मालाबार नीम की खेती: हमारे देश में बहुत से ऐसे पेड़-पौधे हैं जिसमें न सिर्फ औषधीय गुण है, बल्कि उसकी लकड़ी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने से लेकर ईंधन के रूप में किया जाता है और ऐसे पेड़-पौधे लगाकर किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। मगर अफसोस की किसानों को इन पेड़-पौधों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, जिससे उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता।
औषधिय गुणों वाला ऐसा ही एक बहुपयोगी पौधा है मिलिया दुबिया (Melia dubia) जिसे मालाबार नीम, घोड़ा नीम और महानीम आदि नाम से जाना जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसे पूरे देश में उगाया जा सकता है, क्योंकि ये गर्मी से लेकर ठंडी जलवायु तक में आसानी से उग जाता है। मिलिया दुबिया की खेती किसानों के लिए कैसे फायदेमंद हो सकती है आइए, जानते हैं।
मिलिया दुबिया के उपयोग
मिलिया दुबिया एक बहुपयोगी पौधा है। इसकी पत्तियां पशुओं को खिलाने के काम आती है, जबकि इसकी लकड़ी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने से लेकर अन्य सामान बनाने तक और निर्माण कार्यों में भी किया जाता है।
गांवों में आज भी ईंधन के रूप में लकड़ी जलाई जाती है, मिलिया दुबिया की लकड़ी का ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। मिलिया दुबिया औषधीय गुणों से भरपूर है और इसकी पत्तियां नीम की तरह ही दिखती हैं। इसका उपयोग वायरस से होने वाली त्वचा, पेट, आंखों की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियों में किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने की क्षमता होती है।
![मालाबार नीम की खेती](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2023/04/Malabar-Neem-Farming-1.jpg)
क्या है इसकी खासियत
मिलिया दुबिया की खेती किसानों के लिए हर तरह से फायदेमंद होगी। इसकी लकड़ी बेचकर, पशु चारे के रूप में पत्तों का इस्तेमाल करने के साथ ही कीटनाशकों पर होने वाला उनका खर्च भी बच जाएगा। दरअसल, मिलिया दुबिया को दूसरी फसलों के साथ भी उगाया जा सकता है और जब इसके पत्ते दूसरी फसलों पर गिरते हैं तो बीमारी का प्रकोप कम हो जाता है, क्योंकि यह कीटनाशक का काम करता है।
यही नहीं यह प्राकृतिक पॉली हाऊस का भी काम करता है। इसका पौधा हर महीने लगभग 1 फीट तक बढ़ता है और इसकी लंबाई 3 साल में लगभग 36 फीट तक हो जाती है। मिलिया दुबिया 5 से 6 साल में तैयार हो जाता है।
मिट्टी और जलवायु
वैसे तो मिलिया दुबिया की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन इसकी अच्छी पैदावार के लिए सूखी लाल, लाल दोमट, जलोढ़ और काली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के अच्छे विकास के लिए 30-35 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है, लेकिन 0 से 45 डिग्री तापमान तक में इसकी खेती की जा सकती है।
![मालाबार नीम की खेती - Malabar Neem Cultivation](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2023/02/f.jpg)
खेत की तैयारी और रोपाई
मालाबार नीम की रोपाई से पहले खेत की 2-3 बार अच्छी तरह जुताई कर लें। इसकी सीधी बुवाई के बजाय नर्सरी में पौधे तैयार किए जाते हैं और 6-8 माह होने के बाद इन पौधों की खेत में गड्ढा खोदकर रोपाई की जाती है। नर्सरी में बीज लगाने से पहले उन्हें 24 घंटे गोबर के घोल में डालकर उपचारित किया जाता है। मॉनसून में इसकी रोपाई करना सबसे उपयुक्त होता है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
वैसे तो इसके पौधों कम पानी में भी उग जाते हैं, लेकिन पौधों के अच्छे विकास के लिए नियमित सिंचाई करनी चाहिए। मॉनसून के समय सिंचाई की ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन सामान्य मौसम में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। साथ ही समय-समय पर निराई-गुड़ाई भी करें। इससे बिना गांठ वाली लकड़ी प्राप्त करने के लिए पौधों के 2-3 मीटर तक होने के बाद साइड से छंटाई भी की जानी चाहिए।
कितना होता है उत्पादन
मालाबार नीम का उत्पादन इस बात पर निर्भर करता है कि पेड़ों को कितनी सघनता से लगाया गया है। अधिक सघन लगाने पर 3-5 साल में 60-100 टन प्रति एकड़ लकड़ी का उत्पादन होता है। इसकी लकड़ियों को किसान बाज़ार में या ऑनलाइन बेचकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
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