कलौंजी की खेती (Black Cumin Cultivation): इस नकदी फसल की हैं कई खूबियाँ, जानिए इसके बारे में सब कुछ

किसानों को बाज़ार में कलौंजी (Nigella Sativa) का सामान्य दाम करीब 20 हज़ार रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। कलौंजी की माँग इतनी उम्दा है कि मसालों के कई ब्रान्ड किसानों से इसकी पैदावार ठेके (कॉन्ट्रैक्ट खेती) पर भी करवाते हैं।

कलौंजी की खेती

कलौंजी (Nigella) या मंगरैल या काला जीरा (Black Cumin Cultivation), एक ऐसी उपज है, जिसमें नकदी फसल, औधषीय खेती और मसालों की पैदावार जैसी सभी खूबियाँ मौजूद हैं। कलौंजी के बीज काले रंग के होते हैं। इसका स्वाद हल्का तीखा और कड़वा होता है। ये अनेक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। दवाईयों के अलावा कलौंजी का इस्तेमाल नान, ब्रैड, केक और आचार को खट्टा और खुशबूदार बनाने में होता है। आयुर्वेद और अन्य चिकित्सा पद्धतियों के लिए कलौंजी एक अहम औषधीय फसल है।

कलौंजी का इस्तेमाल

कलौंजी के तेल से कई दवाईयाँ बनती हैं। कई बार सुगन्ध के लिए भी कलौंजी के बीजों का इस्तेमाल होता है। कलौंजी का तेल गंजापन दूर करने में उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा लकवा, माइग्रेन, खाँसी, बुखार और फेसियल पाल्सी के इलाज़ में भी कलौंजी के सेवन से फ़ायदा होता है। दूध के साथ कलौंजी खाने पर पीलिया के उपचार में भी मदद मिलती है। मसालों के रूप में कलौंजी की पहुँच हरेक रसोई तक होती है।

कलौंजी की खेती (Black Cumin Cultivation): इस नकदी फसल की हैं कई खूबियाँ, जानिए इसके बारे में सब कुछ
कलौंजी के तेल से कई दवाईयाँ बनती हैं (तस्वीर साभार: newsncr)

कलौंजी की खेती (Black Cumin Cultivation): इस नकदी फसल की हैं कई खूबियाँ, जानिए इसके बारे में सब कुछ

कलौंजी का इस्तेमाल कृमि नाशक, उत्तेजक और प्रोटोजोवा रोधी के रूप में भी होता है। इसे कैंसर रोधी औषधि के रूप में भी प्रभावी पाया गया है। इसका प्रयोग बिच्छू काटने पर भी किया जाता है। इसके सुगन्धित तेल में निगेलोन, मिथाइल, आईसोप्रोपिल, क्विनोन और बीटा सिटोस्टैरॉल जैसे तत्वों के अलावा पामीटिक, मिरिस्टिक, स्टिएरिक, ओलेइक और लिनोलनिक नामक वसा अम्ल पाये जाते हैं।

कलौंजी में 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत प्रोटीन और 35-38 प्रतिशत वसा पाया जाता है। इसका तेल से हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, कमर दर्द और पथरी जैसे रोगों में फ़ायदा देखने को मिलता है। कलौंजी का तेल सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल होता है। अचार के मसालों में भी कलौंजी का मुख्य स्थान होता है।

कलौंजी की खेती

कलौंजी रबी की फसल है। उत्तर भारत का सर्दी-गर्मी का मिला-जुला मौसम कलौंजी की खेती की लिए माकूल है। इसीलिए कलौंजी की खेती मुख्य रूप से उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल से लेकर असम में की जाती है। कलौंजी का पौधा झाड़ीनुमा और एक से दो फ़ीट ऊँचा होता है। इसके गोल फल में काले रंग तिकोनेदार और बीजों से भरे 5 से 7 खाने होते हैं। इन्हीं बीजों को कलौंजी कहते हैं।

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आसान है बाज़ार में कलौंजी को बेचना

कलौंजी को बाज़ार में आसानी से बेचा जा सकता है। बढ़िया दाम मिलने की वजह से किसानों के लिए कलौंजी की खेती फ़ायदे का सौदा साबित होती है। कलौंजी की कई ऐसी उन्नत किस्में हैं, जिनके प्रमाणिक बीज बीमारी से बचाव करते हुए किसानों को ज़्यादा लाभ देते हैं। किसानों को बाज़ार में कलौंजी का सामान्य दाम करीब 20 हज़ार रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। कलौंजी की माँग इतनी उम्दा है कि मसालों के कई ब्रान्ड किसानों से इसकी पैदावार ठेके (कॉन्ट्रैक्ट खेती) पर भी करवाते हैं।

कलौंजी की खेती (Black Cumin Cultivation): इस नकदी फसल की हैं कई खूबियाँ, जानिए इसके बारे में सब कुछ
भारत के जिन हिस्सों में रबी की फसलें उगाई जाती हैं, वहाँ कलौंजी की खेती की जा सकती हैI

कलौंजी की खेती (Black Cumin Cultivation): इस नकदी फसल की हैं कई खूबियाँ, जानिए इसके बारे में सब कुछ

कलौंजी की खेती के लिए जलवायु

सुपारी और मसाला विकास निदेशालय, कालीकट (Directorate of Arecanut and Spices Development, Calicut) के मुताबिक, भारत के जिन हिस्सों में रबी की फसलें उगाई जाती हैं, वहाँ कलौंजी की खेती की जा सकती है। मध्य अक्टूबर से लेकर मध्य नवम्बर तक का समय कलौंजी की बुवाई के लिए सबसे बढ़िया होता है। कलौंजी के बीजों को अंकुरण के वक़्त सामान्य तापमान की ज़रूरत होती है, लेकिन पौधों के अच्छे विकास के लिए 18 डिग्री सेल्सियस के आसपास वाली सर्दी और फसल के पकने के दौरान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास वाली गर्मी का मौसम सबसे मुफ़ीद होता है।

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कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसका pH मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए। पथरीली भूमि में कलौंजी की पैदावार अच्छी नहीं होती। कलौंजी के खेतों में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि इसे सामान्य सिंचाई की ही ज़रूरत होती है।

कलौंजी की उन्नत किस्में और पैदावार

कलौंजी के बीजों की अनेक उन्नत किस्मों का किसान इस्तेमाल करते हैं। इनमें से सात किस्में मुख्य हैं – अजमेर कलौंजी-20, AN-1, आज़ाद कलौंजी, राजेन्द्र श्यामा, पन्त कृष्णा, NS-44, NS-32 और कालाजीरा। कलौंजी की ये किस्में 140 से 160 दिनों में पककर तैयार होती हैं। इसकी पैदावार 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच होती है।

कलौंजी के प्रमाणिक बीजों के प्राप्त करने के लिए सुपारी और मसाला विकास निदेशालय की ओर ख़ासतौर पर मान्यता प्राप्त नर्सरियों से सम्पर्क किया जा सकता है। इसके बारे में और जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कलौंजी के लिए खेत की तैयारी

कलौंजी की खेती से पहले मिट्टी की जाँच करवानी चाहिए। मिट्टी में कार्बनिक तत्व और उर्वरा कम हो तो गोबर की खाद या कम्पोस्ट या NPK खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। जैविक खाद का इस्तेमाल ज़्यादा उपज देती है। बेहतर पैदावार के लिए बुआई से पहले खेत को कल्टीवेटर से दो-तीन जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर समतल कर लेना चाहिए।

कलौंजी की बुआई और सिंचाई

कलौंजी की बुवाई के लिए छिड़काव विधि ज़्यादा प्रचलित है। इसमें खेत को समतल करने के बाद करीब एक फ़ीय की दूरी पर क्यारी बनाकर बीज छिड़का जाता है। बीच को मिट्टी में डेढ़-दो सेंटीमीटर नीचे होना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 5 से 7 किलोग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। बुआई के पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। करीब 10 दिन बाद बीज अंकुरित होते हैं। अगली सिंचाई मिट्टी की नमी को देखते हुए ही करनी चाहिए। कलौंजी के खेत को खर-पतवार से मुक्त रखने के लिए दो से तीन बार निराई की ज़रूरत पड़ती है।

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कलौंजी की रोगों से रोकथाम

कलौंजी की फसल पर वैसे तो रोगों का असर कम पड़ता है। फिर भी कई बार कटवा इल्ली और जड़ गलन की वजह से पैदावार प्रभावित होती है। रोगग्रस्त पौधों की जड़ों पर क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव करना चाहिए या फिर उन्हें काटकर नष्ट कर देना चाहिए। जड़ गलन से बचाव के लिए खेतों में पानी जमा नहीं होने देना चाहिए।

कलौंजी की कटाई

फसल पकने के बाद जब कलौंजी के पत्ते पीले पड़ने लगें तब पौधों को जड़ समेत उखाड़ें और कुछ दिन के लिए खेतों में ही सूखने के लिए छोड़ देते हैं। पौधों के पूरी तरह से सुखने के बाद लकड़ियों से पीटकर या मशीनों के ज़रिये कलौंजी के दानों को निकाल लें। अब उपज को बोरों में भरकर बाज़ार में बेचा जा सकता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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