Sea Buckthorn Berry: हिमालयन बेरी की व्यावसायिक खेती लद्दाख में जल्द होगी शुरू, कहलाता है वंडर प्लांट
लद्दाख की खेती और अर्थव्यवस्था में क्रान्तिकारी सुधार ला सकता है ‘सी बकथॉर्न’, इसका जूस सियाचिन में भी नहीं जमता
वैज्ञानिकों को क़रीब दो दशक पहले हिमालयन बेरी ‘सी बकथॉर्न’ की अद्भुत ख़ूबियों का पता चला। इसने हिमाचल के स्पिति ज़िले के किसानों की ज़िन्दगी बदल दी, क्योंकि इसका पेड़ ऐसी जलवायु में ही पनपता है जहाँ तापमान शून्य से नीचे रहता हो। ‘सी बकथॉर्न’ को दुनिया का सबसे फ़ायदेमन्द फल माना गया है।
लद्दाख में आगामी बसन्त के मौसम से ‘सी बकथॉर्न’ (Sea Buckthorn) बेरी की व्यावसायिक खेती शुरू होगी। केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को उम्मीद है कि ‘वंडर प्लांट’ और ‘हिमालयन गोल्ड’ के नाम से मशहूर और अद्भुत औषधीय गुणों से भरपूर ‘सी बकथॉर्न’ नामक हर्बल उत्पाद की खेती और इसके प्रसंस्करण में ऐसी क्षमताएँ मौजूद हैं जिससे केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख की खेती और अर्थव्यवस्था में क्रान्तिकारी सुधार आ सकता है। इसीलिए मंत्रालय के मातहत काम करने वाले वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (CSIR) ने तय किया है कि वो लद्दाख सरकार के साथ मिलकर ‘सी बकथॉर्न’ बेरी की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए हरेक ज़रूरी सहयोग देगा।

दो दशक पहले हुई ‘सी बकथॉर्न’ के अद्भुत गुणों की पहचान
‘सी बकथॉर्न’ बेरी एक ऐसे झाड़ीदार पेड़ का फल है जो अत्यधिक ऊँचाई वाले ऐसे हिमालयी इलाकों में भरपूर मात्रा में पाया जाता है जहाँ बेहद ठंड रहती है। इसे वंडर बेरी, लेह बेरी और लद्दाख गोल्ड का नाम भी मिला है। हिमाचल में इसे ‘ड्रिल्बू’ और ‘चारमा’ के नाम से जाना जाता है। ‘सी बकथॉर्न’ पूरी सर्दी ज़ीरो से भी कम तापमान में झाड़ियों से लगा रहता है। इसलिए ये पक्षियों और जानवरों का भोजन भी होता है। इसे क़रीब दो दशक पहले हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पिति के उन इलाकों में पहचाना गया जिसे ठंडा रेगिस्तान (Cold desert) कहते हैं क्योंकि वहाँ बारिश नहीं के बराबर होती है और हरियाली तथा ऑक्सीज़न भी काफ़ी कम है।

लाहौल और स्पिति ज़िले के लिए बना वरदान
‘सी बकथॉर्न’ को अब 30-35 हज़ार की आबादी वाले ने लाहौल और स्पिति ज़िले की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए वरदान माना जाने लगा है। यही वजह है कि स्पिति जैसी जलवायु वाले लद्दाख में भी इसकी व्यावसायिक और जैविक खेती को बढ़ावा देने की रणनीति बनायी गयी। वैसे तो ‘सी बकथॉर्न’ का उल्लेख तिब्बत की प्राचीन ‘अमची’ चिकित्सा पद्धति और आठवीं सदी के तिब्बती साहित्य में भी मिलता है। तिब्बत के मेडिकल लिट्रेचर ‘सीबू येदिया’ के पूरे 30 पेज़ पर सी बकथॉर्न के औषधीय गुणों के बखान से भरे पड़े हैं। लेकिन कुछेक दशक पहले हुए शोध से पता लगा कि ‘सी बकथॉर्न’ बेरी के फलों के अलावा इसकी पतियाँ, तना, जड़ें और काँटे भी बेहद गुणकारी हैं। इसके बाद ‘सी बकथॉर्न’ बेरी को ‘वंडर प्लांट’ और ‘हिमालयन गोल्ड’ का ख़िताब मिला।

हाई-ऑल्टीट्यूड वाले पाँच ज़िलों के लिए बनी योजना
साल 2010 में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मिलकर ‘सी बकथॉर्न’ बेरी को लेकर अनेक शोध शुरू किये। फिर हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पाँच हाई-ऑल्टीट्यूड वाले ज़िलों में इसकी खेती को बढ़ावा देने की योजना बनी। इसके लिए सेना की टेरीटोरियल आर्मी (TA) और स्थानीय महिलाओं के कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों (NGO) को साथ लाया गया ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ रोज़गार के अवसर पैदा किये जा सके। इसके लिए डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई ऑल्टीट्यूड रिसर्च, लेह (DIHAR) की मदद लेकर पल्पिंग, प्रोडक्ट डिजाइन और पैकेजिंग से जुड़ा प्रशिक्षण मुहैया करवाया गया और इससे स्थानीय युवाओं और किसानों को भी जोड़ा गया।

सियाचिन में जमता नहीं ‘सी बकथॉर्न’ का जूस
DIHAR ने ‘सी बकथॉर्न’ के फलों का जूस तैयार करने के लिए ऐसी तकनीक विकसित की जिसकी बदौलत ‘सी बकथॉर्न’ का जूस सियाचिन, द्रास या कारगिल जैसे बेहद ठंडे इलाकों में जमता नहीं है। इस तरह बर्फीली ऊँचाईयों वाली सरहदों पर तैनात सैनिकों के लिए भी ‘सी बकथॉर्न’ बेहद उपयोगी साबित हुआ क्योंकि इसके उत्पाद उन्हें चुस्त-दुरुस्त रखते हैं। DIHAR ने अपनी तकनीक को पेटेंट करवाने के बाद उसे सेल्फ-हेल्प ग्रुप, कुछ एनजीओ और स्थानीय उद्यमियों को ट्रांसफर किया। इससे हर्बल टी, एंटी-ऑक्सीडेंट सप्लीमेंट, सीप्रिकॉट जूस, जैम, जैली, सी बकथॉर्न ऑयल, सॉफ्ट जेल कैप्सूल, यूवी प्रोटेक्टिव ऑयल, बेकरी उत्पाद और जानवरों का चारा तैयार किया गया।

लाहौल और स्पिति में ODOP का दर्ज़ा
लद्दाख को ‘सी बकथॉर्न’ की व्यावसायिक खेती के लिए चुनने से पहले हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पिति ज़िले में इसकी खेती का नतीज़ा इतना उत्साह वर्धक मिला कि केन्द्र सरकार की एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) योजना के तहत स्पिति के लिए ‘सी बकथॉर्न’ की खेती और इसके प्रसंस्करण उद्योग का चयन किया गया। बता दें कि ODOP योजना की शुरुआत जनवरी 2018 में उत्तर प्रदेश से हुई थी और वहाँ से प्रेरणा लेकर साल 2021 में केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने इसे पूरे देश में लागू किया।

स्पिति में ‘सी बकथॉर्न’ की खेती बना रोज़गार का अहम ज़रिया
लद्दाख के लिए ‘सी बकथॉर्न’ का चयन इसलिए हुआ क्योंकि स्पिति की तरह ही वहाँ की जलवायु भी बेहद ठंडी और शुष्क है। स्पिति के लोग तो वहाँ होने वाली भारी बर्फबारी की वजह से छह माह तक बाहरी दुनिया से कटे रहते हैं। वहाँ लम्बे अरसे से रोज़गार के नियमित और टिकाऊ विकल्प की तलाश रही है, जो मुश्किल समय में स्थानीय लोगों की आमदनी का सहारा बन सके। ‘सी बकथॉर्न’ की खेती ने ऐसे दुर्गम इलाकों में रहने वाली लोगों के लिए बेजोड़ अवसर पैदा किये हैं।
देश-विदेश में ख़ूब है ‘सी बकथॉर्न’ की माँग
‘सी बकथॉर्न’ से जैम, जूस, हर्बल चाय, दवाईयों, विटामिन ‘सी’ सप्लीमेंट, एनर्जी ड्रिंक, क्रीम, तेल और साबुन जैसे दर्ज़नों उत्पाद बनते हैं। इसकी देश-विदेश में ख़ूब माँग है। इसीलिए माना जा रहा है कि ‘सी बकथॉर्न’ की जैविक खेती, प्रसंस्करण और विपणन के क्षेत्र में स्थानीय किसानों, स्वयं सहायता समूहों और उद्यमियों को लाभकारी रोज़गार का बेहतरीन मौक़ा मुहैया करवाया जा सकता है। व्यावसायिक खेती के लिहाज़ से वैज्ञानिकों पर पूरा ज़ोर ‘सी बकथॉर्न’ बेरी की कटाई के लिए ऐसी मशीन विकसित करने पर है जिससे इसका उत्पादन बढ़ाया जा सके। क्योंकि ‘सी बकथॉर्न’ के फलों के लिए काम में लाये जा रहे मौजूदा उपकरणों से सिर्फ़ 10 प्रतिशत बेरी ही निकल पा रही है।

अद्भुत विशेषताओं के भरपूर है ‘सी बकथॉर्न’
खेती के लिहाज़ से देखें तो ‘सी बकथॉर्न’ की ये एक अद्भुत विशेषता है कि इसके फल शून्य से 43 डिग्री सेल्सियस नीचे तक तापमान में भी पनप जाते हैं। इसकी जड़ें वातावरण से नाइट्रोजन सोखने की क्षमता रखती हैं और मिट्टी की कटाई की रोकथाम करती हैं। इस फल में अनेक ऐसे पोषक तत्व पाये जाते हैं जो बाक़ी फलों और सब्जियों में नहीं मिलते। इसमें प्रो-विटामिन जैसे ए, बी2 और सी के अलावा ओमेगा ऑयल भी होता है। इसलिए इस बेरी को यहाँ के लोग पौष्टिक फल के तौर पर करार देते हैं।
‘सी बकथॉर्न’ का परिचय
‘सी बकथॉर्न’ का वानस्पतिक नाम Hippophae rhamnoides है। इसे सेंडथॉर्न (sandthorn), सैल्लोथॉर्न (sallowthorn) और सीबेरी (seaberry) भी कहते हैं। इसका पेड़ ऐसी जलवायु में ही पनपता है जहाँ तापमान शून्य से नीचे रहता हो, जैसे हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, चीन, रूस, यूरोप, कनाडा आदि। इसके नाम में भले ही समुद्र (Sea), हिरण (Buck) और सींग (Thorn) का ज़िक्र है लेकिन इनसे इस हर्बल पेड़ का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसे दुनिया का सबसे फ़ायदेमन्द फल माना गया है क्योंकि इसमें सबसे ज़्यादा शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। इसमें आँवला से भी 80 गुना ज़्यादा विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
क़रीब 190 पोषक तत्वों वाले ‘सी बकथॉर्न’ को विटामिन्स, खनिज तत्वों (मिनरल) और ओमेगा-3, ओमेगा-6, ओमेगा-7, ओमेगा-9, जैसे फेटी एसिड का भंडार माना गया है। ओमेगा-7 तो सिर्फ़ इसी फल में मिलता है जबकि विटामिन ए, विटामिन बी कॉम्पलेक्स, विटामिन सी, विटामिन डी, विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन पी फ्लेवोनॉयड्स, बीटा कैरोटीन, ज़िंक, आयरन, मैग्निशियम, मिथियोनिन, ल्युसिन, लाइसिन और ग्ल्यसीन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके फल के अलावा पत्ते, काँटे, बीज और जड़ भी ख़ूब गुणकारी हैं। ये जूस, कैप्सूल, पाउडर और जैम जैसे अनेक उत्पादों के रूप में बाज़ार में मिलते हैं।

‘सी बकथॉर्न’ के फ़ायदे
शरीर का शायद ही कोई ऐसा अंग हो, जिसे ‘सी बकथॉर्न’ से फ़ायदा नहीं होता। इसीलिए ये अनेक रोगों के उपचार और उससे बचाव में गुणकारी है। ‘सी बकथॉर्न’ एक ज़बरदस्त एनर्जी बूस्टर है, क्योंकि इससे शरीर की हरेक कोशिका में ऑक्सीजन की सप्लाई बेहतर होती है। उसमें ताज़गी बढ़ती है या वो रिजुवनेट (rejuvenate) होती हैं। ये शरीर को सभी तरह के बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने के लिए मज़बूती देता है। इसके सेवन से लिवर, आँत, किडनी, कोलेस्ट्रॉल, फेफड़े, नेत्र-ज्योति, जोड़ों के दर्द, त्वचा का पोषण और मोटापा घटाने जैसे अनेक क्षेत्र में फ़ायदा होता है।
‘सी बकथॉर्न’ एक हर्बल उत्पाद है। इसके सेवन के अनगिनत फ़ायदें हैं। इसके प्रतिकूल प्रभाव का ख़ास ब्यौरा नहीं मिलता। लेकिन इसके गुणों के आधार पर ही ये सुझाव दिया जाता है कि गर्भवती महिलाओं, ब्लड प्रेशर और अन्य गम्भीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को ‘सी बकथॉर्न’ का सेवन डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए। क्योंकि इसके ओमेगा फैटी एसिड्स में ख़ून को पतला करने का गुण होता है, किसी सर्जरी से पहले इसका सेवन नहीं करना चाहिए। बाज़ार में इसका जूस की ख़ूब माँग रहती है। ये कैप्सूल्स और पाउडर के रूप में भी मिलते हैं। इसका जूस 600 से हज़ार रुपये प्रति लीटर के भाव से बिकता है। यही दाम क़रीब 60 कैप्सूल्स का भी है।
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