जैविक खेती से देश में भले ही अपेक्षाकृत कम प्रगतिशील किसान जुड़े हों, लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि जैविक खेती में ही खेती-बाड़ी का सुनहरा भविष्य मौजूद है। अब यदि जैविक खेती से भी ‘सोने पे सुहागा’ जैसा सुख पाना हो तो इसके साथ ही किसानों को जैविक पशुपालन के तरीकों को भी अपनाना चाहिए। इससे जैविक खेती और पशुपालन दोनों को ही परस्पर फ़ायदा होता है क्योंकि ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
पशुपालन का नाता देश के उन करोड़ों लोगों से है जो बाक़ायदा खेती करने वाले किसान भी नहीं है। इसीलिए जैविक पशुपालन को अपनाने के फ़ायदों का दायरा भी बहुत व्यापक हो सकता है। इन्हीं तथ्यों को देखते हुए किसान ऑफ़ इंडिया में अभी बात उस जैविक पशुपालन की, जिसके बारे में हरेक किसान और पशुपालन को ज़रूर जानना-समझना चाहिए। भले ही उन्हें फ़िलहाल, इसे अपनाने में अनेक मुश्किलें हों, लेकिन हमारा विश्वास है कि यदि आपको पशुपालन की श्रेष्ठ प्रक्रियाओं यानी जैविक पशुपालक के बारे में वैज्ञानिक जानकारियाँ होंगी तो सही वक़्त और अनुकूल दशाओं में आप इसे ज़रूर अपनाना चाहेंगे।
क्या है जैविक पशुपालन?
जैविक पशुपालन की परिभाषा के अनुसार, ये पशुधन के उत्पादन की ऐसी प्रणाली है जो पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecological system) में जैविक और जैव अपघटनीय (biodegradable) आदान या इनपुट, पशुपोषण, पशु स्वास्थ्य, पशु आवास और पशु प्रजनन से सम्बन्धित है। इसीलिए जिस तरह से जैविक खेती में किसी भी रासायनिक और मानव निर्मित तत्वों का समावेश वर्जित है उसी तरह से जैविक पशुपालन में इस्तेमाल होने हरेक आदान या इनपुट पर भी जैविक खेती वाली शर्तें ही लागू होती हैं। जैसे – कैमिकल्स, सम्वर्धित पशु चारा आदि के उपयोग से बचना।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिस तरह से पारम्परिक कृषि प्रणाली में सीमित इनपुट पर आधारित कम उत्पादन को विशिष्ट स्थान के साथ ही साथ ज़्यादा दाम भी मिलता है, उसी तरह से जैविक पशुपालन से पैदा होने वाले उत्पादों को भी खाद्य पदार्थों के बाज़ार में विशिष्ट दर्ज़ा हासिल होता है। इसीलिए खेती को टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिहाज़ से जितनी अहमियत जैविक खेती की है, उतना ही लाभकारी है इसे जैविक पशुपालन से जोड़ना। अलबत्ता, इतना ज़रूर है कि जैविक पशुपालन के लिए उपयुक्त मानक या स्टैंडर्ड तय होना बेहद ज़रूरी है।
![जैविक पशुपालन organic animal husbandry](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2022-12-11T121541.733.jpg)
जैविक पशुपालन का प्रमाणीकरण
ऑर्गेनिक या जैविक उत्पादों के लिए प्रमाणीकरण सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि सारी दुनिया में जैविक कृषि या पशु उत्पादों को शुद्धता और श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए पशुधन से उत्पादित सामग्री की भी जैविक गुणवत्ता को लेकर सख़्त निगरानी रखी जाती है और जैविक खाद्य उत्पादों की तरह जैविक पशुधन उत्पादों की गुणवत्ता का प्रमाणन भी वही मान्यता-प्राप्त एजेंसियाँ ही करती हैं जिन्हें एपीडा यानी कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने अधिकृत किया हो। यही प्रमाणन एजेंसियाँ जैविक खाद्य पदार्थों की उत्पादन प्रक्रिया का निरीक्षण और सत्यापन करती हैं।
दरअसल, जैविक पशुधन उत्पाद ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिसमें पशुओं के कल्याण, पर्यावरण सुरक्षा, न्यूनतम औषधियों का प्रयोग और हानिकारक तत्वों के बग़ैर उत्पादन हासिल होता है। इसके लिए विकसित किये जाने वाले जैविक तंत्र में पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि करने, पशुओं के सुख और आराम का ध्यान रखकर दूध उत्पादन किया जाता है। इसी तरह, माँस-उत्पादक पशुधन को भी न्यूनतम अपशिष्ट तत्वों के साथ पालने पर भरपूर ज़ोर होता है। ताकि पशुओं और पर्यावरण पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े।
जैविक पशुधन प्रणाली की विशेषताएँ
जैविक पशुपालन एक ऐसी खाद्य उत्पादन प्रणाली है, जिसमें पशु कल्याण से कोई समझौता नहीं किया जाता है। इसमें पशुओं के लिए ग्रोथ रेगुलेटर्स, रोगनिरोधी, एंटीबायोटिक्स या किसी फ़ीड एडिटिव्स का नियमित रूप से उपयोग नहीं किया जाता है। यहाँ तक कि जैविक पशुधन के आहार को भी कम से कम 80 प्रतिशत जैविक मानकों के अनुसार और कृत्रिम उर्वरकों या कीटनाशकों के बग़ैर ही पैदा करने के नियम का पालन किया जाता है।
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जैविक पशुधन उत्पादों की माँग
जैविक खेती के उत्पादों की ही तरह वैश्विक स्तर पर जैविक पशुधन उत्पादों की माँग में दिनों-दिन बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है, क्योंकि दुनिया भर में ऐसे उपभोक्ताओं की तादाद बहुत तेज़ी से बढ़ रही है जो जैविक पशुधन के उत्पादों जैसे दूध, अंडा, माँस आदि के लिए कई गुना ज़्यादा दाम चुकाने के लिए तैयार हैं। इसका मतलब ये है कि यदि किसान और पशुपालक उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद पैदा करने के लिए तत्पर हों तो उन्हें अपनी मेहनत, कौशल और निवेश के लिए बेहतर मुनाफ़ा पाने में कोई दिक्कत नहीं होने वाली।
ज़ाहिर है, यदि किसान, जैविक खेती के साथ-साथ जैविक पशुपालन को भी अपनायें तो इससे उनकी कमाई कई गुना बढ़ सकती है। इसके लिए पशुधन के सभी बिकाऊ उत्पादों पर प्रमाणन एजेंसी की ओर से निर्धारित जैविक लेबल का होना ज़रूरी है और जैविक लेबल के साथ इसके उत्पादों का विज्ञापन होना चाहिए।
जैविक पशुपालन के मूल मंत्र
- पशु व्यवहार की सही समझ: जैविक पशुधन प्रबन्धन में पशुओं के उपचार की बजाय उन्हें रोगों- बीमारियों से बचाव पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। ताकि पशुओं को तनाव मुक्त रखा जा सके। इसीलिए जैविक पशुधन प्रबन्धन में पशुओं के स्वस्थ्य और देखभाल को सुनिश्चित करने के लिए उनके व्यवहार की सही समझ का अनुपम महत्व होता है।
- पशुधन का जन्म पूर्व प्रबन्धन: जैविक पशुपालन से जोड़े जाने वाले पशुओं का जैविक प्रबन्धन गर्भावस्था या हैचिंग के आख़िरी एक तिहाई समय से करना शुरू कर देना चाहिए। नये पशुओं को ऐसी फर्म से ख़रीदना चाहिए, जहाँ पर उनके रोगों की वर्तमान स्थिति का सही ब्यौरा हो अथवा जिनके पास पशुओं के संक्रामक रोगों से मुक्त होने का प्रमाणपत्र हो। पशुओं को सीधे जैविक फॉर्म से ख़रीदना चाहिए, न कि खुले बाज़ार अथवा पशु मंडियों से। नये पशुओं को बाड़े में शामिल करने से पहले 4 हफ़्तों तक क्वारंटाइन करना भी बेहद ज़रूरी है।
- पशु पोषण और व्यवस्थित चराई: पशुओं की खाद्य सामग्री यानी चारा-पानी भी जैविक प्रबन्धन के तहत ही होना चाहिए। इसमें चारागाह और चारा-फ़सलों को भी जैविक खेती के नियमों के तहत ही उत्पादित होना चाहिए। वैसे जैविक पशुपालन में 9 महीने से कम उम्र के डेयरी पशुओं के लिए पशुओं को ग़ैर-सिंथेटिक और सिंथेटिक पदार्थों को फ़ीड एडिटिव्स या अतिरिक्त पोषक तत्व के रूप में इस्तेमाल करने की छूट होती है, बशर्ते ऐसे पूरक पोषण तत्वों के लिए 20 प्रतिशत तक आदानों को ग़ैर-जैविक स्रोतों से पूरा करने की भी अनुमति होती है।
जैविक पशुपालन में प्लास्टिक छरें, यूरिया खाद और उप-उत्पाद स्तनधारी या मुर्गीवध से प्राप्त आहार की अनुमति नहीं होती है। इसमें बछड़ों को भी उनकी माँ का जैविक दूध क़रीब 3 माह की उम्र तक देना अनिवार्य होता है। पशुओं का पोषण तंत्र ऐसा होना चाहिए जिसमें चारागाहों की भरपूर भूमिका हो। पशु आहार में अनुवांशिक अभियांत्रिकी से तैयार जीवाणु, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक), दूसरी दवा, हार्मोन्स और वृद्धिकारक तत्वों आदि का प्रयोग कतई नहीं होना चाहिए।
- आवासीय व्यवस्था: जैविक पशुधन उत्पादकों को ऐसी स्थितियाँ बनाए रखनी चाहिए, जो पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हों और पशुओं के प्राकृतिक व्यवहार को समायोजित कर सकें। पशुओं का आवास ऐसा होना चाहिए जो उनकी सभी जैविक, भौतिक और व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके। आवास में पशुओं को आसानी से चारा-पानी मिलने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। पशु आवास में हवा के प्रवाह उत्तम इन्तज़ाम होना चाहिए ताकि उनका सीलन, प्रदूषण और धूल से समुचित बचाव हो सके। पशुओं के आवास में सभी पशुओं के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
- पशु अपशिष्ट प्रबन्धन: जैविक पशुपालन में किसानों को पशुओं के अपशिष्ट से जैविक खाद तैयार करने पर भरपूर ज़ोर देना चाहिए। ताकि मिट्टी और पानी के प्रदूषक तत्वों का भी पोषक तत्वों के रूप से सही रिसायकलिंग या पुनः चक्रण हो सके। जैविक पशुधन प्रबन्धन में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करना अनिवार्य है।
- पशु स्वास्थ्य की देखरेख: जैविक पशुधन उत्पादकों को अपने पशुओं की देखभाल के लिए निवारक स्वास्थ्य प्रक्रिया स्थापित करने की ज़रूरत पड़ती है। सामान्यतः पशुओं का उपचार हर्बल और प्राकृतिक विधियों से ही करना चाहिए। जैविक पशुपालन से जुड़े पशुओं का टीकाकरण भी उन्हीं परिस्थितियों में करना चाहिए, जब आसपास संक्रामक रोगों का ख़तरा हो। इसीलिए अधिकतर जैविक फार्म पर पशु चिकित्सा के लिए एलोपैथी पद्धति से उपचार करना मना होता है। एंटीबॉयोटिक्स दवाईयों का उपयोग सिर्फ़ शल्य क्रिया, दुर्घटना अथवा उन परिस्थितियों में किया जा सकता है, जब दूसरी दवाईयाँ प्रभावहीन हों।
- पशु प्रजनन: जैविक फार्म पर पशुओं का प्रजनन इस प्रकार किया जाता है जिससे स्थानीय नस्लों को प्राथमिकता मिल सके। जैविक पशुपालन में पशुओं की उत्पादकता से ज़्यादा महत्व उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को दिया जाता है। पशुओं की पैदा होने वाली सन्तानों में भी रोगों की उपस्थिति को सावधानी से रेखांकित किया जाता है। इसीलिए ऐसे पशुओं को प्राथमिकता मिलती है जिनकी सन्तानों में कम से कम रोग पाये जाते हों।
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जैविक पशुपालन के लिए पशुओं की ऐसी नस्लों का चयन करें जिनमें हिस्टो-कॉम्पैटिबिलिटी, कॉम्प्लेक्स एंटीजन, मद हों, जो कि कुछ संक्रामक रोगों के प्रतिरोधी होती हैं। ऐसी पशु नस्लों का चयन करें जिनमें रोग प्रतिरोधी क्षमता की अनुवांशिकता ज़्यादा हो। पशु चिकित्सा के लिए दवाओं का उपयोग हो तो उसका रिकॉर्ड ज़रूर रखना चाहिए। इसके साथ ही रोग का निदान, दवा की मात्रा, दवा देने का तरीका, उपचार की अवधि और दवा के शरीर में रहने की अवधि जैसे ब्यौरे को भी बाक़ायदा लिखकर रखना चाहिए।
जैविक पशुपालन के विकास की चुनौतियाँ
जैविक पशुधन उत्पादन के लिए सिद्धान्तों और मानकों की गहन समझ की आवश्यकता होती है। लेकिन आमतौर पर किसानों और पशुपालकों में जैविक उत्पादन को लेकर जागरूकता और ज्ञान की कमी देखी जाती है। इसीलिए जैविक उत्पादों के विस्तार में प्रशिक्षकों और सलाहकारों की भूमिका बेहद अहम होती है। इससे जैविक प्रमाणीकरण एजेंसियों के साथ तालमेल बैठाने में भी बहुत मदद मिलती है।
जैविक खेती और पशुपालन से जुड़े साफ़-सफ़ाई के नियम भी ज़रा सख़्त होते हैं। इसीलिए कुछेक विकासशील देश ही जैविक उत्पादों के पारम्परिक निर्यात करने में सक्षम हैं। दरअसल, स्वच्छता के सख़्त मानकों के पीछे वो बन्दिशें भी हैं जिन्हें जैविक पशुधन उत्पाद आयात करने वाले देशों की ओर से लगाया गया है। पशुधन उत्पाद के जैविक होने और रोग नियंत्रण नियमों के सख़्त अनुपालन पर भी कड़ाई से निगरानी की जाती है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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