किसान ऑफ़ इंडिया की टीम पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले पहुंची। यहां हमारी मुलाकात हुई प्रगतिशील किसान सुशांत कुमार से। उनके गाँव में पहले धान की खेती ही हुआ करती थी। अब वो वो कई अलग-अलग सब्जियों की खेती कर रहे हैं, साथ ही आलू की उन्नत किस्में भी उन्होंने अपने खेत में लगा रखी हैं।
अच्छी खेती के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि सिर्फ़ वर्षा पर निर्भर रहकर खेती से मुनाफ़ा नहीं कमाया जा सकता। पानी की कमी की वजह से कई गाँवों के किसान खेती छोड़कर दूसरा काम करने लगते हैं तो कुछ पूरे साल सिर्फ़ एक ही फसल प्राप्त कर पाते हैं। इससे आजीविका चलाना मुश्किल हो जाता है। 2012 से पहले पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले के पंचगछिया गांव के किसान भी पानी की भयंकर कमी की समस्या से जूझ रहे थें। इसकी वजह से पूरे साल किसान सिर्फ़ धान की खेती कर पाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कैसे दूर हुई इस गांव की पानी की समस्या यह जानने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया की टीम पहुंची पंचगछिया गांव और हमारे संवाददाता गौरव मनराल ने बात की यहां के किसान सुशांत कुमार से।
बदल गई ज़िंदगी
पंचगछिया गांव के किसान आज खुशहाल ज़िंदगी जी रहे हैं, लेकिन 2012 के पहले स्थिति कुछ और थी। पानी की कमी के चलते यहां के किसानों को खेती में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इस गांव के किसान सुशांत कुमार बताते हैं कि कई लोग खेती छोड़कर दूसरों के यहां नौकरी करने लगे थे। पलायन जैसी समस्या से भी दो-चार होना पड़ा। पूरे साल एक ही फसल की पैदावार होती थी। धान की खेती से ही घर चलाना मुश्किल हो रहा था। वह बताते हैं कि 2012 में उन लोगों ने जल संसाधन विभाग से संपर्क किया। इसके बाद गांव में पंप लगवाया गया और गांववालों की पानी की समस्या दूर हुई।
साल में उगा रहें 3 फसलें
2012 से पहले सिर्फ़ धान उगाने वाले इस गांव के किसान अब साल में तीन बार खेती कर रहे हैं। सुशांत कहते हैं कि अब मौसम के हिसाब से हम लोग खेती करते हैं। बरसात के मौसम में धान के साथ ही कुछ सब्ज़ियां उगाते हैं। सर्दियों के मौसम में आलू, गोभी, सरसों आदि और गर्मी में मूंगफली, तिल के साथ अन्य सब्ज़ियों की खेती करते हैं। इससे आमदनी अच्छी होती है। उनका कहना है कि सब्ज़ियों की खेती से मुनाफ़ा अधिक होता है।
उगा रहे आलू की उन्नत किस्में
सुशांत कुमार ने अपने खेत में आलू की कई उन्नत किस्में लगाई हैं, जिनमें A 2708 (चंद्रमुखी), ज्योति, पुखराज आदि शामिल हैं। वह बताते हैं कि आलू की खेती नवंबर में शुरू करते हैं क्योंकि यह समय सबसे उपयुक्त होता है। आलू की बुवाई से पहले मिट्टी तैयार की जाती है, जिसके लिए पहले मिट्टी अच्छी तरह से सूखी होनी चाहिए। आलू की फसल को तैयार होने में तीन से साढ़े तीन महीने का वक़्त लगता है।
सही से करेंगे प्रबंधन तो अच्छी मिलेगी फसल
अगर सही तरीके से बुवाई, सिंचाई आदि की जाए तो अच्छी फसल प्राप्त होती है। फसल की मात्रा आलू की किस्मों पर निर्भर करती हैं। आगे वह बताते हैं कि एक बीघा खेत से A 2708 (चंद्रमुखी) और ज़्योति की 110 बोरी प्राप्त हो जाती है, जबकि पुखराज का उत्पादन 135 से 140 बोरे तक हो जाता है। वह थोड़े आलू सीधे खेत से ही बेचते हैं और बाकी स्टोर में रख देते हैं, जिसे मांग बढ़ने पर बाज़ार में बेचते हैं।
जल संसाधन विभाग की मदद और किसानों की मेहनत से पंचगछिया गांव के किसानों की पानी की समस्या तो दूर हो गई। आज ये गाँव अपने क्षेत्र के अन्य गाँवों के लिए एक मॉडल बनकर उभर रहा है।
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