मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation): हिमाचल प्रदेश के यूसुफ़ ख़ान हैं मशरूम के ‘मास्टर’, जानिए कैसे तैयार करते हैं कम्पोस्ट
हज़ार से ऊपर किसानों को दे चुके हैं ट्रेनिंग
यूसुफ़ ख़ान ने 2000 में अपनी मशरूम यूनिट लगाई और मशरूम की खेती और उत्पादन में ऐसी सफलता पाई कि उनके ट्रेनिंग सेंटर से हजारों की संख्या में युवक और किसान ट्रेनिंग लेने आते हैं।
पूरी लगन से यदि कोई काम किया जाए तो सफलता ज़रूर मिलती है। इस बात को सच कर दिखाया है हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील किसान यूसुफ़ ख़ान ने। पहाड़ी क्षेत्रों के कई किसान बेहतर अवसर की तलाश में अक्सर शहरों का रूख करते हैं। उन्हें मजबूरन पलायन करना पड़ता है। इन चुनौती भरी परिस्थियों में ऊना ज़िले के नंगल सालंगरी गाँव के यूसुफ़ ख़ान ने अपने किसान साथियों के सामने मिसाल पेश की। उन्होंने मशरूम की खेती में न सिर्फ़ सफलता हासिल की, बल्कि दूसरे किसानों को इसमें आगे बढ़ाने के लिए वह उन्हें ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।

ख़ान मशरूम फ़ार्म एंड ट्रेनिंग सेंटर खोला
यूसुफ़ ख़ान को बचपन से ही खेती और इससे जुड़ी गतिविशियों से लगाव था और कृषि विश्वविद्यालय में जाने के बाद यह दिलचस्पी और बढ़ गई। उन्होंने 2000 में अपने गाँव नांगल सालंगरी में खुद की मशरूम उत्पादन यूनिट लगाई। इसमें सफल होने के बाद उन्होंने प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत की। उनकी इस ट्रेनिंग सेंटर का नाम ख़ान मशरूम फ़ार्म एंड ट्रेनिंग सेंटर है।

हज़ार से ऊपर किसानों को दे चुके हैं मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग
ये ट्रेनिंग सेंटर हिमाचल प्रदेश के साथ ही पूरे देश में मशरूम के उत्पादन को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। इसके अलावा, उन्होंने संरक्षित सब्ज़ी की खेती, स्ट्रॉबेरी की खेती और एरोपोनिक्स तकनीक से टमाटर और ककड़ी की खेती भी की हुई है। अब तक वह देश के हज़ार से अधिक किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं।
बड़ी मात्रा में होता है बटन मशरूम का उत्पादन
उनकी मशरूम उत्पादन इकाई में स्पॉन लैब, कंपोस्टिंग इकाई, ग्रोइंग इकाई और ट्रेनिंग सेंटर बना हुआ है। वह मिल्की और बटन मशरूम का उत्पादन करते हैं। वह करीब 1.36 हेक्टेयर में मशरूम का उत्पादन करते हैं, जिसके लिए हर महीने 20,000 बैग कम्पोस्ट तैयार करते हैं।

ऐसी बनती है खाद
कच्चे माल के रूप में गेहूं के भूसे के साथ पोल्ट्री खाद और सप्लीमेंट (सूरजमुखी केक और कपास के बीज) का इस्तेमाल किया जाता है। ये नाइट्रोजन और जिप्सम जैसे पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं। 1 किलो गेहूं के भूसे को बनाने के लिए 5 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पानी को कम से कम 12 दिनों के लिए गेहूं के भूसे के ऊपर छिड़का जाता है। इसके लिए 75-800 सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। 12 दिनों के बाद इसे कंपोस्टिंग तापमान में ट्रांसफर किया जाता है और फिर एक पॉश्चराइजेशन चेंबर में ले जाया जाता है। 58-600 सेल्सियस पर 8 से 10 घंटे के लिए पॉश्चराइजेशन किया जाता है। इस दौरान सारा नाइट्रोजन अमोनिया में बदल जाता है, जो मशरूम के लिए पोषक तत्व का काम करता है। जब खाद स्पॉनिंग के लिए तैयार हो जाती है, तो 220 सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। 10 किलो खाद के लिए 50-80 ग्राम स्पॉन की ज़रूरत होती है।

पॉलीहाउस में उगाते हैं सब्ज़ियां
यूसुफ़ ख़ान मशरूम की खेती के साथ ही सब्ज़ियों की सरंक्षित खेती भी करते हैं, जिसमें वह टमाटर, आलू, शिमला मिर्च, धनिया, लेट्यूस और स्ट्रॉबेरी उगाते हैं। उन्होंने 1000 स्क्वायर मीटर में 2 पॉलीहाउस बना रखे हैं, जिसमें टमाटर और खीरे जैसी सब्ज़ियां उगाते हैं। उन्होंने बीजरहित खीरे की नर्सरी भी विकसित की, जिसे बाद में हाइड्रोपोनिक तकनीक में तब्दील कर दिया गया। मशरूम के सफल उत्पादक का दर्जा प्राप्त कर चुके यूसुफ़ ख़ान की मशरूम इकाई का सालाना टर्नओवर 70 से 80 लाख रुपये है।

मिल चुके हैं कई अवॉर्डस
2006 में उन्हें दिव्य हिमाचल द्वारा ‘प्रगतिशील किसान’ अवॉर्ड और 2010 में CSKHP पालमपुर यूनिवर्सिटी द्वारा ‘कृषि उद्यमी पुरस्कार’ मिल चुका है। ऑल इंडिया मशरूम एसोशियन द्वारा उन्हें ‘एक्सीलेंट मशरूम ग्रोअर’का अवॉर्ड मिल चुका है। यूसुफ़ ख़ान का मानना है कि उपलब्ध संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल करके ही सफलता पाई जा सकती है। यूसुफ़ ख़ान कहते हैं कि एग्रीकल्चर ग्रेजुएटस कृषि से जुड़े व्यवसाय को अपनाएं। इससे वो ग्रामीण क्षेत्र में हज़ारों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद करेंगे।

ये भी पढ़ें- Mushroom Processing: कैसे होती है मशरूम की व्यावसायिक प्रोसेसिंग? जानिए, घर में मशरूम कैसे होगी तैयार?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Gerbera Farming: जरबेरा फूल की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अपना बिज़नेस, जानिए इस फूल की ख़ासियतजरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।
- Millets Farming: बाजरे की खेती में रिज फेरो तकनीक का इस्तेमाल किया, उत्पादन भी बढ़ा और आमदनी भीआमतौर पर किसी भी फसल की अच्छी खेती के लिए अच्छी बरसात ज़रूरी है, मगर बाजरे की खेती कम बरसात वाली जगह में ज़्यादा फलती-फूलती है। बाजरे की फसल गर्म इलाकों और कम पानी वाली जगहों पर अच्छी तरह होता है।
- जानिए कैसे मांगुर मछली पालन छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए बेहतरीन आमदनी का ज़रिया बन रहा हैमीठे पानी की मांगुर मछली की बाज़ार में काफ़ी मांग है और ये पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। ऐसे में मांगुर मछली पालन और इसकी हैचरी यानी बीज उत्पादन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- Blue Oyster Mushroom: जानिए ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती करने का सरल तरीका और लागत-मुनाफ़े का गणितपौष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण मशरूम की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा ज़रिया मिल गया है। मशरूम की एक नई किस्म हैं ब्लू ऑयस्टर मशरूम जिसे बहुत ही कम लागत के साथ आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
- जैविक खाद: कभी रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले रंजीत सिंह ने क्यों चुनी Organic Fertilizers की राह? जानिए कैसे बनाएं खादजैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। गाय का गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करती है, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।
- उन्नत कृषि तकनीक: आर्थिक तंगी के चलते नहीं कर पाए 12वीं के बाद पढ़ाई, अब 8 लाख रुपये तक की आमदनीज़्यादा ज़मीन और सारी सुविधाओं के बावजूद भी किसानों को यदि खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती है, तो इसकी वजह है उन्नत तकनीक की कमी। उन्नत कृषि तकनीक के इस्तेमाल से ही राजस्थान के एक किसान ने सफलता की ऐसी मिसाल पेश की है, कि अब उनकी गिनती अपने इलाके के प्रगतिशील किसानों में होती है।
- एकीकृत कृषि: झूम खेती पर निर्भर थे किसान, सही तकनीक के इस्तेमाल से मिली तरक्कीमिज़ोरम के आदिवासी इलाकों में खेती की पारंपरिक तकनीक यानी झूम खेती लोकप्रिय है, मगर इससे न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती है, बल्कि वनस्पतियों को जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मिज़ोरम के किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।
- औषधीय पौधे सिरोपिजिआ बल्बोसा के बारे में जानते हैं आप? इसकी खेती के कई फ़ायदेशहरीकरण, जागरुकता की कमी और वनस्पतियों के दोहन के कारण कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं में से एक है सिरोपिजिआ बल्बोसा। औषधिय गुणों से भरपूर इस पौधे की खेती से जैव विविधता को बचाए रखा जा सकता है।
- बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक से Fish Farming करना हुआ आसान, कम पानी कम जगह में बढ़िया उत्पादनमछली पालन अतिरिक्त आमदनी का अच्छा ज़रिया है, लेकिन जिन इलाकों में अच्छी बरसात नहीं होती वहां नदी, तालाब व जलाशयों में मछली पालन करने में कठिनाई आती है। ऐसी जगहों के लिए बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक अच्छा विकल्प है।
- सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनीपारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।
- गन्ने की खेती में करें प्राकृतिक हार्मोन्स का इस्तेमाल, पाएँ दो से तीन गुना ज़्यादा पैदावार और कमाईइथ्रेल और जिबरैलिक एसिड जैसे पादप वृद्धि हार्मोन्स के इस्तेमाल से सिंचाई और अन्य पोषक तत्वों की ज़रूरत भी कम पड़ती है। हालाँकि, यदि सिंचाई और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिले तो पैदावार अवश्य ज़्यादा होता है, लेकिन इससे खेती की लागत बेहद बढ़ जाती है। गन्ने की पैदावार कम होने का दूसरा प्रमुख कारण कल्लों का अलग-अलग समय पर बनना भी है। यदि कल्लों का विकास एक साथ हो तो वो परिपक्व भी एक साथ होंगे तथा उनका वजन भी ज़्यादा होगा, उसमें रस की मात्रा और मिठास भी अधिर होगी। लिहाज़ा, गन्ने की खेती में यदि कल्ले बेमौत मरने से बचा जाएँ तभी किसान को फ़ायदा होगा।
- मोती की खेती में लागत से लेकर सीप तैयार करने तक, आमदनी का गणित जानिए ‘किसान विद्यालय’ चलाने वाले संतोष कुमार सिंह सेसंतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती (Pearl Farming) की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी और फ़ील्ड में काम कर रहे हों।
- जानिए सब्जियों की खेती में दिल्ली से हिमाचल गया युवा कैसे बना मिसाल, अच्छी नौकरी छोड़ी अपनाई खेतीसब्ज़ियों की खेती अगर सही तरीके से और वैज्ञानिकों की सलाह से की जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के किसान रमेश कुमार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़ खेती को पेशा बनाया।
- एकीकृत कृषि को अपनाकर आप कैसे ले सकते हैं फ़ायदा? रिटायर्ड फौजी का रहे लाखों की कमाईअगर इंसान में कुछ करने की चाहत हो, तो उम्र या हालात कोई मायने नहीं रखते। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड फौजी नसीब सिंह, जो 78 साल की उम्र में भी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से लाखों की कमाई कर रहे हैं।
- अनार की फसल पर लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का ऐसे किया प्रबंधन, अनार उत्पादकों की बढ़ी आमदनीफलों में अनार काफी महंगा मिलता है और सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यह खून बढ़ाने में मददगार है। कर्नाटक के तुमकुरू जिले में अनार की अच्छी पैदावार होती है, मगर पिछले कुछ सालों से यहां के किसान अनार में लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से परेशान है जिससे फसल की बहुत हानि होती है। मगर कृषि विज्ञान केंद्र ने अब इसका भी हल निकाल लिया।
- Potato Planter Machine: पोटैटो प्लांटर मशीन क्यों है आलू की खेती में फ़ायदेमंद? जानिए इसकी ख़ासियत और दामपहले हाथ से ही आलू की बुवाई की जाती थी, जो किसानों के लिए एक धीमी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हुआ करती थी। अब एडवांस पोटैटो प्लांटर की मदद से आलू की बुवाई की प्रक्रिया सहज हो गई है।
- Poultry Farming: मुर्गी पालन के लिए चुनी उन्नत नस्ल, जानिए कैसे अंडमान के इन किसानों की तकदीर बदल रहा ‘वनराजा’कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है या बहुत कम ज़मीन हैं, तो उनके लिए मुर्गी पालन आमदनी का बेहतरीन ज़रिया है। लेकिन इसके लिए सही नस्ल और वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी ज़रूरी है।
- Makhana Farming: मखाने की खेती आप कई तरह से कर सकते हैं, जानिए इससे जुड़ी सभी बातेंमखाने की खेती के लिए गर्म मौसम और पानी की भरपूर उपलब्धता ज़रूरी है, तभी तो तालाब और पोखर वाले इलाके में इसकी खूब खेती होती है। इसकी खेती की कई उन्नत तकनीकें कृषि संस्थानों ने सुझाई हैं। क्या हैं वो तकनीकें? जानिए इस लेख में।
- परवल की खेती (Pointed Gourd): जानिए परवल की उन्नत किस्मों के बारे में, बाज़ार में अच्छा चल रहा परवल का भावपरवल की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। क्या इसका दाम है? देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे इसकी खेती जाती है? परवल की खेती से जुड़ी है कई अहम बातों के बारे जानिए।
- वैज्ञानिक सूअर पालन में किन बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी? Pig Farming में झारखंड का ये युवा बना मिसालकम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाने का अच्छा ज़रिया है सूअर पालन, मगर पारंपरिक तरीका अपनाने पर इस व्यवसाय से अधिक लाभ नहीं होता। यदि आप बढ़िया मुनाफ़ा चाहते हैं तो झारखंड के इस युवा की तरह वैज्ञानिक तरीके से सूअर पालन का व्यवसाय करें।