क्विनोआ या क्विनवा या किनोवा, मूलतः एक दक्षिण अमेरकी अनाज है। ये महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर है। लेकिन चावल, गेहूँ, जौ, मक्का, बाजरा, जई जैसे परम्परागत अनाजों के मुकाबले देश में अभी बहुत कम किसान और उपभोक्ता ही क्विनोआ के बारे में जानते हैं। इसीलिए देश में अभी क्विनोआ की खेती, माँग और बाज़ार ज़रा सीमित है। लेकिन भारत में इसके विस्तार की बहुत सम्भावना है। क्योंकि इसकी खेती शुष्क, बारानी इलाकों और कम उपजाऊ मिट्टी में भी आसानी से हो सकती है। यह जलभराव, सूखापीड़ित, अम्लीय और क्षारीय मिट्टी में भी अच्छी पैदावार देती है। बाज़ार में इसका दाम 300 से 1000 रुपये प्रति किलोग्राम तक है।

क्विनोआ का स्वाद
क्विनोआ के छिलकों में मौजूद ‘सैपोनिन’ नामक पदार्थ के कारण इसका स्वाद हल्का कड़वा होता है। इसीलिए बाज़ार में बेचने से पहले इसके छिलकों को खाद्य प्रसंस्करण से हटा देते हैं। लेकिन कड़वे छिलकों के कारण क्विनोआ की फसल को पक्षी नुकसान नहीं पहुँचाते। यह पाले और सूखे की मार को भी बहुत आसानी से झेल लेता है। क्विनोआ में रोगों और कीटों से लड़ने ज़बरदस्त क्षमता है। ये इसे जैविक खेती के लिए सरल विकल्प बनाती है।
वैश्विक स्तर पर इस अनाज की तेज़ी से बढ़ती माँग की बड़ी वजह से क्विनोआ का प्रोटीन, लिपिड, फ़ाइबर और मिनरल से भरपूर होना है। देश के शहरों में क्विनोआ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है।
फ़िलहाल, देश में करीब 5 करोड़ रुपये के क्विनोआ का आयात हो रहा है। इसमें इंसान के लिए ज़रूरी सभी 9 अमीनो अम्ल का बेहतरीन सन्तुलन पाया जाता है। क्विनोआ में पोषक तत्वों की उच्च मात्रा और इसका उत्तम स्वाद इसे बाज़ार में एक अच्छे और महत्वपूर्ण अनाज के रूप में स्थापित करने की क्षमता रखता है।
इसीलिए भारतीय खेती में क्विनोआ के लिए अपार सम्भावनाएँ हैं। क्विनोआ को वैकल्पिक फसल के रूप में अपनाकर भी शानदार मुनाफ़ा कमा सकते हैं। लिहाज़ा, यदि वैज्ञानिक विधि से क्विनोआ की खेती और प्रसंस्करण हो तो किसानों को इससे काफ़ी अच्छी आमदनी हो सकती है।
क्विनोआ का परिचय
क्विनोआ का मूल स्थान दक्षिण अमेरिका की एंडीज पर्वतमाला है। इसका वानस्पतिक नाम चेनोपोडियम क्विनोआ है। आनुवांशिक विविधता से भरपूर होने की वजह से इसे न सिर्फ़ अनेक जलवायु में उगा सकते हैं बल्कि आनुवांशिक तकनीकों से इसकी क्षेत्र विशेष के अनुकूल किस्में भी विकसित हो सकती हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने क्विनोआ की खेती को बढ़ावा देने की सिफ़ारिश की है। क्योंकि खेती के लिए पानी की कमी एक वैश्विक चुनौती है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत पर भी कम बारिश और सूखे की मार लगातार बढ़ रही है, क्योंकि हमारी तो 60 प्रतिशत खेती अब भी बारानी यानी वर्षा पर निर्भर ही है, जबकि 40 प्रतिशत भारतीय और 60 प्रतिशत हमारा पशुधन ऐसी ही जलवायु पर निर्भर है। इसीलिए ICAR-राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रैस प्रबन्धन संस्थान, पुणे के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 21वीं सदी के अन्त भारत को अपनी बढ़ती आबादी को पर्याप्त भोजन मुहैया करवाना है, तो हमें ऐसी फसलें का उत्तम उत्पादन करना होगा जो प्रतिकूल दशा में भी हमें खाद्य सुरक्षा दे सकें।
क्विनोआ की वैज्ञानिक खेती
मिट्टी: क्विनोआ फसल को मुख्यतः बलुआ, दोमट और मुर्रम मिट्टी में उगाया जाता है। मुर्रम मिट्टी से बड़े कंकड़ और पत्थरों को निकालकर वहाँ गोबर खाद का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि शुरुआ 8-10 दिनों तक खेत में नमी बरकरार रहे। दक्षिण अमेरिकी देशों में क्विनोआ को कम उपजाऊ खेतों में उगाते हैं क्योंकि इसमें मिट्टी और जलवायु की विषम परिस्थितियों को बर्दाश्त करने की क्षमता है।
जलवायु: क्विनोआ के लिए छोटे दिन और 18 से 20 डिग्री सेल्सियस वाला ठंडा तापमान उपयुक्त होता है। ये शून्य से 8 डिग्री नीचे से लेकर 36 डिग्री सेल्सियस तक की गरम जलवायु को भी आसानी से सहन कर सकता है। लेकिन यदि तापमान 36 डिग्री से ज़्यादा हो तो पौधों में बीज बनने की प्रक्रिया बाधित होती है और पैदावार घट जाती है। इसलिए भारत में क्विनोआ को रबी सीज़न में उगाते हैं।
खेत की तैयारी: क्विनोआ की ज़्यादा पैदावार लेने के लिए बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवाएँ। बुआई से 10 से 15 दिन पहले 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालना चाहिए। फिर अच्छी तरह जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए तथा खेत में मेड़ बनाकर उस पर बीज बोने चाहिए, ताकि जलजमाव से फसल को नुकसान नहीं हो। अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल भी बहुत फ़ायदेमन्द रहता है। लेकिन प्रति एकड़ 60 किलोग्राम से ज़्यादा नाइट्रोजन नहीं डालना चाहिए। इससे फसल में लॉजिंग की समस्या होने से बढ़वार सुस्त और पैदावार घट जाती है।
बीज दर और बुआई: क्विनोआ की अच्छी पैदावार के लिए 500 से 750 ग्राम प्रति एकड़ की बीज दर होनी चाहिए। यदि मिट्टी कम उपजाऊ है और जलवायु भी चुनौतीपूर्ण है, तो बीज दर को दोगुना कर देना चाहिए। बुआई के दो-तीन दिन पहले खेत की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि अंकुरण आसानी से हो सके। क्विनोआ के बीज बहुत छोटे होते हैं इसलिए इन्हें बीज को 2 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। ज़्यादा गहराई या सतह पर बुआई करने से अंकुरण प्रभावित होता है। बढ़िया अंकुरण के लिए बीज को 1:13 के रूप में बालू के साथ अच्छी तरह से मिलाकर पंक्तियों में बुआई करनी चाहिए।
गुड़ाई-निराई और खरपतवार नियंत्रण: बुआई के अंकुरित हुए पौधे जब 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँचे हों तो उनके बीच की दूरी भी 10 से 15 सेंटीमीटर की बना लेनी चाहिए। ऐसा करते वक़्त यदि क्विनोआ के फ़ालतू पौधे आड़े आएँ तो उन्हें हटा देना चाहिए, ताकि पूरी फसल का समुचित विकास हो सके। पौधे जब बहुत छोटे होते हैं, तब खरपतवार इन्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं। इन्हें निराई-गुड़ाई से निकाल देना चाहिए। लेकिन क्विनोआ के पौधों वयस्क हो जाते हैं तब खरपतवारों से फसल को कोई ख़ास नुकसान नहीं पहुँचता।
सिंचाई: क्विनोआ की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि ये कम पानी की दशा में भी अपना अच्छा विकास कर लेती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि क्विनोआ को यदि 50 प्रतिशत पानी भी कम मिले तो उसकी पैदावार में सिर्फ़ 18 से 20 प्रतिशत की कमी आती है। ज़्यादा सिंचाई से पौधों की लम्बाई तो बढ़ती है, लेकिन पैदावार पर ख़ास असर नहीं पड़ता। अलबत्ता, ज़्यादा सिंचाई से पौधों में कीटों और ‘डैपिंग ऑफ़’ जैसे रोग का ख़तरा बढ़ जाता है। सामान्यत: बुआई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए। फसल पकने तक क्विनोआ को दो-तीन सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है।
कटाई: क्विनोआ की फसल सामान्यत: 100 दिनों में तैयार होती है। पूरी तरह विकसित फसल के पौधों की ऊँचाई 4-5 फीट तक होती है। इसके बीज ज्वार के बीजों जैसे होते हैं। फसल पकने पर इनका रंग पीला या लाल हो जाता है और पत्तियाँ झड़ जाती हैं। बालियों को हाथ से मसलने पर इनके बीज आसानी से अलग हो जाते हैं। फसल की कटाई के समय यदि बारिश हो जाए तो पके हुए बीजों के महज 24 घंटे के भीतर अंकुरित होने का ख़तरा पैदा हो जाता है। इसीलिए फसल पकते ही कटाई कर लेनी चाहिए।
उपज: वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यदि क्विनोआ की बुआई दिसम्बर के मध्य में की जाए तो इसकी पैदावार महीने भर पहले नवम्बर के मध्य में हुई बुआई के मुकाबले ज़्यादा मिलती है। कटी हुई बालियों को पीटकर और फैनिंग मिल की सहायता से दाने को भूसे को भूसे से अलग करते हैं। इस प्रक्रिया को ओसाना कहते हैं। इसमें टूटी हुई बालियों को बर्तन में रखकर हवा के माध्यम से दाने और भूसे से अलग कया जाता है। इस काम को और अच्छे से करने के लिए पहले बालियों को छोटे ट्रैक्टर के नीचे कुचला जाता है, उसके बाद फैनिंग मशीन का इस्तेमाल करते हैं।
भंडारण: क्विनोआ के बीजों को अच्छे से सुखाकर और खाद्य प्रसंस्करण के ज़रिये उसके खोल को हटाकर ही भंडारण करना चाहिए। क्योंकि बीजों के खोल में स्पॉनिन की मात्रा ज़्यादा होती जो सेहत के लिए हानिकारक होता है। इसे हटाने के लिए राइस पॉलिशिंग मशीनों का प्रयोग कर सकते हैं। वैसे बाज़ार में क्विनोआ के प्रसंस्करण के लिए ख़ास मशीनें उपलब्ध हैं। हालाँकि, इनका ज़्यादातर इस्तेमाल क्विनोआ से बनने वाले उत्पादों के लिए होता है। यदि पंचायत स्तर पर क्विनोआ के प्रसंस्करण की व्यवस्था हो, ताकि किसानों की लागत घटती है।
क्विनोआ की अद्भुत ख़ूबियाँ
भारत ही नहीं, दुनिया के सूखा आशंकित इलाकों के किसानों के लिए क्विनोआ की खेती करना आसान और बेहद लाभकारी है। इसकी लागत कम और कमाई बढ़िया है। कम पानी, कम उपजाऊ मिट्टी, कीट-रोग के ख़तरों से रहित, प्रतिकूल जलवायु और कम समय में पकने तथा अच्छी पैदावार देने वाली ख़ूबियाँ जहाँ किसानों के लिए उत्साहवर्धक हैं, वहीं उपभोक्ताओं के लिहाज़ से देखें तो उन्हें क्विनोआ में पाये जाने वाले पोषक तत्व खूब आकर्षित करते हैं।
क्विनोआ के पोषक तत्वों की तुलना (प्रतिशत शुष्क वजन) | ||||||
फसल | पानी | प्रोटीन | वसा | कार्बोहाइड्रेट | फाइबर | एश |
क्विनोआ | 12.6 | 13.8 | 5.0 | 59.7 | 4.1 | 3.4 |
जौ | 9.0 | 14.7 | 1.1 | 67.8 | 2.0 | 5.5 |
मक्का | 13.5 | 8.7 | 3.9 | 70.9 | 1.7 | 1.2 |
बाजरा | 11.0 | 11.9 | 4.0 | 68.6 | 2.0 | 2.0 |
जई | 13.5 | 11.1 | 4.6 | 57.6 | 0.3 | 2.9 |
चावल | 11.0 | 7.3 | 0.4 | 80.4 | 0.4 | 0.5 |
राई | 13.5 | 11.5 | 1.2 | 69.6 | 2.6 | 1.5 |
गेहूँ | 10.9 | 13.0 | 1.6 | 70.0 | 2.7 | 1.8 |
क्विनोआ से बनने वाले उत्पाद: क्विनोआ के साबुत दाने, पत्तियों और आटे को विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। क्विनोआ से चटनी, सलाद, अचार, सूप, पेस्ट्री, मिठाई, ब्रेड, बिस्कुट, केक और अनेक पेय बनाये जाते हैं। ये 2-4 घंटे में ही अंकुरित हो जाते हैं, इसलिए इसका अंकुरित अनाज की तरह भी उपयोग हो सकता है। क्विनोआ के पौधों का हरे चारे के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है। क्विनोआ की पत्तियों, तनों और दानों में औषधीय गुण होते हैं।
इससे दाँतों के दर्द की दवा बनती है। ग्लूटेन मुक्त होने के कारण क्विनोआ का सीलीयक रोगियों के उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। क्विनोआ में पाये जाने वाले सैपोनिन नामक पदार्थ के कारण इसका इस्तेमाल साबुन, शैंपू, पॉलिश डर्मिटाइटिस, कीटनाशक इत्यादि बनाने में भी होता है।
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