एक तरफ़ दुनिया की बढ़ती आबादी के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना, वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव पड़ना, भारत के लिए चिंता के विषय हैं। 16 जूलाई को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 93वें स्थापना दिवस पर कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी इसी पर चिंता ज़ाहिर की। उन्होंने कहा था कि अब जलवायु परिवर्तन के अनुसार शोध करने होंगे, जिससे कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव को रोका जा सके।
जलवायु परिवर्तन का कृषि से जुड़े कार्यों पर क्या असर पड़ रहा है, इसको लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनामी डीविज़न के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह और केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एच.एस. सिंह से ख़ास बातचीत की।
अधिक तापमान के कारण गेहूं के उत्पादन में आई कमी
इस साल जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव भारतीय किसानों ने प्रत्यक्ष रूप से गेहूं और आम की पैदावार में आई कमी से अनुभव किया। उत्तर भारत में गेहूं और आम की बागवानी करने वाले किसान का कहना है कि इस साल तापमान में अचानक बढोत्तरी, गर्मी और उमस के कारण आम के उत्पादन में 50 से 60 फ़ीसदी और गेहूं में 15 फ़ीसदी तक की गिरावट हुई।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गेहूं का उत्पादन होता है, लेकिन इस साल तापमान के अचानक बढोत्तरी से दो दशकों में गेहूं के उत्पादन में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है।

इस साल मार्च-अप्रैल में मई की तरह गर्मी
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, मार्च के महीने में न्यूनतम तापमान 16 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस रहता है। जबकि इस साल न्यूनतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 39 डिग्री सेल्सियस रहा। मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तरह का तापमान अप्रैल और मई के महीने में रहता हैं। इस साल उत्तर भारत में मार्च के महीने में ही अप्रैल-मई की तरह गर्म था और देश के कई हिस्सों में तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया था।
गेहूं की दाने बनने की अवस्था पर बढ़ा तापमान, हुआ नुकसान
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनामी डीविज़न के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि अचानक आई भीषण गर्मी से गेहूं की फसल को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।मार्च के महीने गेहूं की फसल दुधिया अवस्था पर थी। अधिक तापमान के कारण इस अवस्था में दाने सिकुड़ गए। सिकुड़ने की वजह से दाने छोटे रह गए, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ा और किसानों को हर साल की तुलना कम उपज मिली।
आम की पैदावार में भी आई कमी
इसी तरह आम की पैदावार पर भी जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिला। लखनऊ स्थित केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एच.एस. सिंह ने बताया कि आम के फूल निकलने के समय और फ्रूट सेटिंग के वक्त एक निश्चित तापमान का रहना ज़रूरी है। डॉ. सिंह ने बताया कि आम में फूल निकलने और परागण के लिए 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department, IMD) के अनुसार, देशभर में मार्च 2022 में दर्ज किया गया औसतन अधिकतम तापमान 33.10 डिग्री सेल्सियस रहा, जो पिछले 122 वर्षों में सबसे अधिक है। मार्च 2010 में देश का अधिकतम तापमान 33.09 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। इसके बाद हीटवेव के कारण आम में परागण की क्रिया काफी प्रभावित हुई। डॉ. एच.एस. सिंह ने आगे बताया कि जिन पौधे में पहले फूल आ गये थे और परागण क्रिया तापमान बढ़ने के पहले ही शुरू हो गई, उन आम के पेड़ो में ही अच्छी तरह से फल लग पाए।
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जलवायु परिवर्तन के कारण 4.5 से 9 फ़ीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ग्लोबल हैं, लेकिन भारत जैसे देश में बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए यहाँ स्थिति अधिक संवेदनशील हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेशनल इनोवेशन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर परियोजना (National Initiative on Climate Resilient Agriculture, NICRA) के अनुसार, भारत में 2010 से लेकर 2039 तक जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि में नकरात्मक प्रभावों का आंकलन किया गया है। इस आंकलन में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण फसलों की पैदावार में 4.5 से 9 फ़ीसदी तक कमी होने का अनुमान लगाया गया था।
चूंकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग कृषि 16 प्रतिशत है, इस तरह उत्पादन पर 4.5 से 9 फ़ीसदी नकारात्मक प्रभाव का अर्थ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रति साल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.5 फ़ीसदी तक नुकसान होना है। भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अनुसंधान और विकास को उच्च प्राथमिकता दी है। जलवायु परिवर्तन पर प्रधान मंत्री की राष्ट्रीय कार्य योजना ने कृषि को आठ राष्ट्रीय मिशनों में से एक के रूप में पहचाना है।
जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव कम करने के लिए NICRA परियोजना के तहत हो रहा काम
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की नेशनल इनोवेशन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर परियोजना (NICRA) के तहत जलवायु परिवर्तन के नकारत्मक प्रभावों को कम करने के लिए फसलों, पशुधन और मत्स्य पालन के लिए उन्नत तकनीकों को विकसित करना है।वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के अनुसार जो तकनीकें विकसित हुई है, उनको किसानों के खेतों तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
इस परियोजना के तहत कृषि वैज्ञानिकों और किसानों की क्षमता में विकास करना है। इस परियोजना में फसलों, बागवानी, पशुधन, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों को कवर करने के लिए आईसीएआर के प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में एक नेटवर्क मोड में रणनीतिक अनुसंधान की योजना बनाई गई है।
इस परियोजना के अंतर्गत पहले चरण में गेहूं, चावल, मक्का, अरहर, मूंगफली, टमाटर, आम और केले जैसी फसलों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। साथ ही पशुपालन और मछली की उन्नत नस्लों और प्रजातियों पर शोध कार्य भी चल रहा है।
किस्मों और तकनीकों पर हो रही रिसर्च, क्या है शोध का उद्देश्य?
- रिसर्च के तहत प्रमुख खाद्य फसलों और बागवानी फसलों में सूखा, गर्मी, पाला, बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने में कारगर किस्मों का आंकलन करना है।
- फसलों पर ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव की लगातार निगरानी रखना।
- संरक्षण कृषि को बढ़ाकर अनुकूल रणनीतियों का विकास करना।
- बदलते मौसम के तहत कीटों और रोगों के प्रभावों का अध्ययन करना।
- पशुधन में पोषण और पर्यावरणीय जोड़-तोड़ के माध्यम से अनुकूलन रणनीतियां बनाना।
- मछलियों के स्पॉनिंग व्यवहार की बेहतर समझ कर मीठे जल और समुद्री मत्स्य पालन में तापमान के लाभकारी प्रभावों का उपयोग करना।
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