किसानों के नज़रिये से देखें तो मशरूम की खेती की तीन सबसे प्रमुख विशेषताएँ हैं। पहला, बुआई के महज 20 से 30 दिनों में इसकी उपज मिलने लगती है और दूसरा, बाज़ार का इसका दाम बढ़िया मिलता है और तीसरा, मशरूम से नकदी फसलों की तरह जल्दी कमाई होती है। इन्हीं तीनों वजहों से ज़्यादा से ज़्यादा प्रगतिशील किसान मशरूम की खेती को अपना रहे हैं। भारत में मशरूम की अनेक किस्में पैदा होती हैं। ‘ढींगरी’ इसकी सबसे ज़्यादा प्रचलित किस्मों में से एक है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित ICAR-DMR (Directorate of Mushroom Research) यानी खम्ब अनुसन्धान निदेशालय के वैज्ञानिक ने ढींगरी प्रजाति की मशरूम की पैदावार के लिए देश के ज़्यादातर राज्यों की जलवायु को उपयुक्त पाया है।
मशरूम की खेती की नयी तकनीक
ICAR-DMR की ओर से मिट्टी के घड़ों या मटकों में भी मशरूम की खेती की नयी तकनीक विकसित की गयी है। दरअसल, भारतीय ग्रामीण जनजीवन में मटकों की पहुँच हर घर तक है। देश के बहुत बड़े इलाके में मटकों का पानी पीने और हर साल पुराने की जगह नये मटकों को इस्तेमाल करने का रिवाज़ है। तमाम तीज-त्योहारों और धार्मिक गतिविधियों में भी मटकों का ख़ूब इस्तेमाल होता रहा है। अक्सर मुख्य आयोजन के बाद मटके बेकार हो जाते हैं। लेकिन यदि इन्हीं बेकार मटकों को इक्कठा करके इनका उपयोग ढींगरी मशरूम की खेती के लिए किया जाए तो ये बढ़िया कमाई का ज़रिया बन सकते हैं।
पूरे साल हो सकती है ढींगरी मशरूम की खेती
स्वामी केशवानन्द कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के पादप रोग विज्ञान विभाग के तहत संचालित ICAR-कृषि अनुसन्धान केन्द्र, श्रीगंगानगर में तैनात विशेषज्ञों पवन कुमार पंवार, एस.के. बैरवा और सुरेन्द्र सिंह के अनुसार, ढींगरी मशरूम की कम से कम 32 प्रजातियाँ विश्व में पायी जाती हैं। इसमें से 16 प्रजातियों के मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन होता है। विश्व मशरूम उत्पादन में बटन मशरूम और शिटाके मशरूम के बाद तीसरा स्थान ढींगरी का ही है। भारतीय जलवायु भी ढींगरी मशरूम के लिए बेहद अनुकूल है। यहाँ ढींगरी की विभिन्न प्रजातियों की खेती पूरे साल की जा सकती है।
हालाँकि, कुछ समय पहले तक ढींगरी मशरूम की पैदावार सिर्फ़ गर्मियों में यानी अप्रैल से सितम्बर तक मिलती थी। लेकिन फिर अध्ययन से पता चला कि ढींगरी की जहाँ कुछ प्रजातियाँ गर्मियों के लिए उपयुक्त हैं वहीं कई ऐसी भी हैं जो सर्दियों में 14 से 20 डिग्री सेल्सियस वाले तापमान में बढ़िया उत्पादन देती हैं। इस तरह, यदि मौसम के अनुसार ढींगरी की प्रजातियाँ चुनी जाएँ तो पूरे साल इसकी उपज मिल सकती है। ढींगरी की विभिन्न प्रजातियाँ जहाँ देखने में अलग-अलग हैं, वहीं इनका स्वाद भी भिन्न होता है और इन्हें उगाने के लिए तापमान भी अलग-अलग रखना पड़ता है।
मटकों में ढींगरी मशरूम उगाने की उन्नत और वैज्ञानिक विधि
अपने सफ़ेद दूधिया रंग की वजह से ढींगरी मशरूम की ‘प्लूरोटस फ्लोरिडा’ प्रजाति की ख़ूब माँग रहती है। इस प्रजाति के मशरूम के लिए 18 से 22 डिग्री सेल्सियस और 80 से 85 प्रतिशत नमी वाली जलवायु ही सबसे मुफ़ीद है। लेकिन पूरे साल ऐसा मौसम तो रहता नहीं, लिहाज़ा नियंत्रित वातावरण के बाहर इसे उगाना मुश्किल होता है। इसी चुनौती का आसान उपाय है – मटकों में ढींगरी मशरूम की खेती। इससे गर्मी के मौसम में भी अच्छी पैदावार मिल सकती है, क्योंकि मटकों और उसके आसपास का तापमान बाहर के तापमान से 10 से 12 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है तथा मटकों में पर्याप्त नमी भी बनी रहती है।
मटकों में ढींगरी मशरूम उगाने के लिए तैयारी
सबसे पहले पुराने मटकों को 4 प्रतिशत फार्मेलीन के घोल से उपचारित करके 24 घंटे तक पॉलीथीन शीट ढककर रखना चाहिए। 24 घंटे बाद पॉलीथीन शीट हटाकर अगले 12 घंटे तक मटकों को खुली हवा में रखना चाहिए ताकि उनमें से फार्मेलीन की गन्ध निकल जाए। अगले दिन उपचारित मटकों में ड्रिल मशीन की सहायता से 10 से 12 सेमी की दूरी पर 5 से 7 मिमी व्यास के उतने छेद करना चाहिए जो मटके के आकार के अनुकूल हो।

मटके लिए माध्यम या पोषक आहार तैयार करना
ढींगरी मशरूम की पैदावार के लिए खेत खलिहानों से निकलने वाले कृषि अवशेष का प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन ऐसे अवशेष को सूखा तथा फफूँद रहित होना चाहिए। मटकों को फार्मेलीन के घोल से उपचारित करते ही उसके लिए माध्यम या पोषाक आहार तैयार करने का काम शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए गेहूँ का भूसा तथा धान की पराली सबसे ज़्यादा प्रचलित माध्यम हैं। बस इन्हें ढींगरी मशरूम उगाने के लिए उपचारित करके उपयुक्त बनाना पड़ता है। ताकि उसमें मौजूद हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाएँ।

भूसे के उपचार की विधि
इसकी सबसे सरल और प्रचलित विधि के अनुसार, फफूँदनाशी रसायनों से भूसे को जीवाणुरहित करते हैं। इसके लिए 200 लीटर वाले टब 12 से 15 किग्रा भूसा या पुआल की कुट्टी को 90 लीटर पानी में भिगोया जाता है। फिर इसमें 10 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बाविस्टीन तथा 125 मिली फार्मेलीन का घोल बनाकर टब के गीले भूसे पर चारों तरफ से डालकर प्लास्टिक शीट से ढक देते हैं। फिर से 16 से 18 घंटे बाद टब से उपचारित भूसे को निकाल कर पॉलीथीन शीट या पक्के फर्श पर फैला देते हैं ताकि इससे फार्मेलीन की महक उड़ जाए और भूसे की नमी घटकर करीब 65% हो जाए।
| मटकों में पैदा होने वाली ढींगरी की मुख्य प्रजातियों का फसल चक्र और पैदावार | ||||
| ढींगरी की प्रजातियाँ | उगाने का तापमान (डिग्री सेल्सियस) | बीज फैलने का समय (दिन) | पैदावार के लिए समय (दिन) | पैदावार ग्राम प्रति किग्रा शुष्क माध्यम |
| प्लूराटेस फ्लेबीलेटस | 22-26 | 12-14 | 18-22 | 600-900 |
| प्लूरोटस सजोर-काजू | 22-26 | 12-14 | 18-25 | 500-700 |
| प्लूरोटस सेपीडस | 22-26 | 16-18 | 22-28 | 400-750 |
| प्लूरोटस ईयोस | 22-26 | 16-18 | 25-30 | 300-500 |
| प्लूराटेस ऑस्ट्रीएटस | 12-22 | 20-25 | 30-35 | 300-500 |
| प्लूरोटस फ्लोरिडा | 18-22 | 16-18 | 25-30 | 300-500 |
स्रोत – ICAR-DMR (Directorate of Mushroom Research), सोलन
मटके में ढींगरी मशरूम की बीजाई
बीजाई की प्रक्रिया को स्पॉनिंग (spawning) कहते हैं। मटके में ढींगरी मशरूम की पैदावार के लिए उपयुक्त प्रजाति के ताज़ा स्पॉन (spawn) को काम में लेना चाहिए। ध्यान रहे कि ये स्पॉन 30 दिनों से ज़्यादा पुराना नहीं हो। इसे कृषि विज्ञान केन्द्र या बीज विक्रेता से हासिल कर सकते हैं। इसके बाद 250 से 300 ग्राम बीज या स्पॉन (spawn) की मात्रा के लिए 10 से 12 किग्रा गीले पोषक आहार या माध्यम का इस्तेमाल करना चाहिए। माध्यम और बीज को किसी अन्य बर्तन में अच्छी तरह से मिलाकर तैयार किये गये मटकों में ऊपर तक भरकर मटके के मुँह को पॉलीथीन से तथा उसमें किये गये छेदों को नमी नहीं सोखने वाली रुई से बन्द कर देना चाहिए। फिर 5-6 दिन बाद मटके का मुँह खोल देना चाहिए और रुई को भी छेदों से हटा देना चाहिए।

मटके में मशरूम का विकास और प्रबन्धन
स्पॉनिंग के बाद मटकों को उत्पादन कक्ष में रखते हैं। वहाँ मटकों को रखने के लिए लोहे या बाँस के फ्रेम या सीढ़ीनुमा रैक (rack) अथवा लटकाने के लिए रस्सी का छीकों का उपयोग करना चाहिए। 15 फ़ीट लम्बाई, 10 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट ऊँचाई वाले उत्पादन कक्ष में क़रीब 100 से 125 मटके रखे जा सकते हैं। उत्पादन कक्ष में दो खिड़कियाँ अवश्य होनी चाहिए। शीघ्र ही मटकों में बीजों से छोटे-छोटे सफ़ेद तन्तुओं यानी कवक का जाल बढ़ने लगता है। इसीलिए कवक जाल फैलने के 7 से 10 दिनों बाद मटकों पर किये गये छोटे-छोटे छेदों में से मशरूम कलिकाएँ निकलनी शुरू हो जाती हैं।
मशरूम के विकास के लिए उत्पादन कक्ष में ज़्यादा प्रकाश की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन यदि ये कमरा बिल्कुल अन्धेरे वाला हो तो वहाँ रोज़ाना 4-5 घंटे ट्यूब लाइट अथवा बल्ब का प्रकाश देना चाहिए। क्योंकि ढींगरी मशरूम की कलिकाएँ बनने और इसके बढ़िया विकास के लिए हल्के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसके अलावा रोज़ाना दो से तीन बार मटकों पर पानी छिड़कने या स्प्रे करने की ज़रूरत पड़ती है, ताकि उत्पादन कक्ष का वातावरण ठंडा बना रहे। गर्मी बढ़ने पर फर्श तथा दीवारों पर पानी का छिड़काव करने से तापमान कम हो जाता है। यदि गर्मी बहुत ज़्यादा हो तो उत्पादन कक्ष को ठंडा रखने एयर कूलर की मदद भी ले सकते हैं। ऐसा इन्तज़ाम होने पर 15 से 20 दिनों में सफ़ेद मशरूम का जाल मटके के छेदों से निकलकर फैलने लगता है।

मटकों में मशरूम उत्पादन तथा रखरखाव
यदि मशरूम तोड़ने लायक हो रही हो तो ऐसे पानी नहीं छिड़कना चाहिए जिससे उसके छत्रक पर पानी जमा हो जाए। पानी का छिड़काव हमेशा मशरूम तोड़ने के बाद करना चाहिए। कमरे की खिड़कियाँ तथा दरवाज़े को रोज़ाना दो घंटे के लिए खुला रखना चाहिए, ताकि अन्दर की कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकल जाए तथा ऑक्सीजन की उचित मात्रा कमरे में बनी रहे। ढींगरी का छत्रक अगर छोटा तथा डंठल बड़ा हो तो समझ लेना चाहिए कि मशरूम को ऑक्सीजन पर्याप्त नहीं मिल रही है। यदि ऐसा हो तो खिड़कियों को ज़्यादा देर तक खुला रखना चाहिए।
उत्पादन कक्ष में एग्जॉस्ट फैन लगाकर भी कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा कम कर सकते हैं। ढींगरी मशरूम की कलिकाएँ दो से तीन दिनों में बढ़कर परिपक्व हो जाती हैं। इसीलिए जब छत्रक का बाहरी किनारा अन्दर की तरफ मुड़ने लगे तो समझ लेना चाहिए कि फसल तोड़ने लायक हो गयी है। पूर्ण विकसित मशरूम को हाथ से मरोड़कर तोड़ना चाहिए। कभी-कभार ढींगरी के बीजाणु (स्पोर्स) से एलर्जी हो सकती है। यदि अचानक छींक आने लगे तो नाक और मुँह पर पतला कपड़ा बाँधकर या मास्क लगाकर तथा खिड़की-दरवाज़ा खोलकर छोड़ने के दो घंटे बाद उत्पादन कक्ष में जाना चाहिए।
मटके में ढींगरी की पैदावार
ढींगरी की पैदावार 35 से 40 दिनों तक आती रहती है। पहली फसल के 10-15 दिन बाद दूसरी फसल आ जाती है। पैदावार की मात्रा माध्यम वाले भूसे की गुणवत्ता और ढींगरी की प्रजाति पर निर्भर करती है। इसीलिए एक किग्रा सूखे भूसे से 500 से लेकर 900 ग्राम तक मशरूम प्राप्त हो सकता है। मशरूम को तोड़ने के बाद उसकी डंठल के साथ लगी घास को काटकर हटा देते हैं। इसके बाद मशरूम को छेद वाली पॉलीथीन में पैक करके बाज़ार भेज देना चाहिए। इस मशरूम को सुखाया भी जा सकता है। सुखाने के लिए इसे साफ़ मलमल के कपड़े में बाँधकर धूप या हवादार कमरे में दो से तीन दिनों तक रखना चाहिए। सूखी ढींगरी को सीलबन्द डिब्बों में रख सकते हैं तथा इसे उपयोग से पहले 10 मिनट तक गर्म पानी में भिगो देना चाहिए। इसके बाद सब्जी या सूप वग़ैरह बना सकते हैं।
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