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चिकनी तोरई की खेती: तोरई की ये उन्नत किस्में बढ़ाएगी पैदावार, जानिए कितनी होगी उपज

तोरई की इन उन्नत किस्मों से कमाएं डबल मुनाफा

गर्मियों के दिनों में बाज़ार में तोरई की मांग बहुत होती है, इसलिए किसानों के लिएचिकनी तोरई की खेती करना बहुत लाभदायक है। जानिए इसकी उन्नत किस्मों के बारे में।

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किसान अगर वैज्ञानिक तरीके से चिकनी तोरई की खेती करें तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। चिकनी तोरई की खेती पुरे भारत में की जाती है। यह बेल पर लगने वाली सब्जी होती है। इसकी सब्जी की भारत में छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों में  मांग है। गर्मियों के दिनों में बाज़ार में इसकी मांग बहुत होती है, इसलिए किसानों के लिए इसकी खेती करना बहुत लाभदायक है। तोरई विटामिन सी, आयरन, मैग्नीशियम, थियामिन, रिबोफ्लेविन और जिंक से भरपूर होता है। इसके अलावा, इसमें फाइबर की मात्रा भी अधिक होती है। अगर किसान तोरई की उन्नत किस्मों की बुवाई करें तो किसानों को अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है। 

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: ICAR-IIVR

तोरई की उन्नत किस्में:

 

काशी दिव्या- तोरई की इस किस्म के पौधों का तना 4.5 मीटर लंबा और फल बेलनाकार होते हैं। रंग हल्का हरा और लंबाई 20 से 25 सेंटीमीटर होती है। बुबाई के 48-50 दिन के बाद फसल तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 130-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

चिकनी तोराई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: ICAR_IIVR

 

पूसा स्नेहा- इस किस्म की तोरई का रंग गहरा हरा और लंबाई 20-25 सेंटीमीटर होती है। बीज डालने के 50-55 दिन बाद फसल तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता भी अच्छी है। प्रति हेक्टेयर 200-230 क्विंटल तोरई की पैदावार होती है।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: ICAR

 

स्वर्ण प्रभा- इस किस्म की फसल को तैयार होने में थोड़ा ज़्यादा समय लगता है, लेकिन पैदावार अच्छी होती है। बुवाई के 70-75 दिन बाद फसल तोड़ने लायक हो जाती है। प्रति हेक्टेयर उपज क्षमता 200-250 क्विंटल है।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: icarrcer

 

कल्याणपुर हरी चिकनी- तोरई की इस किस्म के फल मध्यम आकार और गूदेदार होते हैं। फलों पर हल्की धारियां बनी होती है और इस किस्म की तोरई की उपज क्षमता बहुत अधिक है। प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल तोरई की पैदावार होती है।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: flipkart

 

पूसा नसदार- तोराई की इस किस्म के फल का रंग हल्का हरा होता है। इसका गूदा सफ़ेद और हरा होता है। फल की लम्बाई 12-20 सेंटीमीटर होती है। इसकी उपज क्षमता 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: emausamhau

 

सरपुतिया- इस किस्म की ख़ासियत यह है कि इसमें फल गुच्छों में आते हैं। आकार में यह छोटे होते हैं और फलों पर धारियां उभरी हुई होती है। इसका छिलका भी थोड़ा मोटा होता है और यह आमतौर पर मैदानी इलाकों में अधिक उगाया जाता है।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: ICAR-IIVR

तोरई की खेती से जुड़ी अहम बातें

तोरई की खेती के लिए गर्म और नमी वाले मौसम की ज़रूरत होती है। बारिश और ग्रीष्म दोनों ही मौसम की इसकी सफल खेती की जा सकती है। इसकी खेती बलुई दोमट या दोमट में करना अच्छा होता है। साथ ही खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होना ज़रूरी है। एक हेक्टेयर में 3-5 किलो बीज डालना उपयुक्त होता है। तोरई की बुवाई के लिए नाली विधि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। अच्छी फसल के लिए खाद बेहद ज़रूरी है। इसलिए करीब 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलाएं। इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश भी डालें।

चिकनी तोरई की खेती ridge gourd farming
तस्वीर साभार: tnau

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