किसान के लिए मिट्टी की अहमियत वैसी ही है जैसे इन्सान के शरीर में हड्डियों की ताक़त। यानी, जैसे दमदार हड्डियों के बग़ैर शरीर और सेहत शानदार नहीं हो सकती है वैसे ही उपजाऊ मिट्टी के बग़ैर खेती शानदार नहीं हो सकती। मनुष्य इस तथ्य को सदियों से जानता-समझता रहा है। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के अन्धा-धुन्ध दोहन की वजह से उपजाऊ मिट्टी वाले खेतों का इलाका तेज़ी से घटता जा रहा है।
उपजाऊ मिट्टी के बंजर में तब्दील होने का सबसे घातक प्रभाव किसानों पर पड़ता है, भले ही इसके लिए समाज के अन्य वर्ग कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हों। वैज्ञानिकों का समुदाय और सरकारों की ओर से किसानों को बंजर होती ज़मीन के बढ़ते प्रकोप से उबारने में मदद तो की जा सकती है, लेकिन बंजर ज़मीन को सुधारकर उसे फिर से कृषि योग्य भूमि में तब्दील करने का सबसे बड़ा दारोमदार किसानों पर ही रहेगा।
औद्योगिक क्रान्ति में बाद ख़ूब बढ़ा बंजर
औद्योगिक क्रान्ति के बाद से अब तक विश्व की कुल कृषि योग्य भूमि का काफ़ी बड़ा हिस्सा अनुपजाऊ हो चुका है। इसके अलावा मिट्टी में नमी की लगातार घट रही मात्रा से ज़मीन शुष्क और अनुपजाऊ बनती जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इस दशा के पीछे दुनिया भर में कम तथा अनियमित बारिश का होना है। आँकड़ें बताते हैं कि बीती दो से तीन सदी में दुनिया भर में बारिश की कुल मात्रा में 72 फ़ीसदी तक की कमी आयी है। विकासशील देशों के लिए ऐसी वैश्विक परिस्थितियाँ बेहद चिन्ताजनक हैं, क्योंकि दुनिया की 40 फ़ीसदी आबादी एशिया तथा अफ्रीका के उन इलाकों में बसती है जहाँ मरुस्थलीकरण की आशंका ज़्यादा देखी जा रही है।
मरुस्थलीकरण की दशा तब और चिन्ताजनक हो जाती है, जब हम पाते हैं कि दुनिया में मानव की आबादी अब 8 अरब से ज़्यादा हो चुकी है। इसके अभी और बढ़ते जाने का अनुमान है। इसका मतलब ये है कि इन्सान को सिकुड़ती ज़मीन के बीच अपनी बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए भोजन जुटाना होगा। भोजन की इस चुनौती का सामना करने के लिए जहाँ एक ओर खेती की ऐसी उन्नत तकनीकों को विकसित करने पर ज़ोर है जिसे पैदावार बढ़ायी जा सके तो वहीं दूसरी ओर, उपजाऊ खेतों के बंजर बनने की रफ़्तार पर भी ज़बरदस्त ब्रेक लगाने की ज़रूरत है।
भारत की 30% ज़मीन बंजर
ज़मीन के बंजरपन या मरुस्थलीकरण की समस्या भारत में भी तेज़ी से बढ़ रही है। देश की मरुस्थलीय भूमि अब बढ़ते-बढ़ते 30 फ़ीसदी हो चुकी है। देश की कुल अनुपजाऊ भूमि का 82 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडीशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में पाया जाता है। लिहाज़ा, इन्हीं राज्यों में मिट्टी को बंजर से उपजाऊ बनाने का काम सबसे ज़्यादा करने की ज़रूरत है।
मरुस्थलीकरण ज़मीन के ख़राब होकर अनुपजाऊ हो जाने की प्रक्रिया है। इसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अन्य कारणों से शुष्क, अर्द्धशुष्क और निर्जल अर्द्धनम इलाकों की भूमि की उत्पादन क्षमता में कमी हो जाती है। घास के मैदानों में अत्यधिक चराई, उत्पादकता और जैव-विविधता को कम करते हैं तो वनों की कटाई से ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव में वृद्धि होती है। इन सभी के सामूहिक प्रभाव की वजह से मिट्टी की सबसे ऊपरी यानी उपजाऊ परत के कटाव का ख़तरा बेहद बढ़ जाता है।
विश्व का 9% है बंजर
संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में हर साल क़रीब 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो जाती है। UN का मानना है कि मृदा की गुणवत्ता में क्षति होने के कारण राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद (GDP) की दर में हर साल 8 प्रतिशत तक गिरावट आने की आशंका है। एक अन्य शोध का अनुमान है कि दुनिया की 83 करोड़ हेक्टेयर से अधिक भूमि खारेपन से प्रभावित है। यह विश्व की कुल भूमि का 9 फ़ीसदी और भारत के क्षेत्रफल का चार गुना है। खारेपन से प्रभावित मिट्टी वैसे तो सभी महाद्वीपों और हर तरह की जलवायु वाली परिस्थितियों में पायी जाती है, लेकिन मध्य पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका, उत्तर अफ़्रीका और प्रशान्त क्षेत्रों में इसका असर ज़्यादा दिखायी देता है।
मिट्टी या मृदा के खारेपन से पेड़-पौधे बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इसी खारेपन की वजह से मरुस्थल और बंजर ज़मीन में नमी का कमी होती है तथा पानी का वाष्पीकरण भी ज़्यादा होता है, क्योंकि मिट्टी में नमी को सोखने और अपने पास सहेजकर रखने की क्षमता घटती है। मिट्टी में खारेपन यानी नमक या अम्लीयता की मात्रा बढ़ने से उसमें मौजूद पोषक तत्व बर्बाद होने लगते हैं और इससे ज़मीन धीरे-धीरे बंजर बन जाती है।
रासायनिक उर्वरक भी हैं घातक
रासायनिक उर्वरकों में भी मिट्टी की अम्लीयता बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। इसीलिए मिट्टी की अम्लीयता पर काबू पाने के लिए रासायनिक खादों के साथ जैविक खादों जैसे सड़ा गोबर, केंचुआ खाद, नीम, करंज और महुआ की खली भी डालना पड़ता है। दरअसल, रासायनिक खाद की वजह से ज़मीन में मौजूद सूक्ष्म खनिज तत्व जैसे मैगनीज़, बोरान आदि की उपलब्धता बढ़ जाती है। इसका फ़ायदा भी फसल पर दिखायी देता है, लेकिन लम्बे समय तक इनके इस्तेमाल से खेतों में नमक की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि ज़मीन बंजर हो जाती है।
रसायन विज्ञान की भाषा में नमक को सोडियम क्लोराइड कहते हैं। ये खेत में मौजूद अन्य तत्वों से रासायनिक क्रियाएँ करके उनके गुण बदल देता है। इससे खेत में सल्फर की मात्रा भी ज़्यादा हो जाती है, जो ज़मीन के लिए नुकसानदायक साबित होती है। शुरुआत में भले ही किसानों को रासायनिक खाद का लाभ दिखता हो, लेकिन इससे ज़मीन का बंजरपन बढ़ता है।
कैसे सुधारें बंजर को और कैसे पाएँ इससे कमाई?
अभी तक हमने आपको मिट्टी के बंजरपन से जुड़ी मौजूदा दशा के बारे में बताया। लेकिन अब हम आपको किसान ऑफ़ इंडिया के समृद्ध ख़जाने में मौजूद कुछ ऐसे लोगों का संक्षिप्त ब्यौरा दे रहे हैं, जो बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाने और वहाँ से भी कमाई करने के उपायों की जानकारी देते हैं। इन लेखों को विस्तार से पढ़ने के लिए आप इनके लिंक पर क्लिक करके पूरा लेख आसानी से पढ़ सकते हैं।
बंजर ज़मीन के इलाज़ की दवाई
ICAR-केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान, लखनऊ के कृषि वैज्ञानिकों ने साल 2015-16 में ऐसे जीवाणुओं की खोज की जो बंजर भूमि को उपजाऊ बना देते हैं। इस जैविक फॉर्मूलेशन का नाम ‘हॉलो मिक्स’ (Halo Mix) है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके इस्तेमाल से बंजर भूमि पर भी धान, गेहूँ या सब्जियों की खेती करना सम्भव है। हैदराबाद की एक कम्पनी को इसके व्यावसायिक उत्पादन के अधिकार मिला है। इसके उपयोग से बंजर ज़मीन पर की गयी खेती के नतीज़े उत्साहजनक रहे हैं।
ये भी पढ़ें – बंजर ज़मीन की आई दवाई, क्या बढ़ेगी किसानों की आय?
अनुपम है बायोचार (Biochar)
मिट्टी की सेहत सँवारने वाला, सबसे सस्ता और आसानी से बनने वाला टॉनिक है बायोचार। बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
ये भी पढ़ें – जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?
एलोवेरा से बंजर पर कमाई
बेकार ज़मीन के लिए भी एलोवेरा की खेती वरदान बन सकती है। एलोवेरा की व्यावसायिक खेती में प्रति एकड़ 10-11 हज़ार पौधे लगाने की लागत 18-20 हज़ार रुपये आती है। इससे एक साल में 20-25 टन एलोवेरा प्राप्त होता है, जो 25-20 हज़ार रुपये प्रति टन के भाव से बिकता है। यानी एलोवेरा की खेती में अच्छे मुनाफ़े की गारंटी है, क्योंकि इसे ज़्यादा सिंचाई, खाद और कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ती। हर्बल और कॉस्मेटिक उत्पादों के कच्चे माल के रूप में औषधीय गुणों वाले एलोवेरा की माँग हमेशा रहती है।
ये भी पढ़ें – एलोवेरा की खेती (Aloe Vera Farming): बेकार पड़ी ज़मीन पर बढ़िया कमाई का ज़रिया, न कोई रोग और न ही जानवर से खतरा
बंजर पर बांस की खेती
बांस की पैदावार बैंकों के ब्याज़ की तरह साल दर साल बढ़ती जाती है। बांस एक अद्भुत वनस्पति है। विलक्षण पेड़ है। गुणों की खान है। असंख्य कृषि उत्पादों में शायद ही कोई पेड़-पौधा ऐसा हो जिसके उपयोग का दायरा बांस जितना व्यापक हो। इसीलिए बांस की खेती में व्यावहायिक और नकदी फसल वाली सारी ख़ूबियाँ मौजूद हैं। बांस की खेती जहाँ ख़ूब बारिश वाले इलाकों में हो सकती है, वहीं ये कम बारिश वाले या लद्दाख जैसे नगण्य बारिश वाले इलाके और यहाँ तक कि बंजर या ऊसर ज़मीन पर भी हो सकती है। अलबत्ता, ये ज़रूर है कि उपजाऊ ज़मीन के मुकाबले घटिया ज़मीन पर बांस की पैदावार में ज़रा ज़्यादा वक़्त लग सकता है।
ये भी पढ़ें – बांस की खेती (Bamboo Cultivation): जानिए क्यों अद्भुत और सदाबहार हैं बांस, किसान की कैसे होती है पीढ़ी दर पीढ़ी कमाई?
बंजर पर अश्वगन्धा की खेती
अश्वगन्धा में जल्दी रोग नहीं लगता। ना ही इसे रासायनिक खाद की ज़रूरत पड़ती है। आवारा पशु भी इसे नुकसान नहीं पहुँचाते। इसीलिए अश्वगन्धा की खेती करने वाले किसान अनेक मोर्चों पर निश्चिन्त रहते हैं। कृषि विशेषज्ञ ऐसी ज़मीन को अश्वगन्धा के लिए सबसे उपयुक्त बताते हैं जहाँ अन्य लाभदायक फसलें लेना बहुत मुश्किल हो। अश्वगन्धा की खेती में मुख्य पैदावार भले ही इसकी जड़ें हों, लेकिन इसकी हरेक चीज़ मुनाफ़ा देती है। अश्वगन्धा के पौधों, पत्तियों और बीज वग़ैरह सभी चीज़ों के दाम मिलते हैं।
बंजर के लिए उपयुक्त फलदार पेड़
उपजाऊ मिट्टी तो सबको खुशहाली देती है लेकिन क़माल तो तब है जबकि ऊसर में भी आ जाए जान। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि बंजर या ऊसर भूमि में ‘आगर होल तकनीक’ का इस्तेमाल करके आँवला, अमरूद, बेर और करौंदा के फलदार पेड़ों को न सिर्फ़ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, बल्कि इसकी खेती लाभदायक भी हो सकती है। लागत और आमदनी के पैमाने पर आँवला, करौंदा और अमरूद बेहतरीन रहते हैं। आँवले के मामले में लागत से 2.48 गुना आमदनी हुई तो अमरूद के मामले में ये अनुपात 2.15 गुना और करौंदा के लिए 1.96 गुना रहा।
ये भी पढ़ें – वैज्ञानिकों ने बताए ऐसे फलदार पेड़ जो बंजर ज़मीन और किसान, दोनों की तक़दीर बदल सकते हैं
रोशा घास की खेती
रोशा घास की खेती उपजाऊ, कम उपजाऊ या pH मान 9.0 के आसपास की ऊसर मिट्टी में भी हो सकती है। रोशा घास की बहुवर्षीय खेती में पारम्परिक फसलों की तुलना में लागत कम और मुनाफ़ा ज़्यादा है। इससे पहले साल से ज़्यादा कमाई अगले वर्षों में प्राप्त होती है। भारत में सुगन्धित तेलों के उत्पादन में रोशा घास तेल का एक महत्वपूर्ण स्थान है। देश में बड़े पैमाने पर इसकी व्यावसायिक खेती होती है। भारत ही इसका सबसे बड़ा उत्पादक है।
ये भी पढ़ें – रोशा घास (Palmarosa Farming): बंजर और कम उपयोगी ज़मीन पर रोशा घास की खेती से पाएँ शानदार कमाई
अनुपजाऊ खेतों में मेहंदी की खेती
कंकरीली, पथरीली, हल्की, भारी, लवणीय, क्षारीय, परती, बंजर, अनुपजाऊ और बारानी ज़मीन के लिए मेहंदी से शानदार शायद ही कोई और फसल हो। जिनके पास सिंचाई के साधन नहीं हैं और जो बार-बार नयी फसलें लगाने के झंझट से बचना चाहते हैं, उनके लिए मेहंदी का रंग बेजोड़ रहता है। कम लागत में ज़्यादा कमाई देने वाली मेहंदी की खेती को गर्म तथा शुष्क जलवायु वाले इलाकों में बेहद आसानी से उगाया जा सकता है। मेहंदी का बाग़ान 20 से 30 साल तक ख़ूब उपजाऊ और लाभप्रद रहता है, वैसे कहते हैं कि ये 100 साल तक उपज देता है।
शुष्क इलाकों में फालसा की खेती
फालसा की खेती बहुत शुष्क या सूखापीड़ित या अनुपजाऊ क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी है। फालसा की जड़ें मिट्टी के कटाव को भी रोकने में मददगार साबित होती हैं। फालसा की खेती 44 से 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी अनुकूल है। यदि सही तरीक़े से फालसा की व्यावसायिक खेती की जाए तो इसकी लागत कम और कमाई बहुत बढ़िया है, क्योंकि इसके फल खासे महँगे बिकते हैं।
बंजर में उगाएँ हरा चारा हेज लूर्सन
हेज लूर्सन को सभी तरह की मिट्टी में लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं कम समय के लिए यह जल जमाव को भी सहन करने की शक्ति रखता है। यह बंजर भूमि पर भी आसानी से उग जाता है। इसलिए बंजर और खत्म होते चारागाह वाले इलाके में इसे लगाना अच्छा विकल्प है।
बंजर में बेर की खेती
बेर का एक पेड़ 50-60 सालों तक फल देता है। बेर भारत का प्राचीन फल है। इसकी ख़ासियत यह है कि इसे बंजर और उपजाऊ दोनों तरह की ज़मीन पर उगाया जा सकता है। बेर की खेती को कम पानी की ज़रूरत होती है। इसलिए बेर की खेती कम बारिश वाले इलाकों में और शुष्क जलवायु में की जाती है। बेर की खेती करने में ज़्यादा खर्च नहीं होता और किसानों को मुनाफा अच्छा मिलता है। इसलिए किसानों के लिए ये फ़ायदेमन्द है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Rose Gardening Tips: घर की बगिया में ऐसे उगाएं गुलाब, हमेशा महकती रहेगी ताजा खुशबूGulab ki Kheti – आइए जानते हैं गुलाब का पौधा लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि घर की बगिया में पूरे साल गुलाब के फूल खिलते रहे और उसकी खुशबू से आपका घर महकता रहे।
- Potato Varieties: आलू की 10 बेहतरीन किस्में, जिन्हें उगाने से बढ़ सकती है कमाईये आलू की खुदाई का मौसम है। वैसे हमारे देश के कई इलाकों में तो पूरे साल आलू की पैदावार होती है। यदि आप भी आलू की खेती कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करें जिसमें पैदावर अधिक होती है।
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।