इस तरह तय की हैं हमने मंज़िलें
गिर पड़े, गिर कर उठे, उठ कर चले!!!
ये ऊपर लिखी पंक्तियां पिथौरागढ़ के कनालीछीना ब्लॉक के रहने वाले जैविक खेती कर रहे प्रगतिशील किसान जय प्रकाश जोशी के दृढ संकल्प को बयां करती हैं। मुंबई में 12 साल से अपने जमे जमाए कारोबार को छोड़कर उन्होंने अपने गाँव मलान वापस आने का फैसला किया। 50 साल के जय प्रकाश जोशी की सालाना आमदनी लगभग एक करोड़ रुपये थी। जय प्रकाश जोशी ने खुद का बिज़नेस शुरू करने से पहले मुंबई की एक ऑयल उत्पादन मल्टीनेशन कंपनी में भी बतौर मैकेनिकल इंजीनियर 8 साल तक काम किया। करियर के इस मुकाम पर क्यों जय प्रकाश जोशी ने अपने पूरे परिवार के साथ गाँव लौटने का फैसला किया? कैसे अपने क्षेत्र के लोगों की आजीविका में सुधार और खेती की तस्वीर बदलने का ज़िम्मा उठाया और कैसे एक बड़े नुकसान के बावजूद आज भी वो फ़क्र के साथ कहते हैं कि खेती-किसानी उनके जीवन का मूलभूत आधार है। इन सब बिंदुओं के बारे में किसान ऑफ़ इंडिया ने जय प्रकाश जोशी से ख़ास बातचीत की।
क्यों लिया गाँव वापस आने का फैसला?
जय प्रकाश जोशी कहते हैं कि 2014 की बात है जब उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत ने “गाँव बचाओ, गाँव बसाओ” का एक नारा दिया था। उस वक़्त हरीश सिंह रावत ने उत्तराखंड से नौकरी की तलाश में पलायन के लिए दूसरे राज्यों में गए लोगों से वापस आने की अपील की थी। जय प्रकाश जोशी ने बताया कि वो उस वक़्त मुंबई में थे और टीवी पर उन्होंने ये देखा था। इस वाकये ने उन्हें अपने गाँव वापस लौटने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने बताया कि उनका गाँव मलान भी पलायन के दर्द को झेल रहा था। गाँव के लगभग 90 फ़ीसदी लोग पलायन कर चुके थे। गाँव सड़क, पानी और बिजली की समस्या से भी जूझ रहा था। 2014 में जय प्रकाश जोशी मुंबई में अपने व्यवसाय को बंद करके अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वापस गाँव लौट आए।
गाँव के स्कूल को लिया गोद
उनकी पत्नी पुणे में ही पली-बड़ी थीं। पुणे यूनिवर्सिटी से फर्स्ट क्लास ग्रेजुएट थीं। बच्चे भी स्कूल जाते थे। जय प्रकाश जोशी ने अपने गाँव पहुंचकर सबसे पहले एक प्राइमेरी स्कूल को गोद लिया। वहाँ फर्नीचर से लेकर स्कूल की मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करवाया। साथ ही कई शिक्षकों की नियुक्ति करवाई। अपने बच्चों का भी गाँव के ही स्कूल में दाखिला करवाया। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन से संपर्क कर सड़क और पानी की व्यवस्था सुचारु करवाई। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर रहे जयप्रकाश जोशी लोगों के बीच उम्मीद बनकर उभरे।
बड़े स्तर पर खोला डेयरी प्रोजेक्ट
अपने गाँव की मूलभूत सुविधाओं पर काम करने के बाद जय प्रकाश जोशी ने अपने क्षेत्र में एक बड़ा डेयरी प्रोजेक्ट खोलने का फैसला किया। ऐसा इसलिए ताकि क्षेत्र के युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा हो सकें। जय प्रकाश जोशी कहते हैं कि वो ऐसे प्रोजेक्ट की तलाश में थे, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ा हो। इसलिए उन्होंने डेयरी प्रोजेक्ट का चुनाव किया।
उन्होंने दो मंजिला डेयरी का निर्माण करवाया। इसमें करीबन 60 गायों का पालन-पोषण होता था। रोज़ाना का करीबन साढ़े 300 लीटर दूध का उत्पादन होता था। उन्होंने अपने इस डेयरी प्रोजेक्ट के ज़रिए कई युवाओं को रोज़गार दिया।
बंजर ज़मीन पर बोई हरियाली की फसल
अपने गाँव की आजीविका को सुधारने के लक्ष्य के साथ उन्होंने अपने अगले पड़ाव पर भी जल्द ही काम करना शुरू कर दिया। बंजर खेतों में फिर से हरियाली की फसल लौटाने के लक्ष्य पर वो लग गए। जय प्रकाश जोशी ने बताया कि उनके गाँव की 100 फ़ीसदी ज़मीन बंजर हो चुकी थी, इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि स्थित कितनी विकट होगी। उन्होंने सबसे पहले खेतों की साफ-सफाई कराई। फिर बासमती, काले चवाल और कई तरह की सब्जियों की जैविक पद्धति से बुवाई शुरू कर दी। नतीजतन जिन खेतों में वनस्पति के नाम पर सिर्फ़ खरपतवार या घास दिखती थी, वहां फसल लहलहाने लगी।
लोगों में उदासीनता का भाव
जय प्रकाश जोशी कहते हैं कि ये बड़ी उदासीनता की बात है कि कुछ लोग काम को दिखावे के तराज़ू में मापते हैं। जब उन्होंने डेयरी प्रोजेक्ट शुरू किया तो शुरुआत में लोग आए, लेकिन फिर उन्हें लगा ये तो वही काम है जो वो घर पर करते हैं, इसमें कुछ नया नहीं है। ये व्यवसाय दिखावे का नहीं है। इस वजह से धीरे-धीरे डेयरी में काम करने वाले लोगों की संख्या कम होती चली गई। फिर डेयरी के संचालन का पूरा ज़िम्मा जय प्रकाश जोशी के कंधों पर आ गया। इसमें उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया।
डेयरी प्रोजेक्ट में लगी आग
जय प्रकाश जोशी ने डेयरी के अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर अपनी जमापूँजी का बड़ा हिस्सा लगाया था। 22 अप्रैल, 2022 की तारीख उनके जीवन में काला दिन लेकर आई। उनके डेयरी फ़ार्म में आग लग गई। उन्हें करीबन 80 लाख रुपये का नुकसान हुआ। इस घटना ने उन्हें अंदर तक आहत कर दिया। जय प्रकाश जोशी कहते हैं आर्थिक नुकसान जो हुआ सो हुआ, लेकिन इस आग में एक गाय और उसके बछड़े की मौत हो गई। इस आग ने भारी नुकसान पहुंचाया। आस-पास लगे लीची और आम समेत कई पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचा।
पिथौरागढ़ में गन्ने की खेती को बढ़ावा
पिथौरागढ़ में जय प्रकाश जोशी गन्ने की खेती भी करते हैं। इस क्षेत्र से गन्ने का एक पुराना इतिहास भी जुड़ा है। एक वक़्त ऐसा था जब पिथौरागढ़ में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती थी और यहाँ के गुड़ का स्वाद विदेशी लोगों को खूब पसंद था। पिथौरागढ़ पूर्व में नेपाल और उत्तर में तिब्बत की सीमा से मिला हुआ है। जय प्रकाश जोशी बताते हैं कि मलान गाँव एक ज़माने में कैलाश मानसरोवर यात्रा का एक पड़ाव हुआ करता था। उस दौरान चीन और तिब्बत से भी यात्री आते थे। वो अपने साथ नमक लेकर आते थे और बदले में यहाँ से गुड़ ले जाते थे। हालांकि, धीरे-धीरे गन्ने का रकबा घटता गया और गुड़ बनाने वाले कोल्हू जंग खाने लगे।
एक बार फिर से उस इतिहास को दोहराने के लक्ष्य और लोगों तक पिथौरागढ़ के गन्ने और गुड़ का स्वाद पहुंचाने का काम शुरू हो चुका है। जय प्रकाश जोशी ने कहा कि उन्होंने पिछले 7-8 साल से गन्ने की खेती शुरू की है। खेती करते हुए उनका परिचय नैनीताल के प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा से हुआ। नरेन्द्र सिंह मेहरा के सहयोग से पिथौरागढ़ के गन्ना विभाग से संपर्क किया गया। उत्तराखंड के गन्ना एवं चीनी आयुक्त हंसा दत्त पांडे ने इस पर शोध करने का निर्देश दिया। गन्ना विभाग के अधिकारी सर्वे करने गाँव पहुंचे। शोध में सभी बातें सही पाई गईं। पिथौरागढ़ में गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 25 क्विंटल उन्नत किस्म के गन्ने का बीज उपलब्ध कराया गया। जय प्रकाश जोशी ने बताया कि उत्तराखंड के गन्ना एवं चीनी आयुक्त हंसा दत्त पांडे और उनकी टीम गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर संभव मदद कर रही है। कई किसानों को जोड़ा जा रहा है। उनके क्षेत्र में जैविक तरीके से गन्ने की खेती शुरू हो चुकी है। जय प्रकाश जोशी को उम्मीद है कि गन्ने की उन्नत किस्मों के मिलने से एक बार फिर उनके क्षेत्र में गन्ने की खेती को बढ़ावा मिलेगा।
जय प्रकाश जोशी अपने क्षेत्र के किसानों को ट्रेनिंग देने भी जाते हैं। कई सरकारी कृषि संस्थानों और एनजीओ के साथ मिलकर वो जैविक खेती, वैल्यू एडीशन, फ़ूड प्रोसेसिंग से जुड़ी ट्रेनिंग युवाओं और किसानों को देते हैं। उनका मकसद है कि उत्तराखंड राज्य सशक्त बने और सब मिलकर भारत को सशक्त बनाएं।
गाँव बसने के फैसले पर क्या रही घरवालों की प्रतिक्रिया?
जय प्रकाश जोशी कहते हैं कि उनके बड़े भाई उनके पिता के समान है। जब उन्होंने गाँव बसने के अपने फैसले के बारे में अपने बड़े भाई को बताया तो पहले उन्होंने मना किया। उन्होंने कहा कि इतना अच्छा बिज़नेस मुंबई में सेटअप है तो गाँव जाने की ज़रूरत क्यों है। पर जय प्रकाश जोशी गाँव जाने का मन बना चुके थे। उन्होंने अपने भाई से सवाल पूछा कि पैसा, धन और दौलत की अहमियत कितनी और कहाँ तक है? इस सवाल के जवाब में उनके भाई ने जवाब दिया कि “साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥” इसका मतलब हुआ परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजरा चल जाये, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और दूसरों को भी भोजन करा सकूँ।
अपने बड़े भाई की इस बात पर जय प्रकाश जोशी ने उनसे पूछा कि ये आप जो कह रहे ये कितना सच है? इसके जवाब में उनके भाई ने कहा कि ये बात बिल्कुल सच है। बस फिर क्या, उनके बड़े भाई जय प्रकाश की बात से संतुष्ट हो गए और उनके फैसले में पूरा सहयोग किया।
कई तरह के विदेशी फल-सब्जियों की करते हैं खेती
जय प्रकाश जोशी बताते हैं कि पहाड़ में एक ही जगह पर एक या 2 नाली से ज़्यादा खेती की ज़मीन किसी की नहीं होती। ज़मीन अलग-अलग जगह होती है। इसलिए उन्होंने सबसे पहले खेती के लिए पर्याप्त जगह की व्यवस्था की। एक ही जगह पर लगभग दो हेक्टेयर ज़मीन खरीदी। इसके बदले लोगों को अपनी ज़मीन या पैसों का भुगतान किया। फिर जाकर उन्होंने जैविक खेती शुरू की। वो ब्रोकली, लाल गोभी, सेलरी, ब्रुसेल सहित कई यूरोपियन सब्जियों की खेती करते हैं। इसके अलावा, आलू, प्याज, भिंडी, टमाटर बैंगन जैसी सब्जियों की खेती भी होती है। फलों में एवोकाडो, पैशन फ्रूट और कीवी सहित कई और फलों की खेती करते हैं।
क्या है चुनौतियाँ?
जय प्रकाश सिंह कहते हैं कि अगर कोई युवा अपना बिज़नेस शुरू भी करना चाहता है तो उसे शहरों की बैंकिंग सेवा के मुकाबले ग्रामीण स्थित बैंकों से पर्याप्त तौर पर मदद नहीं मिल पाती। वो युवाओं को सलाह देते हैं कि खेती में अगर आपकी रुचि है तो पहले खुद को आर्थिक रूप से मजबूत कर लें और फिर खेती का चुनाव करें। जय प्रकाश सिंह बताते हैं कि उनके ब्लॉक में मछली पालन, फूलों की खेती और गन्ने की खेती के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है।
आगे उन्होंने कहा कि जो लोग ज़मीनी स्तर पर खेती में अच्छा काम कर रहे हैं, लगन से लगे हुए हैं, उनके विकास के लिए अगर सरकार ज़रूरी कदम उठाए तो इससे आज का युवा और भावी पीढ़ी भी खेती करने के प्रति जागरूक होगी। एक युवा साधन के अभाव में बंजर ज़मीन पर कुछ नहीं कर सकता। इसलिए सरकार का सहयोग होना भी बहुत ज़रूरी है। बैंकिंग सुविधा का सुचारु रूप से होना भी आवश्यक है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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