मुर्गीपालन जहाँ बड़े-बड़े पॉल्ट्री फ़ार्म के रूप में होता है, वहीं छोटे और मझोले पैमाने पर किसान भी इसे अपनाते हैं, क्योंकि इससे उनका ‘कैश फ्लो’ यानी नकदी आमदनी बनी रहती है। इसीलिए, मुर्गीपालन को अतिरिक्त कमाई के लिए भी अपनाया जाता है। बॉयलर और देसी मुर्गी के अलावा कड़कनाथ नस्ल का भी मुर्गीपालन में अच्छा दबदबा है।
वैसे तो हरेक नस्ल की अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ होती हैं, लेकिन कड़कनाथ की ख़ूबियों ने हाल के वर्षों में मुर्गीपालकों को ख़ासा आकर्षित किया है। इसे देखते हुए कई राज्य सरकारों और बैंकों की ओर से कड़कनाथ को प्रोत्साहित करने की योजनाएँ चलायी जा रही हैं।
क्या है GI Tag की अहमियत?
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और धार ज़िलों के अलावा समीपवर्ती छत्तीसगढ़ के इलाकों में कड़कनाथ नस्ल का पारम्परिक दबदबा रहा है। अब तो यहाँ के कड़कनाथ को विशेष भौगोलिक पहचान यानी Geographical Indication (GI) टैग भी हासिल है। इसकी वजह से कड़कनाथ की विदेशों में भी माँग है। GI Tag के ज़रिये किसी खाद्य पदार्थ, प्राकृतिक और कृषि उत्पादों तथा हस्तशिल्प के उत्पादन क्षेत्र की गारंटी दी जाती है। भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत GI Tag वाली पुख़्ता पहचान देने की शुरुआत 2013 में हुई। ये किसी ख़ास क्षेत्र की बौद्धिक सम्पदा का भी प्रतीक है। एक देश के GI Tag पर दूसरा देश दावा नहीं कर सकता। भारत के पास आज दुनिया में सबसे ज़्यादा GI Tag हैं। इसकी वजह से करीब 365 भारतीय उत्पादों की दुनिया में ख़ास पहचान है।

कम खर्चीला और आसान है कड़कनाथ को पालना
कड़कनाथ को स्थानीय बोली में ‘कालामासी’ भी कहते हैं, क्योंकि ‘मिलेनिन पिग्मेंट’ की अधिकता वाली इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गी का माँस, चोंच, पंख, कलंगी, टाँगे, ज़ुबान, नाख़ून, चमड़ी, हड्डी आदि सभी का रंग काला होता है। इसकी तीन प्रमुख नस्लें हैं – जेट ब्लैक, पेंसिल्ड और गोल्डन। इनमें से जेट ब्लैक यानी बिल्कुल काले नस्ल की माँग सबसे अधिक है। गोल्डन नस्ल वाले कड़कनाथ कम मिलते हैं। अन्य नस्लों के मुक़ाबले कड़कनाथ को पालना आसान और कम खर्चीला है, क्योंकि इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं। इसका रखरखाव बॉयलर और देसी मुर्गी के मुक़ाबले आसान होता है। इन्हें बाग़ में शेड बनाकर पाला जाए तो खान-पान का ख़र्च भी किफ़ायती रहता है।
कड़कनाथ देता है ज़्यादा कमाई
देसी मुर्गी की तुलना में कड़कनाथ नस्ल के मुर्गीपालन से होने वाली कमाई काफ़ी ज़्यादा होती है। जहाँ देसी मुर्गा 700 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है, वहीं कड़कनाथ का दाम 900 से 1200 रुपये प्रति किलो होता है। कड़कनाथ के परिपक्व नर का वजन 1.8 से 2.3 किलोग्राम और मादा का वजन 1.25 से 1.5 किलोग्राम के आसपास होता है। कड़कनाथ मुर्गी साल में 110 से 120 अंडे देती है। इसका अंडे का वजन 30 से 35 ग्राम और रंग हल्का भूरा या गुलाबी होता है। कड़कनाथ मुर्गी का एक अंडा 25 से 50 रुपये तक बिकता है।

बेहद गुणवान हैं कड़कनाथ
कड़कनाथ का माँस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसमें आयरन और प्रोटीन की प्रचुरता तथा कोलेस्ट्रॉल यानी फैट बेहद कम होता है। इसे दिल के मरीज़ों और डाइबिटीज के रोगियों के लिए बढ़िया माना गया है। ये होम्योपैथी और तंत्रिका विकार की दशा में भी औषधि का काम करता है। आदिवासी समाज में इसके रक्त से अनेक गम्भीर रोगों के इलाज़ भी प्रचलित है। इसके माँस का सेवन कामोत्तोजना बढ़ाने के लिए भी करते हैं। इन्हीं विशेषताओं की वजह से न सिर्फ़ ख़ुद कड़कनाथ का भाव ऊँचा रहता है, बल्कि इसका माँस और अंडा भी बढ़िया दाम पाते हैं। कड़कनाथ के चूज़ों को बेचने से भी अच्छी आमदनी होती है, क्योंकि इसकी बाज़ार में ख़ूब माँग है और ये जल्दी बिकने वाली नस्ल है। इसीलिए ये स्थानीय बाज़ारों के अलावा ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।
ज़ोरदार है कड़कनाथ की माँग
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई कृषि विज्ञान केन्द्र कड़कनाथ के चूजों की माँग पूरा नहीं कर पाते हैं। वहाँ से कुछ मुर्गीपालक जहाँ 15 दिन का चूजा ले जाते हैं, वहीं कुछ लोग एक दिन का चूजा ले जाना भी पसन्द करते हैं। चूजे का दाम 70-100 रुपये के बीच होता है। कड़कनाथ का चूजा साढ़े तीन से चार महीने में वयस्क या बेचने लायक हो जाता है। बाज़ार में इसकी कीमत 3,000-4,000 रुपये होती है। वैसे तो इसका माँस 700 से 1000 रुपये प्रति किग्रा तक बिकता है। लेकिन सर्दियों में माँस की खपत बढ़ने पर दाम 1000 से 1200 रुपये प्रकि किलो तक हो जाता है।

बैंकों से मिलता है रियायती कर्ज़
यदि आप मुर्गीपालन का पेशा अपनाना चाहते हैं या फिर अपने मौजूदा व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो आपको लगभग सभी बैंकों से आसान शर्तों पर कर्ज़ मिल सकता है। सभी राज्यों में नेशनल लाईव स्टॉक मिशन और नाबार्ड (NABARD, National Bank for Agriculture and Rural Development) के पॉल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF) के तहत मुर्गीपालकों को कर्ज़ और सब्सिडी का लाभ मिल सकता है। सब्सिडी की दर सामान्य वर्ग के आवेदकों के लिए 25 प्रतिशत और BPL तथा और SC/ST समुदाय के लोगों और उत्तर-पूर्वी राज्यों के निवासियों के लिए करीब 33 फ़ीसदी है। वैसे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों के पशुपालन विभाग की ओर से कड़कनाथ नस्ल के मुर्गों के संरक्षण और सम्वर्धन के लिए ख़ास योजनाएँ भी चलायी जाती हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में है बेजोड़ प्रोत्साहन
मध्य प्रदेश सरकार अपने सभी ज़िलों में कड़कनाथ के 40 चूजों के पालन के लिए 4400 रुपये का अनुदान या सब्सिडी देती है। ये कुल खर्च का 75 प्रतिशत है। इसमें लाभार्थी को बाक़ी 1100 रुपये या 25 प्रतिशत रकम आवेदन फ़ॉर्म के साथ अपने ज़िले के पशु चिकित्सा अधिकारी या पशु औषधालय के प्रभारी या उपसंचालक, पशु चिकित्सा के पास जमा करवाना पड़ता है। सब्सिडी में 65 रुपये प्रति चूजा, 5 रुपये उसे टीका लगाने और 220 रुपये का ढुलाई भाड़ा तथा चूजों के लिए महीने भर के आहार का दाम 1390 रुपये दिया जाता है। आहार की मात्रा 48 ग्राम प्रति चूजा तय की गयी है। योजना का पूरा ब्यौरा पशुपालन विभाग, मध्य प्रदेश की वेबसाइट mpdah.gov.in पर मौजूद है।
छत्तीसगढ़ में 53,000 रुपये जमा करने पर सरकार की ओर से तीन किस्तों में 1000 चूजे, 30 मुर्गियों के शेड और छह महीने तक मुफ़्त दाना या आहार मुहैया कराया जाता है। चूजों के टीकाकरण और स्वास्थ्य की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी सरकार उठाती है और मुर्गों के वयस्क होने पर इनकी मार्केटिंग का काम भी करती है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भी है ख़ासी माँग
कड़कनाथ की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) में भी ख़ासी माँग है। इस व्यवसाय के लिए आपको अच्छी नस्ल वाली स्वस्थ कड़कनाथ मुर्गियाँ पालनी होंगी और किसी अच्छी कम्पनी से अपने उत्पादों की सीधी ख़रीदारी के लिए करार (कॉन्ट्रैक्ट) करना होगा। करार करने से पहले कम्पनी की ढंग से जाँच करना ज़रूरी है।

पॉल्ट्री फार्म के लिए नाबार्ड की योजना
मुर्गीपालन के क्षेत्र में किसानों के अलावा छोटे-बड़े व्यावसायियों की भी दिलचस्पी रहती है, क्योंकि गाँव हों या शहर, चिकन और अंडों की माँग में हर जगह औसतन 10 प्रतिशत सालाना का इज़ाफ़ा हो रहा है। पॉल्ट्री फार्म का बिज़नेस करने के इच्छुक लोगों को नाबार्ड की योजनाओं के अनुसार आसानी से कर्ज़ या वित्तीय सहायता मिल जाती है। पॉल्ट्री फार्म के उद्यमियों के लिए किसी शैक्षिक योग्यता की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन यदि उनके पास मुर्गीपालन से सम्बन्धित कोई प्रशिक्षण या अनुभव हो तो उन्हें बैंक से कर्ज़ मिलने में आसानी होती है। मुर्गीपालन के लिए पॉल्ट्री शेड, फीड रूम और अन्य सुविधाओं के निर्माण के लिए कर्ज़ मिलता है। इस कर्ज़ के लिए कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है। लिहाज़ा, उद्यमी को आवश्यकतानुसार मदद मिलती है।
पॉल्ट्री फार्म यानी कुक्कुट व्यवसाय दो तरह के होते हैं – अंडा व्यापार (Hatching Plant) और मुर्गा फार्म। अंडा व्यवसायियों को लेयर मुर्गियाँ पालना होता है और चिकन या मुर्गा के माँस के व्यवसायियों को ब्रोइलर मुर्गियों को पालना होता है। वैसे, दोनों व्यवसाय एक साथ भी किया जाता है। नाबार्ड की ओर से तैयार मॉडल परियोजनाओं के मुताबिक, यदि आप कम से कम 10 हज़ार मुर्गियों के साथ पॉल्ट्री ब्रोइलर मुर्गा फार्मिंग करना चाहते हैं तो आपको ज़मीन के अलावा 4-5 लाख रुपये की व्यवस्था करनी होगी, जबकि यदि आप 10 हज़ार मुर्गियों के साथ कुक्कुट लेयर फार्मिंग यानी अंडा व्यवसाय करना चाहते हैं, तो आपको ज़मीन के अलावा 10 से 12 लाख रुपये की व्यवस्था करनी होगी। बैंकों से पूरे प्रोजेक्ट की 75 फ़ीसदी रक़म का कर्ज़ मिल सकता है। कर्ज़ के लिए नाबार्ड कंसल्टेंसी सेवा की मदद भी ली जा सकती है।
पॉल्ट्री बिज़नेस के लिए जगह कितनी चाहिए?
पॉल्ट्री फार्म के लिए जगह सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी ज़रूरत है। आमतौर पर एक चिकन को कम से कम 1 वर्ग फुट जगह चाहिए। यदि ये जगह 1.5 वर्ग फुट प्रति चिकन हो तो अंडों या चूजों के नुकसान का खतरा बहुत कम हो जाता है। पॉल्ट्री फार्म शहरों के विकसित क्षेत्र से बाहर और ऐसी जगह पर होना चाहिए जहाँ मज़दूर, पेयजल और सड़क की सुविधा हो तथा पॉल्ट्री फार्म की गन्दगी के निपटारे की मुफ़ीद व्यवस्था हो। एक पॉल्ट्री फार्म के आधे किलोमीटर से कम दूरी पर दूसरा पॉल्ट्री फार्म नहीं होना चाहिए।

पॉल्ट्री फार्म के लिए लोन कैसे लें?
मुर्गीपालन के लिए बैंकों से मिलने वाला कर्ज़ आमतौर पर दो तरह का होता है। पहला, छोटे या भूमिहीन किसान-मज़दूर या ऐसा बेरोज़गार जो छोटे पैमाने पर मुर्गीपालन करके अपने आमदनी बढ़ाना चाहता हो। और दूसरा, पहले से ही मुख्य व्यवसाय के तहत पॉल्ट्री फार्मिंग करने वाले लोग। पॉल्ट्री फार्म के लिए कर्ज़ लेने वाले व्यक्ति के पास इस क्षेत्र का अच्छा अनुभव होना आवश्यक है। बैंकों से मौजूदा पॉल्ट्री फार्म की क्षमता बढ़ाने के लिए कर्ज़ मिलता है।
जहाँ तक कर्ज़ के लिए बैंक में आवेदन करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ों का ताल्लुक है तो पॉल्ट्री फार्म की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अलावा आवेदक की पहचान से सम्बन्धित सामान्य काग़ज़ातों की ही ज़रूरत पड़ती है। जैसे – पहचान पत्र, तस्वीर, ज़मीन का लीज़ समझौता और बैंक खाते का ब्यौरा आदि। कर्ज़ की बड़ी रकम के लिए बैंकों की ओरसे कई बार गारंटी भी माँगी जाती है। आमतौर पर कर्ज़ 5 साल के लिए दिया जाता है और विशेष परिस्थितियों में इसका मियाद बढ़ायी भी जा सकती है। ब्याज़ की दर अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आमतौर पर ये 10 से 12 फ़ीसदी होती है।
ये भी पढ़ें- Poultry Farming: मुर्गी पालन व्यवसाय में इन उन्नत तकनीकों को अपनाकर मेघालय के युवा ने पाई सफलता
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Revolution In Cotton Farming: कृषि मंत्री ने एक राष्ट्र, एक कृषि, एक टीम’ का दिया नारा, कहा- किसानों के साथ मिलकर बढ़ाएंगे उत्पादकतादेशभर से आए कपास उत्पादक किसानों, वैज्ञानिकों और हरियाणा के कृषि मंत्री राणा सिंह के साथ मिलकर कपास की खेती (Revolution In Cotton Farming) को बेहतर बनाने पर चर्चा की। इस बैठक का मकसद था – ‘कपास की पैदावार बढ़ाना, लागत कम करना और नई तकनीकों को खेतों तक पहुंचाना।’
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से किसानों की आय में वृद्धि, बदलाव की राह पर जांजगीर-चांपा के किसानराष्ट्रीय कृषि विकास योजना से किसान अपना रहे परिवर्तन खेती का मॉडल, कम लागत में अधिक मुनाफ़ा और बन रहे आत्मनिर्भर।
- किसानों के लिए बड़ी खुशख़बरी: अब e-NAM पर इन 7 नई फसलों की भी होगी ऑनलाइन बिक्री, मिलेगा बेहतर दामअब ई-नाम (e-NAM) पोर्टल पर 238 कृषि उत्पादों की सूची में 7 नई फसलों को शामिल (7 new crops included in the list of 238 agricultural products) किया गया है।
- Big Initiative Of Bihar Government: अब आपदा में मरे मवेशियों पर मिलेगी मोटी रकम, जानें कैसे उठाएं लाभबिहार सरकार ने (Big Initiative Of Bihar Government) एक बड़ा और सराहनीय कदम उठाया है। अब राज्य में बाढ़ या किसी अन्य आपदा के दौरान मरे हुए या लापता मवेशियों के बदले पशुपालकों को आर्थिक मदद (Financial help to cattle owners in lieu of dead or missing cattle) मिलेगी।
- National Conference On Cotton :11 जुलाई को कोयम्बटूर में कपास क्रांति की तैयारी, किसान भी भेज सकते हैं सरकार को अपने सुझाव11 जुलाई 2025 को कोयम्बटूर में कपास पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference on Cotton) आयोजित किया जाएगा। इस सम्मेलन में देशभर के किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के साथ मिलकर कपास उत्पादन बढ़ाने, जलवायु अनुकूल बीज विकसित करने और किसानों की आय दोगुनी करने पर मंथन किया जाएगा।
- शेखावाटी के किसानों ने पारंपरिक खेती छोड़ अपनाई पॉलीहाउस में खेती की तकनीकपॉलीहाउस में खेती से किसान कमा रहे लाखों, सरकार दे रही अनुदान और ड्रिप सिस्टम से हो रही जल बचत, जानिए पूरी कहानी।
- National Fish Farmers Day 2025: भारत मना रहा नीली क्रांति का जश्न, मछली पालन में 10 साल में दोगुना हुआ उत्पादन10 जुलाई, 2025 को राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस (National Fish Farmers Day 2025) के मौके पर नए मत्स्य क्लस्टर्स (Fisheries Clusters), प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training Programs) और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (Infrastructure Projects) की घोषणा होने जा रही है, जो इस क्षेत्र को और आगे बढ़ाएगी।
- राजस्थान के बाड़मेर जिले में खजूर की खेती बनी हरियाली और आमदनी का ज़रियाबाड़मेर में खजूर की खेती से किसानों की आमदनी में हुआ ज़बरदस्त इज़ाफ़ा, मेडजूल जैसी क़िस्मों से बदली रेगिस्तान की क़िस्मत।
- HETHA Dairy: एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने देसी गायों के एथिकल गौपालन से खड़ा किया करोड़ों का उद्योग, जानिए कैसे?HETHA Dairy देसी गौपालन का बड़ा उदाहरण है, जहां असीम रावत ने एथिकल तरीके से 1100 गायों के साथ करोड़ों का व्यवसाय खड़ा किया।
- नागालैंड में Rani Pig के साथ सुअर पालन बना ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मज़बूत आधारRani Pig और वैज्ञानिक तकनीक से नागालैंड के सुअर पालन को मिल रही है नई दिशा, जानिए कैसे किसानों की आय में हो रही है वृद्धि।
- Sardar Patel Co-operative Dairy Federation: देश के डेयरी किसानों के लिए गेम-चेंजर, 5 लाख गांवों को मिलेगा फायदासरदार पटेल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (Sardar Patel Co-operative Dairy Federation) यानि SPCDF की स्थापना की गई है, जो देश के उन लाखों डेयरी किसानों को सशक्त बनाएगी, जो अभी तक सहकारी आंदोलन से जुड़े नहीं हैं।
- उत्तराखंड के किसानों के लिए बड़ी खुशख़बरी, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किये ये बड़े ऐलानमहत्वपूर्ण बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री ने उत्तराखंड के विकास (Agriculture and Rural Development in Uttarakhand) के लिए कई बड़े फैसले लिए। इस दौरान राज्य की मांग के अनुसार कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरसंभव सहायता देने की बात कही। जानिए क्या मिलेगा राज्य को?
- मिज़ोरम में ब्रोकली की खेती में नया बदलाव – पोषक प्रबंधन और मिनी स्प्रिंकलर तकनीक से आई क्रांतिब्रोकली की खेती में Integrated Nutrient Management और Mini Sprinkler System से मिज़ोरम के किसानों को मिली उन्नत पैदावार और बेहतर आमदनी।
- Pangasius Fish Cluster : उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में डेवलप हो रहा उत्तर भारत का ‘पंगेसियस क्लस्टर’सिद्धार्थनगर (Siddharthnagar) में बनने वाले पंगेसियस क्लस्टर (Pangasius Fish Cluster) में मछली के प्रोडक्शन, प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग), पैकेजिंग और एक्सपोर्ट की सभी सुविधाएं होंगी। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और किसानों की आय बढ़ेगी।
- Meri Panchayat App : ‘मेरी पंचायत ऐप’ से पाएं पंचायत की हर जानकारी और मौसम का पूर्वानुमान सिर्फ एक क्लिक पर! केंद्र सरकार की ओर से लॉन्च किया गया ‘मेरी पंचायत’ App (Meri Panchayat App) ग्रामीण भारत को डिजिटल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ये ऐप न सिर्फ पंचायत से जुड़ी सभी योजनाओं, फंड और विकास के कामों की जानकारी देता है, बल्कि अब इसमें 5 दिन का मौसम पूर्वानुमान (5 day weather forecast) भी शामिल किया गया है।
- Primary Agricultural Credit Society: PACS के ज़रिये से सहकारिता क्रांति, किसानों को मिल रहीं कृषि सेवाएं और सस्ता ऋणगांव में मल्टीपर्पस PACS (primary agricultural credit societies) के तहत डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियां स्थापित की जा रही है। ये योजना किसानों को सीधे लाभ पहुंचाने वाली है, जिसमें कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन, भंडारण, मार्केटिंग और डिजिटल सेवाओं का विस्तार शामिल है।
- प्राकृतिक खेती अपनाकर सेब की खेती में सफल हुए हिमाचल के प्रगतिशील किसान भगत सिंह राणाप्राकृतिक खेती से सेब की खेती को नया जीवन देने वाले भगत सिंह राणा की कहानी पढ़ें और जानिए खेती में बदलाव की राह।
- कैसे विदेशी सब्ज़ियों की खेती में पुलवामा के किसान ग़ुलाम मोहम्मद मीर ने हासिल की कामयाबीकश्मीर की ज़मीन पर विदेशी सब्ज़ियों की खेती ने दस्तक दी है। शोपियां के ग़ुलाम मोहम्मद मीर ने पुलवामा में ब्रोकली, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, चाइनीज़ गोभी और केल की खेती कर मिसाल पेश की है। किसान उनके फ़ार्म को देखने और उनसे सीखने भी आते हैं।
- Analog Cheese का धोखा: दूध की जगह प्लांट-बेस्ड मिलावट! FSSAI ने कसी नकेल, जानिए कैसे करें नकली पनीर की पहचान?असली पनीर 100 फीसदी दूध से बनता है, जबकि एनालॉग पनीर (Analog cheese) में दूध की जगह सोया प्रोटीन, वनस्पति तेल, टैपिओका स्टार्च, नारियल तेल और केमिकल्स मिलाए जाते हैं। ये पनीर दिखने में तो असली जैसा लगता है, लेकिन स्वाद और पोषण में बिल्कुल फर्क होता है।
- प्रधानमंत्री कुसुम योजना से झुंझुनूं के 1500 किसानों को मिलेगा सोलर पंप का तोहफ़ा, 60% सब्सिडीप्रधानमंत्री कुसुम योजना (PM Kusum Scheme) से झुंझुनूं के 1500 किसानों को मिलेगा सोलर पंप, सरकार दे रही है 60% सब्सिडी और 5 साल की वारंटी।