मुर्गीपालन जहाँ बड़े-बड़े पॉल्ट्री फ़ार्म के रूप में होता है, वहीं छोटे और मझोले पैमाने पर किसान भी इसे अपनाते हैं, क्योंकि इससे उनका ‘कैश फ्लो’ यानी नकदी आमदनी बनी रहती है। इसीलिए, मुर्गीपालन को अतिरिक्त कमाई के लिए भी अपनाया जाता है। बॉयलर और देसी मुर्गी के अलावा कड़कनाथ नस्ल का भी मुर्गीपालन में अच्छा दबदबा है।
वैसे तो हरेक नस्ल की अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ होती हैं, लेकिन कड़कनाथ की ख़ूबियों ने हाल के वर्षों में मुर्गीपालकों को ख़ासा आकर्षित किया है। इसे देखते हुए कई राज्य सरकारों और बैंकों की ओर से कड़कनाथ को प्रोत्साहित करने की योजनाएँ चलायी जा रही हैं।
क्या है GI Tag की अहमियत?
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और धार ज़िलों के अलावा समीपवर्ती छत्तीसगढ़ के इलाकों में कड़कनाथ नस्ल का पारम्परिक दबदबा रहा है। अब तो यहाँ के कड़कनाथ को विशेष भौगोलिक पहचान यानी Geographical Indication (GI) टैग भी हासिल है। इसकी वजह से कड़कनाथ की विदेशों में भी माँग है। GI Tag के ज़रिये किसी खाद्य पदार्थ, प्राकृतिक और कृषि उत्पादों तथा हस्तशिल्प के उत्पादन क्षेत्र की गारंटी दी जाती है। भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत GI Tag वाली पुख़्ता पहचान देने की शुरुआत 2013 में हुई। ये किसी ख़ास क्षेत्र की बौद्धिक सम्पदा का भी प्रतीक है। एक देश के GI Tag पर दूसरा देश दावा नहीं कर सकता। भारत के पास आज दुनिया में सबसे ज़्यादा GI Tag हैं। इसकी वजह से करीब 365 भारतीय उत्पादों की दुनिया में ख़ास पहचान है।

कम खर्चीला और आसान है कड़कनाथ को पालना
कड़कनाथ को स्थानीय बोली में ‘कालामासी’ भी कहते हैं, क्योंकि ‘मिलेनिन पिग्मेंट’ की अधिकता वाली इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गी का माँस, चोंच, पंख, कलंगी, टाँगे, ज़ुबान, नाख़ून, चमड़ी, हड्डी आदि सभी का रंग काला होता है। इसकी तीन प्रमुख नस्लें हैं – जेट ब्लैक, पेंसिल्ड और गोल्डन। इनमें से जेट ब्लैक यानी बिल्कुल काले नस्ल की माँग सबसे अधिक है। गोल्डन नस्ल वाले कड़कनाथ कम मिलते हैं। अन्य नस्लों के मुक़ाबले कड़कनाथ को पालना आसान और कम खर्चीला है, क्योंकि इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं। इसका रखरखाव बॉयलर और देसी मुर्गी के मुक़ाबले आसान होता है। इन्हें बाग़ में शेड बनाकर पाला जाए तो खान-पान का ख़र्च भी किफ़ायती रहता है।
कड़कनाथ देता है ज़्यादा कमाई
देसी मुर्गी की तुलना में कड़कनाथ नस्ल के मुर्गीपालन से होने वाली कमाई काफ़ी ज़्यादा होती है। जहाँ देसी मुर्गा 700 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है, वहीं कड़कनाथ का दाम 900 से 1200 रुपये प्रति किलो होता है। कड़कनाथ के परिपक्व नर का वजन 1.8 से 2.3 किलोग्राम और मादा का वजन 1.25 से 1.5 किलोग्राम के आसपास होता है। कड़कनाथ मुर्गी साल में 110 से 120 अंडे देती है। इसका अंडे का वजन 30 से 35 ग्राम और रंग हल्का भूरा या गुलाबी होता है। कड़कनाथ मुर्गी का एक अंडा 25 से 50 रुपये तक बिकता है।

बेहद गुणवान हैं कड़कनाथ
कड़कनाथ का माँस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसमें आयरन और प्रोटीन की प्रचुरता तथा कोलेस्ट्रॉल यानी फैट बेहद कम होता है। इसे दिल के मरीज़ों और डाइबिटीज के रोगियों के लिए बढ़िया माना गया है। ये होम्योपैथी और तंत्रिका विकार की दशा में भी औषधि का काम करता है। आदिवासी समाज में इसके रक्त से अनेक गम्भीर रोगों के इलाज़ भी प्रचलित है। इसके माँस का सेवन कामोत्तोजना बढ़ाने के लिए भी करते हैं। इन्हीं विशेषताओं की वजह से न सिर्फ़ ख़ुद कड़कनाथ का भाव ऊँचा रहता है, बल्कि इसका माँस और अंडा भी बढ़िया दाम पाते हैं। कड़कनाथ के चूज़ों को बेचने से भी अच्छी आमदनी होती है, क्योंकि इसकी बाज़ार में ख़ूब माँग है और ये जल्दी बिकने वाली नस्ल है। इसीलिए ये स्थानीय बाज़ारों के अलावा ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।
ज़ोरदार है कड़कनाथ की माँग
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई कृषि विज्ञान केन्द्र कड़कनाथ के चूजों की माँग पूरा नहीं कर पाते हैं। वहाँ से कुछ मुर्गीपालक जहाँ 15 दिन का चूजा ले जाते हैं, वहीं कुछ लोग एक दिन का चूजा ले जाना भी पसन्द करते हैं। चूजे का दाम 70-100 रुपये के बीच होता है। कड़कनाथ का चूजा साढ़े तीन से चार महीने में वयस्क या बेचने लायक हो जाता है। बाज़ार में इसकी कीमत 3,000-4,000 रुपये होती है। वैसे तो इसका माँस 700 से 1000 रुपये प्रति किग्रा तक बिकता है। लेकिन सर्दियों में माँस की खपत बढ़ने पर दाम 1000 से 1200 रुपये प्रकि किलो तक हो जाता है।

बैंकों से मिलता है रियायती कर्ज़
यदि आप मुर्गीपालन का पेशा अपनाना चाहते हैं या फिर अपने मौजूदा व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो आपको लगभग सभी बैंकों से आसान शर्तों पर कर्ज़ मिल सकता है। सभी राज्यों में नेशनल लाईव स्टॉक मिशन और नाबार्ड (NABARD, National Bank for Agriculture and Rural Development) के पॉल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF) के तहत मुर्गीपालकों को कर्ज़ और सब्सिडी का लाभ मिल सकता है। सब्सिडी की दर सामान्य वर्ग के आवेदकों के लिए 25 प्रतिशत और BPL तथा और SC/ST समुदाय के लोगों और उत्तर-पूर्वी राज्यों के निवासियों के लिए करीब 33 फ़ीसदी है। वैसे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों के पशुपालन विभाग की ओर से कड़कनाथ नस्ल के मुर्गों के संरक्षण और सम्वर्धन के लिए ख़ास योजनाएँ भी चलायी जाती हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में है बेजोड़ प्रोत्साहन
मध्य प्रदेश सरकार अपने सभी ज़िलों में कड़कनाथ के 40 चूजों के पालन के लिए 4400 रुपये का अनुदान या सब्सिडी देती है। ये कुल खर्च का 75 प्रतिशत है। इसमें लाभार्थी को बाक़ी 1100 रुपये या 25 प्रतिशत रकम आवेदन फ़ॉर्म के साथ अपने ज़िले के पशु चिकित्सा अधिकारी या पशु औषधालय के प्रभारी या उपसंचालक, पशु चिकित्सा के पास जमा करवाना पड़ता है। सब्सिडी में 65 रुपये प्रति चूजा, 5 रुपये उसे टीका लगाने और 220 रुपये का ढुलाई भाड़ा तथा चूजों के लिए महीने भर के आहार का दाम 1390 रुपये दिया जाता है। आहार की मात्रा 48 ग्राम प्रति चूजा तय की गयी है। योजना का पूरा ब्यौरा पशुपालन विभाग, मध्य प्रदेश की वेबसाइट mpdah.gov.in पर मौजूद है।
छत्तीसगढ़ में 53,000 रुपये जमा करने पर सरकार की ओर से तीन किस्तों में 1000 चूजे, 30 मुर्गियों के शेड और छह महीने तक मुफ़्त दाना या आहार मुहैया कराया जाता है। चूजों के टीकाकरण और स्वास्थ्य की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी सरकार उठाती है और मुर्गों के वयस्क होने पर इनकी मार्केटिंग का काम भी करती है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भी है ख़ासी माँग
कड़कनाथ की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) में भी ख़ासी माँग है। इस व्यवसाय के लिए आपको अच्छी नस्ल वाली स्वस्थ कड़कनाथ मुर्गियाँ पालनी होंगी और किसी अच्छी कम्पनी से अपने उत्पादों की सीधी ख़रीदारी के लिए करार (कॉन्ट्रैक्ट) करना होगा। करार करने से पहले कम्पनी की ढंग से जाँच करना ज़रूरी है।

पॉल्ट्री फार्म के लिए नाबार्ड की योजना
मुर्गीपालन के क्षेत्र में किसानों के अलावा छोटे-बड़े व्यावसायियों की भी दिलचस्पी रहती है, क्योंकि गाँव हों या शहर, चिकन और अंडों की माँग में हर जगह औसतन 10 प्रतिशत सालाना का इज़ाफ़ा हो रहा है। पॉल्ट्री फार्म का बिज़नेस करने के इच्छुक लोगों को नाबार्ड की योजनाओं के अनुसार आसानी से कर्ज़ या वित्तीय सहायता मिल जाती है। पॉल्ट्री फार्म के उद्यमियों के लिए किसी शैक्षिक योग्यता की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन यदि उनके पास मुर्गीपालन से सम्बन्धित कोई प्रशिक्षण या अनुभव हो तो उन्हें बैंक से कर्ज़ मिलने में आसानी होती है। मुर्गीपालन के लिए पॉल्ट्री शेड, फीड रूम और अन्य सुविधाओं के निर्माण के लिए कर्ज़ मिलता है। इस कर्ज़ के लिए कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है। लिहाज़ा, उद्यमी को आवश्यकतानुसार मदद मिलती है।
पॉल्ट्री फार्म यानी कुक्कुट व्यवसाय दो तरह के होते हैं – अंडा व्यापार (Hatching Plant) और मुर्गा फार्म। अंडा व्यवसायियों को लेयर मुर्गियाँ पालना होता है और चिकन या मुर्गा के माँस के व्यवसायियों को ब्रोइलर मुर्गियों को पालना होता है। वैसे, दोनों व्यवसाय एक साथ भी किया जाता है। नाबार्ड की ओर से तैयार मॉडल परियोजनाओं के मुताबिक, यदि आप कम से कम 10 हज़ार मुर्गियों के साथ पॉल्ट्री ब्रोइलर मुर्गा फार्मिंग करना चाहते हैं तो आपको ज़मीन के अलावा 4-5 लाख रुपये की व्यवस्था करनी होगी, जबकि यदि आप 10 हज़ार मुर्गियों के साथ कुक्कुट लेयर फार्मिंग यानी अंडा व्यवसाय करना चाहते हैं, तो आपको ज़मीन के अलावा 10 से 12 लाख रुपये की व्यवस्था करनी होगी। बैंकों से पूरे प्रोजेक्ट की 75 फ़ीसदी रक़म का कर्ज़ मिल सकता है। कर्ज़ के लिए नाबार्ड कंसल्टेंसी सेवा की मदद भी ली जा सकती है।
पॉल्ट्री बिज़नेस के लिए जगह कितनी चाहिए?
पॉल्ट्री फार्म के लिए जगह सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी ज़रूरत है। आमतौर पर एक चिकन को कम से कम 1 वर्ग फुट जगह चाहिए। यदि ये जगह 1.5 वर्ग फुट प्रति चिकन हो तो अंडों या चूजों के नुकसान का खतरा बहुत कम हो जाता है। पॉल्ट्री फार्म शहरों के विकसित क्षेत्र से बाहर और ऐसी जगह पर होना चाहिए जहाँ मज़दूर, पेयजल और सड़क की सुविधा हो तथा पॉल्ट्री फार्म की गन्दगी के निपटारे की मुफ़ीद व्यवस्था हो। एक पॉल्ट्री फार्म के आधे किलोमीटर से कम दूरी पर दूसरा पॉल्ट्री फार्म नहीं होना चाहिए।

पॉल्ट्री फार्म के लिए लोन कैसे लें?
मुर्गीपालन के लिए बैंकों से मिलने वाला कर्ज़ आमतौर पर दो तरह का होता है। पहला, छोटे या भूमिहीन किसान-मज़दूर या ऐसा बेरोज़गार जो छोटे पैमाने पर मुर्गीपालन करके अपने आमदनी बढ़ाना चाहता हो। और दूसरा, पहले से ही मुख्य व्यवसाय के तहत पॉल्ट्री फार्मिंग करने वाले लोग। पॉल्ट्री फार्म के लिए कर्ज़ लेने वाले व्यक्ति के पास इस क्षेत्र का अच्छा अनुभव होना आवश्यक है। बैंकों से मौजूदा पॉल्ट्री फार्म की क्षमता बढ़ाने के लिए कर्ज़ मिलता है।
जहाँ तक कर्ज़ के लिए बैंक में आवेदन करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ों का ताल्लुक है तो पॉल्ट्री फार्म की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अलावा आवेदक की पहचान से सम्बन्धित सामान्य काग़ज़ातों की ही ज़रूरत पड़ती है। जैसे – पहचान पत्र, तस्वीर, ज़मीन का लीज़ समझौता और बैंक खाते का ब्यौरा आदि। कर्ज़ की बड़ी रकम के लिए बैंकों की ओरसे कई बार गारंटी भी माँगी जाती है। आमतौर पर कर्ज़ 5 साल के लिए दिया जाता है और विशेष परिस्थितियों में इसका मियाद बढ़ायी भी जा सकती है। ब्याज़ की दर अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आमतौर पर ये 10 से 12 फ़ीसदी होती है।
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