नारियल आधारित एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर शीबा सादिक ने अपनी आमदनी को 20 गुना किया
अपने कृषि व्यवसाय में किए कई बदलाव
2 एकड़ ज़मीन में चार तालाब बने हुए थे। इसमें वो तिलापिया मछलियां पालती थीं। उनके पास 5 बकरियां और 50 देसी मुर्गियां भी थीं। सही प्रबंधन न होने की वजह से आमदनी कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती थी। कैसे नारियल आधारित एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर उनकी आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ, जानिए इस लेख में।
शीबा सादिक युवा उत्साही महिला किसान हैं, जिनके पास 2 एकड़ भूमि है। एक समय था जब वो उसमें कई व्यवसाय चलाती थीं, लेकिन एकीकृत कृषि मॉडल और वैज्ञानिकों तकनीकों के बारे में जानकारी का अभाव था। कई व्यवसाय चलाने के बावजूद उन्हें अच्छा मुनाफ़ा नहीं हो पाता था।
सही प्रबंधन की कमी
2 एकड़ ज़मीन में चार तालाब बने हुए थे। इसमें वो तिलापिया मछलियां पालती थीं। उनके पास 5 बकरियां और 50 देसी मुर्गियां भी थीं। सही प्रबंधन न होने की वजह से आमदनी कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती थी। फ़ार्म में चारों ओर नारियल के पेड़ भी लगाए हुए थे। कुल मिलाकर उनकी कृषि प्रणाली सही नहीं थी और कृषि का महत्वपूर्ण अंग डेयरी को उन्होंने शामिल नहीं किया था।

वैज्ञानिकों की सलाह से आया बदलाव
2018-19 में उन्होंने “बकरी में यूरोलिथियोसिस के प्रबंधन” पर आयोजित एक ओपन फ़ील्ड टेस्ट में हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र अलाप्पुझा के वैज्ञानिकों ने उनकी बकरी इकाई का दौरा किया और यूरोलिथियोसिस से प्रभावित बकरियों का इलाज किया। उनके फ़ार्म का दौरा करने के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि उनका फ़ार्म एकीकृत कृषि प्रणाली के लिए एकदम सही है। उन्हें डेयरी यूनिट शुरू करने की सलाह दी गई, क्योंकि इसके लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन थे।
व्यवसाय में किए कई बदलाव
देसी मुर्गियों की बाज़ार में अच्छी कीमत मिलती है और उसकी मांग भी अधिक है। इसे देखते हुए उन्हें देसी नस्ल की कुछ लेयर्स और ब्रूडी मुर्गियां रखने की सलाह दी गई। रोज़ाना की आमदनी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें BV 380 नस्ल की मुर्गियां पालने की सलाह भी दी गई। इसके लिए उन्होंने एक पुराने स्टोर रूम को पोल्ट्री इकाई में बदल दिया। कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें ग्रामश्री लेयर के चूज़ें उपलब्ध कराए। मछिलयां पालने वाले तालाब के पास ही 300 स्क्वायर मीटर के एरिया में 200 बतखों को पालने की व्यवस्था की गई। इसके आलावा, तालाब में तिलापिया और वरल किस्म की मछलियाँ भी वह पालने लगीं, जिसकी उन्हें अच्छी कीमत मिलती है।

डेयरी इकाई से आमदनी
उन्होंने 2018 में 5 दुधारू गाय के साथ डेयरी इकाई शुरू की थी। अब उनके पास 17 दुधारू गाय और 12 बछड़े हैं। रोज़ाना 220 लीटर दूध प्राप्त होता है, जिसे वह 50 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचती हैं। गर्मियों में पशुओं के लिए हरे चारे की दिक्कत न हो, इसके लिए वह 3 एकड़ ज़मीन लीज़ पर लेकर चारे की खेती की योजना बना रही है।
कृषि की अन्य गतिविधियों से भी अच्छी कमाई
पोल्ट्री इकाई से उन्हें 350 अंडे रोज़ाना प्राप्त होते हैं, जिसे वह 7 रुपये प्रति अंडे के हिसाब से बेचती हैं। बतख के रोज़ाना 60 अंडे प्राप्त होते हैं और उसे वह 10 रुपये प्रति अंडे के हिसाब से बेचती हैं। पिछले 6 महीने में 24 किलो वरल मछिलयां पाली गईं, जिसे 450 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचकर 10,800 रुपये की आमदनी प्राप्त हुई। इसी तरह नारियल की खेती में भी सुधार हुआ। पहले जहां उन्हें 400 नारियल प्राप्त होते थें, वही अब 700 नारियल प्राप्त हुए। अब वह सब्ज़ियों की खेती करने की भी योजना बना रही हैं। इस तरह से शीबा अपने खेती में एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। अब उनसे एकीकृत कृषि के बारे में जानने के लिए क्षेत्र के लोग उनके फ़ार्म पर विज़िट करते हैं।

शीबा सादिक का पूरा परिवार खेती के कार्यों में उनकी मदद करता है। इसके अलावा, उन्होंने 3 मज़दूर भी रखे हैं। एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से पहले उन्हें करीबन 79,400 रुपये की आमदनी होती थी, जो अब बढ़कर करीबन 16 लाख 38 हज़ार हो गई है।
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