खेती-बाड़ी में कमाई बढ़ाने के लिए अपनाएँ केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट), जानिए उत्पादन तकनीक और विधि
देसी कम्पोस्ट और गोबर की खाद की तुलना में केंचुआ खाद के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ हैं।
केंचुआ खाद में 50-75% प्रोटीन और 7-10% वसा के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। क़ीमत के लिहाज़ से भी केंचुआ खाद से मिलने वाले ये पोषक तत्व अन्य किसी भी स्रोत की तुलना में बेहद किफ़ायती होते हैं। केंचुआ खाद के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी के भौतक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है और उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के अनुपात बेहतर बनता है।
प्रकृति ने केंचुओं को शायद किसानों की सेवा में हमेशा तैनात रहने और पर्यावरण संरक्षण में शानदार योगदान देने के लिए ही बनाया है। इसीलिए कृषि जगत में केंचुए को किसानों का सबसे अच्छा दोस्त कहा गया है। रेंगने वाले ये प्राणी खेतों में रहें या फिर किसानों के घर से निकलने वाले जैविक कूड़ा-कड़कट में, हर जगह ये किसानों की मुफ़्त और लगातार सेवा करते रहते हैं। खेतों में रहने के दौरान मुफ़्त श्रमदान करके केंचुए जहाँ मिट्टी को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर पलटकर उसमें हवा और नमी के आवागमन का रास्ता तैयार करते हैं, वहीं किसानों के घर के इर्द-गिर्द रहने के दौरान केंचुए वहाँ के कूड़ा-कड़कट, अनाज की भूसी, राख, फ़सलों का अवशेष, पशुओं का गोबर और मूत्र वग़ैरह को सड़ाकर बेहतरीन जैविक खाद बनाते रहते हैं।
केंचुआ खाद में 50-75% प्रोटीन और 7-10% वसा के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। क़ीमत के लिहाज़ से भी केंचुआ खाद से मिलने वाले ये पोषक तत्व अन्य किसी भी स्रोत की तुलना में बेहद किफ़ायती होते हैं। केंचुआ खाद के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी के भौतक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है और उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के अनुपात बेहतर बनता है। देसी कम्पोस्ट और गोबर की खाद की तुलना में केंचुआ खाद के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ हैं। अपनी दानेदार प्रकृति की वजह से केंचुआ खाद, ज़मीन में हवा के आवागमन को और उसकी नमी सोखने की क्षमता को बढ़ाती है।

बेजोड़ है ‘वर्मीकम्पोस्ट’ का व्यवसाय
केंचुए हरेक तरह का जैविक कूड़ा-कचरा खा सकते हैं और अपने मल तथा स्राव के रूप में शानदार जैविक खाद उत्सर्जित करते रहते हैं। केंचुओं के इन्हीं गुणों की वजह से इन्हें बाक़ायदा व्यावसायिक रूप से पाला जाता है और अतिरिक्त आमदनी के लिए भी अपनाया जाता है। केंचुओं के ज़रिये निर्मित जैविक खाद को केंचुआ खाद या ‘वर्मीकम्पोस्ट’ (Vermicompost) कहते हैं। ये खाद, मिट्टी और फ़सल दोनों के लिए ही बेहद गुणकारी साबित होती है। इसीलिए केंचुआ पालन करके और इसकी खाद यानी ‘वर्मीकम्पोस्ट’ का व्यावयासिक उत्पादन करके भी किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं।
अच्छी प्रजाति वाले केंचुओं को यदि कूड़ा-कड़कट के साथ एक तिहाई गोबर और पशुओं में मल-मूत्र तथा बायो गैस के ठोस अवशेष (स्लरी) के साथ मिलाकर पाला जाए तो पोषक तत्वों से भरपूर बेहद उम्दा क्वालिटी वाली केंचुआ खाद बनायी जा सकती है। इस खाद को फलों, सब्ज़ियों, कन्द, अनाज, जड़ी-बूटी और फूलों की खेती के अलावा मुर्गी, मछली और पशु पालन में इस्तेमाल करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। उत्तम किस्म की केंचुआ खाद, गन्ध रहित और पर्यावरण के अनुकूल होती है। इसे 1, 2, 5, 10 और 50 किलो के थैलों में बेचा जाता है। केंचुआ खाद की क्वालिटी के हिसाब से बाज़ार में इसे 5 रुपये से लेकर 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक का भाव मिल जाता है। इतना ही नहीं, अन्य किसानों को 500 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से केंचुए बेचकर भी कमाई की जा सकती है। इसीलिए केंचुआ पालन अब एक लाभदायक व्यवसाय का रूप ले चुका है।

केंचुआ खाद या ‘वर्मीकम्पोस्ट’ के उत्पादन के तरीके
केंचुआ खाद के व्यावसायिक उत्पादन के लिए दो तरीके प्रचलित हैं – भीतरी और बाहरी। छोटे पैमाने पर केंचुआ खाद के उत्पादन के लिए भीतरी तरीका उपयुक्त है तो बड़े पैमाने पर पैदावार के लिए बाहरी तरीका ही सही है। भीतरी विधि में फल-सब्ज़ी के अवशेष, भूसा, दाने तथा फलियों के छिलके, पशुओं के मलमूत्र एवं खरपतवार जैसे कार्बनिक पदार्थों को छायादार क्षेत्र में रखा जाता है। तेज़ी से केंचुआ खाद बनाने के लिए इस कूड़ा-कड़कट पर पानी का पर्याप्त छिड़काव करके उसमें कुछ केंचुओं को छोड़ दिया जाता है। केंचुओं की संख्या कूड़े की कुल मात्रा पर निर्भर करती है। कम कुड़े में ज़्यादा केंचुए होंगे तो खाद अपेक्षाकृत जल्दी बनेगी, लेकिन ऐसी स्थिति में कूड़े का नया ढेर भी ज़रा जल्दी यानी 3-4 महीने के भीतर बनाया जाना चाहिए, वर्ना केंचुओं का पोषण और उनकी वंशवृद्धि की रफ़्तार घट जाएगी।
बाहरी तरीके के तहत केंचुआ खाद बनाने के लिए बाग़ीचों या खेत का इस्तेमाल करते हैं। किसानों के लिए खुले मैदान में केंचुआ पालन करके उससे जैविक खाद बनाने का एक सस्ता और आसान तरीका है। इसमें बेहद कम देख-रेख की ज़रूरत पड़ती है। इस विधि से सालाना 3 टन लेकर 3000 टन केंचुआ खाद तैयार की जाती है। बाहरी विधि के तहत केंचुआ पालन के लिए फ़सल की कटाई के बाद खाली खेत में एक फुट ऊँची मेढ़ बनाकर एक क्यारी तैयार करके उसमें आसपास मौजूद पत्तियों, डंडल, जड़ों, फलों वग़ैरह को गोबर की बराबर मात्रा के साथ मिलाकर भर दिया जाता है। इस मिश्रण में 60-75 प्रतिशत तक नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव करते हैं।
करीब 15-20 दिनों बाद जब ये कार्बनिक पदार्थ सड़ने लगे तब इसमें केंचुए डाले जाते हैं। इस विधि में यदि केंचुआ पालन वाली क्यारी पर छाया (मल्चिंग) का इन्तज़ाम हो जाए तो माहौल केंचुओं की वृद्धि के लिए बेहद अनुकूल हो जाता है। मल्चिंग के लिए प्लास्टिक की शीट से भी क्यारी को ढक सकते हैं। इससे अगले 3-4 महीनों में वंशवृद्धि की बदौलत जहाँ केंचुओं की संख्या काफ़ी बढ़ जाती है, वहीं पर्याप्त मात्रा में केंचुआ खाद भी तैयार हो जाती है। किसान चाहें तो ऐसी केंचुआ खाद में उसी खेत में बिखेरकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ा सकते हैं अथवा इन्हें थैलियों में भरकर बेच सकते हैं। खाद बेचने से पहले केंचुआ पालक अपने केंचुओं को खाद से निकाल लेते हैं और फिर इन्हें किसी अन्य कूड़े के ढेर में डाल देते हैं या फिर केंचुओं को बेचकर भी अपनी कमाई बढ़ा सकते हैं।

केंचुआ पालन से जुड़ी सावधानियाँ
जिन खेतों में केंचुआ पालन किया जाए वहाँ अधिक या गहरी जुताई-गुड़ाई से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि इससे केंचुओं की मौत हो सकती है। केंचुओं को कीटाणुनाशक दवाईयों, कैमिकल फ़र्टिलाइज़र्स, चूना, जिप्सम जैसे रासायनिक पदार्थों से नुकसान पहुँचता है। केंचुआ खाद उत्पादन के लिए बनाये गये कम्पोस्ट गड्ढे को भरने और उसमें केंचुओं को डालने के बाद एक लीटर पानी में 10 ग्राम हींग का घोल बनाकर क्यारी के चारों तरफ छिड़काव करने से केंचुओं को चीटियों के हमलों से बचाने में मदद मिलती है। केंचुआ खाद तैयार हो जाने के बाद यदि उससे केंचुओं को अलग करने में देरी होती है तो उनकी मौत होने लगती है और चींटियों का हमला बढ़ जाता है। लिहाज़ा, इन्हें यथाशीघ्र खाद से निकालकर नयी या अगली क्यारियों में डालना चाहिए।
क्यारी से केंचुआ खाद निकालने से 15-20 दिन पहले उस पर पानी का छिड़काव बन्द कर देना चाहिए और मल्चिंग या छाया को हटाकर हल्की पलटाई करनी चाहिए। इससे खाद का गीलापन घटता है तथा अन्धेरे की चाहत में केंचुए और नीचे की ओर सरक जाते हैं। इससे केंचुओं को खाद से अलग करना आसान हो जाता है। इसके बावजूद बचे-खुचे केंचुओं को जाली से छानकर ही केंचुआ खाद की पैकिंग करना चाहिए। छानते वक़्त उनके अंडों या छोटे शिशुओं का ख़ास ध्यान रखना चाहिए।

बेहद पोषक है केंचुए का स्राव
केंचुआ खाद निर्मित होने के बाद जब कम्पोस्ट क्यारी से सारी केंचुआ खाद और केंचुओं के निकाल लेते हैं तो आख़िर में जो गीला और चिपचिपा द्रव बच जाता है, उसे केंचुआ स्राव कहते हैं। ये स्राव भी भुरभुरी खाद की ही तरह पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसका छिड़काव सभी तरह की फ़सलों पर कर सकते हैं। केंचुआ स्राव में सात गुणा पानी मिलाकर इस घोल का छिड़काव करने से फ़सल की वृद्धि बढ़िया होती है और उस पर कीटाणुओं का प्रकोप काफ़ी घट जाता है।
कैसे करें केंचुआ खाद का इस्तेमाल?
हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िले में स्थित उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के मृदा एवं जल प्रबन्धन विभाग की सिफ़ारिश के अनुसार, केंचुआ खाद को खेतों या पौधशाला में 2-4 इंच की गहराई तक मिलाना चाहिए। फिर एक किलोग्राम केंचुआ खाद और दो लीटर पानी का घोल बनाकर इसमें रोपाई किये जाने वाले पौधों की जड़ों को डुबोकर रोपना चाहिए। गमलों में उगाये जाने वाले पौधों के लिए मिट्टी, देसी खाद, रेत और केंचुआ खाद को बराबर मात्रा में मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
सब्जी वाली फ़सलों के लिए प्रति बीघा 10 क्विंटल केंचुआ खाद को 50 क्विंटल देसी खाद का मिश्रण इस्तेमाल करना बेहद लाभकारी साबित होता है तो अन्य फसलों के लिए 1 क्विंटल केंचुआ खाद के साथ 10 क्विंटल देसी खाद या कम्पोस्ट का मिश्रण बेहतरीन नतीज़े देगा। फलदार पेड़ों के चारों ओर की मिट्टी की खुदाई करके वहाँ देसी खाद के साथ केंचुआ खाद का मिश्रण बराबर मात्रा में इस्तेमाल करने से भी बहुत अच्छी उपज मिलती है।
केंचुआ खाद के उत्पादन प्रक्रिया की टाइम लाइन
उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोनल के मृदा एवं जल प्रबन्धन विभाग ने केंचुए की खाद बनाने में दिलचस्पी रखने वाले किसानों की मदद के लिए पूरी प्रक्रिया की टाइम लाइन भी बनायी है।
वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिए केंचुओं की मुख्य नस्लें
सभी प्राणियों की तरह केंचुओं की भी अनेक नस्लें पायी जाती है। आम लोगों या किसानों के लिए इन नस्लों के फ़र्क़ कर पाना ख़ासा मुश्किल होता है। इसीलिए वर्मीकम्पोस्ट के व्यावसायिक उत्पादन की ओर बढ़ने से पहले कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से सलाह-मशविरा करना बहुत फ़ायदेमन्द रहता है। क्योंकि केंचुओं की कुछ नस्लें (जैसे आईसीनिया फीटीडा, आईसीनिया हाटरेनिन्सस और लुम्ब्रीकस रुबेलस) जहाँ ठंडे वातावरण के लिए उपयुक्त हैं तो वहीं ऐसी भी नस्लें (जैसे पैरियोनिक्स ईक्सकैवट्स) हैं जिन्हें गर्म वातावरण मुफ़ीद लगता है। लेकिन रोचक बात ये है कि कई नस्लें ऐसी भी हैं जिनके केंचुए हरेक मौसम में अपना काम बख़ूबी करते रहते हैं। जैसे, ‘युड्रीलस यूजेनी’ नस्ल के केंचुओं पर मौसम का ज़्यादा असर नहीं पड़ता। इसीलिए ये ठंडी और गर्म दोनों जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। इनके अलावा ‘डैन्ड्रोबीना रूबीडा’ नामक केंचुए भी एक ऐसी नस्ल है जो घोड़े की लीद और काग़ज़ की लुग्दी के कीचड़ या अपशिष्ट (paper sludge) को बहुत चाव से अपना भोजन बनाते हैं और इसे केंचुआ खाद के रूप में परिवर्तित करने में ख़ासे उपयोगी साबित होते हैं।
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