संरक्षित खेती (Protected Cultivation) के तहत पॉलीहाउस, शेडनेट हाउस, लो टनल, ग्रीन हाउस में नियंत्रित मौसम में खेती की जाती है और सिंचाई के लिए ड्रिप लगाया जाता है। इससे पानी को फिल्टर करके पौधों तक पहुंचाया जाता है। ड्रिप से ही उर्वरक को भी दिया जाता है। तापमान को कंट्रोल करने के लिए स्प्रिंकलर और फ़ॉगर लगाया जाता है। लोगों के ज़रूरत के हिसाब से ऑफ़-सीजन या बाजार की मांग के अनुसार फसलों से उत्पादन लिया जा सकता है। इस तकनीक के माध्यम से परम्परागत खेती की तुलना में दोगुना से लेकर दस गुना ज़्यादा उत्पादन लिया जा सकता हैं। संरक्षित खेती के स्ट्रक्चर के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से नेशनल हार्टीकल्चर मिशन और राज्य सरकार की तरफ से कृषि हार्टीकल्चर विभाग द्वारा अनुदान और बैकों से ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वेजिटेबल डिवीजन के प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार सिंह ने किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में संरक्षित खेती से होने वाले पैदावार से लेकर मुनाफ़े के बारे में बताया।
ऑफ सीजन में उच्च क्वालिटी की सब्जियों से बेहतर कमाई
डॉ. राजेश कुमार सिंह का कहना है कि शुष्क भूमि में प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन की तकनीक उच्च गुणवत्ता वाली सब्जियों के उत्पादन के लिए अनुकूल सूक्ष्म जलवायु स्थितियां प्रदान करती हैं। इन संरचानाओं के ज़रिए किसान एक भूमि के टुकड़े पर साल भर कई फसले उगा सकते हैं। विभिन्न नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में पौध नर्सरी का आसानी से विकास होता है।
कम उपजाऊ और कम पानी वाली जगहों के लिए कारगर तकनीक
इस तकनीक से जिस एरिया में फसलें नहीं उगती है उस जगह भी संरक्षित खेती के ज़रिए खेती की जा सकती है। ये तकनीक फसल को हवा, बारिश, बर्फ और पक्षियों से बचाती है। यह उन्नत कृषि तकनीकों, हाइड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स, वर्टिकल खेती को बढ़ावा देता है। इस तकनीक से खेती करने से फसलों को कम सिंचाई की ज़रूरत होती है। इन संरचनाओ में कीटों और रोगों का प्रभावी तरीके से नियंत्रण होता है। प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन वाली संरचनाए किसानों के लिए काफ़ी लाभदायक हैं क्योकि संकर बीजों की कीमत बहुत ज्यादा होती है। इसके लिए ज़रूरी है कि प्रत्येक बीज अंकुरित हो।
डॉ. राजेश ने बताया कि कम उपजाऊ ज़मीन में भी अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जियों का अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड में पानी की समस्या से किसान परेशान रहते है, लेकिन प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन वाली संरचनाओं में खेती करते है तो कम पानी में भी बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है। इसमे सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल होता है।
संरक्षित खेती में खीरे से मिले बंपर उत्पादन
डॉ. राजेश के अनुसार नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में सीडलेस खीरा अगस्त से अक्टूबर, नवम्बर से फरवरी और फरवरी से मई तक उगाया जा सकता है, यानी साल में तीन फसल ली जा सकती है। इसके लिए कियान सैटिस, हिल्टन, मल्टीस्टार, सन स्टार और विजा उपयुक्त प्रजातियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि 200 वर्ग मीटर के पॉलीहाउस मे खीरे की एक फसल से लगभग 30 से 35 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है। इससे कुल इनकम एक लाख रुपये से उपर हो जाती है और खर्च काटकर चार महीने में 60 से 65 हज़ार रुपये की बचत हो जाती है। इस तरह साल भर में लगभग ढेड लाख से दो लाख रुपये तक की बचत हो जाती है। अगर किसान सीडलेस खीरे की कीट प्रूफ नेट-हाउस में खेती करता है तो लगभग 26 क्विंटल की पैदावार मिलती है। इसमें लागत खर्च काटकर लगभग 80 हज़ार की बचत होती है। वहीं शेड नेट में सीडलेस खीरे की 20 से 22 क्विंटल तक की पैदावार मिल जाती है। लागत खर्च काटकर एक फसल से 65 से 70 हज़ार रुपये की बचत होती है।
शेड नेट और पॉलीहाउस में रंगीन शिमला मिर्च की खेती से मिले अच्छी आय
डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि अगर किसान प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन मे रंगीन शिमला मिर्च की खेती करते हैं तो इसकी रोपाई अगस्त में करके मई तक उत्पादन लिया जा सकता है। 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में रंगीन शिमला मिर्च की 20 से 22 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। इससे कुल आमदनी करीबन एक लाख रुपये से उपर हो जाती है और आमदनी काटकर 50 से 60 हज़ार रुपये की बचत होती है। वही शेड नेट मे इसकी पैदावार 15 से 16 क्विंटल तक मिलती है। इससे नेट इनकम 35 से 40 हजार रुपये की मिल जाती है। कीट प्रूफ नेट-हाउस में 17 से 18 क्विंटल रंगीन शिमला मिर्च की पैदावार ली जा सकती है, जिससे खर्चे काटकर शुद्ध आमदनी 38 हजार से 40 हजार रुपये तक मिल जाती है। रंगीन शिमला मिर्च किस्में लाल रंग में इंद्रा बॉम्बी नताशा, स्पाइनेस लक्ष्मी और पीले रंग की किस्मों में स्वर्णा, कंचन, ओरोबैल सुपर गोल्ड पाई जाती हैं।
कम जगह में क्वालिटी वाली टमाटर का बंपर उत्पादन
राजेश कुमार का कहना है कि 200 वर्ग मीटर के एरिया से नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में अनिर्धारित किस्म वाली टमाटर की खेती करके 50 से 52 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। इससे कुल आमदनी लगभग एक लाख हो जाती है और लागत काटकर 50 से 55 हज़ार रुपये की बचत हो जाती है। वहीं शेड नेट मे इसकी पैदावार 40 से 42 क्विंटल की मिलती है जिससे लागत निकाल कर नेट इनकम 35 से 38 हजार रुपये हो जाती है। वहीं कीट प्रूफ नेट-हाउस में 46 से 48 क्विंटल टमाटर की पैदावार ली जा सकती है। खर्चे काटकर नेट इनकम करीब 50 हजार रुपये तक मिल जाती है। अनिर्धारित वाली टमाटर की किस्में जीएस-600, आई टी-32, हिम शिखर, हिमसोना, स्नेहलता और रक्षिता उपयुक्तत प्रजातियां हैं।
प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में मल्टीलेयर फ़ार्मिंग तकनीक अपनाएं
कृषि विशेषज्ञो के मुताबिक, प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन वाली संरचनाओं मे मल्टीलेयर फ़ार्मिंग वाली तकनीक अपनाकर बेड के बीच और पॉलीहाउस के किनारे बची जगह में मौसम के हिसाब से फसल को लगाकर आमदनी ली जा सकती है। उन्होंने बताया कि एक साथ कई फसलें उगाने से खाद और पानी की बचत तो होती ही है, साथ ही फसलों से एक-दूसरे को भी पोषक तत्व मिलते हैं। मल्टीलेयर फ़ार्मिंग अपनाने के लिए आप अपने-अपने इलाकों की जलवायु के हिसाब से अलग-अलग फसलें उगा सकते हैं। हालांकि, इसका सिद्धांत यही रहता है कि फसल जड़ों की गहराई और पौधे की ऊंचाई के हिसाब से तय की जाएं। एक गहराई और एक ऊंचाई तक उगने वाली फसलों को एक साथ नहीं उगाया जा सकता। डॉ. राजेश ने कहा कि नेचुरल पॉलीहाउस में खीरे की फसल के साथ किनारे पर डेढ से दो मीटर बची जगह में बेड पर गोभी और अंगूर की बेल की तरह फैलने वाली अनिर्धारित किस्म वाली टमाटर की बुवाई कर अतिरक्त आमदनी ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि 200 मीटर के पॉलीहाउस में टमाटर के लगभग 18 से 20 पौधे लग जाते हैं, जिससे प्रत्येक पौधे से 25 किलों टमाटर की उपज मिल जाती है और नीचे बेड पर गोभी की फसल लेकर किसान अतिरक्त आमदनी प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि पालीहॉउस में गोभी, पालक, लहसुन और धनिया की खेती भी की जा रही है।
डॉ. राजेश ने बताया कि 200 वर्ग मीटर पॉलीहाउस बनाने मे पहले वर्ष कुल खर्च लगभग चार लाख रुपये आता है। इसमें उद्यान विभाग से 2 लाख 75 हजार रुपये तक का अनुदान मिल जाता है। अगर इस पॉलीहाउस मे किसान सही तकनीक से खेती करता है तो सालाना किसान डेढ़ से दो लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर और छोटे किसानों के लिए छोटे आकार के संरक्षित खेती काफ़ी फ़ायदेमंद हैं। मझोले, छोटे और सीमांत किसान अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
ये भी पढ़ें: जानिए क्या है संरक्षित खेती (Protected Cultivation), डॉ. राजेश कुमार सिंह ने बताए इस उन्नत तकनीक के फ़ायदे
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Rose Gardening Tips: घर की बगिया में ऐसे उगाएं गुलाब, हमेशा महकती रहेगी ताजा खुशबूGulab ki Kheti – आइए जानते हैं गुलाब का पौधा लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि घर की बगिया में पूरे साल गुलाब के फूल खिलते रहे और उसकी खुशबू से आपका घर महकता रहे।
- Potato Varieties: आलू की 10 बेहतरीन किस्में, जिन्हें उगाने से बढ़ सकती है कमाईये आलू की खुदाई का मौसम है। वैसे हमारे देश के कई इलाकों में तो पूरे साल आलू की पैदावार होती है। यदि आप भी आलू की खेती कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करें जिसमें पैदावर अधिक होती है।
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।