सांवा की खेती (Barnyard Millet): सांवा को चावल का विकल्प कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि उत्तर भारत में पहले लोग सांवा का चावल बड़े चाव से खाते थें, इसकी खीर तो ख़ासतौर पर पसंद की जाती थी, लेकिन आधुनिकता के दौर में पौष्टिक सांवां कहीं पीछे छूट गया और इसकी खेती भी कम हो गई। अब पिछले कुछ सालों से मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है, क्योंकि ये न सिर्फ़ किसानों के लिए फ़ायदेमंद है, बल्कि ये सेहत के लिए भी गेहूं और चावल से ज़्यादा लाभदायक है।
सांवा में पानी की ज़रूरत अन्य फसलों की अपेक्षा कम होती है। सांवा का उपयोग चावल की तरह ही किया जाता है। साथ ही पशु चारे के रूप में भी इसका उपयोग होता है। इसमें चावल की तुलना में पोषक तत्व तो अधिक होते ही हैं, साथ ही पचाने योग्य प्रोटीन भी 40 फ़ीसदी तक होता है। इसकी खेती कम पानी और लागत में की जा सकती है, इसलिए किसानों के लिए फ़ायदेमंद होती है।
जलवायु और मिट्टी
सांवा की फसल कम उपजाऊ वाली मिट्टी में भी लगाई जा सकती है। इसे नदी किनारे की निचली भूमि में भी उगाया जा सकता है, लेकिन बलुई दोमट और दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती है। जबकि सांवां की खेती के लिए हल्की नम और उष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। ये खरीफ़ मौसम की फसल है।
खेत की तैयारी और बुवाई
मानसून शुरू होने से पहले खेत की जुताई करें। मानसून शुरू होने के बाद रोटावेटर से पहली जुताई करें। 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लें। इसे अधिक उपजाऊ बनाने के लिए 60-70 किलो गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाएं। सांवा की बुवाई 15 जून से 15 जुलाई के बीच करें। मानसून शुरू होते ही इसकी छिड़काव विधि से या कतार में की जा सकती है। कतार में बुवाई करने पर पंक्तियों के बीज 25 सेन्टीमीटर की दूरी रखें। बुवाई के लिए प्रति हेक्येटर 8-10 किलो बीज की ज़रूरत होती है।
बीजामृत से करें बीजों का उपचार
सांवा की खेती पूरी तरह से कुदरती तरीके से करना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है। बुवाई से पहले बीजों को बीजामृत से उपचारित करने से बीज में लगने वाले रोग 40-50 फ़ीसदी तक कम हो जाते हैं। उपचार के लिए 5 किलो गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना और बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे जीवाश्म वाली मिट्टी एक मुट्ठी को 20 लीटर पानी में घोलकर एक दिन के लिए रखें। इसे दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। इस घोल में 100 किलो बीज को उपचारित करें और फिर छांव में सुखाकर बुवाई करें। अच्छे उत्पादन के लिए सांवा की मदिरा 21, मदिरा 29 और चंदन प्रजाति लगाएं।

कुदरती खाद
खेती में प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करना फ़ायदेमंद होता है। इससे मिट्टी के पोषक तत्व बढ़ते हैं, साथ ही जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। मानसून के बाद पहली जुताई के समय 5-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कंपोस्ट खाद खेत में मिलाएं।
जीवामृत का इस्तेमाल
अच्छी फसल प्राप्त करने में जीवामृत भी सहायक होता है। एक एकड़ खेत में 200 लीटर जीवामृत को टपक विधि से डालें या धीरे-धीरे खेत में बहा दें। पहला छिड़काव बुवाई के एक महीने बाद करें। इसके लिए 100 लीटर पानी में 5 लीटर जीवामृत मिलाएं। दूसरा छिड़काव 21 दिन बाद करें। इसके लिए 150 लीटर पानी में 10 लीटर जीवामृत मिलाएं। आखिरी छिड़काव तब करें जब सांवा के दाने दूधिया हो जाएं। इसके लिए 200 लीटर पानी में 5-10 लीटर छाछ मिलाएं।
घन जीवामृत
ये जीवाणुयुक्त सूखी खाद होती है। इसे बुवाई के समय या पानी देने के 3 दिन बाद भी डाला जा सकता है। इसे बनाने के लिए 100 किलो गोबर, 1-2 किलो गुड़, उड़द, मक्का, मूंग या चने का बेसन 1-2 किलो, बरगद या पीपल के पेड़ की जीवाश्म वाली एक मु्ट्ठी करीब 100 ग्राम और 5 लीटर के करीब गोमूत्र मिलाकर खाद को पेस्ट जैसा बना लें। इसे 48 घंटे तक छाया में बोरी से ढककर रखें। फिर छाया में ही फैलाकर सुखा लें और बोरी में भरकर रख दें, ये 6 महीने तक चलता है। एक एकड़ में एक क्विंटल घन जीवामृत की ज़रूरत होती है।
सिंचाई और कटाई
आमतौर पर सांवा की फसल को सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है, लेकिन बारिश अगर लंबे समय से नहीं हो रही है, तो फूल आने के समय एक सिंचाई कर देनी चाहिए। और यदि बारिश अधिक होने से खेत में जलभराव हो गया है तो पानी निकालने की व्यवस्था करें। पकने के बाद फसल की कटाई जड़ से ही की जाती है और इसका गट्ठर बनाकर खेत में ही एक हफ्ते के लिए सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है, इसके बाद मड़ाई की जाती है। प्रति हेक्टेयर 10-20 क्विंटल दाना और 20-25 क्विंटल भूसा प्राप्त होता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- रजीना देवी की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती से मिली नई राहरजीना देवी की प्रेरणादायक सफलता कहानी, जहां प्राकृतिक खेती ने कम लागत और अधिक लाभ से उन्हें नई पहचान दिलाई।
- European Union ने भारतीय मत्स्य निर्यात के लिए खोले नए द्वार, 102 और फर्मों को मिली मंज़ूरीयूरोपीय संघ (European Union) दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सख्त मानकों वाले आयात बाजारों में से एक है। उसके खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मानक (Food safety and quality standards) काफी हाई हैं। ऐसे में, 102 नई यूनिट्स का मंजूरी पाना इस बात का प्रमाण है कि India’s export control mechanism (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल – EIC) कितना मजबूत और भरोसेमंद है।
- Mushroom Production Training से सहरसा की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की कहानी, दे रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूतीबिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।
- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए विकसित की गेहूं की नई क़िस्म WH 1309गेहूं की नई क़िस्म WH 1309 पछेती बिजाई के लिए वरदान है, अधिक पैदावार और रोगरोधी गुणों के साथ किसानों को देगा स्थिर लाभ।
- Role of Technology in Agriculture: कृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका से बदल रहा है भारतीय खेती का भविष्यकृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका किसानों की आय, पैदावार और आत्मनिर्भरता बढ़ा रही है। जिससे भारत में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है।
- Rangeen Machhli App: ICAR का ‘रंगीन मछली’ ऐप जो दे रहा सजावटी मत्स्य पालन और आजीविका के अवसरों को बढ़ावाRangeen Machhli App सिर्फ एक साधारण जानकारी देने वाला टूल नहीं है, बल्कि ये मछली पालन के शौकीनों (hobbyists), किसानों और बिजनेसमैन के लिए एक पूरी गाइड है। आइए जानते हैं इसकी ख़ास बातें।
- सफ़ेद चादर-सा काशी फूल: झारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ी अनोखी पहचानझारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ा काशी फूल शरद ऋतु का प्रतीक है। यह फूल आजीविका और धार्मिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
- National Gopal Ratna Award 2025: देश के डेयरी किसानों और तकनीशियनों का सर्वोच्च सम्मान, जानिए कैसे करें अप्लाईराष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 (National Gopal Ratna Award 2025) देश के डेयरी किसानों, सहकारी समितियों और तकनीशियनों (Dairy farmers, co-operatives and technicians) के लिए एक शानदार अवसर है। ये न केवल एक Prestigious honors और Financial Aid प्रदान करता है, बल्कि देश के Dairy Sector में वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों को अपनाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के 5 साल, क्या कहते हैं मछली पालन से जुड़े ताज़ा आंकड़े?प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: ब्लू इकोनॉमी की ताकत, तकनीक और रोजगार से बदल रहा है भारत का मत्स्य क्षेत्र।
- सरस आजीविका मेला 2025: Vocal for Local और ग्रामीण आजीविका का संगम 22 सितंबर तक22 सितंबर तक दिल्ली में आयोजित सरस आजीविका मेला 2025, लखपति दीदियों और ग्रामीण महिलाओं के उत्पाद, संस्कृति, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत का उत्सव है।
- गोबर से कागज़ और राखियां बनाकर जयपुर के भीमराज शर्मा ने शुरू किया अनोखा एग्री बिज़नेसगोबर से कागज़ और राखियां बनाकर एग्री बिज़नेस में जयपुर के भीमराज शर्मा ने पर्यावरण हितैषी नवाचार से नई पहचान बनाई।
- जामताड़ा ज़िले में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से पशुपालकों को आत्मनिर्भरता की राहमुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से जामताड़ा के किसानों को मिला चूज़ा वितरण का लाभ, पशुपालन से आत्मनिर्भरता की नई राह।
- अडबंधा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से किसानों की आमदनी बढ़ी, मछली पालन बना आजीविका का नया साधनमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से अडबंधा में बने कृषि तालाब से सिंचाई और मछली पालन से किसानों की आय बढ़ी।
- कुलवंत राज की प्राकृतिक खेती की राह ने उन्हें बना दिया कृषि कर्मण पुरस्कार विजेताकुलवंत राज और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी ने प्राकृतिक खेती से आय बढ़ाई, स्वस्थ फ़सलें उगाईं और कई किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।
- Agri Equipments Subsidy: रबी फसल की बुवाई से पहले किसानों को कृषि यंत्र अनुदानरबी फसल की बुवाई से पहले इस राज्य के किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान मिल रहा है। इसमें हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, बेलर और कई अन्य यंत्र शामिल हैं।
- Pantnagar University के वैज्ञानिकों ने बनाया जीवाणुरोधी प्लास्टिक, अनाज और सब्ज़ियों की पैकिंग अब होगी और सुरक्षितGB Pant University Research: 10 साल की मेहनत से वैज्ञानिकों ने एंटीबैक्टीरियल प्लास्टिक विकसित किया, जो स्वास्थ्य व खाद्य क्षेत्र के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।
- Natural Farming: प्राकृतिक खेती से मिली रेणू बाला को पहचान बनी क्षेत्र की मिसालमहिला किसान रेणू बाला ने प्राकृतिक खेती से कम लागत और अधिक मुनाफ़ा पाया उनकी कहानी किसानों के लिए प्रेरणा बनी।
- विदेशी सब्ज़ियों की खेती से कैसे हो सकती है अच्छी कमाई, जानिए सोनीपत के प्रगतिशील किसान राजेश सेविदेशी सब्ज़ियों की खेती कर हरियाणा के किसान राजेश ने वैज्ञानिक तरीके से लाखों की कमाई की, जो किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।
- श्री विधि तकनीक से साहिबगंज में धानखेती को मिला नया आयाम, किसानों की आमदनी में हो रही बढ़ोतरीसाहिबगंज के किसान श्री विधि तकनीक से धानखेती कर रहे हैं। इस विधि से कम लागत, अधिक उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण फ़सल मिल रही है।
- एटा में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से खेती में नया बदलाव, कृषि सखी कर रहीं किसानों को प्रशिक्षितएटा में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से खेती में नया बदलाव, कृषि सखी किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने का प्रशिक्षण दे रहीं।