देश में गेहूं के बाद मक्के का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है, क्योंकि मक्का इंसानों के साथ ही पशु भी खाते हैं। साथ ही मक्के से कई अन्य चीज़ें भी बनती हैं जैसे कॉर्न फ्लेक्स, कई तरह की नमकीन आदि, जिसकी वजह से इसकी औद्योगिक मांग भी अधिक है। सेहत के लिए भी मक्का फ़ायदेमंद है क्योंकि इसमें प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है। मक्के की मांग हर रूप में है बेबीकॉर्न, भुट्टा, पॉपकॉर्न और आटे के रूप में। इसलिए मक्के की खेती फ़ायदेमंद है। अगर खेती में थोड़ी सी तकनीक और अच्छी किस्म के बीज़ों का इस्तेमाल किया जाए तो किसान अच्छा मुनाफ़ा अर्जित कर सकते हैं। सिक्किम की महिला किसान यांगडेन लेप्चा मक्के की खेती (Maize Cultivation) कर रही हैं।
कौन हैं यांगडेन लेप्चा?
यांगडेन उत्तरी सिक्किम ज़िले के लिंगथेम गांव की रहने वाली हैं। वह एक प्रगतिशील किसान हैं। पति की मृत्यु के बाद उनके कंधों पर परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई। वह स्वयं सहायता समूह की सदस्य भी हैं। नई तकनीकों में उनकी बहुत रुचि है, हालांकि वह पहले पारंपरिक तरीके से ही खेती करती थीं, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र और आईसीएआर के संपर्क में आने के बाद उन्हें खेती की नई तकनीकों के बारे में जानकारी मिली। उन्हें मक्के के खेती में आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, ATMA, कृषि, बागवानी और पशुपालन विभागों से भी मदद मिली। इसी का नतीजा है कि उनकी आमदनी अब दोगुने से भी अधिक हो गई है। वैज्ञानिकों की मदद लेने के साथ ही उन्होंने किसान कॉल सेंटर की सेवा का भी उपयोग किया।

वैज्ञानिक तकनीक से खेती
यांगडेन लेप्चा ने कृषि वैज्ञानिकों की निगरानी में 1.5 एकड़ भूमि पर मक्के की खेती शुरू की। उन्हें खाद्य सुरक्षा और कृषि विकास विभाग की ओर से 15 किलो हाइब्रिड मक्के की सी-1921 किस्म के 15 किलो बीज मिले। इसके साथ ही, विभाग की ओर से ही वर्मीकंपोस्ट भी मिला।
उन्होंने बुवाई से लेकर कटाई तक के लिए वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया। हर एक बीज को 20 सेंटीमीटर की दूरी बर बोया जबकि दो पंक्तियों के बीच 45 सेमी की दूरी रखी। वैज्ञानिक तकनीक के इस्तेमाल से न सिर्फ़ फसल की पैदावार अधिक हुई, बल्कि गुणवत्ता भी अच्छी मिली।

दोगुना से भी अधिक मुनाफ़ा
पारंपरिक तरीके से जहां प्रति हेक्टेयर 13 क्विंटल की पैदावर होती थी, वहीं अब यह बढ़कर 24.35 क्विंटल प्रति हेक्येटर हो गई है। इतना ही नहीं, अच्छी गुणवत्ता की वजह से फसल की कीमत 25 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 35 रुपये प्रति किलो हो गई। पारंपरिक तरीके से जहां उन्हें करीबन 24 हज़ार रुपये की आमदनी होती थी, वहीं वैज्ञानिक तकनीक के इस्तेमाल से यह बढ़कर करीबन 77 हज़ार पहुंच गई।
मक्के की अन्य उन्नत किस्में
भारत में मुख्य रूप से मक्के की खेती आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। मक्के की इन उन्नत किस्मों की खेती करके प्रति हेक्टेयर अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है, गंगा सफेद 2, गंगा 11, सरताज, डी के एच- 9705, मालवीय संकर मक्का 290/95, पूसा संकर 5, दकन 107, एच क्यू पी एम 5, डेक्कन 101 आदि।

यांगडेन लेप्चा की सफलता को देखकर इलाके के अन्य किसान भी उनकी तरह ही खेती करने के लिए प्रेरित हुए। आप भी मक्के की उन्नत किस्में उगाकर और नई तकनीकों के इस्तेमाल से अपनी आमदनी में इज़ाफा कर सकते हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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