खेती-किसानी में अपनी किस्मत चमकाने की चाहत रखने वाले किसानों के लिए मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) या सह-फसली खेती (Co-cropped farming) या मिश्रित खेती (Mixed farming) की तकनीक सबसे बेहतरीन है। छोटी और मझोली जोत वाले किसान यदि मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के गुर सीखकर इसमें महारथ हासिल कर लें तो उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का चमत्कारिक कायाकल्प हो सकता है।
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के रास्ते पर आगे बढ़ने के इच्छुक किसानों की इसकी बारीकियों को सीखने के लिए प्रशिक्षण ज़रूर लेना चाहिए। ये प्रशिक्षण किसी अनुभवी किसान या कृषि विशेषज्ञ से ही लेना चाहिए, क्योंकि सिर्फ़ ऐसे व्यक्ति ही ये तय कर सकते हैं कि अलग-अलग इलाकों और विभिन्न जलवायु वाले हमारे देश में अलग-अलग किसानों के लिए मल्टीलेयर फार्मिंग के लिहाज़ से क्या, कैसे और कितना सही और उपयुक्त होगा?
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की तकनीक असिंचित इलाकों के लिए भी बहुत कारगर हो सकती है, क्योंकि इसमें कम पानी और खाद की ज़रूरत पड़ती है। इसकी वजह से फसलों की लागत कम रहती है, जबकि मल्टीलेयर फ़ार्मिंग करने वाले किसानों को बाज़ार में उनकी उपज का वैसा ही दाम मिलता है, जैसा अधिक लागत वाले किसान पाते हैं। मल्टीलेयर फ़ार्मिंग को अपनाने से किसानों के खेत की उर्वरा शक्ति में लगातार बेहतर होती चली जाती है।

क्या है मल्टीलेयर फ़ार्मिंग?
ये खेती की ऐसी तकनीक या विधि है जिसके तहत एक ही खेत से एक ही सीज़न में एक साथ कई फसलें पायी जाती हैं। लेकिन इसे सूझबूझ के साथ ही करना चाहिए, ताकि ऐसा न हो कि कोई एक फसल दूसरे पर ग़लत प्रभाव पैदा कर सके। इसीलिए मल्टीलेयर फार्मिंग की बारीकियों को समझने के लिए समुचित ट्रेनिंग की बहुत अहमियत है।
ये भी पढ़ें: सिर्फ़ जैविक खेती में ही है कृषि का सुनहरा भविष्य, कैसे पाएँ सरकारी मदद?
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग को और आसानी से समझाने के लिए इसकी तुलना किसी ज़मीन पर बने बहुमंज़िला इमारत से कर सकते हैं। जिस तरह यदि ज़मीन पर सिर्फ़ भूतल बनाया जाएगा तो इस्तेमाल के लिए जितनी जगह उपलब्ध होगी, वो उसके ऊपर बनायी जाने वाली हरेक मंज़िल के साथ उतनी ही गुना बढ़ती जाती है। इसी तरह यदि किसी खेत में एक वक़्त में एक फसल की खेती होगी तो जितनी आमदनी होगी, वो उसी ज़मीन पर एक साथ कई फसले उपजाने पर उसी अनुपात में बढ़ जाएगी जिस अनुपात में फसलों की संख्या होगी।
कैसे लाभदायक है मल्टीलेयर फ़ार्मिंग?
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के फ़ायदे को उदाहरण से समझें तो यदि एक खेत में सिर्फ़ अदरक या हल्दी पैदा किया जाएगा तो वहाँ सिर्फ़ अदरक या हल्दी वाली ही आमदनी होगी, लेकिन यदि इसी खेत में अदरक या हल्दी के साथ ही दो-तीन अन्य फसलें भी उपजायें तो आमदनी का बढ़ना स्वाभाविक है। यही खूबी है मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की। इसमें ज़मीन के नीचे पैदा होने वाले पहली लेयर या परत होगी हल्दी या अदरक की, क्योंकि ये कन्द हैं और इनकी प्रमुख विकास ज़मीन के नीचे ही होता है।
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की दूसरी लेयर के रूप में ऐसी फसलों का चुनाव किया जाता है जिनका मुख्य विकास ज़मीन की सतह के ऊपर होता है। जैसे साग-सब्ज़ी वग़ैरह। तीसरी लेयर के लिए इसी ज़मीन पर सूझबूझ के साथ फलदार या इमारती लकड़ियाँ देने वाले पेड़ों को लगाया जाता है। इस क्षेणी में पपीता बेहद लोकप्रिय है क्योंकि इसका पेड़ बहुत बड़ा नहीं होता, ज़्यादा धूप भी नहीं रोकता, इसमें फल भी जल्दी लगते हैं और बाज़ार में दाम भी आसानी से मिल जाता है।
चौथी लेयर के रूप में ऐसी फ़सलें चुनी जाती हैं तो खेत से पोषण तो लें लेकिन जिनका विस्तार बेल या लतर के रूप में उन ढाँचों या मचान वग़ैरह पर फैले जिसे बाँस वग़ैरह से बनाया जाता है। कोई न कोई लतर वाली फ़सल हर मौसम में होती है। किसानों को बस मौसम के अनुकूल फ़सल का चयन करके उसे मेड़ों के आसपास या ऐसी जगह पर लगाना पड़ता है, जहाँ से अन्य फ़सलों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े।
इस तरह किसान जब मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के लिए अपना खेत तैयार करते हैं, तभी उसमें बाक़ी फ़सलों के अनुरूप खाद वग़ैरह का इन्तज़ाम करते हैं। किसी एक फ़सल के लिए की जाने वाली सिंचाई से ही अन्य फ़सलों की भी पानी की ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं। यही विशेषताएँ किसानों को मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की ओर आकर्षित करती हैं।
जैविक खेती में आदर्श है मल्टीलेयर फ़ार्मिंग
यदि जैविक खेती की विधियों के साथ मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की जाए तो नतीज़े ‘सोने पर सुहागा’ जैसे मिलते हैं। दोनों तकनीक को मिलाकर मल्टीलेयर फ़ार्मिंग करने वाले देश के अनेक किसान ढाई एकड़ की छोटी जोत से भी सालाना 15 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं।
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग का एक फ़सल चक्र चार माह का होता है। इसमें मौसमी सब्ज़ियों जैसे अदरक, हल्दी, लहसुन, प्याज, मूली वग़ैरह के साथ पालक, मेथी, धनिया जैसी पत्तेदार सब्जियाँ उगाई जाती हैं। तीसरी परत के तहत शेड बनाकर लतर वाली फ़सलें जैसे लौकी, तरोई, करेला, खीरा वग़ैरह लगाते हैं। पॉलीहाउस में खेती करने वालों के लिए तो मल्टीलेयर फ़ार्मिंग का फ़ायदा और बढ़ जाता है।
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग और जैविक खेती को यदि गाय-भैंस पालन और ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से भी जोड़ लिया जाए तो किसान की कमाई और बेहतर हो सकती है, क्योंकि पशुपालन की बदौलत आसानी से जैविक खाद बना जाएगी और ड्रिप सिस्टम से पानी और ईंधन की बचत होगी। विशेषज्ञों ने हिसाब लगाया है कि यदि किसान इन आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके खेती करें तो परम्परागत खेती की तुलना में उनकी कुल लागत जहाँ चार गुना तक कम हो सकती है, वहीं आमदनी 6 से 8 गुना तक बढ़ जाएगी।

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग की ट्रेनिंग
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के इच्छुक किसानों को अपने ज़िले के कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों से मशविरा लेकर सबसे पहले तो ये समझना चाहिए कि उनके इलाके में इस तकनीक को अपनाने की कितनी गुंज़ाइश है? इसके बाद ये तय करना चाहिए कि उन्हें उचित प्रशिक्षण कैसे और कहाँ से मिलेगा? सारी जानकारियाँ जुटाकर ही किसानों को मल्टीलेयर फ़ार्मिंग को अपनाना चाहिए और फिर पूरी निष्ठा से अपने काम को करना चाहिए। आधे-अधूरे मन से या लापरवाही से या औरों के भरोसे खेती करने वालों के लिए मल्टीलेयर फ़ार्मिंग ज़्यादा फ़ायदेमन्द नहीं हो सकता। इस तकनीक की सफलता इसके उम्दा तरीके से लागू करने में ही है। मल्टीलेयर फ़ार्मिंग, कोई जादू-टोना या मंत्र-ओझा का काम नहीं है।
मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के क्षेत्र में बड़ा नाम कमा चुके मध्य प्रदेश के सागर ज़िले के युवा किसान आकाश चौरसिया बताते हैं कि अदरक की कोपलें फूटने में दो महीने लगते हैं। इस दौरान चौलाई का साग तैयार हो जाता है। बारिश में अदरक का बढ़िया दाम मिलता है। इसी तरह गर्मी के जाते ही कुंदरू से बारिश में उपज मिलती रहती है। पाँच फीट की दूसरी पर लगे पपीते फलों से लदे हैं। अदरक के बाद इसी खेत में आलू, बैंगन, करेला और पपीता की लेयर तैयार हो जाएगी। यही सिलसिला साल भर चलेगा, बस फसलें बदलती जाएँगी।
ये भी पढ़ें- Aquaponics Farming: जानिए क्या है एक्वापोनिक्स खेती, ऊपर सब्जी की खेती और नीचे मछली पालन
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- गुरेज़ घाटी में खेती और बागवानी को मिली नई पहचान, MIDP और HADP Schemes से आई हरियाली की बहारगुरेज़ घाटी में MIDP और HADP Schemes से खेती में आई क्रांति, किसान अब उगा रहे हैं सेब, चेरी और सर्दियों की सब्ज़ियां।
- 10 Years Of Digital India : e-NAM के ज़रीये किसानों की बदल रही जिंदगी, नई टेक्नोलॉजी से आई डिजिटल क्रांतिडिजिटल क्रांति (10 Years Of Digital India) ने किसानों की जिंदगी को कैसे बदला है? ई-नाम (e-NAM) एक ऐसी ही क्रांतिकारी पहल है, जिसने कृषि व्यापार (Agricultural Business) को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त करके किसानों को सीधा बाजार से जोड़ दिया है।
- ‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project: मध्य प्रदेश सरकार की मदद से महिलाओं को मिलेगी आर्थिक आज़ादी‘एक बगिया मां के नाम’ (‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project) नाम की इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की हज़ारों महिलाओं को अपनी ज़मीन पर फलदार पौधे लगाने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और प्रदेश हरा-भरा बनेगा।
- VIV ASIA Poultry Expo 2026: भारत में पहली बार होने जा रहा है लाइव स्टॉक एक्सपो का महाकुंभ!दुनिया के सबसे बड़े लाइव स्टॉक और पोल्ट्री एक्सपो (The world’s largest livestock and poultry expo) में से एक, VIV ASIA, (VIV ASIA Poultry Expo 2026) अब भारत में होने जा रहा है। ये पहली बार है जब ये प्रतिष्ठित एक्सपो थाईलैंड और यूरोप से निकलकर भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।
- हेम्प वेस्ट से बन रही बायो-प्लास्टिक, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रहा नया सहाराहेम्प वेस्ट से बन रही बायो-प्लास्टिक (Bio-plastic being made from hemp waste) दे रही पर्यावरण को राहत और गांवों को रोज़गार, संभल में शुरू हुआ हरित नवाचार।
- 200 Years of Assam Tea: स्वाद, विरासत और इनोवेशन संग न्यूयॉर्क में जश्न, धूमधाम से मना असम चाय का द्विशताब्दी समारोहन्यूयॉर्क में समर फैंसी फूड शो 2025 (Summer Fancy Food Show 2025) में असम चाय के 200 साल पूरे (200 Years of Assam Tea) होने का भव्य उत्सव मनाया।
- National Turmeric Board Inaugurated: किसानों को मिली बिचौलियों से मुक्ति, अब दुनियाभर में धाक जमाएगी ‘निज़ामाबाद की हल्दी’केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह (Union Cooperation Minister Amit Shah) ने ‘राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड’ (National Turmeric Board) का उद्घाटन किया। ये कदम दशकों से हल्दी किसानों की मांग को पूरा करने वाला साबित होगा।
- गुना का गुलाब अब महकेगा पेरिस और लंदन तक – गुलाब की खेती से किसानों को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय बाज़ारगुलाब की खेती से गुना के किसान अब पेरिस और लंदन में गुलाब भेजने को तैयार हैं। गुना का गुलाब देगा अंतरराष्ट्रीय पहचान।
- Obesity in India: पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में की ‘कम तेल,अच्छी सेहत’ की अपील, FSSAI ने दिये मोटापा कम करने के ज़बरदस्त टिप्स!मोटापे की बढ़ती समस्या (Obesity in India) पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी मुहिम शुरू करने का आग्रह किया है। यह सिर्फ एक सुझाव नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मिशन है, जिसमें हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। साथ ही, FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) और AIIMS की विशेषज्ञ डॉ. स्वप्ना चतुर्वेदी ने स्वस्थ खानपान के ऐसे ऑप्शन सुझाए हैं, जो न सिर्फ आसान हैं बल्कि सेहत के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं।
- डोंडुबाई हन्नू चव्हाण जिन्होंने अपनाई एकीकृत कृषि प्रणाली और बदल दी ज़िंदगीएकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर डोंडुबाई चव्हाण ने खेती की तस्वीर बदली, कम ज़मीन में हासिल की लाखों की कमाई और सम्मान।
- Agri Infra Fund (AIF): किसानों और उद्यमियों के सपनों को कृषि इंफ्रा फंड दे रहा नई उड़ान, जानिए कैसे करें अप्लाईकृषि अवसंचना कोष (Agri Infra Fund – AIF) के जरिए सरकार किसानों, एग्री-उद्यमियों, FPOs (किसान उत्पादक संगठनों) और कृषि व्यवसायियों को वित्तीय सहायता देकर आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद कर रही है।
- DialogueNEXT 2025: विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन, CIMMYT और बोरलॉग संस्थान के साथ किसानों से होगा संवाद, बढ़ेगी विज्ञान की रफ्तार!DialogueNEXT 2025 का आयोजन ICAR, विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन (World Food Prize Foundation), CIMMYT और बोरलॉग इंस्टीट्यूट (Borlaug Institute) के साथ मिलकर 8-9 सितंबर 2025 में किया जा रहा है।
- Agri Stack: ‘किसान पहचान पत्र’ से लेकर किसानों का नया डिजिटल साथी Multilingual AI Chatbot के बारें में अहम बातेंएग्री स्टैक (Agri Stack) भारत सरकार की एक डिजिटल पहल है, जिसका उद्देश्य किसानों को तकनीक के जरिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करना है। भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक’ (‘Agri Stack’) पहल के तहत एक मल्टीलिंगुअल AI चैटबॉट लॉन्च (Multilingual AI chatbot) किया गया है, जो किसानों को उनकी भाषा में सलाह देता है।
- प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना सप्ताह 1 जुलाई से आरंभ, इस ख़रीफ़ सीजन में अपनाएं PMFBY का सुरक्षा कवचख़रीफ़ 2025 के लिए फ़सल बीमा पंजीकरण शुरू हो रहा है। प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना से फ़सल और किसान दोनों होंगे सुरक्षित।
- बुरहानपुर में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत कृषि सखियां बनीं गांव की नई कृषि मार्गदर्शकराष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से जुड़कर कृषि सखियां गांवों में प्राकृतिक खेती का ज्ञान फैला रही हैं और महिला किसानों को सशक्त बना रही हैं।
- Cloud Farming: क्लाउड फ़ार्मिंग आसमान से फ़सलों को पानी देने का एक नया तरीकाक्लाउड फ़ार्मिंग (Cloud Farming) एक तकनीक है जिससे कोहरे, धुंध और ओस जैसे अदृश्य जल स्रोतों को इकट्ठा कर सूखे क्षेत्रों में पानी जुटाया जाता है।
- Red Flour Beetle: अनाज का दुश्मन नंबर-1 ‘लाल आटा बीटल’ से बचाव के लिए IARI ने टेस्ट डेवलप किया‘लाल आटा बीटल’ (Red Flour Beetle) भंडारित अनाज को अंदर से खोखला कर देते हैं। ये कीट न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में किसानों और अनाज भंडारकर्ताओं (grain storekeepers) के लिए एक बड़ी समस्या बने हुए हैं।
- Improved Varieties Of Soybean: जीनोम एडिटिंग से तैयार की जाएंगी सोयाबीन की उन्नत किस्में, कृषि मंत्री का ऐलानभारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (Indian Soybean Research Institute) में आयोजित बैठक की। अब जीनोम एडिटिंग (Genome Editing) के ज़रीये से सोयाबीन की उन्नत किस्मों (Improved Varieties of Soybean) को उगाया जाएगा।
- समुद्र का रंग-बिरंगा जादूगर Clownfish: CMFRI ने क्लाउनफिश के Captive Breeding में सफलता पाईभारत के केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute) यानि CMFRI ने हाल ही में क्लाउनफिश (Clownfish) के बंदी प्रजनन (Captive breeding) में सफलता हासिल की है। इससे न सिर्फ़ समुद्री सजावटी मछलियों (marine ornamental fishes) के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी कम होगा।
- Permaculture: सिंगापुर से लौटकर अमनिंदर नागरा ने भारत में शुरू की प्राकृतिक खेतीपर्माकल्चर (Permaculture) और टेरेस गार्डनिंग से अमनिंदर नागरा ने अपने खेत को बनाया हरियाली का प्रतीक और गांव को दिया आत्मनिर्भरता का रास्ता।