डेयरी व्यवसाय: रंजीत सिंह ने PDFA के साथ मिलकर शुरू कीं कई डेयरी योजनाएं, बनाया देश का पहला Fully Automated Dairy Farm

एक किसान के लिए जितनी महत्वपूर्ण खेती होती है, पशुपालन से भी उसका लगाव उतना ही गहरा होता है। रंजीत सिंह अपने क्षेत्र के किसानों के लिए एक मिसाल तो बने ही, साथ ही अपने किसान साथियों की प्रगति के लिए भी काम कर रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में रंजीत सिंह ने डेयरी सेक्टर (Dairy Farming) से जुड़ी कई दूसरी ज़रूरी जानकारियां भी दीं।

डेयरी

एक समृद्ध किसान की आपके ज़हन में क्या परिभाषा होगी? एक ऐसा किसान जो नि:स्वार्थ भाव से अपने साथी किसानों के लिए खेती-किसानी को सुगम बनाने के कर्मपथ पर लगा हो। एक ऐसे ही किसान हैं पंजाब के मोगा ज़िले के लंगियाना गाँव के रहने वाले रंजीत सिंह। कभी 20 गायों से पशुपालन की शुरुआत करने वाले रंजीत सिंह के पास आज 300 गायें हैं। खास बात ये है कि इस डेयरी फ़ार्म (Dairy Farm) को सिर्फ़ दो लोग ही मिलकर चलाते हैं। Kisan of India से खास बातचीत में रंजीत सिंह डेयरी व्यवसाय (Dairy Farming Business) से जुड़ी कई बातें बताईं, जिनके बारे में शायद ही आपको पहले पता हो।

23 दिसंबर को ही किसान दिवस क्यों मनाया जाता है?

रंजीत सिंह ने 1998 में डेयरी व्यवसाय में कदम रखा। जानवरों के प्रति अपने लगाव ने रंजीत सिंह को पशुपालन क्षेत्र से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। उस वक़्त कमर्शियल डेयरी फ़ार्म नहीं हुआ करते थे। घर के बाहर या कोने में लोग पशुपालन किया करते थे। ऐसे दौर में रंजीत सिंह ने पशुपालन को बतौर डेयरी व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने पिता को देखते हुए खेती-किसानी और पशुपालन के गुर सीखे।

शुरुआती निवेश साढ़े पांच लाख रुपये

उनके घर पर कुछ गायें और भैसें पहले से थीं। रंजीत सिंह बताते हैं कि भैंस बच्चा पैदा करने के 5 महीने तक दूध देती है। इसके बाद वो दूध नहीं देती। वहीं गाय सालभर तक दूध देती है। इसलिए वो भैंसों को बेचकर उनकी जगह गाय लेकर आए। उन्होंने खुद से साढ़े पांच लाख रुपये लगाकर 20 क्रॉस ब्रीड गायें खरीदीं। गायों के लिए खुले में शेड बनवाए। इसके बाद 1999 में करीब एक लाख़ रुपये में दूध निकालने वाली मशीन खरीदी।

आज की तारीख में हैं 300 शुद्ध एचएफ गायें (HF Cows)

रंजीत सिंह बताते हैं कि जब वो ग्रेजुएशन कर रहे थे तब उनका मन अमेरिका जाने का था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। आज उनके गुरुकृपा डेयरी फ़ार्म में लगभग 300 शुद्ध एचएफ गायें (Holstein Friesian, HF Cows) हैं। उनका फ़ार्म एक ब्रीडर फ़ार्म भी है। यानी खुद ही गायों की नस्ल तैयार करते हैं। बाहर से जानवर नहीं खरीदते। रंजीत सिंह ने बताया कि 2006 से वो ब्रीड तैयार करने के लिए सीमन USA से आयात करते हैं। उनका ये फ़ार्म 5 एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है।

dairy sector profit (डेयरी सेक्टर से कमाई)

रोज़ होता है 4000 लीटर दूध का उत्पादन

फ़ार्म में रोज़ाना 4000 लीटर से अधिक दूध का उत्पादन होता है। एक HF Cow रोज़ का औसतन 30 से 32 लीटर दूध दे देती है। रंजीत सिंह ने बताया कि उनका 2022 तक प्रतिदिन का 5000 लीटर तक दूध उत्पादन ले जाने का लक्ष्य है। डेयरी का दूध 40 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकता है। पंजाब सरकार की सहकारी संस्था मिल्कफेड के प्रमुख ब्रांड वेरका (Verka) को वो सीधे दूध बेचते हैं।

एक HF Cow के रखरखाव पर कितना खर्च और कितनी रहती है कीमत?

एक बछिया (Female Calf) दो साल में व्यस्क हो  जाती है, यानी वो प्रजनन योग्य हो जाती है। इन दो साल में उसके रखरखाव पर एक लाख से लेकर एक लाख 20 हज़ार रुपये तक का खर्चा आ जाता है। रंजीत सिंह बताते हैं कि एक गाय को तैयार करने में इतनी लागत आने के बाद वो डेढ से 2 लाख रुपये में बिक जाती है।

लोग दूध की मशीन देखने के लिए फ़ार्म आया करते थे

आगे रंजीत सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की थी तो वो पटियाला ज़िले के गांव संधनोली रहा करते थे। उस वक़्त पूरे ज़िले में कोई दूध निकालने वाली मशीन नहीं थी। लोग बड़ी उत्सुकता के साथ मशीन देखने के लिए फ़ार्म में आते थे। उनके डेयरी फ़ार्म में 2003 तक दुधारू पशुओं की संख्या 20 से 55 हो गई। रंजीत सिंह ने बताया कि उस समय फ़ार्म ज़्यादा बड़ा नहीं था। पास में ही एक एकड़ तक की ज़मीन खरीदने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। पर कहते है न, जहां चाह है, सच्ची लगन है, मेहनत है, वहाँ राह बनने लगती है। फिर रंजीत सिंह 2006 में गांव संधनोली की अपनी ज़मीन बेचकर मोगा ज़िले के लंगियाना गाँव शिफ्ट हो गए। यहाँ उन्होंने ज़मीन खरीदी और बड़े स्तर पर अपने डेयरी व्यवसाय को आगे बढ़ाने में लग गए।

PDFA में मिली बड़ी ज़िम्मेदारी

रंजीत सिंह 1997 में Progressive Dairy Farmers Association, PDFA से बतौर मेंबर जुड़े। डेयरी क्षेत्र में लगातार उनके प्रयासों से प्रभावित होकर PDFA ने 2007 में उन्हें सात सदस्यीय कोर कमेटी में बतौर कार्यकारी सदस्य चुना। आज वो PDFA के संयुक्त सचिव (Joint Secretary) के पद पर कार्यरत हैं।

PDFA, डेयरी सेक्टर और इस व्यवसाय से जुड़े किसानों के विकास के लिए काम करता है। रंजीत सिंह लुधियाना में PDFA द्वारा आयोजित होने वाले सेमिनारों और मीटिंग्स में भाग लेते थे। वहां किसानों को एक्सपर्ट द्वारा डेयरी सेक्टर के बारे में जानकारी दी जाती थी। उस दौरान ही रंजीत सिंह ने अपने डेयरी व्यवसाय को बड़े स्तर पर ले जाने के बारे में सोचा और उसे करके भी दिखाया।

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डेयरी व्यवसाय: रंजीत सिंह ने PDFA के साथ मिलकर शुरू कीं कई डेयरी योजनाएं, बनाया देश का पहला Fully Automated Dairy Farmक्या है PDFA?

PDFA एक गैर-सरकारी संगठन (Non-Profit Organization) है, जो डेयरी किसानों के विकास के लिए काम करती है। 1972 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से PDFA की स्थापना की गई थी। PDFA डेयरी किसानों को ट्रेनिंग देने से लेकर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित करता है। लुधियाना स्थित PDFA के कार्यालय में किसानों को डेयरी व्यवसाय की ट्रेनिंग दी जाती है।

जानिए क्या है डेयरी व्यवसाय से जुड़ी White Card Scheme

रंजीत सिंह 2003 में PDFA पटियाला के डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट भी बने। रंजीत सिंह बताते हैं कि ये वो दौर था जब PDFA डेयरी किसानों के लिए कई स्कीम लेकर आया । PDFA ने कई बैंकों के साथ करार किया। इन्हीं योजनाओं में से एक है व्हाइट कार्ड स्कीम (White Card Scheme)। इस स्कीम के तहत किसानों को कम ब्याज दर पर वित्तीय सहायता (Financial Aid) दी जाती है। PDFA द्वारा डेयरी व्यवसाय की ट्रेनिंग देने के बाद, संस्थान की ओर से बैंक को लेटर जाता है। बैंक इसके बाद उस किसान को वित्तीय सहायता मुहैया कराता है। बैंक ज़मीन की मार्केट वैल्यू पर पूरे 100 पर्सेन्ट की वित्तीय सहायता देता है। उसकी गारंटी PDFA लेता है। रंजीत सिंह बताते हैं कि अगर एक एकड़ की मार्केट वैल्यू 20 लाख है तो बैंक पूरी  पूरे 20 लाख की सहायता देता है।

रंजीत सिंह कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा था कि अमेरिका जाने के लिए लोग एजेंट के पीछे घूमते थे। आज डेयरी की बदौलत ही वो तकरीबन 30 से ज़्यादा देशों की यात्रा कर चुके हैं। रंजीत सिंह कहते हैं कि आज के युवाओं में देश छोड़, विदेश में नौकरी करने की होड़ लगी हुई है। वो सलाह देते हैं कि आप यहीं देश में रहकर अच्छा बिज़नेस कर सकते हैं। डेयरी व्यवसाय में अपार संभावनाएं हैं।

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भारत में कैसे हुई डेयरी एक्सपो (International Dairy and Agri Expo) की शुरुआत?

रंजीत सिंह ने आगे बताया कि PDFA ने 2007 से व्यापक रूप से ब्रीडिंग पर काम करना शुरू किया। सरकार से लाइसेंस लेकर बाहर से सीमन आयात करना शुरू किया। डेयरी शो लगाने शुरू किए। 2007 से ही डेयरी एक्सपो की शुरुआत हुई। किसानों के बीच डेयरी फ़ार्मिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय डेयरी और कृषि एक्सपो शुरू किया गया।

रंजीत सिंह ने बताया कि PDFA के अध्यक्ष दिलजीत सिंह वर्ल्ड डेयरी एक्सपो का शो देखने के लिए अमेरिका गए हुए थे। उस दौरान उन्होंने देखा कि वहां की एक फ़ार्मर संस्था, सरकार के साथ मिलकर ये शो लगाती है। जब दिलजीत सिंह वापस भारत आए तो उन्होंने सेमीनार में इस बात का ज़िक्र किया। वहां मौजूद सभी किसानों और PDFA के सदस्यों ने इस तरह का शो भारत में भी करने को लेकर एक स्वर में हामी भरी।

रंजीत सिंह ने बताया कि उस समय PDFA के पास बजट नहीं था। मुश्किल से 30 से 40 हज़ार रुपये संस्थान के पास थे। फिर कमेटी के सदस्यों ने एक-एक लाख रुपये अपनी ओर से दिए। इसके बाद वो फ़ार्मर कमीशन के पास गए। पंजाब राज्य किसान आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. जीएस कालकट के साथ मुलाकात की। आयोग की ओर से भी 10 लाख रुपये की फंडिंग करवाई। इस तरह पहला शो लगा। शो में कई स्टॉल्स लगाए गए। किसान शो में अपने मवेशी लेकर आए। कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। इससे किसानों को प्रोत्साहन मिला।

पिता के मार्गदर्शन में बिज़नेस को पहुंचाया बुलंदी पर

इस बीच रंजीत सिंह ने लोन लेकर अपने कारोबार को और आगे बढ़ाया। 2010 तक मवेशियों की संख्या 55 से 100 पहुंच गई। उस वक़्त 100 मवेशियों के रखरखाव के लिए 10 मजदूर फ़ार्म में काम करते थे। रंजीत सिंह बताया कि एक दिन अचानक से सब लेबर फ़ार्म छोड़कर चले गए। अब समस्या थी कि इतनी गायों का पालन पोषण एक साथ कैसे हो । एक वक़्त ऐसा आया कि वो करीब 60 गायों को बेचने के बारे में सोच चुके थे। उस दौरान उनके पिता ने दो  टूक शब्दों  में उनसे कहा कि पीछे मत देखो, इसी में आगे बढ़ो और इसी व्यवसाय को बड़े स्तर पर करो। फिर वो यूरोप गए। वहां चार से पांच डेयरी फ़ार्मों का दौरा किया। एक कपल से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने देखा कि ये कपल करीबन 250 मवेशियों का खुद अकेले रखरखाव करता है। रंजीत सिंह ने बताया कि यूरोपियन देशों में लेबर बहुत महंगी पड़ती है, इसीलिए लोग वहां लेबर नहीं रखते।

देश का पहला Fully Automated Dairy Farm बना

रंजीत सिंह ने बातचीत में  बताया कि उन्होंने भारत लौटकर अपनी डेयरी में यूरोप के मॉडल को अपनाया। पुराने शेड को तोड़कर नए शेड बनवाए। मवेशियों के चारे के लिए TMR मशीन (Total Mix Ration Machine), दूध निकालने के लिए मिल्किंग पार्लर मशीन (Milking Parlor Machine), गाय के बैठने के लिए युरोपियन क्यूबिकल मैट (Cow Cubicle Mat), गर्मियों के लिए कूलिंग फैन, बल्क मिल्क कूलर जैसी कई आधुनिक मशीने लगाईं। उस वक़्त करीबन तीन करोड़ के निवेश के साथ उन्होंने मॉडर्न डेयरी फ़ार्म खड़ा किया। इस निवेश के लिए उन्होंने लोन लिया।

रंजीत सिंह बताते हैं कि 2012 में उनका डेयरी फ़ार्म देश का पहला Fully Automated Dairy Farm बना। कोई गाय बीमार होती है तो फ़ोन में मेल या मैसेज आ जाता है। कौन से नंबर की गाय बीमार है, क्या बीमारी है, इसकी जानकारी भी मिल जाती है। हर गाय के गले में एक विशेष पट्टा लगा होता है। ये पट्टा एक सेन्सर की तरह काम करता है। इससे झुंड में हर जानवर की गतिविधि पर नज़र रखने में आसानी होती है। इस तरह समय रहते मवेशियों को इलाज दिया जा सकता है।

रंजीत सिंह बताते हैं कि उन्होंने फ़ार्म शुरू करने से पहले जालंधर स्थित Milkfed के Regional Demonstration & Training Centre से ट्रेनिंग ली। जहां से उन्होंने मवेशियों के इलाज और ब्रीडिंग करने के  उन्नत तरीकों की बारीकियों के बारे में जाना। उनके फ़ार्म में कोई गाय बीमार होती है तो वो खुद उसका इलाज करते हैं। समय-समय पर टीकाकरण भी कराया जाता है। आज के समय में रंजीत सिंह अपने डेयरी फ़ार्म से साल का एक करोड़ के आसपास का मुनाफ़ा कमा लेते हैं।

डेयरी सेक्टर में ‘मशीन युग’ की शुरुआत की

रंजीत सिंह ने अपने फ़ार्म के लिए जितनी मशीनें दूसरे देशों से मंगवाई थीं, उसका डिज़ाइन देश में तैयार करवाया। एक वेंडर को मशीनों के डिज़ाइन दिखाए। आज के समय में जिस विदेशी मशीन की कीमत 20 लाख की पड़ती है, वैसी ही मशीन  किसानों को ढाई से तीन लाख में उपलब्ध करवाते हैं। 2012 से मशीनों का डिज़ाइन बनाने पर काम किया। आज ये मशीनें पूरे भारत में जाती हैं। रंजीत सिंह कहते हैं कि उन्हें अपने फ़ार्म के लिए मशीनें बाहर से खरीदनी पड़ी थीं, लेकिन किसान के पास इतना पैसा नहीं होता कि वो इतनी लागत लगा सके। इसके लिए उन्होंने इम्पोर्ट की गई मशीन का देसी डिज़ाइन बनवाकर किसानों को रियायती दरों पर उपलब्ध करवाया।

उन्होंने देशभर में करीब 100 Automated Dairy Farm बनवाए हैं। रंजीत सिंह ने बताया कि वो किसानों को डेयरी फ़ार्म लगाने से लेकर इसके संचालन के बारे में नि:शुल्क कंसल्टेंसी यानी सलाह देते हैं। मशीन खरीद का पैसा भी सीधा वेंडरों के पास जाता है। उनका उद्देश्य किसानों के लिए डेयरी फ़ार्मिंग (dairy Farming) को सुगम बनाना है।

PDFA से जुड़े हैं करीबन 32 हज़ार किसान

अभी PDFA से तकरीबन 32 हज़ार किसान बतौर मेंबर जुड़े हुए हैं। PDFA ने 2012 में Progressive Dairy Solutions Ltd. (PDS) नाम से एक कंपनी का गठन भी किया। रंजीत सिंह ने कहा कि ये फ़र्म किसानों द्वारा, किसानों के पैसों से, किसानों के लिए बनाया गया है। इसके ज़रिए किसानों को पशु आहार समेत कई चीज़ें कम दरों में उपलब्ध कराईं जाती हैं। रंजीत सिंह बताते हैं कि मवेशियों को दिए जाने वाले मिनरल्स, विटामिन युक्त उन्नत आहार विदेशों से मंगाया जाता है। रंजीत सिंह ने बताया  कि मल्टी नेशनल कंपनियां जो प्रॉडक्ट 700 से 800 रुपये प्रति किलो बेचती हैं, वही PDS के ज़रिए किसानों को तकरीबन 400 रुपये में मुहैया कराया जाता है।

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तस्वीर साभार: PDFA

डेयरी व्यवसाय: रंजीत सिंह ने PDFA के साथ मिलकर शुरू कीं कई डेयरी योजनाएं, बनाया देश का पहला Fully Automated Dairy FarmHF Cows कहलाएंगी Punjab Holstein Friesian (PHF)

रंजीत सिंह ने बताया कि पंजाब में होल्सटीन फ्रिसियन (HF Cows) की क्रॉस ब्रीड नस्ल की ब्रीडिंग का कार्य PDFA संस्थान ने किया। आज के वक़्त में पंजाब की गायें  रोज का 70-70 लीटर तक दूध देती हैं। दूसरे राज्यों के लोग गाय लेने पंजाब आते हैं। रंजीत सिंह ने बताया कि PDFA जल्द ही HF Cows को PHF Cows (Punjab Holstein Friesian) के नाम से रजिस्टर्ड करवाने जा रही है, क्योंकि इसकी ब्रीडिंग पर पंजाब ने ही काम किया है।

कैसे ले सकते हैं PDFA से ट्रेनिंग? (Dairy Farming Training)

इसके लिए आपको PDFA का मेंबर बनना पड़ेगा और लुधियाना स्थित ऑफिस में जाना होगा। देशभर से कोई भी किसान यहां से ट्रेनिंग ले सकता है। आजीवन सदस्यता शुल्क (Lifetime Membership Fees) 1000 रुपये है यानी सिर्फ़ एक बार ही आपको ये फ़ीस देनी है। इसके बाद आप PDFA से आजीवन  डेयरी फ़ार्मिंग की ट्रेनिंग ले सकते हैं। हर महीने सेमीनार आयोजित किये जाते हैं। देश- विदेश से डेयरी एक्सपर्ट आते हैं। वहीं संस्थान के सक्रिय सदस्यों, जो दूसरे किसानों को बढ़ावा देते हैं, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ट्रेनिंग दी जाती है। एक साल में 30 से 40 किसानों का ग्रुप ट्रेनिंग के लिए दूसरे देशों में जाता है। 

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