किसान ऑफ़ इंडिया अपने हज़ारों लेख और ऑडियो-वीडियो प्रस्तुतियों के ज़रिये किसानों को बताता आया है कि खेती-बाड़ी की आमदनी बढ़ाने के लिए क्या करें, क्यों करें, कब करें और कैसे करें? उन्नत खेती की ऐसी डगर पर मौजूद तमाम ख़तरों, बीमारियों और हानिकारक जीवों से बचाव को लेकर किसानों को आगाह करते आये हैं। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मौजूदा संडे स्पेशल में विस्तार से बातें होंगी, मिट्टी के सबसे बड़े दुश्मन ‘गाजर घास’ की। इसे वैज्ञानिकों ने धरती की सम्पूर्ण जैवविविधता के लिए विनाशकारी नासूर या घाव का दर्ज़ा दिया है। लिहाज़ा, गाँव हो या शहर, जहाँ भी आपको गाजर घास नज़र आये, फ़ौरन पूरी ताक़त से इसके ज़हरीले पौधों का समूल नाश करने का बीड़ा उठाएँ।
क्यों विनाशकारी है गाजर घास?
दुनिया के क़रीब 20 देशों में ज़हरीले खरपतवार, गाजर घास का प्रकोप है। ये आक्रामक ढंग से फैलती है और ऐसे ज़हरीले रसायनों का स्राव करती है जिससे ज़मीन बंजर हो जाती है। भारत के लिए ये एक घुसपैठिया वनस्पति है। ये हर तरह के वातावरण में तेज़ी से बढ़ती है। माना जाता है कि अमेरिका या कनाडा से आयातित गेहूँ में छिपकर गाजर घास के सूक्ष्म बीज भारत आ घुसे।
देश में पहली बार 1955 में इसे पुणे में देखा गया था। इसने अब तक देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में खेतीहर ज़मीन, रेल की पटरियों के किनारे की खाली पड़ी सरकारी ज़मीन, कॉलेजों-अस्पतालों, खेल के मैदानों, सड़कों के किनारे की खाली जगहों पर अपनी जड़ें ऐसे जमायीं कि अब इसका रक़बा 3.5 करोड़ हेक्टेयर तक फैल चुका है।

सबके लिए घातक है गाजर घास
ICAR के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गाजर घास की वजह से फ़सलों के 40 से 80 प्रतिशत उत्पादन को चपत लग रही है। जीव-जन्तु हों या वनस्पति, गाजर घास पूरे प्राणिजगत, जैवविविधता और पर्यावरण के लिए घातक है। अपनी आक्रामक विस्तार क्षमता की वजह से गाजर घास हरेक फ़सल और अन्य उपयोगी वनस्पतियों को भी ख़त्म कर देती है। इसीलिए इसका सफ़ाया युद्धस्तर पर करना ज़रूरी है।
अनुकूल वातावरण मिलने पर गाजर घास साल भर उगी रहती है। ज़हरीले रसायनों के स्राव के अलावा मिट्टी से पोषक तत्वों और नमी को चूस लेने की क्षमता भी गाजर घास में कई गुना ज़्यादा होती है। मिट्टी से पोषण लेने की प्रतिस्पर्धा में गाजर घास अन्य सभी फ़सलों को पछाड़ देती है। मिट्टी के ऐसे ज़बरदस्त शोषण से वो बंजर हो जाती है। ज़मीन का सत्यानाश करने के दौरान गाजर घास तक़रीबन हरेक फ़सल के उत्पादन को बुरी तरह से प्रभावित करती है। इसकी रोकथाम का खर्च ज़्यादा होने से खेती की लागत बढ़ जाती है और किसानों को बहुत नुकसान होता है।

गाजर घास के विषाक्त पदार्थ का प्रकोप धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूँगफली, सब्जियों और फलों की फ़सलों के अंकुरण और वृद्धि पर देखा गया है। ये दलहनी फ़सलों में जड़ ग्रन्थियों के विकास को प्रभावित करता है। इससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता घट जाती है। गाजर घास के परागकण बैंगन, मिर्च, टमाटर आदि सब्जियों के पौधे पर एकत्रित होकर उनके परागण, अंकुरण और फल विन्यास को प्रभावित करते हैं तथा पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी और फूलों में विकृति पैदा करते हैं।
गाजर घास से मनुष्य में त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, दमा और बुख़ार आदि का सबब बनती है। इसका अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मौत भी हो सकती है। पशुओं के लिए भी ये विषैला खरपतवार अत्यधिक नुकसानदायक है। यदि पशु इसे खा ले तो उसके मुँह में अल्सर हो जाता है, त्वचा पर धब्बे उभर आते हैं और आँखों से पानी तथा मुँह से ज़्यादा लार बहने लगता है। इसे खाने से दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है। गाजर घास को ज़्यादा मात्रा में पशु को खिलाने से उसकी मौत भी हो सकती है।

ये भी पढ़ें: खरपतवारों से कैसे बचाएं सोयाबीन की फसल? जानिए सोयाबीन की चारामार (खरपतवार नाशक) के बारे में
क्या है गाजर घास की पहचान?
गाजर घास की 20 प्रजातियाँ हैं। यह सफ़ेद फूलों वाली क़रीब 1 मीटर ऊँची और विदेशी खरपतवार है। ये अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, भारत, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर-प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओड़ीशा, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड के विभिन्न भागों में फैली हुई है।
इसका वानस्पतिक नाम ‘पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस’ (Parthenium hysterophorus) है। इसे काँग्रेस घास, सफ़ेद टोपी, चटक चाँदनी, गन्धी बूटी, चिड़िया बाड़ी आदि भी कहते हैं। इसकी पत्तियाँ गाजर या गुलदाउदी की पत्तियों जैसी होती हैं। इसका तना रोयेंदार और अत्यधिक शाखाओं वाला होता है। इसका जमाव वर्षा काल में अधिक होता है। इसका जीवन चक्र क़रीब 4 महीने का होता है लेकिन अनुकूल वातावरण में ये पूरे साल हरी-भरी रहती है। गाजर घास का हरेक पौधा 5000 से लेकर 25000 तक सूक्ष्म बीज पैदा करता है। इसके बीज वर्षों तक ज़मीन में पड़े रहते हैं और धूप तथा नमी पाकर आसानी से अंकुरित हो जाते हैं।

कैसे होता है गाजर घास का प्रसार?
फ़सलों के बीजों, सिंचाई, खाद, हवा, बारिश, मड़ाई और यातायात के साधनों से एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचते और पनपते रहते हैं। किसी फ़सल के आसपास यदि गाजर घास का प्रकोप हो और वहाँ यदि फ़सल की कटाई और मड़ाई को सावधानीपूर्वक नहीं किया जाए तो गाजर घास के बीज उपज के ज़रिये अन्य खेतों तक पहुँच जाते हैं। गाजर घास नहरों के किनारों पर बहुतायत से देखी जाती है। नहर या नालियों में उगी गाजर घास के बीज पकने के बाद वहीं गिर जाते हैं और सिंचाई के पानी के साथ खेतों में पहुँच जाते हैं।
इसी तरह अनेक खरपतवारों से जब किसान खाद बनाते हैं तब उनमें छिपकर भी गाजर घास के बीज खेतों तक पहुँच जाते हैं। इस घास से प्रभावित चारागाह में पशुओं के चरने के दौरान उनके ज़रिये भी गाजर घास के बीज एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच जाते हैं। तेज़ हवा का झोंका भी गाजर घास के सूक्ष्म और हल्के बीजों को कहीं से कहीं पहुँचा देता है। गाजर घास से प्रभावित फ़सल की मड़ाई कराने के बाद यदि मशीन को अच्छी तरह से साफ़ नहीं किया जाए तो भी इसके बीजों के दूसरे बीजों के साथ मिलने की आशंका रहती है।
गाजर घास से मुक्ति कैसे पाएँ?
मिट्टी को गाजर घास से मुक्त रखने के लिए सामुदायिक प्रयास बहुत ज़रूरी है। जहाँ गाजर घास पनपती दिखे वहाँ सामुदायिक अभियान चलाकर इसे समूल नष्ट करना चाहिए। गाजर घास को समूल नष्ट करने का सबसे बढ़िया उपाय है- वर्षा ऋतु में फूल आने से पहले इसके पौधों को जड़ से उखाड़कर नष्ट कर देना। पौधों को उखाड़ने के लिए खुरपी का इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि पौधे को हाथ से खींचकर ज़मीन से उखाड़ना हो तो ऐसा करते वक़्त दस्ताने ज़रूर पहनना चाहिए। ताकि शरीर का कोई अंग इसके सम्पर्क में नहीं आये।
जैविक नियंत्रण: गर्मी के दिनों में फ़सल की कटाई होने के बाद खाली पड़ी भूमि की कल्टीवेटर से दो-तीन जुताई कर देनी चाहिए। ताकि बीज समेत तमाम खरपतवार पूरी तरह से नष्ट हो जाएँ। घर के आसपास और संरक्षित क्षेत्रों में गेन्दे के पौधे लगाकर भी गाजर घास के फैलाव और वृद्धि को रोका जा सकता है। इसकी रोकथाम ‘मैक्सिकन बीटल’ नामक कीट से भी हो सकती है, जो सिर्फ़ गाजर घास ही खाता है और डेढ़-दो महीने पूरा पौधा खा लेता है। इसीलिए जहाँ गाजर घास का प्रकोप ज़्यादा हो वहाँ 500 से 1000 वयस्क बीटल छोड़ देना चाहिए। इस बीटल की प्रजनन क्षमता अपार होती है। इनकी आबादी बहुत तेज़ी से बढ़ती है। इससे गाजर घास का टिकाऊ समाधान हो जाता है।
रासायनिक नियंत्रण: खरपतवारनाशक रसायनों के ज़रिये भी गाजर घास को ख़त्म किया जा सकता है। खाली खेतों में गाजर घास पनपने की शुरुआती अवस्था में जब पौधे 2-3 पत्तियों वाले हों तब ग्लाइफोसेट 1.5 से 2.0 प्रतिशत अथवा मेट्रीब्यूजिन 0.3 से 0.5 प्रतिशत अथवा 2.4-डी 0.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर और फूल आने के पहले छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव करते समय ध्यान रहे कि पौधे घोल से अच्छी तरह भीग जाएँ अन्यथा अनुकूल नतीज़ा नहीं मिलेगा।
गाजर घास का सदुपयोग
गाजर घास का उपयोग अनेक कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के निर्माण में किया सकता है। इसकी लुग्दी से विभिन्न प्रकार के काग़ज़ तैयार किये जा सकते हैं। गोबर के साथ मिलाकर इससे बायोगैस उत्पादन का काम लिया जा सकता है। इसी तरह फ़सल और मिट्टी को बर्बाद करने वाली और सभी प्राणियों की दुश्मन गाजर घास को यदि किसान, कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट बनाने में इस्तेमाल करें तो ये आमदनी बढ़ाने वाला दोस्त भी बन सकता है।

ये भी पढ़ें: लवणीय मिट्टी (Saline Soil): जानिए कैसे करें लवणीय या रेह मिट्टी का सुधार और प्रबन्धन?
गाजर घास से बनाएँ कम्पोस्ट
गाजर घास से कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए एक आयताकार गड्ढा बनाया जाता है। इसमें सूखी और हरी गाजर घास तथा गोबर को डाला जाता है। साथ ही अन्य अवशिष्ट पदार्थ का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके बाद दो इंच तक मिट्टी डाली जाती है। यह प्रक्रिया गड्डा भरने तक दोहरायी जाती है। छह महीने में गड्ढे में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाती है। इसे यदि 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें तो ये रासायनिक खाद से बेहतर साबित हुई। इससे धान की पैदावार में 20 प्रतिशत तक का इज़ाफ़ा देखा गया।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Cloning Technology Created History: ‘गंगा’ गाय के Ovum से पैदा हुई स्वस्थ बछड़ी, डेयरी क्षेत्र में बड़ी कामयाबीराष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (National Dairy Research Institute), करनाल के वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग तकनीक (Cloning Technology Created History) के जरिए एक बड़ी सफलता पाई है। देश की पहली क्लोन गिर गाय ‘गंगा’ (Country’s first cloned Gir cow ‘Ganga’) के अंडाणुओं (Ovum) से एक स्वस्थ बछड़ी का जन्म हुआ है।
- Maize Cultivation: मक्के की खेती का उन्नत तरीक़ा क्या है, जानिए प्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार सेप्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार मक्के की खेती (Maize cultivation) में उन्नत तकनीकों से उच्च उत्पादन ले रहे हैं और आलू बीज उत्पादन में भी सराहे गए हैं।
- India Is Becoming A Global Leader In Green Energy: भारत ने स्वच्छ ऊर्जा में 5 साल के टारगेट को वक्त से पहले किया पूराहरित ऊर्जा (Green Energy) के क्षेत्र में भी एक ग्लोबल लीडर (Global Leader) की भूमिका निभा रहा है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण (Climate change and pollution) की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत ने स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) को अपनी प्राथमिकता बनाया है और इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- धान से दाल तक, खेत से बाज़ार तक: जानिए कैसे प्रगतिशील किसान चरन सिंह ने संकर धान से बदली अपनी किस्मतउत्तर प्रदेश कानपुर देहात के गांव औरंगाबाद, पोस्ट भेवान के प्रगतिशील किसान चरन सिंह ने (Progressive farmer Charan Singh changed his fortunes), जो पिछले 20 सालों से खेती कर रहे हैं और आज न सिर्फ अपने 4 एकड़ खेत से अच्छी आमदनी कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी मिसाल बन गए हैं।
- रासायनिक खेती छोड़ सुषमा चौहान ने अपनाई प्राकृतिक खेती, शिमला में बनाई अपनी ख़ास पहचानप्राकृतिक खेती (Natural farming) से हिमाचल की सुषमा चौहान ने फल उत्पादन में पाया शानदार सुधार और ख़र्च घटाकर मुनाफ़ा बढ़ाया।
- Beekeeping: कैसे सफल व्यवसाय बन सकता है मधुमक्खी पालन? जानिए, प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार जाट सेमधुमक्खी पालन (Beekeeping) को सफल व्यवसाय में बदलने की जानकारी दे रहे हैं डॉ. मनोज कुमार जाट, जानिए शहद उत्पादन और वैज्ञानिक तकनीकें।
- PM Dhan-Dhanya Krishi Yojana: प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना है किसानों के लिए ऐतिहासिक कदम,100 चुनिंदा ज़िलों में होगी शुरूप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अध्यक्षता में कैबिनेट ने ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ (PM Dhan-Dhanya Krishi Yojana) को मंजूरी दे दी है। ये योजना देश के 100 चुनिंदा जिलों में शुरू की जाएगी
- New Initiative Of NABARD: GRIP, CoLab और Whatsapp चैनल से ग्रामीण भारत को मिलेगी बड़ी ताकत!नाबार्ड (NABARD) ने Graduated Rural Income Generation Programme (GRIP) की शुरुआत की है, जिसका मकसद ग्रामीण गरीबों की आय बढ़ाना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 97वां स्थापना दिवस: कृषि विकास की नई उपलब्धियों का उत्सवभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 97वां स्थापना दिवस (97th Foundation Day of ICAR) नई तकनीकों, रिकॉर्ड उत्पादन और किसानों के लिए नवाचारों का जश्न है।
- CARI-Nirbheek: देसी मुर्गी पालन में क्रांति, किसानों की आय दोगुनी करने वाला आया ‘Super Chicken’!ICAR-Central Avian Research Institute (CARI), बरेली ने ‘सीएआरआई-निर्भीक’ (CARI-Nirbheek ) नाम की एक शानदार देसी मुर्गी की प्रजाति विकसित की है, जो ग्रामीण और छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
- Fake And Substandard Fertilizers : नकली और घटिया खाद के धोखे को रोकने के लिए केंद्र सरकार का बड़ा कदम, अब होगी सख्त कार्रवाईकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर नकली और घटिया गुणवत्ता वाली खाद (Fake and poor quality fertilizers) की बिक्री पर तुरंत सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
- The Poultry Expo 2025 का इंडिया एक्सपो मार्ट, ग्रेटर नोएडा में 21 से 23 अगस्त तक होने जा रहा है आयोजनThe Poultry Expo 2025 ग्रेटर नोएडा में होगा भारत का सबसे बड़ा पोल्ट्री एक्सपो, जहां इनोवेशन, नेटवर्किंग और मार्केट की अपार संभावनाएं मिलेंगी।
- World Youth Skills Day: देश के युवा आधुनिक कृषि तकनीक, जैविक खेती के साथ कृषि क्रांति में भर रहे नई उड़ान15 जुलाई, विश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day) के अवसर पर आइए जानते हैं कि कैसे देश के युवा आधुनिक कृषि तकनीक, जैविक खेती, कृषि-उद्यमिता (Agripreneurship) और फूड प्रोसेसिंग (Food Processing सुनहरा भविष्य बना रहे हैं।
- Ornamental Fish Rearing: सजावटी मछली पालन है फायदेमंद शौक के साथ शानदार बिज़नेस भीसजावटी मछली पालन (Ornamental Fish Rearing) न सिर्फ एक अच्छा शौक है, बल्कि एक फ़ायदेमंद बिज़नेस (Fish Farming) भी बन सकता है। अगर आपको मछलियों से प्यार है और आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो ये आर्टिकल आपके लिए ही है।
- Bio Mustard farming: सरसों की जैविक खेती को अपनाकर चुनें सालों-साल ज़्यादा उपज पाने का रास्तासरसों की जैविक खेती (Bio mustard farming) से कम लागत में अधिक मुनाफ़ा संभव है। नए शोध से साबित हुआ है कि जैविक तरीक़े से उपज को साल दर साल बढ़ाया जा सकता है।
- Google’s AI Revolution: भारतीय किसानों के लिए खुशख़बरी, AMED API नया डिजिटल साथीGoogle ने भारत के कृषि क्षेत्र को बदलने के लिए एक बड़ी पहल की है। इसके तहत AMED API (Agricultural Monitoring and Event Detection) और भारतीय भाषाओं व संस्कृति को समझने वाले एआई मॉडल्स (AI Models) लॉन्च किए गए हैं। यह न सिर्फ किसानों के लिए वरदान साबित होगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाएगा।
- भोपाल में रोज़गार मेला: शिवराज सिंह चौहान ने सौंपी युवाओं को नियुक्ति पत्र, बोले – विकसित भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदमभोपाल में शिवराज सिंह चौहान ने रोज़गार मेला में 51,000 से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे।
- CM योगी का ‘Green Gold’ विजन: Carbon Credits से उत्तर प्रदेश बनेगा अमीर,अयोध्या बनेगा ‘ग्रीन सिटी’योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) को देश का पहला ‘कार्बन क्रेडिट हब’ (Carbon Credits Hub) बनाने की ओर बड़ा कदम बढ़ाया है।
- बिहार का ‘मखाना’ अब Global Star: सुपरफूड मखाना बिहार के किसानों की आय में लगाएगा पंख, जानें कैसे HS कोड ने बदला गेममखाना और इससे बने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अलग-अलग HS Code (Harmonized System Code) मिल गया है। ये निर्णय बिहार के किसानों, उद्यमियों और निर्यातकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
- गन्ने की प्राकृतिक खेती के साथ ही प्रोसेसिंग से अच्छी कमाई कर रहे हैं प्रगतिशील किसान योगश कुमार, जानिए उनका सक्सेस मंत्रगन्ने की प्राकृतिक खेती के साथ ही प्रोसेसिंग कर इनोवेटिव किसान योगेश कुमार बना रहे हैं नए उत्पाद और कमा रहे हैं बेहतर मुनाफ़ा।