बांस का पौधा ऐसा है जो एक बार लगाने के बाद पीढ़ियों के काम आता है। बांस की खेती में पानी की ज़्यादा ज़रूरत भी नहीं होती। इसे हरा सोना भी कहा जाता है। इसी हरे सोने के कई गुणों और फ़ायदों को अपने क्षेत्र के किसानों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं नासिक के रहने वाले नीलेश दत्तात्रेय नंद्रे। किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में नीलेश ने बताया कि जब 2016 में उन्होंने बांस उत्पादन के क्षेत्र में काम करना शुरू किया तो उस समय उत्तर महाराष्ट्र में बारिश कम होती थी। इस वजह से किसानों को फसल का नुकसान झेलना पड़ता था। लागत के मुकाबले आमदनी बहुत कम थी। पानी की समस्या का सामना कर रहे क्षेत्र के किसानों का खेती-किसानी से मोहभंग होने लगा था। लोग रोज़गार की तलाश में शहरों का रुख करने लगे थे। अपने क्षेत्र में इस तरह के संकट को देखते हुए उन्होंने बांस की खेती से ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को जोड़ने का काम किया।
किसानों की समस्या को दूर करने के संकल्प के साथ किया काम
नीलेश ने एग्री बिजनेस मैनेजमेंट विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है। महाराष्ट्र की ऐग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान वो देखते थे कि कैसे किसान सेमीनार और मीटिंग्स में आकर अपनी समस्याओं का ज़िक्र करते थे। नीलेश के मन में भी कई तरह के सवाल उठते थे कि कैसे किसानों की समस्या को दूर किया जाए। इसके लिए वो मध्य प्रदेश से लेकर हैदराबाद गए। नीलेश ने एग्री-क्लिनिक तथा एग्री-बिज़नेस सेंटर योजना के तहत पुणे के MITCON से ट्रेनिंग भी ली। फिर बांस के उत्पादन को लेकर किसानों को जागरूक करने का काम किया।

बांस का पौधा एक बार लगा तो 90 साल तक भी दे सकता है उपज
नीलेश ने बताया कि बांस एक बार लगाने के बाद 40 से 50 साल मुनाफा देने वाला पौधा है। ये 90 साल तक भी जा सकता है। शुरुआत में जब उन्होंने अपने क्षेत्र साकरी तहसील के किसानों को बांस की खेती के फ़ायदों के बारे में बताया तो किसानों में हिचक थी। फिर उन्होंने खुद के खेत से ही बांस की खेती की शुरुआत की और किसानों को भरोसा दिलाया कि इसकी खेती आपको कई तरह से फ़ायदा दे सकती है। आज वो अपने क्षेत्र और महाराष्ट्र के कई ज़िलों में बांस उत्पादन से जुड़ी सलाह देते हैं। नीलेश ने आगे हमें बताया कि बांस का बाज़ार भी अच्छा है। पेपर इंडस्ट्री, फ़र्नीचर, हस्तशिल्प उद्योग और बांस के कचरे का इस्तेमाल लकड़ी का कोयला बनाने में किया जा सकता है।
चौथे साल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है बांस की फसल
नीलेश बताते हैं कि बांस की फसल एक बार लग जाने के बाद चौथे साल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मतलब चार साल के बाद किसान हर साल इसकी कटाई से आमदनी अर्जित कर सकते हैं। नीलेश ने बताया कि बांस की फसल तैयार होने में जो शुरुआत के चार साल का समय होता है, इसे भी कैसे मुनाफ़े में तब्दील किया जाए, इस दिशा में उन्होंने काम करना शुरू कर दिया है।
बांस की खेती के साथ कम लागत में किया जा सकता है बकरी पालन
नीलेश ने बताया कि वो किसानों को बांस की खेती करते हुए बकरी पालन करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं। बांस की खेती के साथ ही कम खर्चे में बकरी पालन में मुनाफ़ा कमाना है तो ‘गोटवाला फ़ार्म’ से लीजिये ट्रेनिंग, ‘बकरी पंडित पुरस्कार’ से सम्मानित दीपक पाटीदार को बनाइये गुरू । बांस के पत्ते छाँव देने का काम करते हैं। ड्रिप इरिगेशन मेथड के ज़रिए पानी की उपलब्धता भी बनी रहती है। इससे बकरी पालकों कोबकरियों को अलग से रखने के लिए शेड बनवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और आसपास पानी भी होगा। इस तरह से बकरी पालन की लागत में कमी आएगी। इससे किसानों को आमदनी का एक और अच्छा स्रोत मिलेगा। महीने भर में ही किसान 25 से 30 हज़ार की आमदनी कर सकते हैं।
नीलेश बताते हैं कि बांस की खेती में अगर दो लाइन के बीच 15 फ़ीट और दो पौधों के बीच 8 फ़ीट की दूरी रखी जाए तो इसमें कई और फसलें लगाई जा सकती हैं। सहजन की खेती (Drumstick farming) की जा सकती है। सहजन बकरियों को दिए जाने वाले आहार में आता है। बांस की खेती से ही बकरी पालन की शुरुआत करने के बाद एक बार इनकम आने लग जाए तो बड़े स्तर पर इसे ले जा सकते हैं।
नीलेश कहते हैं कि 25 से 35 साल के युवा जो शहरों में काम की तलाश में जाते हैं, उन्हें मुश्किल से 8 से 10 हज़ार रुपये की सैलरी मिलती है। लेकिन बकरी पालन कर वो अपनी इस कमाई को 25 से 30 हज़ार कर सकते हैं। नीलेश बताते हैं कि ये युवा ही देश का भविष्य हैं और इन्हें प्रोत्साहन मिलेगा तो ये गाँव के विकास में बड़ा योगदान देने का माद्दा रखते हैं।
कैसे की जाती है बांस की कटाई?
नीलेश ने बताया कि चौथे साल में बांस की फसल आ जाने के बाद पूरे के पूरे बांस की कटाई नहीं करनी होती है। बांस के पौधे में जो डंडे पूरे पनप चुके होते हैं, उन्हें ही काटना होता है। चार साल बाद बांस के एक पौधे से कम से कम 40 बड़े और अच्छे बांस के डंडे निकल आते हैं। हर साल 10+2 के मेथड से डंडों की कटाई की जाती है। पहले साल में 10 अच्छे से पक्के हुए बांस के डंडों को काटा जाता है। दूसरे साल में जहां से आपने कटाई की वहां दूसरे बांस आने शुरू हो जाते हैं। बाकी जो पहले साल के बचे हुए डंडे थे उसमें से ही दूसरे साल में 12 पके हुए डंडों की कटाई की जाती है। तीसरे साल फिर 14 डंडों की कटाई होती है। इस तरह से साल दर साल बांस की कटाई चलती रहती है।
बांस की फसल में नहीं लगता कोई रोग
अन्य कई फसलों में हर बार खेत को तैयार करना होता है, लेकिन बांस की खेती में ऐसा कुछ नहीं होता। नीलेश ने बताया कि बांस की फसल में रोग और कीट भी नहीं लगते और जानवरों से नुकसान पहुंचने का भी खतरा नहीं रहता। नीलेश बताते हैं कि 15 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की लागत से बांस की खेती शुरू की जा सकती है। किसान इसकी खेती से हर साल प्रति एकड़ कम से कम डेढ़ से दो लाख की कमाई कर सकते हैं।
किसी भी जलवायु में उग सकता है बांस
नीलेश ने आगे बताया कि हमने देखा है कि गुजरात की रेतीली ज़मीन पर भी बांस का पौधा उग सकता है। इसकी फसल किसी भी जलवायु में आ सकती है। इतना ज़रूर हो सकता है कि जहां बारिश कम हो या मिट्टी कम हो तो वहां फसल कटाई में एक दो साल ऊपर-नीचे हो सकता है। बंजर ज़मीन पर भी बांस का उत्पादन लिया जा सकता है। बांस का पौधा 33 फ़ीसदी ऑक्सीजन छोड़ता है। इस वजह से ये पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।
FPO खोलने में किसानों की मदद कर रहे हैं नीलेश
नीलेश ने आगे कहा कि सरकार भी बैंबू मिशन के तहत इसके उत्पादन को बढ़ावा दे रही है, जो एक अच्छा कदम है। बांस आधारित कई उद्योगों को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बढ़ावा भी दिया जा रहा है। इन्हीं में से एक है अगरबत्ती उद्योग। अगरबत्ती उद्योग के विकास के लिये सरकार द्वारा इसके आयात पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं। इससे आज भारत में अगरबत्ती के निर्माण में तेज़ी आई है। अगरबत्ती की मांग पिछले सालों में बढ़ी है। देश में अगरबत्ती की कुल खपत लगभग 10 लाख किलो प्रतिदिन है। नीलेश अपने क्षेत्र के बांस उत्पादक किसानों को अगरबत्ती के अलावा, चारकोल, फ़र्नीचर बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट लगवाने के कार्य में में लगे हुए हैं। वो FPO (Farmer Producer Organizations) के ज़रिए हज़ारों की संख्या में किसानों को इन कार्यों से जोड़ने का काम कर रहे हैं।
क्या होता है FPO?
एफपीओ यानी किसानी उत्पादक संगठन (कृषक उत्पादक कंपनी) किसानों का एक समूह होता है, जो कृषि उत्पादन कार्य में लगा होता है और कृषि से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियां चलाता है। जो किसान कृषि उत्पादों को पैदा करते हैं वे अपना एक समूह बनाकर उसे इंडियन कंपनीज एक्ट के तहत रजिस्टर करवा सकते हैं। इससे किसानों को न सिर्फ़ अपनी उपज का बाज़ार मिलने में आसानी होगी, बल्कि वित्तीय सहायता, खाद, बीज, कृषि उपकरण आदि खरीदना आसान होगा।
नीलेश कहते हैं कि 10 से 12 किसान एक साथ आकार FPO के ज़रिए छोटे स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत कर सकते हैं। इसमें नीलेश किसानों की मदद भी करते हैं। FPO रजिस्ट्रेशन से लेकर, लागत और उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग पर वो किसानों के साथ काम करते हैं।
अन्य फसलों की खेती के साथ बांस का उत्पादन करें
बांस की खेती में रुचि रखने वाले किसानों को सलाह देते हुए नीलेश कहते हैं कि जो किसान दूसरी फसलों की खेती कर रहे हैं, वो 15 बाय 8 के अनुपात में अपने खेत के अंदर ही बांस लगा सकते हैं। इसका बाज़ार कभी खत्म नहीं होगा। अन्य फसलों के साथ अगर आप एक एकड़ में बांस का उत्पादन करते हैं तो बेल फसलों की खेती कर रहे किसानों को अपना बांस बेच सकते हैं। छोटे स्तर पर बांस के उत्पाद जैसे चटाई और कुर्सियां बनाने वालों को भी अपना बांस बेच सकते हैं।

बहुत बड़ा है बांस का बाज़ार
नीलेश ने बताया कि कटाई के पहले साल प्रति एकड़ 40 से 50 टन बांस निकलता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, बांस का आकार 25 प्रतिशत तक बढ़ता जाता है। फिर दूसरे साल के बाद से कटाई 100 टन के आसपास तक पहुंच जाती है। नीलेश कहते हैं कि उनके क्षेत्र में पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर इंडस्ट्री में अगर किसान खुद अपनी फसल लेकर जाता है तो 4 हज़ार 600 रुपये प्रति टन के हिसाब से बांस खरीदा जाता है। अगर कारोबारी खुद किसान के वहां से फसल उठाता है तो दो हज़ार 500 रुपये प्रति टन का दाम मिल जाता है।
किसानों को कम दरों में ऑर्गेनिक खाद भी बेचते हैं
अभी नीलेश दो कंपनी संचालित कर रहे हैं। बांस का काम ‘शिवशम्भू एग्रो सर्च’ फ़र्म संभालती है। इसके अलावा, ‘कृषि संकल्प इंडिया’ कंपनी ऑर्गेनिक खाद के क्षेत्र में काम करती है। वर्मीकम्पोस्ट, वर्मी वॉश जैसे उत्पाद किसानों को कम दरों में उपलब्ध कराए जाते हैं। आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों की जीवनशैली में सुधार लाने के लिए उन्होंने बांस उत्पादन को लेकर उन्हें भी जागरूक करने का काम किया है। आज कम लागत और कम पानी में उगने वाले बांस से वो अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Pashu Sakhi Yojana: पशु सखी योजना गांव की महिलाओं के लिए बन रही आत्मनिर्भरता की नई मिसालपशु सखी योजना से गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। यह योजना ग्रामीण जीवन में आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण का नया मार्ग दिखा रही है।
- हिमाचल की पहाड़ियों में प्राकृतिक खेती से रच रहे इतिहास प्रगतिशील किसान सुखजिंदर सिंहप्राकृतिक खेती से हिमाचल प्रदेश के बलदोआ गांव के किसान सुखजिंदर सिंह ने कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया और किसानों के लिए प्रेरणा बने।
- कांगो में उगे IRRI के चार नए चावल, भारत के किसानों के लिए क्यों हैं मौके की बात? जानें पूरी डीटेलअंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (International Rice Research Institute) यानि IRRI ने वहां Food Security बढ़ाने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए चार नई चावल की किस्में (Four new rice varieties) पेश की हैं। टेंगेटेंगे, किरेरा बाना, मुबुसी और रुटेटे (Tengetenga, Kirera Bana, Mbusi and Rutete)।
- Milestone In Veterinary History: भारत में पशुओं के लिए Blood Donation और Blood Banks पर पहला राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारीदेश में पशु चिकित्सा इतिहास (Veterinary history) में एक ऐतिहासिक और लाइफ सेविंग पहल की शुरुआत हुई है। ‘पशुओं में रक्ताधान और रक्त बैंकों के लिए दिशा-निर्देश और मानक संचालन प्रक्रियाएं यानि SOPs जारी किया है।
- शोधकर्ता आकृति गुप्ता ने खोजा रोहू मछली को बीमारियों से बचाने का नया तरीक़ाशोधार्थी आकृति गुप्ता ने रोहू मछली पालन के लिए बीमारियों से बचाने का नया तरीक़ा खोजा, जिससे मछली पालन और सुरक्षित होगा।
- बलवंत सिंह की मेहनत रंग लाई — जंगल मॉडल बना प्राकृतिक खेती से कमाई का ज़रियाबलवंत सिंह ने प्राकृतिक खेती अपनाकर कम लागत में अधिक लाभ कमाया और आसपास के किसानों को भी इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।
- Jute Farming in Jharkhand: जूट की खेती से साहिबगंज के किसान बन रहे संपन्न, लिख रहे आत्मनिर्भरता की सुनहरी कहानीकेन्द्र सरकार की ओर से नकदी फसलों को दिए जा रहे बढ़ावे का सीधा लाभ साहिबगंज ज़िले के किसानों को मिल रहा है, जहां जूट (Jute) की खेती ने स्थानीय किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि के नए दरवाज़े खोल दिए हैं।
- Biofach India 2025: शुरू हुआ जैविक क्रांति का महाकुंभ, नॉर्थ-ईस्ट के किसानों के Organic Products से दुनिया होगी रूबरूBiofach India 2025 के 17वें एडिशन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Union Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) की ओर से North Eastern Region के जैविक उत्पादों की एक wide range प्रदर्शित की जाएगी।
- New World Screwworm: क्या है न्यू वर्ल्ड स्क्रूवॉर्म? जानिए भारत के 30 करोड़ पशुओं पर क्यों है मंडराता संकट!न्यू वर्ल्ड स्क्रूवॉर्म (New World Screwworm) कोई साधारण कीट नहीं, बल्कि एक ख़तरनाक परजीवी है जो जीवित पशुओं के शरीर को अंदर से खा जाता है, उन्हें असहनीय पीड़ा देता है और फिर मौत के घाट उतार देता है। अमेरिकी सरकार और वैज्ञानिक (US government and scientists)इसके प्रसार को रोकने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं
- Gerbera Flower Farming: लोहरदगा के किसान शंभू सिंह की आत्मनिर्भरता की नई कहानी, रोज़गार देकर पलायन रोकने में अहम भूमिकालोहरदगा, झारखंड (Lohardaga, Jharkhand) के किसान अब जरबेरा फूल की खेती (Gerbera Flower Farming) कर न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति मज़बूत कर रहे हैं, बल्कि गांव के लोगों को रोज़गार देकर पलायन रोकने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
- Nurture.farm किसानों-विक्रेताओं को डिजिटल सपोर्ट देने वाला ऐप, जो बना रहा है खेती को एक स्मार्ट मिशनNurture.farm के रिटेल हेड अंकित लाढ़ा ने बताया कैसे Nurture.retail एग्रीकल्चर को डिजिटल बना कर किसानों को स्मार्ट बना रहा है।
- फ्री बीज से लेकर फसल बीमा तक! योगी सरकार दे रही किसानों को दोहरा लाभ, 31 अगस्त है लास्ट डेटउत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एक साथ दो बड़ी सौगातें दी जा रही हैं। एक ओर जहां किसान फ्री में तिलहन बीज मिनीकिट (Oilseed Seed Minikit) पा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY) के तहत खरीफ फसलों का बीमा कराकर प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा (Protection from natural calamities) का फायदा उठा सकते हैं।
- WDRA: अब किसानों को नहीं उठाना पड़ेगा भारी नुकसान, उपज का सही दाम दिलाएगी ये डिजिटल पर्चीअब मंडी का ये एकछत्र राज ख़त्म हो रहा है? किसानों के लिए एक ऐसा ऑप्शन मौजूद है जो न सिर्फ उन्हें उचित दाम दिलवाता है, बल्कि उन्हें ‘बेचने’ की जल्दबाजी से भी मुक्ति देता है। ये ऑप्शन है WDRA यानी वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Warehousing Development and Regulatory Authority)।
- प्राकृतिक खेती से महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनीं हिमाचल की श्रेष्ठा देवीश्रेष्ठा देवी की सफलता की कहानी बताती है कि प्राकृतिक खेती से ख़र्च घटाकर किसान अधिक मुनाफ़ा और सम्मान पा सकते हैं।
- FCI Grievance Redressal System: चावल मिल मालिकों से लेकर ख़रीददार तक ऐप की मदद से कर सकेंगे शिकायत, होगा Digital EmpowermentFCI ग्रीवेंस रेड्रेसल सिस्टम (FCI Grievance Redressal System) मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया है। ये इनोवेशन सरकार के डिजिटल प्रयासों का एक हिस्सा है जो शासन में पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही लाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहा है।
- खेती को फ़ायदे का सौदा बनाने की चुनौती: ग्वालियर में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रखी गेहूं और जौ उत्पादन पर ज़ोरदार बातकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) ने 26 अगस्त 2025 को ग्वालियर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (Rajmata Vijayaraje Scindia Agricultural University) में आयोजित ’64वीं अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान कार्यकर्ता गोष्ठी’ (’64th All India Wheat and Barley Research Workers’ Conference’) में अपने संबोधन में देश में गेहूं उत्पादन में हुई शानदार बढ़ोत्तरी का जिक्र किया।
- Dr.Bhimrao Ambedkar Kamdhenu Scheme: डॉ. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना है युवाओं के लिए Dairy Business का गोल्डन चांस, कैसे करें अप्लाई जानिएमध्यप्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर ‘डॉ. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना’ (Dr.Bhimrao Ambedkar Kamdhenu Scheme) की शुरुआत की।
- प्राकृतिक खेती अपनाकर सुनील दत्त बने गांव के किसानों की मिसालप्राकृतिक खेती से किसान सुनील दत्त ने खरपतवार पर जीत हासिल की और कम लागत में अधिक मुनाफ़ा पाया जानिए उनकी पूरी कहानी।
- सुभाष पालेकर से मुलाकात ने बदली ज़िदगी, हिमाचल में Natural Farming का शानदार उदाहरण बने किसान सुभाष शादरूसुभाष के सफ़र की शुरुआत साल 2010 में हरिद्वार की एक यात्रा से हुई। वहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर (Famous agricultural expert Subhash Palekar) से हुई। इस मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी। उन्होंने पालेकर जी के बेटे से नंबर लिया और प्राकृतिक खेती (Natural Farming) पर किताबें मंगवाईं।
- One Fish, One Paddy: ‘एक मछली, एक धान’ मॉडल से बदलेगी किसानों की किस्मत,मछुआरों के लिए सरकार की पायलट स्कीमकिसानों और मछुआरों के लिए केंद्र सरकार ने एक गेम-चेंजिंग पायलट योजना (Game-changing pilot scheme) की घोषणा की है। इस योजना का मूल मंत्र है – ‘एक मछली, एक धान’(One Fish, One Paddy)। ये न सिर्फ आय बढ़ाने का एक मॉडल है, बल्कि टिकाऊ कृषि (Sustainable Agriculture) और इंटिग्रेटेड कृषि (Integrated Farming) की ओर एक बड़ा कदम है।