ग्वार गम के निर्यात से कैसे किसानों को हो सकता है लाभ, जानिए ग्वार की खेती की तकनीक
ग्वार जानवरों और इंसानों के लिए प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है
बाज़ार में बाकी सब्ज़ियों के साथ ही आपने ग्वार फली भी देखी होगी। इसका स्वाद हल्का सा कसैला या कड़वा होता है, जिसकी वजह से बहुत से लोगों को इसका स्वाद पसंद नहीं आता। दलहनी फसल ग्वार की खेती, चारा, सब्ज़ी के साथ ही ग्वार गम बनाने के लिए भी की जाती है।
ग्वार गम (Guar Gum): ग्वार फली जिसे क्लस्टर बीन्स भी कहा जाता है, सेहतमंद सब्ज़ी है। राजस्थान में इसका उत्पादन सबसे अधिक होता है, इसलिए वहां इसकी सब्ज़ी भी ज़्यादा बनती है। इसका स्वाद भले ही थोड़ा कड़वा होता है, मगर ये बहुत सेहतमंद होती है। ग्वार फली खाने से कई बीमारियों को दूर रखा जा सकता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन के, सी, ए, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम और घुलनशील फाइबर होता है। ग्वार प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है।
पशुओं में प्रोटीन की कमी दूर करने के लिए उन्हें ग्वार हरे चारे या दाने के रूप में दिया जाता है। ग्वार के बीज और ग्वार गम (Guar Gum) का इस्तेमाल कई उद्योगों में भी किया जाता है और बड़ी मात्रा में ग्वार गम को निर्यात भी किया जाता है, इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
ग्वार की खेती के लिए मिट्टी
ग्वार की खेती रेतिली मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। इसका पौधा सूखा प्रतिरोधी है, यानी कम पानी में भी ये अच्छी उपज देता है। अर्ध्दशुष्क इलाकों में भी ये अच्छी तरह पनप सकता है। लवणीय और क्षारीय मिट्टी में भी ग्वार की खेती की जा सकती है।

कैसे करें बुवाई?
बीजो को लगाने के लिए ड्रिल या छिड़काव विधि का इस्तेमाल किया जा सकता है। छिड़काव विधि में बीजों को खेत में छिड़ककर हल्का पाटा लगाकर चला दिया जाता है। इससे बीज खेत में कुछ गहराई में चला जाता है। जबकि ड्रिल विधि में बीजो को पंक्तियो में लगाया जाता है। ग्वार के बीजो की बुवाई जुलाई-अगस्त में की जाती है और अक्टूबर-नवंबर में फसल की कटाई कर ली जाती है। ग्वार दलहनी फसल है इसलिए ये मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती है और मिट्टी को उपजाऊ बनाती है।
क्या है ग्वार गम?
ये ग्वार की फलियों का अर्क है। ग्वार गम निकालने के लिए ग्वार के बीजों को छीलकर व पीसकर छान लिया जाता है। ये आमतौर पर पीला, मोटे से महीन पाउडर के रूप में प्राप्त होता है। कच्चा ग्वार गम भूरे रंग का पाउडर होता है जो 90 प्रतिशत पानी में घुल जाता है। ग्वार गम एंडोस्पर्म से उत्पन्न होता है। ग्वार गम को ग्वारन, गोमा ग्वार, गोमे ग्वार और गैलेक्टोमैनन भी कहा जाता है। इसके कुल उत्पादन का 75 से 80 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। ग्वार गम में फाइबर और खनिज के साथ ही मोनोगैलेक्टोज के पॉली समूह होते हैं।
ग्वार गम के उपयोग
इसका इस्तेमाल आमतौर पर भोजन व कपड़ा उद्योग में किया जाता है। इसका 90 प्रतिशत हिस्सा तो निर्यात किया जाता है जिसकी मांग शेल गैस और तेल उद्योग में है। ग्वार गम संशोधित या असंशोधित हो सकता है। इसका उपयोग तेल ड्रिलिंग, कपड़ा छपाई, मानव भोजन और पालतू पशु भोजन, कागज, विस्फोटक, जल उपचार आदि में किया जाता है।

सबसे ज़्यादा ग्वार का उत्पादन
भारत में हर साल 6 लाख टन ग्वार का उत्पादन होता है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। राज्यों की बात करें तो राजस्थान ग्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। देश के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत अकेले राजस्थान में होता है। इसके अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में भी ग्वार की खेती की जाती है।
ग्वार गम के फ़ायदे
- इसमें जेल बनाने का गुण होता है जिसकी वजह से ये कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज कम करने में सहायक है। साथ ही ये मोटापा और वज़न घटाने में भी मददगार है।
- ग्वार गम के पूरक आहार से भूख में कमी आती है।
- डायट्री फाइबर के रूप में इसके इस्तेमाल से डायबिटीज़ पर नियंत्रण, खनिज अवशोषण, कब्ज़ और पाचन समस्याओं से निजात मिलती है।
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