Goat Farming : बकरी पालन से आत्मनिर्भर बन रही बिहार की गरीब ग्रामीण महिलाएं
टीकाकरण व बकिरयों की डी-वॉर्मिंग से मृत्यु दर में आई कमी
बिहार के ग्रामीण इलाके जहां लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं हैं और अनियमित वर्षा और कम ज़मीन के कारण खेती से भी आमदनी नहीं होती, वहां बकरी पालन एक बेहतरीन विकल्प है। बकरी पालन ने राज्य के ग्रामीण इलाकों की कई गरीब महिलाओं की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल दी।
ग्रामीण अंचल में छोटे और सीमांत किसानों के साथ ही बेरोज़गार महिलाओं के लिए भी बकरी पालन व्यवसाय उम्मीद की किरण बनकर उभरा है। बकरी पालन की वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर कई महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं और अपने परिवार को अच्छी ज़िंदगी देने में सफल हो रही हैं। बकरी पालन को बढ़ावा देने और इसकी सही तकनीक लोगों को समझाने के लिए बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (Bihar Rural Livelihood Promotion Society) ने अपनी तरफ से पहल की है और इसका फायदा भी दिख रहा है। ग्रामीण इलाकों में बकरियों की मृत्यु दर में कमी आई है, जिससे बकरी पालकों का मुनाफा बढ़ा है । बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ओर से की गई पहल में बकरी पालकों का समूह बनाने से लेकर पशु सखी मॉडल शामिल है।
बकरी उत्पादकों का समूह
बकरी पालकों को सही तरीके से बकरी पालन करने और उनका मुनाफा बढ़ाने के लिए ग्रामीण स्तर पर 40 परिवारों को संगठित करके उनका समूह बनाया। इससे बकरी पालकों को बकरी की देखभाल और रख-रखाव से जुड़ी सही जानकारी मिलेगी, क्योंकि इसकी वजह से बकरियों की मौत हो जाती थी।
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पशु सखी मॉडल
बकरी पालन का अनुभव रखने वाले स्वंय सहायता समूह के स्थानीय सदस्यों को 15 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है। ये लोग पशु सखी कहलाते हैं जो बकरी पालकों की कई तरह से मदद करते हैं, जैसे – बकरियों की नस्ल के चुनाव में मदद, प्रजनन के लिए सही बकरे का चुनाव, बकरियों के आहार, रहने की व्यवस्था, टीकाकरण, अजोला और मोरिंगा का उत्पादन जिसे बकरियों के चारे के रूप में दिया जा सकता है और बकरी पालकों को बकरियों की डी-वॉर्मिंग के बारे में बताने के साथ ही विपणन की सही जानकारी देना।

अन्य मदद
इसके अलावा बकरी उत्पादकों के समूह के उनके भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से नर और मादा बकरियां प्रदान की जाती है ताकि वह उनका प्रजनन करके व्यापार को आगे बढ़ा सके। बकरियों का पालन मुख्य रूप से दूध और मांस के लिए किया जाता है और दोनों की ही गुणवत्ता में सुधार के लिए बकरियों को पौष्टिक आहार देना ज़रूरी है। बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ओर से की गई पहल में बकरी पालकों को आहार प्रबंधन की सही जानकारी दी जाती है। खुले में बकरियों को चराने की बजाय उन्हें अपने आवास पर ही सूखा और हरा चारा की सही मात्रा देने और अजोला के साथ ही मोरिंगा की पत्तियां खिलाने के बारे में बताया जाता है। इतना ही नहीं किसी तरह की समस्या होने पर बकरी उत्पादकों के समूह की मीटिंग बुलाकर समस्या का समाधान निकाला जाता है। इससे छोटे बकरी पालकों को फायदा हुआ है।
बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की पहल या हस्तक्षेप के फायदे…
– बकरियों को स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने के लिए 1,445 पशु सखी बनाए गए।
– इस हस्तक्षेप से बिहार के 18 राज्यों के 1.15 लाख बकरी उत्पादकों तक पहुंचना संभव हुआ।
– बकरी पालकों को उनके घर पर ही टीकाकरण व डी-वॉर्मिंग की सुविधा दी गई और 4,08,066 बकरियों के टीकाकरण के साथ ही 6,31,921 बकरियों की डी-वॉर्मिंग की गई।
– 10,779 अजोला गड्ढ़े, 11,552 मचान/शेड निर्माण, 44,739 फीडर स्थापित किए गए जो पशु सखियों की आमदनी का मुख्य स्रोत बने। पशु सखियों ने 1,07,712 किलोग्राम दाना मिश्रण बकरी पालकों को बेचा।
– सामुदायिक विपणन प्रणाली के तहत बकरी बिक्री केंद्र स्थापित किए गए।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की रहने वाली पिंकी देवी पशु सखी बनकर खुश हैं, क्योंकि अब उन्हें बकरी पालन से अच्छी आमदनी हो रही है। एक अन्य महिला टिंकू देवी की ज़िंदगी भी पशु सखी बनने के बाद बदल गई। वो आत्मनिर्भर बनकर परिवार को सहयोग कर रही हैं।
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