थनैला (Mastitis) या ‘थन की सूजन’ गायों को होने वाली बहुत आम और ख़तरनाक बीमारी है। देसी गायों की अपेक्षा ज़्यादा दूध देने वाली संकर नस्ल की विदेशी गायों पर इस बीमारी का हमला ज़्यादा होता है। थनैला एक ऐसी बीमारी है, जिसे पूरी तरह से मिटाया नहीं जा सकता, लेकिन सावधानियों से इसे घटा ज़रूर सकते हैं। थनैला से संक्रमित गाय का दूध इस्तेमाल के लायक नहीं रहता। वो दूध फटा हुआ सा या थक्के जैसा या दही की तरह जमा हुआ निकलता है। इसमें से बदबू भी आती है। थनैला से पशुपालकों को बेहद नुकसान होता है। दूध उत्पादन गिर जाता है और पशु के इलाज़ का बोझ भी पड़ता है।
थनैला का प्रभाव
थनैला की वजह से गायों के थनों में गाँठ पड़ जाती है और वो विकृत हो जाते हैं। थन में सूजन और कड़ापन आ जाता है तथा दर्द होता है। थनैला से बीमार गायों को तेज़ बुख़ार रहता है और वो खाना-पीना छोड़ देते हैं। थनैला का संक्रमण थन की नली से ही गाय के शरीर में दाख़िल होता है। थनों के जख़्मी होने पर भी थनैला के संक्रमण का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है। गलत ढंग से दूध दूहने से भी थन की नली क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। थनैला किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन प्रसव के बाद इसके लक्षण उग्र हो जाते हैं।
मेरठ स्थित ICAR-केन्द्रीय गोवंश अनुसन्धान संस्थान (Central Institute For Research On Cattle) के विशेषज्ञों के अनुसार, थनैला पीड़ित गायों के जीवाणुयुक्त दूध के सेवन से इंसानों में दस्त, गले में खराश, लाल बुखार (Scarlet Fever), ब्रुसैल्लोसिस (Brucellosis), तपेदिक (टीबी) जैसे रोग हो सकते हैं। थनैला के उपचार के लिए एंटीबॉयोटिक दवाईयों का बहुत इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसका अंश दूध के ज़रिये हमारे शरीर में भी पहुँचता है और हमें एंटीबॉयोटिक के प्रति उदासीन बनाता है।

थनैला बीमारी की वजह
थनैला बीमारी मुख़्यतः जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के संक्रमण से फैलती है, लेकिन विषाणु (वायरस), कवक (फंगस) और माइकोप्लाज्मा जैसे अन्य रोगाणु भी इसे पैदा कर सकते हैं। इसके मुख्य जीवाणु स्टेफाइलोकॉकस और स्ट्रेप्टोकॉकस थनों की त्वचा पर सामान्य रूप से पाये जाते हैं। जबकि इकोलाई जीवाणु का बसेरा गोबर, मूत्र, फर्श और मिट्टी आदि में होता है। ये गन्दगी और थन के किसी चोट से कट-फट जाने पर थनैला का संक्रमण पैदा करते हैं। एक बार थनैला पनप जाए तो फिर इसके जीवाणु दूध दूहने वाले के हाथों से एकदूसरे में फैलते हैं। यदि दूध निकालने वाली मशीन संक्रमित हो तो उससे भी थनैला बीमारी फैलती है।

थनैला के मुख्य लक्षण
पशु चिकित्सकों ने थनैला संक्रमण की तीव्रता (intensity) के आधार पर इसकी चार श्रेणियाँ निर्धारित की हैं, क्योंकि बीमार पशु का उपचार करते वक़्त उन्हें इसका ख़ास ख़्याल रखना होता है।
- अति तीव्र (hyper): ये थनैला का बेहद गम्भीर रूप है। इसमें पशु को तेज़ बुखार रहता है वो चारा खाना छोड़ देते हैं। उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ होती है। उनके थनों में ज़बरदस्त सूजन आ जाती है और उन्हें बहुत ज़्यादा दर्द होता है। इस दशा में मवाद या ख़ून मिला दूध आता है।
- तीव्र (intense): इस दशा में थनों में सूजन और दूध के स्वरूप में बदलाव नज़र आता है। दूध पानी जैसा पतला, छिछ्ड़ेदार, मवादयुक्त और ख़ून के थक्कों से मिला भी हो सकता है। इस दशा में पशु का कोई एक थन या सभी प्रभावित हो सकते हैं।
- उप तीव्र (pre-intense): ये दशा डेरी फार्म में अक्सर नज़र आती है। एक अध्ययन के अनुसार, 40 प्रतिशत से दुधारू पशुओं में इस श्रेणी का थनैला हो सकता है। इस दशा में पशु का दूध उत्पादन घट जाता है और दूध की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है। इसके संक्रमण की पुष्टि दूध के ‘कल्चर सेन्सिटिविटी परीक्षण’ से होती है।
- पुराना (Chronic): ये थनैला बीमारी की आख़िरी और घातक अवस्था है। इसमें थन बेहद सख़्त हो जाते हैं। उनमें दूध भरने वाली ग्रन्थियाँ नष्ट हो जाती हैं और उनकी जगह बेजान ऊतक (tissues) ले लेते हैं। थन सिकुड़ जाते हैं। दूध बेहद पतला, मवाद और ख़ून के थक्कों वाला हो जाता है।

थनैला बीमारी का निदान
क्लिनिकल थनैला की पहचान बीमारी के लक्षणों को देखकर आसानी से की जाती है। जैसे थनों में सूजन आना, पानी जैसा दूध आना अथवा दूध में छिछ्ड़े आना। लेकिन सब-क्लिनिकल थनैला में रोग के बाहरी लक्षण नहीं दिखते। इसीलिए इसकी पहचान के लिए पाँच किस्म के व्यावहारिक परीक्षण किये जाते हैं।
(i) कैलिफोर्निया मैसटाइटिस टेस्ट (CMT): इस परीक्षण में दूध की मात्रा के बराबर ही CMT reagent (अभिकर्मक) मिलाने से थनैला की तीव्रता के अनुसार गाढ़ा जैल (gel) बन जाता है। इस जैल को 0,1,2 और 3 के मापदंड से आँका जाता है। जैल जितना गाढ़ा बनता है, रोग की तीव्रता उतनी ही अधिक मानी जाती है।
(ii) ब्रोमोथाइमोल ब्लू परीक्षण (BTB): इस परीक्षण में पशु के चारों थनों के दूध की एक-एक बूँद BTB कार्ड पर गिराई जाती है। इससे रोग की तीव्रता के अनुसार कार्ड का रंग बदल जाता है। जैसे हरा-पीला (+), हरा (++) और नीला (+++) हो जाता है। सबक्लिनिकल थनैला की पहचान के लिए BTB की पेपर स्ट्रिप बाज़ार में भी आसानी से मिल जाती है। इसकी मदद से पशुपालक ख़ुद पशु के दूध की जाँच करके ये पता लगा सकते हैं कि उनका पशु थनैला के किस स्तर से प्रभावित है? लेकिन ख़ुद जाँच करने के बावजूद पशुपालकों को रोगी पशु का उपचार पशु चिकित्सक की राय लेकर ही करना चाहिए।
(iii) विद्युत संचालकता परीक्षण (Electro conductivity test): थनैला रोग से पीड़ित पशु के दूध में विद्युत संचालकता बढ़ जाती है। एक स्वस्थ पशु के मुक़ाबले थनैला के रोगी पशु के दूध की विद्युत संचालकता में 0.50 मिलीलीटर सीमेंस प्रति सेंटीमीटर तक ज़्यादा होता है। ये परीक्षण जाँच केन्द्र की ख़ास मशीनों से ही हो पाता है।
(iv) व्हाइट साइड परीक्षण (White slide test): इस टेस्ट के ज़रिये दूध में पाये जाने वाली सफ़ेद रक्त कणिकाओं (white blood cells) की बढ़े हुए अनुपात को जानने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के लिए रोगी पशु के दूध की 4-5 बूँदों तो एक स्लाइड पर रखते हैं। इसमें 4 प्रतिशत सोडियम हाइड्रोऑक्साइड की 2 बूँदें मिलाते हैं। फिर एक तीली की मदद से इसको 20-25 सेकेंड तक मिलाते रहते हैं। इस जाँच में पशु का दूध जितने तीव्र थनैला से संक्रमित होता उतना ही ज़्यादा गाढ़ा इसका जैल बनेगा। यदि थनैला पुराना होता है तो मिश्रण में सफ़ेद गुच्छे (फ्लेक्स) दिखते हैं।
(v) ब्रोमो क्रीसोल पर्पल परीक्षण: यह जाँच दूध के pH मान में आये बदलाव पर आधारित होता है। इसमें 0.9 प्रतिशत ब्रोमो क्रीसोल पर्पल reagent की 2-3 बूँदों को 3 मिलीलीटर दूध में मिलाते हैं। इससे थनैला संक्रमित दूध का रंग बदलकर नीला या बैंगनी हो जाता है, जबकि सामान्य या स्वस्थ पशु के दूध का रंग पीला रहता है।

थनैला के उपचार के लिए क्या उपाय करें?
- थनैला के इलाज़ में ज़रा भी देर नहीं करनी चाहिए। इसके लक्षण के दिखते ही फ़ौरन कुशल पशु चिकित्सक को पशु को दिखाना चाहिए। इलाज़ में देरी करने से थनैला रोग न सिर्फ़ बढ़ सकता है बल्कि लाइलाज़ हो सकता है। एक बार यदि पशु के थन सख़्त हो गये या उनमें ‘फाइब्रोसिस’ पनप गये तो उसका इलाज़ असम्भव हो जाता है। थनैला के लक्षण दिखते ही सबसे पहले रोगग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें।
- यदि आसपास कोई पशु चिकित्सा संस्थान अथवा रोग परीक्षण प्रयोगशाला है तो सबसे पहले अच्छी तरह से उबालकर सुखाई हुई काँच की शीशी अथवा परखनलियों में पशु के चारों थनों का दूध अलग-अलग भरकर एंटीबॉयोटिक सेन्सिटिविटी परीक्षण के लिए ले जाएँ। इससे रोग के कीटाणु के लिए उपयुक्त दवा को तय किया जाता है, ताकि इलाज़ कारगर, तेज़ और आसानी हो।
- थनैला रोग के इलाज़ के लिए पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार, ऐम्पिसिलिन, ऐमोक्सिसिलिन, एनरो फ्लोक्सासिन, जेंटामाइसिन, सेफ्ट्राइएक्सोन और सल्फा जैसी एंटीबॉयोटिक दवाओं के टीके 3-4 दिन तक सुबह-शाम लगवाना पड़ता है। इसके अलावा थनों की सूजन को घटाने के लिए मेलॉक्सिकम, निमैसुलाइड आदि टीके भी लगवाने चाहिए।
- उपचार के दौरान पहले स्वस्थ थनों से दूध निकालें और इसे अलग रखें। फिर रोगग्रस्त थन में से जितना हो सके उतना दूध निकाल दें। इसके बाद इंट्रा-मैमरी ट्यूब (intra mammary tube) जैसे पेंडस्ट्रीन-एसए, टिलॉक्स, कोबेक्टन, मैमीटल आदि का इस्तेमाल भी कम से कम तीन दिन तक करें। इंट्रा-मैमरी ट्यूब को थनों पर चढ़ाने से पहले थनों को पूरी तरह से खाली करना चाहिए। सब-क्लिनिकल थनैला का इलाज़ केवल थनों में 2-3 दिन तक ट्यूब चढ़ाकर किया जा सकता है। दवा लगाने के कम से कम तीन दिन तक संक्रमित पशु के दूध को मनुष्य को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। सब-क्लिनिकल थनैला के इलाज़ के लिए कुछ हर्बल दवाएँ भी बाज़ार में उपलब्ध हैं, लेकिन इन्हें भी पशुओं के डॉक्टर के परामर्श के बग़ैर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- थनैला से पीड़ित पशुओं के थन की नली में कई बार ऐसी गाँठ बन जाती है, जिससे दूध का स्राव रुक जाता है। ऐसी दशा में सिर्फ़ दवाईयों से पूरा इलाज़ नहीं हो पाता। इसीलिए कुशल पशु चिकित्सक टीट साइफन नामक उपकरण की मदद से थन की नली को खोलते हैं। फिर 7-8 नम्बर वाली बेबी फीडिंग ट्यूब को थन की नली में डालकर चिपकने वाले टेप से एक हफ़्ते के लिए फिक्स करते हैं। इस दौरान एंटीबॉयोटिक दवाओं से इलाज़ जारी रहता है। हफ़्ते भर बाद बेबी फीडिंग ट्यूब को थन से निकाल देते हैं। इससे थन की नली खुल जाती है और उससे दूध सामान्य ढंग से आना शुरू हो जाता है।

थनैला से बचाव की 10 सावधानियाँ
- थनों में लगी किसी भी चोट की अनदेखी नहीं करें। इसका फ़ौरन कुशल पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार इलाज़ करें। एंटीबॉयोटिक दवाओं का इस्तेमाल भी डॉक्टर की जाँच और सलाह से ही करें।
- थनैला का पुराना रोग, जिसमें थन सख़्त हो जाते हैं, उसका इलाज़ सम्भव नहीं है। लाइलाज़ हालात में पहुँचने वाले पशुओं को थनैला की तकलीफ़ बार-बार हो चुकी होती है। इनसे अन्य पशुओं के संक्रमण का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है, इसीलिए इन्हें पशुओं को बाड़े में से हटा देना चाहिए और संक्रमित थनों पर डॉक्टर की सलाह से रासायनिक घोल चढ़ाकर उन्हें स्थायी रूप से सुखा देना चाहिए। इसके लिए 30-60 मिलीलीटर 3 प्रतिशत सिल्वर नाइट्रेट का घोल अथवा 30 मिलीलीटर 5 प्रतिशत कॉपर सल्फेट का घोल थन में चढ़ाया जाता है।
- पशुओं और उनके बाड़े को साफ़-सुथरा रखना चाहिए। बाड़े से गोबर और कीचड़ हटाने में लापरवाही नहीं करें और वहाँ पानी जमा नहीं होने दें। बाड़े की फर्श को आधा कच्चा और आधा पक्का रखें। पक्के फर्श पर पुआल अथवा बजरी का प्रयोग करें।
- दूध दूहने से पहले और बाद में थनों को एंटीसेप्टिक दवा के घोल से साफ़ करें और सफ़ाई के बाद साफ़ कपड़े से पोंछकर सुखा लें। इसके बाद हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोयें। दूध दूहने के बाद रोज़ाना चारों थनों को एंटीसेप्टिक बीटाडीन-80 मिलीलीटर और ग्लिसरीन 20 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर बनाये गये घोल में डुबोना चाहिए। यह कीटाणुओं से बचाव के लिए भी सहायक है और साथ ही थनों के जख़्म-चोट आदि को ठीक करता है।
- यदि दूध की दुहाई मशीन से की जाए तो मशीन की साफ़-सफ़ाई और देखरेख भी अच्छी तरह होनी चाहिए। मशीन के कप को दूध दूहने के बाद गुनगुने पानी से साफ़ करना चाहिए और हफ़्ते में एक बार मशीन को एंटीसेप्टिक दवाई से साफ़ करना चाहिए।
- पहले स्वस्थ पशुओं का दूध दुहना चाहिए और उसके बाद थनैला रोग वाले पशुओं का दूध निकालें।
- दुधारू पशुओं में दूहने के बाद 1-2 घंटे खड़े रहने की आदत डालें। इसके लिए दूहने बाद पशु को थोड़ा सा दाना डाल दें, ताकि वो खाने में व्यस्त रहे और बैठे नहीं।
- गाभिन पशुओं को प्रसव से 2 महीने पहले दूहना बन्द कर दें और ड्राइ थेरेपी के लिए एंटीबॉयोटिक ट्यूब को चारों थनों में चढ़ा दें। इससे पुराने थनैला रोग का इलाज़ हो जाता है और नये कीटाणुओं का संक्रमण नहीं होता।
- दुधारू पशुओं के आहार में विटामिन और लवण जैसे कॉपर, ज़िंक और सेलेनियम आदि को शामिल करें। ये पोषक तत्व उनमें थनैला के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसके लिए पशु को दाने में लगातार खनिज मिश्रण मिलाकर दें।
- सब-क्लिनिकल थनैला के निदान के लिए ज़्यादा दूध देने वाले पशुओं की निश्चित अन्तराल पर जाँच करवाते रहें। यहाँ तक कि दुधारू पशु को खरीदने से पहले भी उनके दूध की थनैला जाँच अवश्य करवाएँ।

ये भी पढ़ें- Lumpy Skin Disease: कैसे बढ़ रहा है दुधारु पशुओं में LSD महामारी का ख़तरा? पशुपालकों को सतर्क रहने की सलाह
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- लखनऊ का World Famous ‘Dussehri Mango’ दुनिया में मचाएगा धमाल! यूपी के किसानों के लिए ‘स्वर्णिम अवसर’, IndGAP सर्टिफिकेशन से खुलेगा Global Routeराज्य सरकार ने आम की खेती में क्रांति लाने के लिए एक महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट (Ambitious pilot project) की शुरुआत की है, जिसका सेंटर प्लेस लखनऊ और उसकी वर्ल्ड फेमस ‘दशहरी’ (World Famous ‘Dussehri’) विरासत है।
- भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक से कृषि सहयोग को नई दिशानई दिल्ली में हुई भारत और नीदरलैंड के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की आठवीं बैठक में कृषि सहयोग और नवाचार पर हुई अहम चर्चा।
- Agricultural Research Institutes In India And Abroad: भारत और विश्व के संगठन मिलकर बदल रहे दुनियाकृषि को फायदे का सौदा बनाने में देश और विदेश के कृषि अनुसंधान संस्थानों (Agricultural Research Institutes In India And Abroad) की भूमिका अहम हो गई है। ये संस्थान अब सिर्फ अनाज पैदा करने की बात नहीं करते, बल्कि एक स्मार्ट, टिकाऊ और मुनाफे वाली कृषि का सपना संजोए हैं।
- भारत और श्रीलंका के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की पहली बैठक से खुले सहयोग के नए रास्तेभारत और श्रीलंका के बीच कृषि पर संयुक्त कार्य समूह की पहली बैठक से दोनों देशों में कृषि सहयोग और नवाचार को नई दिशा मिली।
- दिल्ली में National FPO Conclave 2025 ने रची नई इबारत, 24 राज्यों के किसानों और संगठनों ने की शिरकतकेंद्रीय कृषि शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रीय एफपीओ सम्मेलन 2025 (National FPO Conclave 2025) का शुभारंभ किया। इसके साथ ही ऐतिहासिक घोषणाएं कीं, जो भारतीय किसान के भविष्य की दिशा तय करने वाली हैं।
- Natural Farming: प्राकृतिक तरीके से ड्रैगन फ्रूट और सब्ज़ियों की खेती कर रहे जीवन सिंह राणाहिमाचल के किसान जीवन सिंह राणा ने प्राकृतिक खेती अपनाकर ड्रैगन फ्रूट व सब्जियों से आमदनी बढ़ाई और रासायनिक खेती छोड़ दी।
- पंजाब के किसान अंग्रेज सिंह भुल्लर की सफलता की कहानी: Organic Farming और Vermicompost से मिल रहा तगड़ा मुनाफाअंग्रेज सिंह भुल्लर ने साल 2006 में पारंपरिक खेती से हटकर बेहतर सुधार के लिए जैविक खेती (Organic Farming) की शुरूआत की। जैविक खेती करने से उनको वक्त के साथ अच्छे रिज़ल्ट भी मिले। अंग्रेज सिंह भुल्लर का कहना है कि इंसान की पहली ज़रूरत हवा, पानी और भोजन है और वो इसी पर काम करते हैं। वो जैविक खेती के ज़रिए मिट्टी को बचाने की बात करते हैं।
- National FPO Samagam 2025: भारतीय कृषि की नई इबारत लिखने दिल्ली में जुट रहे हैं 10,000 किसान संगठन30 और 31 अक्टूबर 2025 को देश की राजधानी नई दिल्ली के NCDC और NCUI परिसर में होने वाला ये दो दिवसीय महाकुंभ National FPO Samagam 2025, 24 राज्यों और 140 ज़िलों के 500 से ज़्यादा किसानों, एफपीओ और एक्सपर्ट्स को एक स्टेज पर लाएगा।
- पंजाब कृषि विश्वविद्यालय सब्ज़ियों की उन्नत खेती में कैसे कर रहा किसानों की मदद, जानिए डॉ. रुमा देवी सेपंजाब कृषि विश्वविद्यालय की डॉ. रुमा देवी किसानों को सब्ज़ियों की उन्नत खेती और उच्च उत्पादक क़िस्मों की वैज्ञानिक जानकारी देकर आधुनिक कृषि को बढ़ावा दे रही हैं।
- भारत की सशक्त अर्थव्यवस्था के लिए Renewable Energy Revolution से बदल रही किसानों की तकदीरअक्षय ऊर्जा क्रांति (Renewable Energy Revolution) किसानों की आमदनी दोगुनी करने और कृषि को टिकाऊ बनाने की चाभी बनकर उभर रही है। आज़ादी के बाद से अब तक, भारत की कृषि ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन सौर, बायोमास और दूसरे नवीकरणीय सोर्स (Solar, biomass and other renewable sources) ने इसमें एक ऐसा नया चैप्टर जोड़ा है, जो खेतों को ऊर्जा के आत्मनिर्भर केद्रों में बदल रहा है।
- Rabi Season 2025-26 Fertilizer Subsidy: केंद्र सरकार ने मंज़ूर की सस्ती खाद, किसानों के चेहरे खिलेफॉस्फेटिक और पोटाशिक (P&K) उर्वरकों पर पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) की नई दरें (Rabi Season 2025-26 Fertilizer Subsidy) तय कर दी गई हैं। इस फैसले के तहत सरकार लगभग 37,952 करोड़ रुपए की सब्सिडी देगी। ये रकम पिछले खरीफ सीजन की तुलना में करीब 736 करोड़ रूपये ज्यादा है।
- Sugarcane Farmers की झोली में 3000 करोड़ का बोनस, योगी सरकार ने बढ़ाए गन्ना के दाम, अब मिलेंगे 400 रुपयेकिसान (sugarcane farmers) लंबे समय से मूल्य बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे। सरकार के इस कदम से राज्य के गन्ना किसानों को लगभग 3000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त फायदे का अनुमान है। बता दें कि नया पेराई सीजन 1 नवंबर से शुरू होने जा रहा है।
- Colorful Revolutions और Indian Economy: जानिए, कैसे रंगों ने मिलकर बुनी भारत की आर्थिक ताकत की डोरइस आर्टिकल में जानिए कैसे रंगीन क्रांतियों (Colorful Revolutions) ने देश की तकदीर बदल दी। ये क्रांतियां केवल प्रोडक्शन बढ़ाने तक सीमित नहीं थीं, बल्कि इन्होंने राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक बुनियाद को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया।
- Kharif Season 2025-26: तेलंगाना, ओडिशा, महाराष्ट्र और एमपी के किसानों के लिए बड़ी राहत, दलहन और तिलहन की रिकॉर्ड ख़रीद मंज़ूरीKharif season 2025-26 के लिए सरकार नऐतिहासिक फैसला लिया है।तेलंगाना, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में दलहन और तिलहन फसलों की रिकॉर्ड खरीद को शिवराज सिंह ने मंजूरी दी है।
- Milk Production In India: दुनिया का हर चौथा कप दूध और 58 फीसदी मक्खन भारत में, जानें कैसे बना ‘Dairy Super Power’ग्लोबल मिल्क प्रोडक्शन (Global Milk Production) में भारत की हिस्सेदारी लगभग 25 फीसदी है। बीते साल देश में 24 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ, जो लगातार 5-6 फीसदी की सलाना दर से बढ़ रहा है। ये बढ़ोतरी ‘ऑपरेशन फ्लड’ की वजह से रखी गई मजबूत बुनियाद का सीधा रिज़ल्ट है
- उत्तराखंड का चमोली बना मत्स्य पालन से आत्मनिर्भरता की मिसालचमोली में मत्स्य पालन से किसानों की आय बढ़ी, ट्राउट मछली उत्पादन में तेजी, सरकार की योजनाओं से पहाड़ों में आई खुशहाली।
- SMAM स्कीम: यूपी के किसानों को मिल रही आधुनिक कृषि मशीनरी पर भारी सब्सिडी, अप्लाई जल्दी करें बस कुछ ही बचे हैंअप्लाई करने का प्रोसेस 15 अक्टूबर, 2025 से शुरू हो चुका है और 29 अक्टूबर, 2025 को ख़त्म होगा। सबसे अहम बात यह है कि इस योजना में किसानों का चयन ‘पहले आओ, पहले पाओ’ (First Come, First Served) के आधार पर किया जाएगा।
- Agroforestry And Social Forestry: कैसे एग्रोफोरेस्ट्री और सोशल फॉरेस्ट्री बदल रही हैं भारत की तस्वीरAgroforestry (वानिकी कृषि) और Social Forestry (सामाजिक वानिकी) जैसे कॉन्सेप्ट केवल ऑप्शन नहीं, बल्कि एक ज़रूरी ज़रूरत बनकर उभरी हैं। ये वो जादू की छड़ी हैं जो किसान की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ धरती को हरा-भरा बनाने का काम कर रही हैं।
- कैसे WDRA और उसके डिजिटल सारथी – e-NWR, e-Kisan Upaj Nidhi भारतीय किसानों की बदल रहे तकदीरवेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Warehousing Development and Regulatory Authority) यानी WDRA और उसके डिजिटल सारथी – e-NWR (Electronic Negotiable Warehouse Receipt) और e-Kisan Upaj Nidhi (eKUN) – एक क्रांतिकारी बदलाव की नींव रख रहे हैं।
- कश्मीर में आधुनिक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला का शुभारंभ: वैज्ञानिक खेती की दिशा में बड़ा कदमश्रीनगर में शुरू हुई अत्याधुनिक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से किसानों को मिलेगा मिट्टी परीक्षण, उर्वरक योजना और वैज्ञानिक खेती का लाभ।





















