Greater Yam Farming: गर्मियों में रतालू की खेती करना किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद?

आलू, प्याज़ और शकरकंद की तरह ही रतालू भी ज़मीन के अंदर उगने वाली एक कंद वर्गीय फसल है। इसका उपयोग सब्ज़ी के रूप में आमतौर पर किया जाता है। गर्मियों के मौसम में रतालू की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है।

रतालू की खेती greater yam farming ratalu ki kheti

रतालू की खेती: रतालू को बहुत से लोग शकरकंद समझ लेते हैं, मगर ये शकरकंद नहीं है। इसे अंग्रेज़ी में Greater Yam कहा जाता है। इसके अलावा अलग-अलग जगहों पर इसे अलग-अलग नामों जैसे काठालू, कटालू, तारदी, ड्रेगल, चोपरी आलू, चोपरी आल से भी जाना जाता है। रतालू में प्रोटीन, विटामिन और खनिज जैसे तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। इसलिए आर्युवेद में इसे औषधि माना गया है।

इसका सेवन डायबिटीज़, थायरॉइड, बवासीर, कैंसर जैसी बीमारियों में फ़ायदेमंद माना जाता है। रतालू की पत्तियां पान की पत्तियों की तरह दिखती हैं। इसका पौधा लता की तरह फैलता है। रतालू का गुदा सफेद या जामुनी रंग का होता है। रतालू की खेती के लिए कैसी जलवायु और मिट्टी उपयुक्त है, आइए जानते हैं।

रतालू की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

रतालू के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु अच्छी मानी जाती है। 28 से 35 डिग्री तापमान में फसल की अच्छी बढ़ोतरी होती है। ज़्यादा ठंड या पाले वाले इलाकों में रतालू की खेती नहीं की जा सकती। रतालू की अच्छी फसल के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी में जल निकासी की उचित व्यवस्था होना ज़रूरी है, वरना इसके कंद सड़ने की आशंका रहती है।

रतालू की खेती greater yam farming ratalu ki kheti
रतालू की खेती Greater Yam Farming (तस्वीर साभार: ICAR)

रतालू की खेती के लिए खेती की तैयारी

बुवाई से पहले खेती की 3-4 गहरी जुताई करें और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 200 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद, 100 किलो पोटाश और 60 किलो फास्फोरस डालें। बुवाई के लिए 45*45*45 सेन्टीमीटर के आकार के गड्ढ़े बनाएं। गड्ढ़ों के बीच 1.5 की दूरी रखें। इन गड्ढ़ों को 2.5 किलो घूरे की खाद और सतही मिट्टी से भर दें। रतालू के बीज के लिए कंद का ऊपरी हिस्सा सबसे उपयुक्त होता है। इसे ही बीज के रूप में लगाया जाता है। एक हेक्टेयर में करीब 20- 30 क्विंटल बीज की ज़रूरत होती है। बुवाई के बाद सिंचाई ज़रूर करें। उसके बाद खेत की नमी के हिसाब से 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। रतालू क्योंकि बेल की तरह फैलती है। इसलिए इसके पौधों को बांस के मोटे खंभों पर चढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया को स्टैकिंग कहते हैं। ऐसा करने से पौधों को पर्याप्त धूप मिलती है।

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रतालू की खेती Greater Yam Farming (तस्वीर साभार: ICAR)
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रतालू की खेती में खरपतवार नियंत्रण ज़रूरी

रतालू की फसल की अच्छी बढ़ोतरी के लिए खरपतवारों का नियंत्रण ज़रूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें खरपतवार ज़्यादा उगते हैं। इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई फसल के 50 फ़ीसदी तक अंकुरण के एक हफ़्ते बाद करें। जबकि दूसरी निराई-गुड़ाई एक महीने बाद करें। बारिश के कारण अगर कंद बाहर निकल आएं, तो उन्हें मिट्टी से दोबारा ढकना होता है। इससे बारिश के कारण नष्ट हुई उपजाऊ मिट्टी का भी संरक्षण होता है।

फसल की कटाई

रतालू की फसल बुवाई के करीब 8-9 महीने बाद ही तैयार हो जाती है। ये कंद है इसलिए खुदाई करके इन्हें ज़मीन के नीचे से निकाला जाता है। जब पत्तियां बड़ी संख्या में पीली हो जाती हैं, तो सावधानी से खुदाई करके कंद निकाले जाते हैं। आमतौर पर एक हेक्टेयर में रतालू की खेती से 300-400 क्विंटल तक फसल प्राप्त हो जाती है।

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रतालू की खेती Greater Yam Farming (तस्वीर साभार: ICAR)

रतालू की उन्नत खेती से किसान मुनाफ़ा तो कमा ही सकते हैं। साथ ही इसका सेवन उनके और उनके परिवार को पर्याप्त पोषण भी देगा। जहां तक खर्च का सवाल है, तो एक हेक्टेयर की खेती में करीब 70 हज़ार से लेकर 1 लाख तक का खर्च आता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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