Rooftop Organic Farming: छतों पर सब्जियों की जैविक खेती करने के हैं फ़ायदे ही फ़ायदे
शहरों में रहने वाले सब्जियों के शौक़ीनों के लिए ‘उम्दा खाएँ, सस्ता खाएँ’ का शानदार विकल्प है छत पर खेती
Rooftop organic farming (छत पर जैविक खेती): किचन गार्डेन की तरह घर की छत पर सब्जियाँ उगाकर पैसे की बचत के अलावा घरेलू पानी और कचरे का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। घर की छत पर सब्जियों की जैविक खेती करके पूरे साल ताज़ा सब्ज़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
क्या आप शहरों में रहने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो उम्दा किस्म की सब्जियों की दिक्कत झेलते हैं? या फिर क्या आपको बाज़ार में बहुतायत से बिकने वाली सब्जियाँ बेस्वाद लगती हैं? क्या आप ख़ुद रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और फफूँदीनाशक दवाओं की सहायता से उत्पादित बाज़ारू सब्जियों से छुटकारा पाने के लिए ख़ुद सब्जियाँ उगाने की सोचते हैं? तो किसान ऑफ़ इंडिया इस लेख के ज़रिये आपको बता रहा है कि कैसे अपने घर की छत पर आप जैविक या कार्बनिक खाद के इस्तेमाल से सब्जियाँ उगा सकते हैं।
छत पर जैविक सब्जियाँ उगाने के फ़ायदे
बाग़वानी के विशेषज्ञों के अनुसार, घर की छत पर सब्जियों की जैविक खेती करके पूरे साल ताज़ी सब्ज़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। ऐसी बाग़वानी में रासायनिक खाद के उपयोग से बचा जा सकता है। सिर्फ़ गोबर की खाद का उपयोग करके स्वादिष्ट सब्ज़ियाँ आसानी से उगाई जा सकती हैं। इस तरह, किचन गार्डेन की तरह घर की छत पर सब्जियाँ उगाकर पैसे की बचत के अलावा घरेलू पानी और कचरे का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है।
छत पर नियमित तौर पर हरियाली रहने का सुख पाया जा सकता है। छत पर सब्जियाँ उगाने की तरकीब से गृहणियाँ भी अपनी गृहस्थी के खर्च में योगदान दे सकती हैं तो कई लोगों के लिए ये खाली समय के सदुपयोग या शौक़िया गतिविधि जैसा भी हो सकता है। छत पर सब्जियों की बुआई साल में तीन या इससे ज़्यादा बार भी कर सकते हैं।

हरी सब्जियों की अहमियत
हमारी सेहत के लिए हरी सब्ज़ियाँ का सेवन अनिवार्य है। हरेक व्यक्ति को रोज़ाना करीब 300 ग्राम सब्जियों का सेवन ज़रूर करना चाहिए। इसमें 125 ग्राम पत्तेदार सब्ज़ियाँ, 100 ग्राम जड़ और तने वाली सब्ज़ियाँ और 75 ग्राम अन्य सब्ज़ियाँ हों तो हमारे शरीर की खनिज, प्रोटीन और विटामिन की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। मौजूदा दौर में शहरी जीवन में मिट्टी वाली जगह की कमी बहुत लोगों को अखरती है। इनके लिए छत पर सब्जियाँ उगाना एक शानदार विकल्प हो सकता है। इससे बाज़ार में बहुतायत से बिकने वाली ऐसी सब्जियों से छुटकारा मिल सकता है जिन्हें रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से उगाया जाता है।
छत पर सब्जियाँ उगाने की विधियाँ
हाइड्रोपोनिक खेती: खेती की इस तकनीक में बग़ैर मिट्टी के फसल और सब्जियों को उगाया जाता है। इसमें पौधों को पानी के ज़रिये पोषक तत्व मुहैया करवाये जाते हैं। इसका इस्तेमाल घरों की छतों पर सब्जियाँ उगाने के लिए सफलतापूर्वक कर सकते हैं। हाइड्रोपोनिक खेती से सलाद वाली सब्ज़ियाँ, फूल और औषधीय पौधों को भी आसानी से उगाया जा सकता है। सब्जियों में शलजम, गाजर, ककड़ी, मूली, टमाटर, मटर, आलू, शिमला मिर्च, धनिया, पुदीना तथा फलों में तरबूज, खरबूजा, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी आदि को उगाया जा सकता है।

हाइड्रोपोनिक विधि से लाभ
- कम पानी की आवश्यकता
- पारम्परिक खेती की अपेक्षा कम जगह की ज़रूरत
- कीट और खरपतवार नियंत्रित
- मिट्टी जनित रोगों और कीटों से सुरक्षा
- कम लागत और समय की बचत
- घर हरा-भरा और घरों की छत सुन्दर
ये भी पढ़ें- Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक उपज से कैसे होती है ‘जैविक खेती’ जैसी कमाई?
नियो हाइड्रोपोनिक विधि: इस विधि में छत पर गमले और लटकाने वाली टोकरियों में मौसमी सब्ज़ियाँ, औषधीय पौधे, फल और फूल आदि को उगाना बहुत आसान है। छत पर गमलों और टोकरियों का बाग़ीचा बनाकर हर मौसम में सब्जियों के अलावा पुदीना, तुलसी, तरबूज, खरबूजा, स्ट्रॉबेरी आदि की पैदावार पायी जा सकती है। नियो हाइड्रोपोनिक विधि से कम लागत में घर से निकलने वाली पुरानी टोकरियों, डिब्बों, लकड़ी के बक्सों आदि का प्रयोग किया जाता है।
इन बर्तनों में 3-4 इंच मोटी मिट्टी की परत बिछाई जाती है। इसमें घरेलू नर्सरी में तैयार पौधों को रोपा जाता है। पौधों की जड़ें जब बड़ी होकर टोकरीनुमा गमले से बाहर निकलने लगती हैं तो पौधे को पानी में डुबोकर रखा जाता है। इससे मिट्टी से पोषक तत्व लेकर पौधे 24 घंटे तक आवश्यकतानुसार जल ग्रहण करते रहते हैं। यदि प्लास्टिक या टिन के गमलों का इस्तेमाल करें तो उनके ऊपर जूट का बोरा लपेटकर रखें ताकि रिसने वाले पानी को अलग बर्तन में जमा किया जा सके। इस विधि से मौसमी सब्ज़ियाँ डेढ़ महीने में तैयार हो जाती हैं। सब्जियों की जैविक खेती की इन विधियों से आप घर में ही स्वाद से भरपूर, ताज़ी और कीटनाशक मुक्त सब्जी उगा सकते हैं।

जैविक खाद और मिट्टी का इस्तेमाल
घरेलू कचरा जैसे सब्जियों का अवशेष, फलों के छिलके, पेड़ों की पत्तियाँ और गाय के गोबर से जैविक खाद और मिट्टी तैयार की जाती है। इसे एक कंटेनर में जमा करते हैं। उसमें एक छेद किया जाता है ताकि हवा का आना-जाना आसानी से हो सके। ऐसी जैविक खाद महीने भर में तैयार हो जाती है। ये भुरभुरी और मुलायम होती है। इसमें नमी को सोखने और देर तक जमा रखने की शानदार क्षमता होती है। ये पोषक तत्वों से भी भरपूर होती है, इसीलिए बेहद उपजाऊ होती है।
खरीफ़ की सब्ज़ियाँ
खरीफ़ की सब्जियों को जून-जुलाई में बोया जाता है। इस मौसम में उगने वाली सब्जियों जैसे भिंडी, लौकी, करेला, मिर्च, लोबिया, टमाटर, तोरई, बैंगन, अरबी, ग्वार आदि की खेती की जाती है।
रबी की सब्ज़ियाँ
रबी की सब्जियों को सितम्बर से अक्टूबर में बोया जाता है। इस मौसम में उगने वाली सब्जियों जैसे बैंगन, फूलगोभी, पत्ता गोभी, सलाद, मटर, प्याज़, लहसुन, आलू, टमाटर, शलजम, मूली, पालक आदि की खेती की जा सकती है।
जायद मौसम की सब्ज़ियाँ
जायद मौसम की सब्जियों की बुआई फरवरी-मार्च में की जाती है। इस मौसम में भिंडी, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, लौकी, टिंडा, तोरई, चौलाई आदि सब्जियों की खेती की जाती है।
छत पर उगायी जा रही सब्जियों की देखभाल
पौधों की नियमित सिंचाई करें और जल निकासी का उचित प्रबन्ध रखें। उर्वरकों का इस्तेमाल ज़रूरत के मुताबिक ही करें। कीट और रोग के नियंत्रण के लिए नीम की खली, नीम का तेल, NPV, बिवेरिया बैसियाना, ट्राइकोडर्मा आदि का प्रयोग करना चाहिए।

घर में ही बनाएँ फसल संजीवनी
छत और बाग़ीचों में फसलों को रोगों से बचाने के लिए घर पर ही संजीवनी प्रोटीन बना सकते हैं। पचास गमलों के लिए 1 किलोग्राम गोबर, 200 ग्राम अनाज या दाल की चूरी, खली, आधा लीटर गोमूत्र, 1 ग्राम यीस्ट या 1/4 कटोरी खमीर को 10 लीटर पानी के साथ ड्रम में घोल लें और इसे 45 घंटे तक ढककर रखें। इसमें एक मुट्ठी उर्वरक मिट्टी या कल्चर पाउडर का घोल 5 ग्राम प्रति मिलीलीटर बनाकर 12 लीटर पानी में 15 दिनों के अन्तराल से छिड़काव करें। इससे फसलों की बढ़वार तेज़ होती है और वो अनेक रोगों और कीटों से मुक्त रहते है। आख़िरकार, बढ़िया पैदावार हासिल होती है।
ये भी पढ़िए – वो 10 पौधे जो सजावटी के अलावा हवा के सफ़ाईकर्मी और ऑक्सीजन प्लांट भी हैं
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक (Embryo transfer technology) से हुआ देश के पहले मारवाड़ी घोड़े का जन्मदेश में घोड़ों की संख्या में पिछले कुछ सालों में बहुत कमी आई है। इसीलिए वैज्ञानिक घोड़ों, खासकर देसी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्हें भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से एक बड़ी सफ़लता मिली है।
- रोटरी डिस्क ड्रिल (Rotary Disc Drill) – फ़सल कटाई के बाद पराली और अवशेष प्रबंधन का कारगर और दमदार उपकरणउत्तर भारत में फ़सल अवशेषों या पराली जलाना एक गंभीर समस्या है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण दोनों को नुकसान होता है। इस समस्या से निपटने के लिए ICAR ने रोटरी डिस्क ड्रिल (RDD) मशीन बनाई है। इसकी मदद से बिना पराली जलाए, फ़सलों की सीधी बुवाई की जा सकती है।
- Mushroom Processing: कैसे होती है मशरूम की व्यावसायिक प्रोसेसिंग? जानिए घर में मशरूम कैसे होगा तैयार?मशरूम उत्पादक किसान यदि ख़ुद अपनी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से प्रोसेस्ड मशरूम को ख़रीदकर लाना और फिर उसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।
- जानिए क्यों महाराष्ट्र की इस महिला किसान को लोगों ने दिया ‘लेडी प्लांट डॉक्टर’ का ख़िताब!महाराष्ट्र के अहमद नगर ज़िले की रहने वाली कविता प्रवीण जाधव का शुरू से ही खेती के प्रति लगाव था। उन्होंने किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए कई अहम कदम उठाए। आज उनके साथ कई महिला किसान जुड़ी हुई हैं।
- जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
- कपास की खेती में फायदेमंद है स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमालकपास एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कपड़ा उद्योग के लिए तो कपास कच्चा माल प्रदान करता ही है, साथ ही इसके बीज से तेल भी बनाया जाता है। कपास की मांग हमेशा बाज़ार में बनी रही है, ऐसे में किसान स्पॉट फर्टिलाइज़र एप्लीकेटर का इस्तेमाल करके इसका उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
- सब्ज़ी नर्सरी (Vegetable Nursery): असम के किसान जयंती मेधी ने मिट्टी रहित सब्ज़ियों की पौध तैयार कर खड़ा किया सफल नर्सरी उद्योगयदि रोपण सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली हो तो सब्ज़ी नर्सरी में सब्ज़ियों की फसल भी अच्छी होती है। अपने इलाके में लोगों को बेहतरीन रोपण सामग्री मुहैया कराने के लिए जयंती मेधी ने एक अनोखा प्रयोग किया और बिना मिट्टी के ही विभिन्न सब्ज़ियों की पौध तैयार कर सफल उद्यम स्थापित कर लिया।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): चौलाई की ये 10 उन्नत किस्में देती हैं अच्छी पैदावार, कई पोषक तत्वों से भरपूरचौलाई को औषधीय पौधा भी माना जाता है। ये इकलौता ऐसा पौधा है जिसमें सोने (gold) का अंश पाया जाता है। इसका जड़, तना, पत्ती और फल सभी उपयोगी हैं। चौलाई की खेती कर रहे किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में ईज़ाद की हैं। आइए आपको बताते हैं उन किस्मों के बारे में।
- Amla Processing: आज आंवले की खेती के ‘मार्केटिंग गुरु’ हैं कैलाश चौधरी, ज़ीरो से शुरू किया था सफ़रकैलाश चौधरी पिछले 6 दशक से खेती कर रहे हैं। आंवले की खेती ने उन्हें देश-दुनिया में पहचान दी है। कैलाश चौधरी कहते हैं खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं।
- Vegetable Nursery: सब्जियों की नर्सरी में इनोवेटिव तकनीक का इस्तेमाल, मणिपुर के इस युवा ने ईज़ाद किया तरीकासब्जियों के बीज बहुत नाज़ुक होते हैं और उन्हें अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। इसलिए अधिकांश सब्जियों की पौध पहले नर्सरी में तैयार की जाती है, फिर खेत में उन्हें लगाया जाता है। मणिपुर के एक किसान ने नर्सरी में गुणवत्तापूर्ण सब्जियोंकी पौध तैयार करने के लिए एक नई तकनीक ईज़ाद की है, जिससे उनका मुनाफा बढ़ गया। सब्जियों की नर्सरी में कैसे ये तकनीक कारगर हो सकती है, जानिए इस लेख में।
- Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से चाहिए ज़्यादा कमाई तो अपनाएँ कठिया गेहूँ की किस्मेंसेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
- Azolla Cultivation: अजोला की खेती पशुओं के साथ ही धान की फसल के लिए भी है फ़ायदेमंदअजोला पशुओं के लिए बेहतरीन हरा चारा है, जिसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। अजोला को उगाना बहुत आसान है। बस इसके लिए पानी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा किसी तरह के खाद या उर्वरक की कोई ज़रुरत नहीं होती है। ये अपने आप दोगुना होता रहता है। अजोला की खेती कैसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है, देखिए प्लांट प्रोटेक्शन की सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट हिना कौशर से खास बातचीत।
- चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): छोटी जोत वाले किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद? जानिए इससे जुड़ी अहम बातेंचौलाई से मिलने वाले साग (सब्ज़ी) और दाना (अनाज) दोनों ही नकदी फसलें हैं। चौलाई के खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। जानिए चौलाई की खेती से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां।
- Kitchen Garden: अतिथि पोपली 25 सालों से किचन गार्डन में उगा रहीं सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियांशहर में जगह की कमी के चलते जो लोग अपने बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पातें, वो अतिथि पोपली से सीख ले सकते हैं। जो पिछले 25 सालों से गमले और घर के सामने की छोटी सी जगह में सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियां उगा रही हैं।
- Sesame Cultivation: गर्मियों में तिल की खेती करना किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद?आमतौर पर तिल की खेती को मुनाफ़े का सौदा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसमें पैदावार कम होती है, लेकिन तिल की खेती यदि उन्नत तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। उन्नत किस्म के बीजों के साथ गर्मियों के मौसम में तिल की खेती करना अच्छा रहेगा, क्योंकि यह मौसम तिल के लिए उपयुक्त होता है।
- Top 10 Desi Cow Breeds: गौपालन से जुड़े हैं तो जानिए देसी गाय की 10 उन्नत नस्लों कोउन्नत नस्ल की देसी गायों को पालने पर दूध का उत्पादन अन्य देसी गायों के मुक़ाबले अधिक होता है। ज़ाहिर है, इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी। एक बात का ध्यान ज़रूर रखें। हर क्षेत्र के हिसाब से कौन सी देसी गाय उन्नत नस्ल की है, इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही उस नस्ल को पालें।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फूट ककड़ी की खेती क्यों है फ़ायदेमंद? 45-48 डिग्री में भी उग जाएपिछले कुछ साल में फूट ककड़ी की उन्नत किस्मों के विकास और नई तकनीक के प्रयोग से फूट ककड़ी की खेती में इज़ाफा हुआ है। अगर व्यावसायिक तौर पर किसान इसकी खेती कर उत्पाद तैयार करते हैं तो ये अतिरिक्त आमदनी का अच्छा स्रोत बन सकती है।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा हैप्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से एक बार सिंचाई करने के बाद खेतों में ज़्यादा वक़्त तक नमी बनी रहती है। इस तकनीक में रोपे गये या अंकुरित हुए नन्हें पौधों के तनों के आसपास का हिस्सा प्लास्टिक से ढका होने की वजह से खरपतवार नहीं पनप पाते। लिहाज़ा, इन्हें निकालने या नष्ट करने के लिए न तो गुड़ाई-निराई की श्रम की लागत आती है और ना ही खरपतवार-नाशक रासायनिक दवाईयों की ज़रूरत पड़ती है। दूसरी ओर, परम्परागत खेती में ज़मीन की जिस उर्वरा शक्ति को खरपतवार हथिया लेते हैं वो ताक़त प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से ज़मीन में ही बनी रहती है और उस फसल के पौधों के ही काम आती है, जिसकी खेती को किसान ने चुना है।
- Millets Farming: मोटे अनाज की खेती के ज़रिये करें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का मुक़ाबलाहरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।