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कृषि-वोल्टीय प्रणाली को एग्री-वोल्टाइक प्रणाली (Agri-Voltaic System-Agricultural Voltage Technology) या सौर-खेती (Solar Farming) के नाम से भी जाना जाता है। ये एक ऐसी तकनीक है, जिसमें किसान अपने खेतों में फसल (ख़ासतौर पर नकदी फसल) के उत्पादन के साथ-साथ बिजली का भी उत्पादन (Electricity Production) करते हैं। फोटो-वोल्टाइक तकनीक (PV) के तहत एक कृषि योग्य भूमि में बिजली उत्पादन के लिए फसल उत्पादन के साथ-साथ सौर-उर्जा पैनल स्थापित किये जाते हैं।
सौर ऊर्जा से किसानों की आमदनी बढ़े और इसका असर खेती पर न हो, इसके लिए ऐसी तकनीक ज़रूरी थी जिससे कि दोनों ही काम साथ-साथ हो सकें। आमतौर पर जिस ज़मीन पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं, वहां खेती नहीं हो सकती। इस समस्या को दूर करने के लिए जोधपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ने कृषि-वोल्टीय प्रणाली विकसित की है। इससे किसान दोनों काम के लिए अपने खेत का इस्तेमाल कर सकते हैं यानि सोलर एनर्जी पैदा करने के साथ ही फसल उगाकर वो अच्छी कमाई कर सकते हैं।
क्या है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)?
खेती योग्य किसी ज़मीन पर अगर सोलर पैनल लगाया जाता है तो वहां पर्याप्त धूप खेतों तक नहीं पहुंच पाती हैं। इससे फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों के सामने बीच का रास्ता निकालना एक चुनौती थी। किसानों की समस्या हल करने के लिए ही उन्होंने कृषि-वोल्टीय प्रणाली विकसित की, जिससे खेती और बिजली उत्पादन एक साथ करना संभव है।
दरअसल, सोलर पैनल वाले पूरे ढांचे को ‘फोटोवोल्टिक मॉड्यूल’ (Photovoltaic Module) कहते हैं। ये सौर ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है और खेत में लगाने पर इसकी छाया सूरज की दिशा के मुताबिक बदलती रहती है। कृषि वोल्टीय प्रणाली में ‘फोटोवोल्टिक मॉड्यूल’ को हल्के स्टील या लोहे के एंगल के बने ख़ास ढांचे पर ज़मीन से एक तय ऊंचाई पर इस तरह फिट करते हैं, जिससे सोलर पैनल का झुकाव ज़मीन की सतह से 26 डिग्री के कोण पर रहे। ताकि उसके नीचे भी फसल उगाई जा सके।
कृषि वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती) के 3 डिज़ाइनस
वैज्ञानिकों ने कृषि वोल्टीय प्रणाली यानि सौर खेती के तीन डिज़ाइनस तैयार किए हैं। उन्होंने 68×68 वर्ग मीटर की कुल जगह में 28×28 वर्ग मीटर के ब्लॉक बनाए। इसके तहत तीन कतारें बनाई गईं। पहली में दो कतारों के बीच का फ़ासला 3 मीटर, दूसरी में 6 मीटर और तीसरी में 9 मीटर रखा गया। इन तीनों ब्लॉक में दो तरह की संरचनाएं (Structures) बनाई गई हैं।
कृषि वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती): उगाई जा सकती हैं ये फसलें
कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि वोल्टीय प्रणाली के तहत अलग-अलग मौसम के लिए उपयुक्त फसलों का भी चुनाव किया है। बरसात या खरीफ़ के मौसम में मूंग, मोठ और ग्वार की फसल और रबी की सिंचित फसलों के रूप में ईसबगोल, जीरा और चने की खेती की जा सकती है। इसके अलावा, ग्वारपाठा जैसे औषधीय पौधे, बैंगन, पालक और ककड़ी जैसी सब्जियां भी साल के अलग-अलग समय में उगाई जा सकती हैं। फोटोवोल्टिक मॉड्यूल के नीचे उगाने के लिए शुष्क जलवायु वाली लेमन घास और पामे रोजा जैसी सुगंधित घास भी अच्छा विकल्प है।
खेत में ही लगाए हैं सोलर पैनल
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के रहने वाले योगेश जैन 2009 से जैविक खेती कर रहे हैं। 20 एकड़ के बाग में उन्होंने कई तरह के -सब्जियों के पेड़ लगा रखे हैं। योगेश जैन दाल और मसालों की खेती भी करते हैं।
योगेश जैन ने फलों में केला, अमरूद, आंवला, मौसमी, अंजीर, नींबू, थाई पिंक अमरूद के पेड़ अपने बाग में लगा रखे हैं। योगेश जैन ने खेती में कई प्रयोग भी किये हैं जिससे क्षेत्र के कई किसानों को मदद भी मिल रही है। इसी बाग में उन्होंने सोलर प्लांट भी लगवा रखा है।
कैसे सौर बिजली बेचने से अतिरिक्त कमाई?
फोटोवोल्टिक मॉड्यूल से पैदा हुई बिजली को ‘नेट मीटरिंग सिस्टम’ के तहत स्थानीय विद्युत ग्रिड से जोड़ा गया है। उत्पादित बिजली को सीधा राज्य बिजली बोर्ड की निश्चित दरों पर बेचा जा रहा है। ये दरे भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। हालांकि, कृषि वोल्टीय प्रणाली से उत्पादित बिजली से हुई आमदनी की गणना, 5 रुपये प्रति किलोवॉट की औसत दर से की जाती है।
जोधपुर में बिजली उत्पादन के लिए धूप औसतन 4-5 घंटे रोज़ाना मिलती है। लिहाज़ा, 1 किलोवॉट वाला फोटोवोल्टिक सिस्टम रोज़ाना 4-5 किलोवॉट घंटा (यूनिट) बिजली पैदा करता है। 105 किलोवॉट के जोधपुर स्थित कृषि वोल्टीय प्रणाली में कम से कम 400 यूनिट बिजली पैदा हो सकती है। 2020 में बिजली उत्पादन का औसत 353 यूनिट प्रति माह रहा। यानी, सालाना उत्पादन 1,29,266 यूनिट का, जिसका मूल्य 6,46,330 रुपये है। इस तरह सोलर बिजली बेचकर किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
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