देश का एक बड़ा वर्ग पशुपालन और डेयरी फ़ार्मिंग से जुड़ा है। डेयरी कृषि से जुड़ा एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत का योगदान करता है। ये क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान के अलावा, 8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को आजीविका उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है। दुनियाभर के दुग्ध उत्पादक देशों में भारत पहले पायदान पर आता है। 2020-21 में 209.96 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। इसकी कीमत लगभग 8.5 लाख करोड़ रही। भारत की इस उपलब्धि में हर उस पशुपालक का योगदान है, जो डेयरी फ़ार्मिंग को अपने-अपने स्तर पर बढ़ावा दे रहे हैं। एक ऐसे ही किसान हैं हरियाणा के करनाल ज़िले के नलवी खुर्द गाँव के रहने वाले रवि खोखर। किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में रवि खोखर ने दो गायों से अपने डेयरी व्यवसाय के सफर की शुरुआत के बारे में बताया।
फ़ार्म में है होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल की गायें (HF Cows)
रवि खोखर को खेती-पशुपालन विरासत में मिला है। रवि खोखर बताते हैं कि घर में ही पिता के पास करीबन 20 दुधारू गायें हुआ करती थीं। उनके साथ ही बचपन बीता है। शुरू से ही दूध उत्पादन के काम से जुड़े रहे हैं। यही सबसे बड़ी वजह रही कि उन्होंने खुद भी डेयरी फ़ार्मिंग व्यवसाय को चुना। रवि खोखर और उनके बड़े भाई अरविन्द खोखर ने 2010 में दो मवेशियों के साथ अपना डेयरी व्यवसाय शुरू किया। पंजाब से होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल (Holstein Friesian Breed) की एक बछिया और एक गाय खरीदी। पहली बार में ही गाय ने 35 लीटर दूध दिया। इससे दोनों भाइयों का हौसला बढ़ा और उन्होंने फैसला कर लिया कि वो अब बड़े स्तर पर इस व्यवसाय को ले जाएंगे। आज की तारीख में उनके अरविन्द डेयरी फ़ार्म में 85 गायें हैं। दो गायों को छोड़कर सभी होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल की हैं। दो गायें होल्स्टीन फ्रीज़ियन और जर्सी नस्ल की क्रॉस ब्रीड हैं। उनका ये फ़ार्म एक एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है।
हर साल 10 से 12 गायों की होती है बिक्री
रवि खोखर कहते हैं कि मवेशी को अगर खुला वातावरण और अच्छा रखरखाव मिले तो इसे उनकी दूध उत्पादन क्षमता पर सकारात्मक असर पड़ता है। उन्होंने अपने गेहूं के खेत को डेयरी फ़ार्म में तब्दील कर दिया। उस समय गेहूं की जो फसल आ रखी थी,उसे मवेशियों को खिला दिया और ज़मीन की चिनाई कर दी। इसके बाद वो 10 से 15 गर्भवती हीफर गायें लेकर आए। साथ ही जो गायें पहले से घर पर थीं, उनको अच्छी क्वालिटी का सीमन लगाना शुरू कर दिया, ताकि आगे जो बच्चे पैदा हों वो अच्छी नस्ल के हों। उनके फ़ार्म से हर साल 10 से 12 गायों की बिक्री भी होती है। पशुपालक उनके वहां से अच्छी क्वालिटी की गायें लेकर जाते हैं।
गाय बनी नेशनल चैंपियन
2012 के बाद से राष्ट्रीय से लेकर राज्य स्तर पर आयोजित होने वाले पशु मेलों में भाग लेना शुरू किया। उनकी गायों को 2012 से लेकर 2014 तक लगातार ब्यूटी अवॉर्ड मिले। उनके पास एक ऐसी होल्स्टीन फ्रीज़ियन गाय भी रही, जिसने रोज़ाना का 55 लीटर तक दूध दिया। इस गाय की नस्ल उन्होंने खुद तैयार की। इसके लिए 2015 में उन्हें ‘मिल्क चैम्पीयन’ का पुरस्कार मिला। ये अवॉर्ड राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) द्वारा आयोजित डेयरी मेले में दिया गया। रवि खोखर ने बताया कि पहले हर बार इस प्रतियोगिता में पंजाब की गाय बाज़ी मारती थी, लेकिन पहली बार हरियाणा की गाय जीती। उनकी गाय ने प्रतियोगिता में एक दिन में 52 लीटर दूध देकर पूरे भारत में पहला इनाम जीता था।
इस डेयरी मेले के बाद उन्हें मार्केट और नाम मिला। इससे उनका मनोबल भी बढ़ा। रवि खोखर कहते हैं कि वो कभी भी नस्ल की क्वालिटी से समझौता नहीं करते क्योंकि यही आपका दूध उत्पादन और मुनाफ़ा तय करता है। इसलिए उनका हमेशा से फोकस गायों की अच्छी नस्ल पर रहा है।
डेयरी फ़ार्मिंग ने दिया बहुत कुछ
रवि ने बताया कि डेयरी की वजह से उनके बड़े भाई को अमेरिका का 10 साल का वीज़ा मिला। उनके बड़े भाई अरविन्द खोखर ने अमेरिका में आयोजित होने वाले वर्ल्ड डेयरी एक्सपो शो में भाग लेने के लिए वीज़ा के लिए अप्लाई किया था। तब से अरविन्द खोखर वहां अमेरिका में अपना बिज़नेस कर रहे हैं। उधर रवि खोखर अरविन्द डेयरी फ़ार्म की पूरी बागडोर संभालते हैं। उन्होंने NDRI से ट्रेनिंग भी ली हुई है।
होल्स्टीन फ्रीज़ियन की कितनी कीमत?
रवि खोखर बताते हैं कि पहली बार ब्याने पर होल्स्टीन फ्रीज़ियन की शुद्ध नस्ल की गाय जो प्रति दिन का 25 से 30 लीटर तक दूध देती है, उसकी कीमत एक लाख रुपये से शुरू होती है। इसके अलावा, जो गाय पहली बार ब्याने के बाद 40 लीटर तक दूध देती हैं, उसकी बाज़ार में ढाई लाख रुपये तक की कीमत है।
रोज़ाना 700 लीटर दूध का उत्पादन
अरविन्द डेयरी फ़ार्म में रोज़ाना का करीबन 700 लीटर दूध का उत्पादन होता है। इस दूध का कुछ प्रतिशत वो नैस्ले कंपनी को बेचते हैं। इससे उन्हें 38 रुपये प्रति लीटर का दाम मिलता है। बता दें कि दूध की कंपनियां दूध में मौजूद फैट और एसएनएफ (Solids Not Fat) के आधार पर इसका दाम तय करती हैं। किसी दूध से घी और मिल्क पाउडर कितना बनेगा, उनका आंकलन करने के बाद कंपनियां दूध का दाम तय करती हैं।
किसानों के हित में काम करने की ज़रूरत
रवि खोखर कहते हैं कि कोरोना काल में महंगाई की मार का असर किसानों पर भी हुआ है। किसानों को कंपनियों से दूध का जो दाम मिलता है, उससे लागत की भरपाई में दिक्कत आती है। पशु को खिलाने वाला आहार, हरा चारा, गेहूं की भूसी, इन सबके दाम बढ़ गए हैं। रवि खोखर ने बताया कि जिस गेहूं की भूसी का पहले दाम 5 से 6 रुपये प्रति किलो रहता था, अब वही 13 रुपये प्रति किलो की दर से बाज़ार में बिक रहा है। जो पशु आहार पहले 23 रुपये प्रति किलो मिलता था, वो अब करीबन 38 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है। रवि खोखर कहते हैं कि डेयरी कंपनियों को उन किसानों के हित के बारे में सोचना चाहिए, जिनकी वजह से आज वो मार्केट में खड़े हैं।
रवि खोखर करनाल मार्केट में रीटेल में भी दूध बेचते हैं। करनाल स्थित अपने घर में उन्होंने एक काउन्टर खोला हुआ है। यहां उन्हें करीब 50 रुपये प्रति लीटर दूध का दाम मिलता है। रवि कहते हैं कि उन्होंने इतने साल में अपनी क्वालिटी के दम पर ग्राहक बनाए हैं। उनके डेयरी से निकला दूध बिना किसी मिलावट, प्रोटीन युक्त और A2 क्वालिटी का है। A2 गुणवत्ता का दूध आसानी से पच जाता है। जिन लोगों को लैक्टोज से एलर्जी होती है, उनके लिए भी ये दूध अच्छा होता है। उन्होंने अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए फ़ार्म में कैमेरे भी लगा रखे हैं। कोई ग्राहक अगर दूध निकलने की प्रक्रिया देखना चाहता है, तो वो उसे ये सुविधा देते हैं।
डिमांड पर तैयार करते हैं देसी घी
रवि खोखर ग्राहकों की डिमांड पर शुद्ध देसी घी भी तैयार करते हैं। इसका दाम करीबन 1600 रुपये प्रति किलो रहता है। रवि खोखर ने बताया कि एक किलो घी बनाने में ही करीब 800 रुपये की लागत आ जाती है। इसमें 8 से 10 दिनों की मेहनत भी है। इस वजह से इसका दाम हज़ार रुपये से ऊपर रहता है।
गायों के रखरखाव पर देते हैं विशेष ध्यान
मवेशियों के रखरखाव के लिए रवि ने फ़ार्म में पानी के ऑटोमेटेड सिस्टम से लेकर फ़ॉगर लगा रखें हैं। फ़ॉगर में टाइमर सिस्टम लगा होता है। इससे शेड पर पानी की बौछार की जाती है, जिससे शेड के अंदर के तापमान को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। खुले वातावरण में मवेशियों को रखा हुआ है। गर्मियों में दिन में दो बार मवेशियों को नहलाया जाता है। फ़ार्म में बड़े पंखों की व्यवस्था की हुई है। दूध निकालने के लिए मिल्किंग मशीनें लगाई हुई हैं। समय पर मवेशियों का टीकाकरण कराते हैं।
मवेशियों का समय रहते करें टीकाकरण
रवि खोखर कहते हैं कि दुधारू पशुओं में कई तरह के रोग लगने का खतरा रहता है। इनमें कई जानलेवा बीमारियां हैं। कई बीमारियां पशु के दूध उत्पादन पर बुरा प्रभाव डालती हैं। मुंह व खुर की बीमारी, गल घोंटू जैसी बीमारियां एक पशु से दूसरे पशु को हो जाती है। कुछ बीमारियां पशुओं से मनुष्यों में भी आ जाती हैं, जैसे रेबीज़ और क्षय रोग आदि। इसलिए पशुपालकों को प्रमुख बीमारियों के बारे में जानकारी रखना ज़रूरी है ताकि वो सही समय पर अपना आर्थिक हानि से बचाव कर सकें और अपने मवेशियों को वक़्त रहते उपचार दे सकें। रवि खोखर बताते हैं कि रोग से बचाव के लिए टीकाकरण की व्यवस्था उपलब्ध है। पशुपालन विभाग भी नि:शुल्क इसकी सुविधाएं देते हैं।
मुहं व खुर रोग: इस रोग से ग्रस्त पशु को 104 से लेकर 106 डिग्री तक बुखार आ जाता है। पशु खाना-पीना और जुगाली करना बन्द कर देता है। दूध का उत्पादन गिर जाता है। मुंह से लार बहने लगती है।
बीमारी से बचाव: इस बीमारी से बचाव के लिए पशुओं को साल में दो बार पोलीवेलेंट वेक्सीन के टीके लगवाने चाहिए। बच्छे/बच्छियां में पहला टीका एक माह की आयु में, दूसरा टीका तीसरे माह की आयु में और तीसरा टीका 6 माह की उम्र में और उसके बाद नियमित तौर पर पशु चिकित्सक की सलाह पर टीके लगवाने चाहिए।
गलघोंटू रोग: इस रोग के प्रमुख लक्षणों में तेज़ बुखार, गले में सूजन, सांस लेने में तकलीफ जैसी दिक्कतें मवेशियों को होती हैं।
बीमारी से बचाव: इससे बचाव के लिए रोगनिरोधक टीके लगाए जाते हैं। पहला टीका 3 माह की आयु में, दूसरा 9 माह की अवस्था में और इसके बाद हर साल यह टीका लगाया जाता है। ये टीके पशु चिकित्सा संस्थानों में नि:शुल्क लगाए जाते हैं।
पशुओं में पागलपन या हलकजाने का रोग (रेबीज): गाय व भैंसों में इस बीमारी के भयानक रूप के लक्षण दिखते हैं। पशु उत्तेजित अवस्था में दिखता है। वह ज़ोर-ज़ोर से रम्भाने लगता है। उसे बहुत जंभाई आने लगती है। वह अपने सिर को किसी पेड़ या दीवार पर टकराता है। इस रोग से ग्रस्त पशु दुर्बल हो जाते हैं। मनुष्य में इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में उत्तेजित होना है। इसके अलावा, पानी या कोई खाने की चीज़ निगलने में तकलीफ होती है। लकवे जैसी समस्या से भी दो-चार होना पड़ सकता है।
बीमारी से बचाव: एक बार लक्षण पैदा हो जाने के बाद इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। जैसे ही किसी स्वस्थ पशु को इस बीमारी से ग्रस्त पशु काट लेता है, उसे तुरन्त नज़दीकी पशु चिकित्सालय में ले जाकर इस बीमारी से बचाव का टीका लगवाना चाहिए। इस कार्य में ढील बिल्कुल नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि ये टीके तब तक ही असरदार हो सकते हैं, जब तक कि पशु में रोग के लक्षण पैदा नहीं होते।
अच्छी नस्ल का करें चुनाव
रवि खोखर कहते हैं कि अच्छी नस्ल पर ही अपने पैसे खर्च करें। अगर आप डेयरी फ़ार्मिंग शुरू करना चाहते हैं तो उसके लिए होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल की गाय सबसे अच्छा विकल्प है। एक से दो मवेशी के साथ आप डेयरी फ़ार्म की शुरुआत करें। वक़्त के साथ बिज़नेस को बड़े स्तर पर ले जाएं। यदि पशुपालन को व्यवसायिक रूप से किया जाए तो इससे अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। डेयरी व्यवसाय खोलने के लिए सरकार की ओर से बैंक लोन पर सब्सिडी भी दी जाती है।
अच्छी नस्ल की गायों और दूध की क्वालिटी के दम पर अरविन्द डेयरी फ़ार्म ने अपना नाम बनाया है। पशुपालन में रवि आज अपने क्षेेत्र के युवाओं के लिए मिसाल बन गए हैं। उनसे प्रेरित होकर आस-पास के किसान भी अब डेयरी फ़ार्मिंग का रूख कर रहे हैं।
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