देश में गन्ना सबसे प्रमुख व्यावसायिक फसल है। उत्तर भारत में गन्ने की सबसे अधिक बुआई बसंतकाल और शरद कालीन में की जाती है। इन दोनों सीज़न में बोई फसलें इस समय खेतों में खड़ी हैं। गन्ने की फसल से भरपूर उपज पाने के लिए फसल का सही तरीके और समय से प्रबंधन करना ज़रूरी है, जिससे गन्ने की फसल से अच्छी उपज मिल सके। इसके लिए गन्ने की फसल में उर्वरक और कीट रोग प्रबंधन पर किसानों को जागरूक रहने की ज़रूरत है। गन्ने की खडी फसल का प्रबंधन कैसे करें? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश के कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के कृषि विशेषज्ञ डॉ. बी.पी. शाही और डॉ. पी.के. सिंह से ख़ास बातचीत की।
खड़ी गन्ने की फसल में बची शेष उर्वरकों का प्रयोग करें
कृषि विज्ञान केंद्र बहराइच उत्तर प्रदेश के प्रमुख डॉ. बी.पी. शाही कहते हैं कि देश में गन्ने की खेती बसंत और सर्दी के मौसम में की जाती है। प्रदेश में मानसून की दस्तक के साथ जहां लोगों को गर्मी से बड़ी राहत मिली है, वहीं गन्ना किसानों के लिए भी ये बारिश वरदान साबित हो सकती है।
दरअसल, गन्ने के तेज़ी से बढ़ाव के लिए टॉप ड्रेसिंग करने का ये बहुत ही अच्छा समय है। इसके लिए बारिश होने के बाद गन्ने की फसल में बुवाई के बाद बची यूरिया की आधी मात्रा यानी 40 से 45 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से यूरिया की टॉप ड्रेसिंग खड़ी फसल में करनी चाहिए।
जो किसान यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर चुकें हैं, वो पानी में घुलने वाले उर्वरक एन.पी.के. का 18:18 :18 वाले अनुपात को चुनें। उसका दो किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने की फसल में छिड़काव करें।
गन्ने के खेत में मिट्टी चढ़ाई और बंधाई का कार्य करें
कृषि विशेषज्ञ डॉ. शाही ने बताया कि मानसून में बारिश को देखते हुए गन्ने की फसल हवा के साथ गिरने की आशंका रहते है। इसलिए गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाने का काम समय पर कर लेना चाहिए। इस समय मिट्टी मुलायम और फसल के पौधे काफ़ी कमजोर होते हैं, जो तेज़ हवा चलने पर गिर जाते हैं। ऐसे में मिट्टी चढ़ाने से पौधों को मज़बूती मिल जाती है। इसके अलावा, गन्ने को अलग-अलग कतारों के गन्नों को आपस में बांध कर इससे बचा जा सकता है। इसलिए गन्ने की बंधाई का कार्य भी करें, जिससे गन्ने की फसल तेज़ बारिश और हवा से गिरने ना पाए।
खेत में अधिक जलभराव पर जल निकासी की व्यवस्था करें
डॉ. बी.पी. शाही आगे जानकारी देते हैं कि गन्ने की फसल में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। जहां पर जलभराव हो, खेत से जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए। दरअसल, खेत में ज़्यादा पानी भरने से पौधे गलने लगते हैं। इसलिए खेत से पानी निकालने के लिए नालियां बनानी चाहिए और अगस्त से सितंबर महीने में गन्ने की फसल से सूखी पत्तियों को खेत से निकाल देना चाहिए। इससे पौधों का तेज़ी से विकास होगा।
इसके अलावा, गन्ने में दवाओं और यूरिया का स्प्रे भी किसान कर सकते हैं। गन्ने के एक एकड़ क्षेत्र में 200 लीटर पानी में 500 एमएल नैनो यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञ के मुताबिक, गन्ने की फसल में निराई-गुड़ाई का काम समय-समय पर करते रहना चाहिए ताकि खरपतवारों की रोकथाम की जा सके। खरपतवार दिखने पर उन्हें उखाड़कर ज़मीन में दबा दें। अगर गन्ने अधिक बढ़ जाते हैं तो खरपतवार ज़्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। मगर गन्ने की फसल में अमरबेल खरपतवार दिखे तो उसको नष्ट कर देना चाहिए। ये गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।
![गन्ने की फसल crop management in sugarcane](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/08/Untitled-design-2022-08-02T201912.051.jpg)
कीट-रोगों के प्रति रहें सावधान, नहीं तो होगा नुकसान
वहीं बहराइच कृषि विज्ञान के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. पी.के. सिंह ने बताया कि गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग से बचाव के लिए गन्ने के पौधों पर 2 से 3 बार 0.1 फ़ीसदी थोयोफिनेट मेथिल या काबेन्डाजिम या टिबूकोनाजोल का छिड़काव किसानों को करना चाहिए।
वहीं पोरी बेधक रोग में प्रभावित गन्ने की पोरी गोल आरी जैसी फटी हुई दिखाई देती है और छिद्र के पास से बुरादा बाहर निकलता है। इसका प्रभाव गन्ने की बढ़वार के समय जुलाई से सितंबर महीने में देखने को मिलता है। इसकी रोकथाम के लिए एक बार मोनोक्ट्रोफॉस 750 मिलीलीटर दवा की मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से गन्ने की फसल में छिड़काव करें।
जैविक नियंत्रण के अन्तर्गत अण्ड परजीव्याभ, ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 20 हज़ार वयस्क प्रति एकड़ की दर से 10 दिन के अन्तराल पर जूलाई से अक्तूबर महीने तक छोड़ने चाहिए।
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक, इस समय गन्ने की फसल में टॉप बोरर का मादा तितली कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। ऐसे में किसान चाहें तो 4 ट्राइकोकार्ड को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगा सकते हैं। अगर टॉप बोरर कीट का संक्रमण ज़्यादा हो तो 400 लीटर पानी में 150 एमएल कोराजन का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
वहीं उन्होंने बताया कि गन्ने के गुरदासपुर बेधक की रोकथाम के लिए सूखे अगोलों को काटकर ज़मीन में दबाने से दोबारा इस कीट की परेशानी नहीं आती। गन्ने की फसल में सफेद गिडार की मौजूदगी दिखने पर प्रकाश प्रपंच या नीम से बने कीट नाशकों का प्रयोग कर सकते हैं।
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ ने बताया कि गन्ने में लगने वाले कीटों की अधिक जानकारी के लिये कृषि वैज्ञानिकों से ही फसल में लगने वाले कीटों और बीमारियों की सूचना और कीट नाशकों की सलाह लेनी चाहिए।
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