में उन्हें आजीविका का नया साधन दिया है।
- Liquid Nanoclay Technology: कैसे लिक्विड नैनोक्ले तकनीक रेतिली ज़मीन को बना रही उपजाऊ?कृषि के क्षेत्र में हर दिन नए प्रयोग हो रहे हैं। इन्हीं प्रयोगों में से एक है नैनोक्ले तकनीक, जिसकी बदौलत रेगिस्तान में भी रसीले फल व सब्ज़ियां उगाई जा सकती हैं। इस तकनीक का सफल प्रयोग यूएई में हो चुका है।
- सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक (Embryo transfer technology) से हुआ देश के पहले मारवाड़ी घोड़े का जन्मदेश में घोड़ों की संख्या में पिछले कुछ सालों में बहुत कमी आई है। इसीलिए वैज्ञानिक घोड़ों, खासकर देसी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्हें भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से एक बड़ी सफ़लता मिली है।
- रोटरी डिस्क ड्रिल (Rotary Disc Drill) – फ़सल कटाई के बाद पराली और अवशेष प्रबंधन का कारगर और दमदार उपकरणउत्तर भारत में फ़सल अवशेषों या पराली जलाना एक गंभीर समस्या है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण दोनों को नुकसान होता है। इस समस्या से निपटने के लिए ICAR ने रोटरी डिस्क ड्रिल (RDD) मशीन बनाई है। इसकी मदद से बिना पराली जलाए, फ़सलों की सीधी बुवाई की जा सकती है।
- Mushroom Processing: कैसे होती है मशरूम की व्यावसायिक प्रोसेसिंग? जानिए घर में मशरूम कैसे होगा तैयार?मशरूम उत्पादक किसान यदि ख़ुद अपनी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से प्रोसेस्ड मशरूम को ख़रीदकर लाना और फिर उसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।
- जानिए क्यों महाराष्ट्र की इस महिला किसान को लोगों ने दिया ‘लेडी प्लांट डॉक्टर’ का ख़िताब!महाराष्ट्र के अहमद नगर ज़िले की रहने वाली कविता प्रवीण जाधव का शुरू से ही खेती के प्रति लगाव था। उन्होंने किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए कई अहम कदम उठाए। आज उनके साथ कई महिला किसान जुड़ी हुई हैं।
- जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
- कपास की खेती में फायदेमंद है स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमालकपास एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कपड़ा उद्योग के लिए तो कपास कच्चा माल प्रदान करता ही है, साथ ही इसके बीज से तेल भी बनाया जाता है। कपास की मांग हमेशा बाज़ार में बनी रही है, ऐसे में किसान स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमाल करके इसका उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
- सब्ज़ी नर्सरी (Vegetable Nursery): असम के किसान जयंती मेधी ने मिट्टी रहित सब्ज़ियों की पौध तैयार कर खड़ा किया सफल नर्सरी उद्योगयदि रोपण सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली हो तो सब्ज़ी नर्सरी में सब्ज़ियों की फसल भी अच्छी होती है। अपने इलाके में लोगों को बेहतरीन रोपण सामग्री मुहैया कराने के लिए जयंती मेधी ने एक अनोखा प्रयोग किया और बिना मिट्टी के ही विभिन्न सब्ज़ियों की पौध तैयार कर सफल उद्यम स्थापित कर लिया।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): चौलाई की ये 10 उन्नत किस्में देती हैं अच्छी पैदावार, कई पोषक तत्वों से भरपूरचौलाई को औषधीय पौधा भी माना जाता है। ये इकलौता ऐसा पौधा है जिसमें सोने (gold) का अंश पाया जाता है। इसका जड़, तना, पत्ती और फल सभी उपयोगी हैं। चौलाई की खेती कर रहे किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में ईज़ाद की हैं। आइए आपको बताते हैं उन किस्मों के बारे में।
- Amla Processing: आज आंवले की खेती के ‘मार्केटिंग गुरु’ हैं कैलाश चौधरी, ज़ीरो से शुरू किया था सफ़रकैलाश चौधरी पिछले 6 दशक से खेती कर रहे हैं। आंवले की खेती ने उन्हें देश-दुनिया में पहचान दी है। कैलाश चौधरी कहते हैं खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं।
- Vegetable Nursery: सब्जियों की नर्सरी में इनोवेटिव तकनीक का इस्तेमाल, मणिपुर के इस युवा ने ईज़ाद किया तरीकासब्जियों के बीज बहुत नाज़ुक होते हैं और उन्हें अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। इसलिए अधिकांश सब्जियों की पौध पहले नर्सरी में तैयार की जाती है, फिर खेत में उन्हें लगाया जाता है। मणिपुर के एक किसान ने नर्सरी में गुणवत्तापूर्ण सब्जियोंकी पौध तैयार करने के लिए एक नई तकनीक ईज़ाद की है, जिससे उनका मुनाफा बढ़ गया। सब्जियों की नर्सरी में कैसे ये तकनीक कारगर हो सकती है, जानिए इस लेख में।
- Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से चाहिए ज़्यादा कमाई तो अपनाएँ कठिया गेहूँ की किस्मेंसेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
- Azolla Cultivation: अजोला की खेती पशुओं के साथ ही धान की फसल के लिए भी है फ़ायदेमंदअजोला पशुओं के लिए बेहतरीन हरा चारा है, जिसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। अजोला को उगाना बहुत आसान है। बस इसके लिए पानी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा किसी तरह के खाद या उर्वरक की कोई ज़रुरत नहीं होती है। ये अपने आप दोगुना होता रहता है। अजोला की खेती कैसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है, देखिए प्लांट प्रोटेक्शन की सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट हिना कौशर से खास बातचीत।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): छोटी जोत वाले किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद? जानिए इससे जुड़ी अहम बातेंचौलाई से मिलने वाले साग (सब्ज़ी) और दाना (अनाज) दोनों ही नकदी फसलें हैं। चौलाई के खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। जानिए चौलाई की खेती से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां।
- Kitchen Garden: अतिथि पोपली 25 सालों से किचन गार्डन में उगा रहीं सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियांशहर में जगह की कमी के चलते जो लोग अपने बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पातें, वो अतिथि पोपली से सीख ले सकते हैं। जो पिछले 25 सालों से गमले और घर के सामने की छोटी सी जगह में सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियां उगा रही हैं।
- Sesame Cultivation: गर्मियों में तिल की खेती करना किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद?आमतौर पर तिल की खेती को मुनाफ़े का सौदा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसमें पैदावार कम होती है, लेकिन तिल की खेती यदि उन्नत तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। उन्नत किस्म के बीजों के साथ गर्मियों के मौसम में तिल की खेती करना अच्छा रहेगा, क्योंकि यह मौसम तिल के लिए उपयुक्त होता है।
- Top 10 Desi Cow Breeds: गौपालन से जुड़े हैं तो जानिए देसी गाय की 10 उन्नत नस्लों कोउन्नत नस्ल की देसी गायों को पालने पर दूध का उत्पादन अन्य देसी गायों के मुक़ाबले अधिक होता है। ज़ाहिर है, इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी। एक बात का ध्यान ज़रूर रखें। हर क्षेत्र के हिसाब से कौन सी देसी गाय उन्नत नस्ल की है, इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही उस नस्ल को पालें।