जिन किसानों के पास खेती लायक ज़्यादा भूमि नहीं है या फिर जो भूमिहीन किसान है, उनके लिए मुर्गी पालन एक अच्छा विकल्प है। इसमें ज़्यादा लागत नहीं आती और घर के बच्चे, महिलाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी इसमें आसानी से सहयोग कर सकते हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप में भी कई ग्रामीण परिवार मुर्गी पालन पर निर्भर हैं। कइयों की मुख्य आमदनी का ज़रिया ही यही है। एक आकंडे के मुताबिक, यहां मुर्गियों की संख्या करीब 7.79 लाख है जिसमें से 1.25 लाख उन्नत नस्ल की हैं। यहां लगभग 89 प्रतिशत पशुपालक मुर्गियां पालते हैं। मगर अधिकांश ग्रामिण देसी मुर्गियां पालते हैं, जिनकी उत्पादन दर कम हैं, जिससे उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाता। ग्रामिणों को मुर्गी पालन के सही प्रबंधन और वैज्ञानिक पहलुओं की जानकारी नहीं थी, ऐसे में उनकी आजीविका में सुधार के लिए उन्हें वैज्ञानिक तरीकों और मुर्गी पालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी गई।
वनराजा मुर्गी पालन की जानकारी
ICAR-CIARI पोर्टब्लेयर की तरफ से किसानों को पॉल्ट्री व्यवसाय की उन्नत जानकारी देने की पहल की गई। बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग के तहत वनराजा नस्ल की सामान्य देखभाल और प्रबंधन पर उत्तरी और मध्य अंडमान के दुकेनगर गांव के 24 पोल्ट्री किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। इस ट्रेनिंग में उन्हें बैकयार्ड मुर्गी पालन में वैज्ञानिक तकनीक और कौशल के विषय में जानकारी दी गई।
स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को दिए गए चूज़ें
दो प्रगतिशील किसानों को 50 वनराज चूज़े दिए गए, जो एक दिन के थे। उनके फ़ार्म में विशेषज्ञों ने फील्ड विज़िट किया। पशु चिकित्सा की मदद दी गई। दोनों किसानों ने 4 हफ़्ते तक पक्षियों की देखभाल की। इसके बाद उन्हें स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के बीच वितरित किया गया। जिन वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया उनमें शामिल हैं, मिनी हैचिंग मशीन से आर्टिफिशियल इन्क्यूबेशन, कम कीमत में ब्रूडिंग, स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री के इस्तेमाल से संतुलित आहार तैयार करना, टीकाकरण और डिवॉर्मिंग।
वैज्ञानिक प्रबंधन और पुरानी पद्धति से किए जा रहे मुर्गी पालन में फ़र्क साफ़ नज़र आने लगा। आठवें हफ़्ते में मुर्गी का वज़न 577.28 ग्राम हो गया, जबकि सामान्य तरीके से मुर्गी पालन करने पर वनराजा मुर्गी (Vanaraja Chicken) का वज़न सिर्फ़ 282.57 ग्राम तक ही हुआ। यही नहीं वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करने पर मुर्गियों की मृत्यु दर में भी भारी कमी हुई, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा होने लगा।
वनराजा की विशेषताएं
इन मुर्गियों की देखभाल आसान हैं। ये देसी मुर्गियों से दो महीने कम की उम्र से ही अंडे देना शुरू कर देती हैं। एक साल में ये 90-100 अंडे देती हैं। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। इसका मांस स्वादिष्ट होता है, क्योंकि इसमें ज़्यादा चर्बी नहीं होती है।
खुले में पालने के लिए ये मुर्गी सबसे अच्छी मानी जाती है। एक चूजे का वज़न करीब 34 से 40 ग्राम होता है। 6 सप्ताह में इसका वजन 700 से 850 ग्राम तक हो जाता है। एक किलो के वनराजा मुर्गे की कीमत 500 से 600 रुपये तक होती है। अगर कोई व्यवसायिक स्तर पर इसका पालन करे, तो 500 मुर्गियों से एक लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।
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