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लीची की खेती के साथ शहद उत्पादन और अन्य कई फसलों की खेती, राजू सिंह ने अपनाई अपनाई उन्नत तकनीकें

व्यावसायिक खेती को दे रहे बढ़ावा

गोरखपुर ज़िले के हरपुर गाँव के रहने वाले राजू सिंह लीची की खेती के साथ ही शहद उत्पादन भी कर रहे हैं। कैसे उन्हें फ़ायदा हो रहा है और कृषि विज्ञान केंद्र का उन्हें किस तरह से सहयोग मिला, जानें इस लेख में।

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जो किसान अब खेती को व्यवसाय की तरह कर रहे हैं और मुनाफ़ा कमाने के लिए नयी तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों का पालन करने से नहीं हिचकिचाते, उन्हें सफलता ज़रूर मिलती है। ऐसे ही एक प्रगतिशील और इनोवेटिव किसान हैं गोरखपुर ज़िले के हरपुर गांव के रहने वाले राजू सिंह। वह लीची की खेती के साथ ही कई और फसलों की भी उपज लेते हैं। इसके अलावा, मधुमक्खी पालन भी कर रहे हैं। कृषि से जुड़ी इन गतिविधियों में गोरखपुर स्थित महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। उनकी सलाह वो वक़्त-वक़्त पर लेते रहते हैं।

लीची के बागान के साथ शहद उत्पादन

गोरखपुर ज़िले के हरपुर गाँव के रहने वाले राजू सिंह जब महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए और लीची के बागान, शहद का उत्पादन, नर्सरी और चावल, गेहूं फसल प्रणाली में अपनी दिलचस्पी दिखाई तो KVK ने उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया। इतना ही नहीं, KVK ने उन्हें लीची के बागान के लिए नए उपकरण और वैज्ञानिक तरीके से शहद का उत्पादन करने की सलाह दी। इसके अलावा, राज्य के बागवानी विभाग से आर्थिक मदद दिलाने में भी मदद की। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित कई ट्रेनिंग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। KVK ने उन्हें कृषि और बागवानी आधारित उत्पाद बनाने के लिए अन्य किसानों के साथ मिलकर कृषि उत्पादों के लिए कंपनी बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

तस्वीर साभार: KVK

कितनी होती है आमदनी?

राजू सिंह को कृषि और अन्य गतिविधियों से सालाना करीबन 6 लाख 25 हज़ार रुपये की आमदनी होती है। उनके बागान में लीची के करीबन 100 पेड़ हैं। इससे उन्हें 70 हज़ार रुपये, शहद उत्पादन से 3 लाख रुपये और 6 एकड़ के क्षेत्र में लगे चावल और गेहूं की फसल से करीबन 2 लाख 55 हज़ार रुपये की आमदनी होती है।

बन चुके हैं जाने-माने उद्यमी

राजू सिंह अब अन्य किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। लीची के बागान, मधुमक्खी पालन और व्यवसायिक खेती करने वाले राजू सिंह प्रगतिशील किसान हैं, जो जैविक उत्पादों को भी बढ़ावा देते हैं। इन उत्पादों ने उन्हें आजीविका चलाने में मदद करने के साथ ही आर्थिक रूप से समृद्ध भी बनाया है।

तस्वीर साभार: KVK

लीची की खेती

भारत में सबसे अधिक लीची की खेती बिहार के दो ज़िलों बिहार मुज़फ़्फ़रपुर और दरभंगा में होती है। लीची की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उत्तम होती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है, जिसमें अधिक पानी सहने की क्षमता होती है। इसके अलावा, हल्की अम्लीय व लेटराइट मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। लीची का पेड धीमी गति से बढ़ता है। फसल लगने में 7-10 साल का समय लग सकता है। इसलिए शुरुआती 3-4 साल तक किसान अंतर फसल उगाकर आमदनी बढ़ा सकते हैं। लीची के पौधे नाज़ुक होते हैं। ऐसे में तेज़ हवाओं से इन्हें बचाने के लिए आसपास आम और जामुन के पौधे लगा सकते हैं।

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