पवित्र जोशी की कहानी यहाँ सुनें –
भांग का नाम सुनते ही आपके दिमाग में पहली चीज़ क्या आती है? यकीनन तौर पर नशे वाला कोई पदार्थ, लेकिन ऐसा नहीं है। वैश्विक स्तर पर इसका इस्तेमाल कई प्रॉडक्ट्स बनाने में होता है। अल्मोड़ा, उत्तराखंड के रहने वाले पवित्र जोशी भी भांग को लेकर पैदा हुई भ्रांति को तोड़ने का काम कर रहे हैं। उनका स्टार्टअप ‘कुमाऊँ खंड’ भांग के कई प्रॉडक्ट्स तैयार करता है। भांग को ही क्यों चुना और कैसे भांग से खड़ा किया सोशल बिज़नेस मॉडल, इस पर पवित्र जोशी ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत की।
सामाजिक बदलाव की चाह में शुरू किया स्टार्टअप
पवित्र ने मुंबई के टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से सामाजिक उद्यमिता (Social Entrepreneurship) विषय में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री ली हुई है। पवित्र ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही एक प्रोजेक्ट पर काम करना होता था। ऐसा प्रोजेक्ट, जो समाज से जुड़ा हो और सामाजिक छाप छोड़े। समाज में बदलाव लाने का काम करे। पवित्र कहते हैं कि मूल रूप से पहाड़ का होने के नाते वो कोई ऐसा काम करना चाहते थे, जिससे पहाड़ के लोगों की जीवनशैली में बदलाव आये और रोज़गार के अवसर पैदा हों। 2018 में ही उत्तराखंड सरकार ने भांग की खेती को मंजूरी दी थी। इस दौरान ही पवित्र ने अल्मोड़ा से लेकर बागेश्वर तक फ़ील्ड सर्वे शुरू किया। उन्होंने शोध में पाया कि विदेशों में फ़ूड इंडस्ट्री से लेकर फैब्रिक इंडस्ट्री में भांग का इस्तेमाल हो रहा है। गाड़ी बनाने के लिए प्लास्टिक की जगह भांग के रेशे का इस्तेमाल होता है। इसके बीज से ईंधन भी बनाया जा रहा है। पवित्र कहते हैं कि पहाड़ों में तो भांग का पौधा बहुत होता है। इसकी खेती को मंजूरी भी मिली हुई है। इसलिए उन्होंने भांग से ही अपने सोशल बिज़नेस स्टार्टअप की शुरुआत की।

चार केटेगरी में हैं प्रॉडक्ट्स
कॉलेज में ही पवित्र ने अपने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी थी। एक साल तक पायलट प्रोजेक्ट चलाया और रिसर्च में लग गए। 2019 में भांग का नमक और हेम्प सीड ऑयल मार्केट में उतारा। पवित्र ने बताया कि उनके प्रॉडक्ट्स को अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इस तरह कई और प्रॉडक्ट्स उन्होंने बनाने शुरू किए। आज चार केटेगरी – फ़ूड, फैशन, कन्स्ट्रक्शन और पर्सनल एंड हेल्थ केयर में उनके प्रॉडक्ट्स बनते हैं। फ़ूड केटेगरी में हेम्प सीड ऑयल, भांग का नमक, प्रोटीन पाउडर, हेम्प हार्ट्स आते हैं। आगे चलकर हेम्प मक्खन (Hemp Butter) लाने पर भी काम चल रहा है।

फैशन केटेगरी में हेम्प टी-शर्ट्स और हेम्प मास्क हैं। भांग के पौधे से रेशा निकालकर उससे धागा तैयार करके टी-शर्ट्स और मास्क तैयार करते हैं।

कन्स्ट्रक्शन केटेगरी में होम स्टे तैयार किया गया है। पवित्र बताते हैं कि होम स्टे, भांग डंठल से बना होने के कारण इसमें दीमक नहीं लगता। आग और पानी का भी इस पर असर नहीं होता। इसे बनाने में लागत भी कम आती है। पवित्र कहते हैं कि उत्तराखंड एक पर्यटक स्थल है। यहां कन्स्ट्रक्शन केटेगरी में बहुत संभावनाएं हैं। पवित्र ने आगे कहा कि इस होम स्टे में आकर हेम्प से जुड़ी कई बातें पर्यटकों को जानने को मिलती हैं। हेम्प की प्रोसेसिंग से लेकर प्रॉडक्ट कैसे तैयार होते हैं, इसके बारे में लोगों को बताया जाता है।
इस बिजनेस मॉडल के ज़रिए पवित्र का मकसद लोगों को भांग के प्रति जागरूक करना भी है। पर्सनल एंड हेल्थ केयर में हेम्प का शैम्पू बार, क्रीम, बॉडी लोशन और सीबीडी ऑयल बनाते हैं। उन्होंने आयुर्वेद डॉक्टर से टाई-अप भी कर रखा है, जो प्रोडक्ट के मानकों को मापते हैं।

भांग की खेती के कई फ़ायदे
पवित्र ने बताया कि भांग का पौधा 14 से 20 फ़ीट की ऊंचाई तक जाता है। इसे बांस के पौधे की तरह ही देखें। जैसे बांस से कई प्रॉडक्ट्स तैयार किये जाते हैं, वैसे ही भांग से भी करीब 25 हज़ार से भी ज़्यादा प्रॉडक्ट्स बनाए जा सकते हैं। भांग के पौधे से निकलने वाला रेशा काफ़ी मजबूत होता है। इसकी खेती में पानी की कम खपत होती है। इसको जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते।

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कई किसानों को अपने साथ जोड़ा
कुमाऊँ खंड के साथ पिथौरागढ़, बागेश्वर और अल्मोड़ा ज़िले के करीबन 300 से ज़्यादा किसान जुड़े हैं। इनसे वो भांग की उपज खरीदते हैं। इसके अलावा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा और नैनीताल से 10 स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHG) भी उनके साथ जुड़े हैं।

प्रॉडक्ट्स की ख़ासियत
पवित्र बताते हैं कि भांग में ओमेगा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। वो जो प्रोटीन पाउडर तैयार करते हैं, उसके एक चम्मच में 10 ग्राम प्रोटीन होता है। इससे बनने वाला तेल शुगर को कंट्रोल करने में सहायक है। पाचन शक्ति को दुरुस्त करता है। इसके तेल को खाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। पवित्र जोशी बताते हैं कि उनके कई ग्राहक ऐसे हैं जो अब ऑलिव ऑयल की जगह हेम्प सीड ऑयल का इस्तेमाल कर रहे हैं।

भांग से जुड़ी कुछ अहम बातें
भांग और गांजा एक ही प्रजाति के पौधे से बनाए जाते हैं। ये प्रजाति नर और मादा के रूप में विभाजित की जाती है। इसमें नर प्रजाति से भांग बनती है और मादा प्रजाति से गांजा बनता है। दोनों जिस पौधे से बनते हैं, उसे कैनाबिस (Cannabis) कहते हैं।
भारत में आमतौर पर, ज़्यादातर राज्यों में भांग की खेती करना प्रतिबंधित है। 1985 में भारत सरकार ने नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत भांग की खेती करना प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन इस अधिनियम के तहत राज्य सरकारों को औद्योगिक अथवा बागवानी उद्देश्यों के लिए भांग की अनियंत्रित और विनियमित खेती करने की अनुमति है।
उत्तराखंड में भांग की खेती वैध है। 2018 में राज्य सरकार ने भांग की खेती करने की अनुमति प्रदान कर दी थी। तब से यहां पर नियंत्रित और विनियमित तरीके से भांग की खेती की जाती है। उत्तराखंड सरकार औद्योगिक हेम्प की खेती को एक बिजनेस मॉडल के रूप में बढ़ावा दे रही है।
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