स्ट्रॉबेरी ठंडे इलाके की फसल है और आमतौर पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में इसकी खूब खेती होती है। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की एक महिला किसान ने घर से ही स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। अब अपने इलाके की सफल स्ट्रॉबेरी उत्पादक बन गई हैं।
कुछ अपना और अलग करने की चाह ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर ज़िले की भारती भूरिया को स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए प्रेरित किया। एग्रीकल्चर में मास्टर्स करने वाली भारती ने किस तरह और कब शुरू की स्ट्रॉबेरी की खेती और इसमें उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, साथ ही स्ट्रॉबेरी की कौन-कौन सी किस्में वो उगा रही हैं, इन सभी के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता पंकज शुक्ल के साथ।
कोरोना काल में शुरू की स्ट्रॉबेरी की खेती
पालमपुर ज़िले की भारती भूरिया पढ़ाई पूरी करने के बाद सभी की तरह एक नौकरी की तलाश में जुट गईं। उन्हें सरकारी नौकरी मिल भी गई, मगर कुछ समय तक नौकरी करने के बाद ही उनके मन में अपना कुछ अलग काम करने का मन हुआ। फिर क्या था, उन्हें स्ट्रॉबेरी की खेती का आइडिया आया। कोरोना काल में उन्होंने घर पर शौकिया तौर पर ही स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू किया।
भारती कहती हैं, मैंने तो बस शौक के लिए घर पर 4 लेयर का स्ट्रक्चर तैयार करके स्ट्रॉबेरी उगानी शुरू की, मगर कोरोना काल में पौधों की अच्छी देखभाल होने से फल इतने अधिक आए कि हमें बेचने पड़ें। सिर्फ़ एक दीवार से ही, उन्होंने 70 हज़ार के स्ट्रॉबेरी बेची। उम्मीद से अधिक उत्पादन देखकर हम लोग बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए प्रेरित हुए।

पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी
पॉलीहाउस के लिए 20-30 डिग्री का ही तापमान चाहिए। ज़्यादा गर्मी ये सहन नहीं कर पाता है। इसलिए पॉलीहाउस में इसकी खेती करना अच्छा होता है। भारती कहती हैं, 2 अन्य लोगों के साथ मिलकर पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए लेयरिंग वाला स्ट्रक्चर तैयार किया, जिस पर 50 लाख से भी अधिक का खर्च आया। दरअसल, हमने 10 लेयर वाला स्ट्रक्चर तैयार किया, मगर लिफ़्ट की सुविधा न होने की वजह से 9 लेयर तक ही गमले रखते हैं ताकि ठीक से उनका प्रबंधन हो सकें।
उनका कहना है कि पॉलीहाउस में खेती के लिए किसानों को पहले तो स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी होनी चाहिए और पॉलीहाउस का प्रबंधन किस तरह से किया जाता है, उसके बारे में पता होना चाहिए। इसके अलावा, स्ट्रॉबेरी की अच्छी पौध के बारे में पता होना चाहिए। भारती ने मदर प्लांट से ही सारे पौध तैयार किए हैं।

किस महीने में लगाए जाते हैं पौधे?
भारती बताती हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सितंबर से लेकर नवंबर तक पौध लगाए जा सकते हैं। फिर जनवरी में फ्लावरिंग आने लगती हैं। पौध लगाने के करीब डेढ़ महीने बाद फल आने लगते हैं। चूंकि स्ट्रॉबेरी जल्दी खराब हो जाती है, इसलिए भारती का कहना है कि वो पूरी जगह पर एक साथ रोपाई नहीं करतीं, बल्कि 15 दिन का अंतराल रखती हैं ताकि सभी फसल एक साथ तैयार न हों। इससे फसल को बेचने में आसानी होती है। उत्पादन अधिक समय तक प्राप्त होता है।
उनका कहना है कि आमतौर पर स्ट्रॉबेरी की फसल अप्रैल तक ही होती है, लेकिन पॉलीहाउस में तापमान नियंत्रित करके वो जुलाई तक स्ट्रॉबेरी प्राप्त करती हैं। सिंचाई के लिए वो ड्रिप सिंचाई विधि का इस्तेमाल करती हैं।
उगा रही हैं तीन किस्में
वैसे तो स्ट्रॉबेरी की कई किस्में होती हैं, लेकिन भारती अपने पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी की तीन किस्में उगा रही हैं। नाबिला, कामारोजा और विंटर डाउन। भारती का कहना है कि नाबिला की कीमत सबसे अच्छी मिलती है, क्योंकि ये साइज़ में बड़ा होता है और मीठा होता है।

सब्ज़ियां भी उगा रहीं
स्ट्रॉबेरी के अलावा, वो रंगीन शिमला मिर्च, मटर, बीज रहित खीरा, लेट्यूस, फ्रेंच बीन्स भी उगा रही हैं। भारती स्ट्रॉबेरी की पौध तैयार करके पूरे देश के किसानों को सप्लाई कर रही हैं। भारती का कहना है कि लोगों को खेती के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि अगर हम उगाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या। उनका कहना है कि पॉलीहाउस बनाकर कम जगह में किसान आसानी से खेती करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। हल्दी, लहसुन को भी स्ट्रॉबेरी की तर्ज पर उगाया जा सकता है।
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