खेसारी की फसल को क्यों कहा जाता है किसानों की ‘बीमा फसल?’ जानिए ख़ासियत
खेसारी प्रमुख दलहनी और चारा फसल है
खेसारी दलहनी फसल है। उतेरा विधि द्वारा खेसारी की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है और इससे खेत में नाइट्रोजन स्थिरिकरण में भी मदद मिलेगी।
खेसारी की उतेरा खेती: खेसारी की दाल के बारे में आप में से बहुत से लोग शायद नहीं जानते होंगे, लेकिन ग्रामिण इलाकों में इसका सेवन किया जाता है। हालांकि, पहले के मुकाबले अब ये उतना लोकप्रिय नहीं रह गया है, मगर खेसारी की खेती किसान चारा फसल के रूप में करके भी अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
हमारे देश में धान उगाने वाले कई राज्यों में रबी के मौसम में परती भूमि का सामना करना पड़ता है। सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भरता के कारण खेती योग्य भूमि रबी के मौसम में बंजर पड़ी रहती है। इस समस्या के समाधान में खेती की उतेरा विधि सहायक है और इस विधि से खेसारी की खेती आसानी से की जा सकती है।
क्या है उतेरा विधि?
ये फसल उगाने की एक ऐसी विधि है, जिसमें दूसरी फसल की बुवाई, पहली फसल के कटने के पहले ही कर दी जाती है। उतेरा विधि का इस्तेमाल आमतौर पर धान की फसल में किया जाता है। धान की फसल की कटाई के 15-20 दिन पहले जब उसकी बालियां पकने वाली हों यानी अक्टूबर के मध्य से नवम्बर मध्य के बीच उतेरा फसल के बीज छिड़क दिये जाते हैं। बीज की बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
दरअसल, नमी इतनी होनी चाहिए कि बीज गीली मिट्टी में चिपक जाए, लेकिन इस बात का ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि खेत में पानी ज़्यादा न हो, वरना बीज सड़ जाएंगे। ज़्यादा पानी होने पर उसे निकालना ज़रूरी है।
खेसारी दलहन और चारा फसल
खेसारी जिसे तिवड़ा, लाखड़ी, कसारी आदि नामों से भी जाना जाता है, एक दलहनी फसल है। साथ ही ये एक अच्छी चारा फसल भी है। खेसारी की दाल प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। कुछ देशों में खेसारी की खेती सिर्फ़ चारे के लिए भी की जाती है। ये फसल सूखे की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है। ये सूखे, कीट और रोगों के प्रति सहनशील फसल है और हर अवस्था में अच्छा उत्पादन देती है। इस गुण की वजह से इसे ‘बीमा फसल’ भी कहा जाता है। साथ ही ये मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ति करती है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में मदद करती है।
कब करें बुवाई?
उतेरा विधि के तहत खेसारी की बुवाई धान की कटाई से 2-3 हफ़्ते पहले की जानी चाहिए, यानी अक्टूबर के मध्य से नवम्बर मध्य के बीज छिड़क दिये जाते हैं। धान की खड़ी फसल में ब्रॉडकास्टिंग विधि के ज़रिए बुवाई की जाती है। प्रति हेक्टेयर 90 किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है और अच्छे उत्पादन के लिए तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
इसमें अधिक सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि खेसारी की फसल मिट्टी में मौजूद नमी को अवशोषित करती है। बुवाई के 60-70 दिनों के बाद आमतौर पर सिंचाई करने से उत्पादन अच्छा होता है। बुवाई के 30-35 दिनों बाद एक निराई करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है, लेकिन खरपतवार अधिक हों तो 50 प्रतिशत बेसलीन का 0.75 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
कटाई और उत्पादन
अगर खेसारी को चारे के लिए उगाया जा रहा है तो 50 प्रतिशत फूल आ जाने पर कटाई कर लें। अगर बीज के लिए खेती कर रहे हैं तो मार्च के अंत तक फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। चारा फसल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15-18 टन प्रति हेक्टेयर होता है, जबकि अनाज का उत्पादन 0.5-1.00 टन प्रति हेक्टेयर होता है।
खेसारी की खेती के फ़ायदे
- ऐसी परती भूमि जो धान की फसल कटने के बाद सिंचाई के अभाव में खाली रहती है, उसका इस्तेमाल खेसारी की खेती के लिए किया जा सकता है। इससे किसानों को नुकसान नहीं होगा।
- इसकी खेती की लागत भी कम है क्योंकि कम कर्षण क्रियाओं और कम नमी के बावजूद ये अच्छा उत्पादन देती है।
- खेसारी की चारा फसल कम समय में ही तैयार हो जाती है, जिससे ये सूखे से होने वाले नुकसान से बचने में कारगर है।
- ये नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करके मिट्टी को उपजाऊ बनाती है।
- खेसारी में प्रोटीन और फाइबर की अच्छी मात्रा होती है और यह पशुओं के लिए बेहतरीन चारा है, इससे उन्हें संपूर्ण पोषण मिलता है।
ये भी पढ़ें- रेमी की खेती: पौष्टिक गुणों से भरपूर हरा चारा और रेशा उत्पादन में भी होता है इस्तेमाल
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सब्जियों की खेती: छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली इन भाजियों के बारे में जानते हैं आप?छत्तीसगढ़ में 36 तरह की अलग-अलग भाजियां पाई जाती हैं, जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी अच्छी हैं। इन सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर होती है। राज्य में बस्तर के जंगलों, दुर्ग की बाड़ियों, रायपुर के फ़ार्म्स, कवर्धा की घाटियां, अलग-अलग ज़िलों में अनेक किस्म की भाजियां उगाई जाती हैं।
- पॉलीहाउस में फूलों की खेती कर सालाना करीब 35 लाख का टर्नओवर, ये हैं हिमाचल के रवि शर्मारवि शर्मा ने अपने गांव आने के बाद फूलों की खेती को चुना। इसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया हुआ है। वो पॉलीहाउस में फूलों की खेती करते हैं।
- Bio-Fertilizers: जीवाणु या जैविक खाद बनाने का घरेलू नुस्खाजैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
- Saffron Farming: नोएडा के एक छोटे कमरे में केसर की खेती, किसानों को दे रहे हैं ट्रेनिंगरमेश गेरा ने अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1980 में NIT कुरुक्षेत्र से की। इसके साथ ही रमेश ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब भी की। नौकरी के दौरान बाहर के देशों में उन्हें कृषि के नए-नए तरीके देखने को मिले। वहां से तकनीक देखकर भारत में केसर की खेती चालू की।
- Goat Farming: बकरी पालन से जुड़ी क्या हैं उन्नत तकनीकें और मार्केटिंग का तरीका? कैसे किसानों ने पाई सफलता?भारत में बकरी पालन में नवाचारों का उद्देश्य किसानों की आजीविका को बढ़ाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करना है।
- पाले की समस्या से कैसे पाएं निजात? सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती को कैसे प्रभावित करती है?किसान सर्दियों की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए रणनीतियां अपनाते हैं, और सरकार टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहायता देती है।
- कैसे Startup India के तहत शुरू की मिलेट बेकरी? छत्तीसगढ़ की हेमलता ने Millets के दम पर खड़ा किया स्टार्टअपमिलेट से बने व्यंजनों की वैरायटी लिस्ट काफ़ी लंबी है। छत्तीसगढ़ की रहने वाली हेमलता ने Startup India के तहत मिलेट बेकरी (Millet Bakery) की शुरुआत की।
- Makhana Farming: मखाने की खेती में छत्तीसगढ़ के किसान गजेंद्र चंद्राकर ने अपनाई उन्नत तकनीकइस विधि द्वारा मखाने की खेती 1 फ़ीट तक पानी से भरी कृषि भूमि में की जाती है। किसान अब मखाने की खेती कर, धान से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के किसान इस सुपर फ़ूड मखाने की खेती को लेकर काफ़ी जागरूक हो गए हैं।
- Pearl Farming: मोती की खेती के साथ मछली पालन, ‘पर्ल क्वीन’ के नाम से जानी जाती हैं पूजा विश्वकर्मापूजा विश्वकर्मा ने 6 साल पहले 40 हज़ार रुपये की लागत से मोती की खेती का व्यवसाय शुरु किया। लगातार 2 साल तक संघर्ष करने के बाद उन्हें सफलता मिली।
- कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती): बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ, क्या है तरीका?ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा सबसे अच्छा विकल्प है। वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक ईज़ाद की है, जिसमें बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ होगा। इस तकनीक का नाम है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)।
- Biofertilizer Rhizobium: जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने का जैविक तरीकादलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
- Seed Production: कैसे बीज उत्पादन व्यवसाय इन किसानों की आय का अच्छा स्रोत बन रहा है?बीज खेती का आधार है, तभी तो कहते हैं कि हर बीज एक अनाज है, लेकिन हर अनाज एक बीज नहीं हो सकता क्योंकि सभी अनाज में एक समान अंकुरण क्षमता नहीं होती। बीज उत्पादन के लिए किसानों को बीज के प्रकार और उत्पादन का सही तरीका पता होना चाहिए।
- Berseem Farming: बरसीम की खेती से जुड़ी अहम बातें, जानिए कीट-रोगों से कैसे बचाएं बरसीम की फसलबरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
- डेयरी उद्योग (Dairy Farming): क्यों दूध उत्पादन क्षेत्र में फ़ार्म रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है?जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
- Green Manure Crops: हरी खाद वाली फसलें कौन सी हैं और कितने प्रकार की होती हैं?खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
- जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण: पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए फ़ायदेमंदबढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- Crop Residue Management: क्यों ज़रूरी है फसल अवशेष प्रबंधन? इससे जुड़े ये आंकड़ें जानते हैं आप?फसल अवशेष जलाने से हमारी ज़मीन में उपलब्ध पोषक तत्वों को हानि होती है। धीरे-धीरे ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम होती चली जाती है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी कई घटनाएं हम देख भी चुके हैं।
- जानिए कैसे कंद वर्गीय फसल अरारोट की खेती से किसान ले सकते हैं लाभ, क्या हैं इसके फ़ायदे?अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
- Red Rice: विलुप्त होते लाल चावल को मिल रहा जीवनदान, दोबारा शुरु हुई खेतीसेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
- Carp Fish: नर्सरी तालाब में कार्प मछली उत्पादन कैसे करें? किन बातों का रखें ध्यान?मछली पालन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। पहले स्थान पर चीन है। हमारे देश में मछली उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सेदारी कार्प मछलियों की है। कार्प मछली उत्पादन में मछली पालकों को इसके बीजों की गुणवत्ता पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है।