Ganoderma Cultivation Part 2: क्या है अद्भुत गैनोडर्मा मशरूम की खेती का वैज्ञानिक तरीका?
गैनोडर्मा मशरूम के प्रमाणिक बीज (spawn) और लिक्विड मदर कल्चर, दोनों रूप में मिलते हैं
गैनोडर्मा मशरूम के पनपने के लिए देवदार और चीड़ जैसे उन पेड़ों की लट्ठे या बुरादा उपयुक्त नहीं होते जिनमें तैलीय तत्व पाये जाते हैं। इसके लिए चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ जैसे आम, जामुन, पीपल, पापलर शीशम आदि की लकड़ी और इसका बुरादा बेहतरीन होता है। चीन-जापान में इसके लिए ओक, चेस्टनट और एप्रीकाट जैसे पेड़ों के लट्ठे और बुरादा का इस्तेमाल होता है।
गैनोडर्मा मशरूम धीमी गति से बढ़ने वाला कवक है। इसे उगाने की दो विधियाँ हैं – पहला, लकड़ी के लट्ठे यानी wood logs के ज़रिये और दूसरा, प्लास्टिक के थैले या बोतल में बुरादा भरकर यानी bed logs या synthetic logs के ज़रिये। लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा उगाने की विधि काफ़ी पुरानी और ज़रा कठिन है इसीलिए अब कम प्रचलित है। जबकि प्लास्टिक के थैले में बुरादा भरकर उगायी जाने वाली दूसरी विधि आसान और ज़्यादा प्रचलित है। इससे ज़्यादा पैदावार पाने के अलावा रोगों से बचाव आसान होता है। इसकी खेती छोटे कमरों में भी हो सकती है।
गैनोडर्मा मशरूम के पनपने के लिए देवदार और चीड़ जैसे उन पेड़ों की लट्ठे या बुरादा उपयुक्त नहीं होते जिनमें तैलीय तत्व पाये जाते हैं। इसके लिए चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ जैसे आम, जामुन, पीपल, पापलर शीशम आदि की लकड़ी और इसका बुरादा बेहतरीन होता है। चीन-जापान में इसके लिए ओक, चेस्टनट और एप्रीकाट जैसे पेड़ों के लट्ठे और बुरादा का इस्तेमाल होता है। गैनोडर्मा के प्रमाणिक बीज (spawn) और लिक्विड मदर कल्चर, दोनों रूप में मिलते हैं। इन्हें ऑनलाइन पोर्टल्स के अलावा ICAR की प्रयोगशालाओं से हासिल किया जा सकता है। औसतन इसका दाम 500 रुपये प्रति किलोग्राम है।

1. लकड़ी के लट्ठे वाली विधि (wood logs method)
इस विधि के तहत पतझड़ के बाद चौड़ी पत्ती वाले चुने गये पेड़ों की क़रीब 20 सेंटीमीटर लम्बे और 25 सेंटीमीटर मोटे टुकड़ों को काटते हैं। इन लट्ठों को 40-50 प्रतिशत की नमी के स्तर तक सुखाकर साफ़ जगह पर रखते हैं। फिर इन लट्ठों में क़रीब 2 सेंटीमीटर मोटे और 5 सेंटीमीटर गहरे 6 से 10 तक छेद करते हैं। इन छिद्रों में गेहूँ के दाने या बुरादे पर बने गैनोडर्मा के स्पॉन (spawn) को भरकर छेदों को पिघली हुई मोम से सील कर देते हैं। अब इन लट्ठों की बाहरी सतह को ‘ऑटोक्लेव’ मशीन के ज़रिये निजर्मीकृत (sterilized) करने के बाद बन्द कमरे या ग्रीन हाउस में एक के ऊपर एक करके रखते हैं और तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता क़रीब 75 प्रतिशत बनाये रखते हैं।
ऑटोक्लेव प्रक्रिया के कुछ ही दिनों बाद लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा मशरूम का कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) पूरी तरह फैल जाता है। अब ग्रीन हाउस में ही चार हिस्सा मिट्टी में एक हिस्सा सड़ा गोबर मिलाकर विशेष मिश्रण तैयार करते हैं, क्योंकि ग्रीनहाउस से सीधी धूप और कीड़ों से सुरक्षा मिलती है। फिर इस मिश्रण को भी निजर्मीकृत करके इसके ढेर को ज़मीन में फैला देते हैं तथा इसमें कवकजाल से ढके हुए लकड़ी के लट्ठों को पूरा गाड़ देते हैं। गाड़ने के बाद भी लट्ठों के ऊपर एक-दो सेंटीमीटर मिश्रण डालकर छोड़ देते हैं।
एक अन्य विधि में लकड़ी के इन लट्ठों को मिश्रण वाली ज़मीन में गाड़ते नहीं हैं, बल्कि उसके ऊपर रखकर खुला ही छोड़े देते हैं। बहरहाल, इस तरह से गैनोडर्मा की बीजाई की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद ग्रीन हाउस या कमरे का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस ही रखते हैं लेकिन मिश्रण की हल्की सिंचाई करके नमी को 80-90 प्रतिशत बढ़ाकर रखते हैं।
कमरे को सीधी धूप से बचाते हैं, लेकिन रोशनी और ताज़ा हवा के आवागमन का पर्याप्त ख़्याल रखते हैं। अब यदि कभी-कभार गैनोडर्मा के लट्ठों के आसपास कुछ खरपतवार या कीड़े वग़ैरह नज़र आएँ तो उन्हें निकालकर नष्ट कर देते हैं। गैनोडर्मा की खेती में किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए।
कुछेक दिनों बाद जब धीरे-धीरे गैनोडर्मा की डंठलों पर पनमी छतरी (कैप) का पीला और सफ़ेद रंग पूरी तरह से लाल या कत्थई रंग में बदलने लगे तो नमी के स्तर को घटाकर 50 प्रतिशत के स्तर तक ले आएँ। अब कैप पर ब्राउन पाउडर के रूप में बीजाणु (spore) जमने लगेंगे। ये गैनोडर्मा के परिपक्व होने और तोड़े जाने लायक अवस्था है।

2. बुरादे वाली बेड लाग्स विधि (bed logs or synthetic logs method)
गैनोडर्मा की खेती करने वाले तक़रीबन सभी देशों में अब बेड लाग्स विधि बेहद प्रचलित है। इसके कई कारण हैं – लट्ठों की कमी, उनकी अन्य कार्यों में ज़्यादा माँग होने से ज़्यादा दाम। जबकि बुरादा एक ऐसा माध्यम है जो टिम्बर उद्योग का बाइप्रोडक्ट (उप-उत्पाद) है। ये अपेक्षाकृत सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल है। चूँकि इस विधि में भी पूरी तरह से निजर्मीकृत माध्यम का प्रयोग होता है, इसीलिए पैदावार भी ज़्यादा मिलती है तथा रोग और कीड़े-मकोड़ों की समस्या भी लट्ठा विधि के मुक़ाबले बहुत कम होती है।
बेड लाग्स विधि में जब बुरादे को कवकजाल या माइसीलियम पूरी तरह से जकड़ लेते हैं तो बुरादा ही एक सख़्त लट्ठा बन जाता है जो पॉलीथीन हटाने के बाद भी टूटता नहीं है। हालाँकि, हरेक पॉलिथीन बैग की उम्र क़रीब चार महीने लम्बे एक फ़सल चक्र के लिए ही होती है। इसमें बुरादे की क्वालिटी और गैनोडर्मा के उन्नत बीजों का बहुत ख़्याल रखना चाहिए। बीजों को ख्याति प्राप्त जीन बैंक से ही मँगाना चाहिए।
समुचित लकड़ी के बुरादे का भी बहुत महत्व है, क्योंकि आमतौर पर आरा मशीनों में अनेक पेड़ों का बुरादा मिक्स रहता है। भारतीय जलवायु के हिसाब से गैनोडर्मा की खेती के लिए आम की लकड़ी का बुरादा सबसे बढ़िया होता है। इसकी ग़ैरमौजूदगी में शीशम, पापलर, नारियल और महुआ का बुरादा भी इस्तेमाल हो सकता है। आरा मशीन से बुरादा को लाने के बाद उसे धूप में अच्छी तरह सुखाना चाहिए और इस्तेमाल होने तक सूखे वातावरण में बन्द कमरे में रखना चाहिए।
3. बुरादे को उपयुक्त बनाने की प्रक्रिया
गैनोडर्मा की खेती के लिए बुरादे में 20 प्रतिशत गेहूँ या धान का भूसा या चोकर तथा जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) और चाक मिट्टी (कैल्शियम कार्बोनेट) की थोड़ी-थोड़ी मात्रा के अलावा इसकी कुल मात्रा जितना ही पानी मिलाना चाहिए ताकि मिश्रण में 65 प्रतिशत पानी हो और इसका pH मान 5.5 होना चाहिए। मिश्रण में pH मान के सन्तुलन के लिए जिप्सम तथा चाक मिट्टी को आवश्यकता अनुसार मिलना चाहिए। जिप्सम से pH मान नीचे आता है तो चाक मिट्टी इसे ऊपर ले जाती है।
इस तरह, तैयार मिश्रण या माध्यम को प्लास्टिक की थैलियों में भरकर बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द करके आटोक्लेव में डालें और 22 पौंड के प्रेशर पर दो घंटे तक गर्म करके निजर्मीकृत (sterilized) करें। ठंडा होने पर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से गैनोडर्मा के बीजों को मिश्रण में मिलाएँ और फिर इन्हें प्लास्टिक की अलग-अलग थैलियों में 2-2 किलोग्राम मात्रा के हिसाब से डाल कर दें और बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द कर दें।
बीजाई की इस प्रक्रिया के दौरान स्वच्छ वातावरण का विशेष ध्यान रखें, ताकि स्पॉन किसी भी तरह के संक्रमण से सुरक्षित रहें। इसके बाद स्पॉन को पनपने के लिए थैलियों को ऐसे अन्धेरे और बन्द कमरों में रखा जाता है जिसका तापमान 28-32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे। चूँकि गैनोडर्मा बहुत धीमी गति से पनपने वाला कवक है इसीलिए इसका कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) बनने में क़रीब महीना भर लग जाता है। ये अवधि स्पॉन-रन (spawn-run period) कहलाती है।
कवकजाल के प्रभाव से जब बैग पूरी तरह सफ़ेद हो जाए और फिर थोड़ा पीला पड़ने लगे तथा टॉप पर काले बुरादे का नामो-निशान नज़र नहीं आये, तब कैंची से टॉप भाग को काट देना चाहिए। यदि ऊपर मुँह की ओर कुछ बुरादे के काले कण दिखाई देते हैं तो उस पर ग्रीन फफूँद की बीमारी आ जाती है। अब कटे हुए थैलों को गैनोडर्मा उत्पादन कक्ष में रैक्स (racks) पर रख देते हैं। इन्हें खड़ा (vertical) या पट (horizontal), किसी भी तरह से रख सकते हैं। लेकिन इस अवस्था में थैलियों को प्रकाश और ताज़ा हवा मिलनी चाहिए और नमी का स्तर क़रीब 90 प्रतिशत रखना चाहिए।
इससे गैनोडर्मा का तना पनपने लगता है। इसे पिनिंग कहते हैं। इसमें पहले पिन (तना) लम्बाई में बढ़ती है फिर रूककर फैलने या चौड़ी होने लगती है। इस अवस्था को कैप फार्मेशन (cap formation) कहते हैं। इस वक़्त नमी को ज़रा घटाकर 80 प्रतिशत करना चाहिए वो ताज़ा हवा का प्रवाह थोड़ा बढ़ाना चाहिए क्योंकि इसी अवस्था में गैनोडर्मा में रंग उभरने लगते हैं। अब कैप यानी ‘गैनोडर्मा का फल’ का ऐसे विकसित (growing) होता है कि इसका किनारा सफ़ेद, बीच में पीला और नीचे लाल या कत्थई रंग का होता है।
धीरे-धीरे कैप का सफ़ेद और पीला रंग ख़त्म हो जाता है तथा पूरी कैप लाल या कत्थई रंग की हो जाती है। ये संकेत है कि गैनोडर्मा मशरूम परिपक्व हो गया है। इस दशा में तापमान को घटाकर 25 डिग्री सेल्सियस और नमी को 60 प्रतिशत के स्तर पर ले आते हैं। इससे अगले दो दिनों में गैनोडर्मा के कैप की सतह पर भूरे रंग के बीजाणु (spore) जमने लगते हैं। इसका मतलब होता है कि गैनोडर्मा अब तोड़ने के लिए तैयार है।
Ganoderma Cultivation Part 1: गैनोडर्मा मशरूम की खेती से करें ज़बरदस्त कमाई, सेहत का भी है अनमोल ख़ज़ाना, Experts से बातचीत
आगे पढ़िए – गैनोडर्मा की खेती का भाग-3: कैसे मिलता है एक बीजाई से तीन बार फ़सल कटाई का मौका?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Poplar Tree Farming: पोपलर के पेड़ लगाकर पाएँ शानदार और अतिरिक्त आमदनीपोपलर, सीधा तथा तेज़ी से बढ़ने वाला वृक्ष है। सर्दियों में इसकी पत्तियों के झड़ जाने से रबी की फ़सलों को मिलने वाली धूप की मात्रा में कोई ख़ास कमी नहीं होती। इसी तरह, पोपलर की छाया से ख़रीफ़ फ़सलों को भी कोई ख़ास नुकसान नहीं पहुँचता है।
- बेमौसम बारिश और बदलते मौसम से फसलों पर पड़ता असर, ओलावृष्टि से नुकसान पहुंचने की खबरेंमध्य प्रदेश अपने समृद्ध कृषि उद्योग के लिए जाना जाता है। हालांकि, हाल के वर्षों में बार-बार होने वाली ओलावृष्टि से किसानों की फसलों पर असर पड़ा है।
- Onion Processing: प्याज़ की खेती के साथ ही इसकी प्रोसेसिंग से बढ़ेगी किसानों की आमदनीप्याज़ की खेती कर रहे किसानों को अक्सर फसल नुकसान से दो-चार होना पड़ता है। लगभग हर साल प्याज़ की फसल खराब होने पर बाज़ार में इसके दाम आसमान छूने लगते हैं। इस समस्या से निपटने का एक तरीका है प्याज़ को हिडाइड्रेट करके स्टोर करना। जब फसल ज़्यादा हो तो प्याज़ की प्रोसेसिंग करके इसके टुकड़ों को डिहाइड्रेट कर लें या इसका पाउडर बनाकर रख लें।
- World Forest Day: विश्व वन दिवस पर जानिए कैसे वन संपदा से समृद्ध हो रहा है जीवनइस बार विश्व वन दिवस 2023 की थीम ‘वन और स्वास्थ्य’ (Forests and Health) रखी गई है। भारत में वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के मुताबिक, कुल 80.9 मिलियन हेक्टेयर भूमि वन और वृक्षों से भरा है। ये देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 फीसदी है। साल 2019 से लेकर 2021 के बीच के 2 वर्षों में भारतीय वन क्षेत्र में 2261 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है।
- प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) तकनीक से महिला किसान सरोजा ने टमाटर की उन्नत किस्म उगाकर की अच्छी कमाई, जानिए कैसे?कर्नाटक की प्रगतिशील महिला किसान सरोजा ने KVK की मदद से कई सब्ज़ियों में प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक अपनाई और अपने क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्रोत बनकर सामने आई हैं। जानिए कैसे हुआ उन्हें मुनाफ़ा?
- Ornamental Fish Farming: सजावटी मछली पालन का वैज्ञानिक तरीका अपनाया, इस युवक की आमदनी में हुआ इज़ाफ़ामछली पालन के मामले में भारत, चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता ह। ऐसे में किसान यदि वैज्ञानिक तरीके से सजावटी मछलियों को पालें तो अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि सजावटी मछली पालन (Ornamental Fish Farming) की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
- Barley Farming: अनाज, चारा और बढ़िया कमाई एक साथ पाने के लिए करें जौ की उन्नत और व्यावसायिक खेतीजौ की ज़्यादा पैदावार लेने के लिए जौ की नयी और उन्नत किस्में अपनायी जाएँ। इसका चयन क्षेत्रीय उपयोग और संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर करना चाहिए। नयी किस्मों, उत्पादन तकनीकों में विकास और गुणवत्ता में सुधार की वजह से जौ की पैदावार में ख़ासा सुधार हुआ है। इसीलिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि जौ की उन्नत और व्यावसायिक खेती के लिए क्या करें, कब करें, कैसे करें, क्यों करें और क्या नहीं करें?
- Soil properties: अच्छी होगी मिट्टी की सेहत तो फसल उत्पादन बेहतर, कैसे पोषक तत्वों का खज़ाना बनती है मिट्टी?प्रकाश संश्लेषण के तहत धूप, हवा, पानी और मिट्टी से प्राप्त पोषक तत्वों के बीच रासायनिक क्रियाएँ करके पौधे अपना भोजन पकाते या निर्मित करते हैं। मिट्टी से पौधों को 16 पोषक तत्वों की सप्लाई होती है। किसी भी फ़सल का अच्छा विकास और खेती से होने वाले लाभ का दारोमदार इन्हीं पोषक तत्वों पर होता है।
- Bio-pesticides: खेती को बर्बादी से बचाना है तो जैविक कीटनाशकों का कोई विकल्प नहींजैविक कीटनाशकों में ‘एक साधे सब सधे’ वाली ख़ूबियाँ होती हैं। इसका मनुष्य, मिट्टी, पैदावार और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और फ़सल के दुश्मन कीटों तथा बीमारियों से भी क़ारगर रोकथाम हो जाती है। इसीलिए, जब भी कीटनाशकों की ज़रूरत हो तो सबसे पहले जैविक कीटनाशकों को ही इस्तेमाल करना चाहिए।
- Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक उपज से कैसे होती है ‘जैविक खेती’ जैसी कमाई?बड़े शहरों में मौजूद सुपर मार्केट्स के अलावा ऑनलाइन मार्केटिंग के मामले में भी हाइड्रोपोनिक विधि से तैयार कृषि उत्पादों की बिक्री तेज़ी बढ़ रही है। अब नामी-गिरमी होटलों, रेस्त्राँ, क्लाउड किचन, कॉरपोरेट कैंटीन आदि में रोज़ाना बड़ी मात्रा में हाइड्रोपोनिक खेती के उत्पाद खरीदे जा रहे हैं।
- बकरी पालन में कैसे करें उन्नत नस्ल का चुनाव? जानिए Goat Farming व्यवसाय से जुड़ी अहम बातेंबकरी पालन किसानों की अतिरक्त आमदनी का बेहतरीन ज़रिया है। इसके दूध और मांस को बेचकर किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं, बशर्ते उन्हें इसकी नस्ल की सही जानकारी हो।
- कृषि व्यवसाय (Agri Business) में इन बातों का ध्यान रखकर तेलंगाना की महिला किसान लक्ष्मी ने पाई सफलतालक्ष्मी ने कृषि व्यवसाय के ज़रिए अपने परिवार को आर्थिक रूप से संपन्न बनाया और अब दूसरों के लिए रोल मॉडल बन गई हैं। खेती के कौन से तरीकों को उन्होंने अपनाया है, जानिए इस लेख में।
- जंगली गेंदे की खेती है बेजोड़, प्रति हेक्टेयर 35 हज़ार लागत और 75 हज़ार रुपये मुनाफ़ादक्षिण अफ्रीका के बाद भारत, जंगली गेंदे के तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में फ़िलहाल, जंगली गेंदे के तेल का कुल सालाना उत्पादन क़रीब 5 टन है। बीते दशकों में उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के तराई के इलाकों में जंगली गेंदे की व्यावसायिक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
- वैज्ञानिक तरीके से करें बकरी पालन तो लागत से 3 से 4 गुना होगी कमाई, इन बातों का रखें ध्यानवैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके पशुपालक किसान अपनी कमाई को दोगुनी से तिगुनी तक बढ़ा सकते हैं। इसके लिए बकरी की उन्नत नस्ल का चयन करना, उन्हें सही समय पर गर्भित कराना और स्टॉल फीडिंग विधि को अपनाकर चारे-पानी का इन्तज़ाम करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है।
- बैकयार्ड मुर्गी पालन (Poultry Farming): कभी खेतिहर मज़दूरी किया करती थी पुष्पा, मुर्गी की ये उन्नत नस्ल बनी कमाई का ज़रियाबैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए सही नस्ल की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है। क्या वो मुर्गी उस क्षेत्र के हिसाब से ठीक है या नहीं, इसके बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। जानिए कैसे तेलंगाना की रहने वाली पुष्पा ने मुर्गी की उन्नत नस्ल से अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया।
- Climate change: जलवायु परिवर्तन क्यों है खेती की सबसे विकट समस्या और क्या है इससे उबरने के उपाय?जलवायु परिवर्तन (Climate change) की वजह से जैविक और अजैविक तत्वों के बीच प्राकृतिक आदान-प्रदान से जुड़ा ‘इकोलॉजिकल सिस्टम’ भी प्रभावित हुआ है। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में ख़ासी कमी आयी है। सिंचाई की चुनौतियाँ बढ़ी हैं। इसीलिए किसानों को जल्दी से जल्दी पर्यावरण अनुकूल खेती को अपनाना चाहिए।
- Lemongrass Farming: लेमनग्रास की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं की आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा, एक बार लगाएं और 5 साल तक आरामलेमनग्रास भले ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय न हो, मगर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने का यह अच्छा ज़रिया है। लेमनग्रास की खेती बंजर भूमि में भी आसानी से की जा सकती है।
- बकरी के साथ मुर्गी पालन करने से किसान राजेश कुमार की आमदनी तीन गुना बढ़ी, जानिए क्या है इसके फ़ायदेएकीकृत पोल्ट्री और बकरी पालन से सीमित संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। बकरी के साथ मुर्गी पालन करने के कई फ़ायदे हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले के रहने वाले राजेश कुमार इस एकीकृत प्रणाली का लाभ उठा रहे हैं।
- जैविक खेती के साथ ही वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost) बन रहा है महिलाओं की अतिरिक्त कमाई का जरियाऑर्गेनिक फूड प्रॉडक्ट्स की मांग बढ़ने के साथ ही इसके लिए ज़रूरी वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost) की मांग भी बढ़ गई है। महिला किसानों और स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups) के साथ ATMA ग्रुप पंचकव्य, अमृता करैसल और पांच पत्ती के अर्क के उत्पादन में भी महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी को बढ़ावा दे रहा है।
- वाराणसी के मशरूम उत्पादक महिला समूह को FPO आधारित एक्सटेंशन डिलीवरी मॉडल से मिली सफलताकिसानों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले फसल के उत्पादन से ज़्यादा चुनौतीपूर्ण काम है अपनी फसल की उचित कीमत पाना। इसकी वजह होते हैं बिचौलिए, जो किसानों के मुनाफ़े में हिस्सेदार बन जाते हैं। ऐसे में FPO आधारित एक्सटेंशन डिलीवरी मॉडल किसानों के लिए फायदेमंद है।