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मूंगफली के छिलकों का ऐसे भी हो सकता है इस्तेमाल, इस लड़की के एक आविष्कार ने बचाया पर्यावरण, बदल दी तस्वीर

नौवीं कक्षा की छात्रा ने अपने स्कूल से ही की बदलाव की शुरुआत

श्रीजा को मूंगफली के छिलकों से किये गए अपने इनोवेशन के लिए सितंबर 2020 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा अवॉर्ड भी मिला।

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सर्दी का मौसम बस दस्तक देने ही वाला है। सुबह ठिठुरन होने लगी है। टपरी पर चाय के लिए भीड़ बढ़ेगी और मूंगफली के ठेलों पर लोगों का आना-जाना होगा। धूप में बैठकर घरवालों के साथ मूंगफली खाने का अपना ही मजा होता है। मूंगफली को तोड़कर उसका दाना मुंह में और छिलके सीधा डस्टबिन में जाते हैं।  मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि मूंगफली के छिलके भी काम आ सकते हैं। तेलंगाना की रहने वाली 14 साल की श्रीजा ने मूंगफली के छिलकों से गमले बना डाले।

किस चीज़ ने सोचने पर किया मजबूर

श्रीजा तेलंगाना के गडवाल जिले के चिंताकुंटा गाँव के ज़िला  परिषद हाई स्कूल में पढ़ती हैं। स्कूल में हर साल  पौधे लगाने के  कार्यक्रम का आयोजन होता है। स्कूल में बच्चों के जन्मदिन के मौके पर भी उन्हें पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ये पौधे स्कूल के आसपास लगाए जाते हैं और आमतौर पर प्लास्टिक की थैलियों में उगाए जाते हैं।

2020 में कक्षा नौवीं की छात्रा श्रीजा ने एक ऐसी ही आयोजन में हिस्सा लिया। जब श्रीजा पौधा लगाने के लिए मिट्टी खोदने लगीं तो उन्होंने देखा कि कुछ फ़ीट नीचे दबी प्लास्टिक की थैली दो साल बाद भी वैसी की वैसी पड़ी है। इसने श्रीजा को सोचने पर मजबूर किया। श्रीजा प्लास्टिक की थैलियों  के इस्तेमाल की इस समस्या को दूर करने के तरीके ढूंढने में जुट गयीं।

groundnut shell pots ( मूंगफली के छिलकों )
तस्वीर साभार: farmkartfoods

स्कूल से ही की बदलाव की शुरुआत

श्रीजा ने कई महीनों तक प्लास्टिक के विकल्पों पर रिसर्च की। श्रीजा की रिसर्च रंग लाई और उन्होंने मूंगफली के छिलके के गूदे से बने बायोडिग्रेडेबल प्लांटर तैयार कर दिखाए। श्रीजा ने अपने स्कूल से ही बदलाव की शुरुआत की। वृक्षारोपण अभियान के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने के लिए प्रेरित किया।

गणित टीचर ने की प्रयोग को सफल बनाने में मदद

श्रीजा जिस गडवाल जिले से आती है वो मूंगफली की खेती के लिए जाना जाता है। श्रीजा को अंदाजा था कि मूंगफली का छिलका कृषि कचरे में आता है। किसान खाद के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद श्रीजा अपने प्रयोग में लग गईं। श्रीजा के इस प्रयोग में उनकी गणित टीचर ने उनकी पूरी मदद की।

श्रीजा अपने घर के पास से ही एक मिल से मूंगफली के छिलके लेकर आयीं । उन्हें घर पर ही मिक्सर में पीस दिया। पानी मिलकर इसका पल्प तैयार किया और एक  बोतल में डाल दिया। श्रीजा का ये प्रयोग सफल नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने गणित टीचर को ये बात बताई ।  टीचर ने श्रीजा को कुछ और चीजें इसमें मिलाने के लिए कहा। आखिरकार श्रीजा को सफलता मिली और मूंगफली के छिलकों से बना गमला तैयार हो गया।

groundnut shell pots ( मूंगफली के छिलकों )
तस्वीर साभार: planetavital

20 दिन से कम वक्त में ही नष्ट हो गया गमला

गमला तैयार होने के बाद  श्रीजा ने उसमें एक नीम का पौधा लगाया। इसके बाद उसे  ज़मीन में बो दिया। बोने के करीब बीस दिन बाद श्रीजा और स्कूल प्रशासन ने देखा कि मूंगफली के छिलके से तैयार किया गया गमला 20 दिन से भी कम समय में ही नष्ट हो गया।

श्रीजा एक दिन में 6 से 7 गमले ही तैयार कर पाती थीं।  कुछ दिन बाद  श्रीजा के इस आविष्कार को टी वर्क्स नाम की एक कंपनी का साथ मिला। इस कंपनी ने एक ऐसी मशीन तैयार की, जिससे कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा गमले तैयार हो सकें। Biopress (version ‘4T’) नाम की इस मशीन से अब बड़ी तादाद  में इन बायोपॉटस को तैयार किया जा रहा है। ये मशीन हर महीने 6 हज़ार बायोपॉट्स तैयार कर सकती है।

groundnut shell pots ( मूंगफली के छिलकों )
तस्वीर साभार: thebetterindia

अपने इस इनोवेशन के लिए मिला अवॉर्ड

श्रीजा को उनके इस सफल प्रयोग के लिए सितंबर 2020 में स्कूली बच्चों द्वारा नए इनोवेशन की श्रेणी में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा अवॉर्ड भी मिला।

groundnut shell pots ( मूंगफली के छिलकों )
तस्वीर साभार: thebetterindia

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