छोटे किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के मकसद से खेती के साथ ही अन्य गतिविधियां भी अपना रहे हैं। गोरखपुर ज़िले के चादबारी गाँव के रहने वाले 45 साल के किसान राजेश कुमार वैश्य ने भी आमदनी में बढ़ोतरी के उद्देश्य के साथ बकरी के साथ मुर्गी पालन करना शुरू कर दिया। फसल उगाने के साथ ही एकसाथ मुर्गी और बकरी पालन से उनकी आय में तीन गुना इज़ाफ़ा हुआ है। इसे देखकर आसपास के किसान भी अब उनके नक्शेकदम पर चलने लगे हैं।
2 एकड़ भूमि में शुरू की खेती
राजेश कुमार वैश्य ने ग्रेजुएशन के बाद कहीं नौकरी करने के बजाय अपने ही गांव में 2 एकड़ भूमि पर खेती करना शुरू कर दी। मगर धान और गेहूं की फसल से उन्हें सालाना सिर्फ़ 1-1.5 डेढ़ लाख रुपये की ही आमदनी हो पाती थी, जो कि उनके 8 सदस्यों के परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं थी। ऐसे में राजेश कुमार दूसरे विकल्पों की तलाश में थे।
कृषि विज्ञान केंद्र ने दिखाई नई राह
2018-19 में राजेश कुमार ने महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित पोल्ट्री व बकरी पालन ट्रेनिंग कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहाँ से उन्हें इन दो व्यवसायों में रुचि हुई।इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र के पशुपालन विभाग के वैज्ञानिकों की मदद से वैज्ञानिक तरीके से राजेश कुमार ने बकरी के साथ मुर्गी पालन की शुरुआत की। इससे उनकी आमदनी में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई।
बकरी और मुर्गियों की नस्ल
उन्होंने बकरी की बरबरी और सिरोही नस्ल पाली, जबकि मुर्गी की कड़कनाथ नस्ल का पालन किया। बरबरी बकरी मध्यम आकार की और छोटे कद वाली होती है, लेकिन शरीर गठीला होता है। यह सफेद और भूरे रंग की होती है और भूरे रंग की बकरी के शरीर पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे होते हैं।

उधर सिरोही बकरी व्यावसायिक तौर पर पालने के लिए अच्छी मानी जाती है। यह ख़ासतौर पर राजस्थान में पाई जाती है। इस बकरी की ख़ासियत है कि यह गर्मी और ठंड दोनों मौसम को बर्दाशत कर सकती है।

कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गी की ख़ासियत है कि यह पूरी तरह से काला होता है। इसका मांस सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसमें आयरन और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। बाज़ार में इसका मांस अन्य मुर्गे की तुलना में महंगा बिकता है।
सीमित संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल
कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से एकीकृत मुर्गी व बकरी पालन से राजेश कुमार सीमित संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने में सफल रहे। मुर्गी व बकरी के मल को वह खेत में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इससे उनकी खेती की लागत में भी कमी आई।
कितना होता है मुनाफ़ा?
मुर्गी पालन से उन्हें साल का करीब 2 लाख 20 हज़ार रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा होता है, जबकि बकरी पालन से 3 लाख रुपये और फसलों की खेती से 60 हज़ार रुपये का सालाना शुद्ध लाभ वो कमाते हैं। इस तरह उनका कुल मुनाफ़ा तकरीबन 5 लाख 80 हज़ार रुपये पहुँच जाता है।
अन्य किसान भी हो रहे प्रेरित
राजेश कुमार बकरी के साथ मुर्गी पालन को लोकप्रिय बनाने वाले प्रगतिशील किसान हैं। अब आसपास के इलाके के अन्य किसान भी उनकी ही तकनीक अपना रहे हैं।
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