Berseem Farming: बरसीम की खेती से जुड़ी अहम बातें, जानिए कीट-रोगों से कैसे बचाएं बरसीम की फसल
हरे चारे और हरी खाद के रूप में इस्तेमाल होती है बरसीम
बरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
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बरसीम की खेती (Berseem Fodder Crop Production): दुधारू पशुओं (Dairy Animals) के लिए बरसीम सबसे अच्छा हरा चारा माना जाता है, क्योंकि इसे खिलाने से दूध उत्पादन अधिक होता है। ये बहुत पौष्टिक, रसीला, स्वादिष्ट और असानी से पचने वाला है, इसलिए तो इसे ‘चारे का राजा’ भी कहा जाता है। अच्छी सिंचाई वाले इलाकों में इसकी फसल बढ़िया होती है। हमारे देश में बरसीम की खेती अधिकांश पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में की जाती है।
बरसीम की खेती कब की जाती है?
बरसीम, ठंडी जलवायु के लिए उपयुक्त है। इस प्रकार की जलवायु उत्तरी भारत में सर्दी और वसंत ऋतुओं में उगाई जाती है। बरसीम की बुआई और विकास के लिए उचित तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होता है। बुआई का समय महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ये अंकुरण, कटाई की संख्या और उत्पादन को प्रभावित करता है। उचित बुआई का समय तापमान के आधार पर तय किया जाता है। आमतौर पर, जब तापमान 25°-27° सेल्सियस होता है, तब बुआई करनी चाहिए। पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में अक्टूबर का महीना बुआई के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। बंगाल और गुजरात में फसल की नवंबर में बुआई की जा सकती है।

बरसीम की खेती: उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
अच्छी जल निकास वाली क्ले और क्ले दोमट, ह्यूमस, कैल्शियम और फॉस्फोरस युक्त मिट्टी बरसीम की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। बरसीम को खार वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद की 2 या 3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करने की सलाह दी जाती है। इस फसल की खेती में मिट्टी का पीएच (P.H.) स्तर 7 से 8 के बीच होना चाहिए।
बरसीम की उन्नत किस्में
बरसीम की उन्नत किस्मों में बरसीम लुधियाना, टाईप-526, टाईप-678, टाईप-780, जे. बी.-1, जे. बी.-2, मिस्कावी, पूसा जायन्ट, बी एल -180,बुन्देल-2, वरदान, टी-5 और टी-26, जे.एच.पी.-1 -146, वी.एल.-22, यू.पी. वी.-110, वी. एल.-10, वी एल.-2, वी.एल.-1 और यू.पी.वी.-103 जैसी कई किस्में शामिल हैं।
बरसीम की फसल पर लगने वाले कीट-रोग
बरसीम में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, सोडियम जैसे कई पोषक तत्व होते हैं, इसलिए चारे के रूप में इसका इस्तेमाल करने पर पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। बरसीम की फसल वैसे तो रोगों से गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होती है, लेकिन कवक के कुछ रोगों की पहचान की गई है, जो इसकी उपज क्षमता को कुछ हद तक कम कर देते हैं।

बरसीम में लगने वाले मुख्य कीट
सफेद मक्खी
- ये प्यूपा-आकार में अंडाकार और वयस्क होने पर सफेद मोम के फूल से ढके पीले शरीर वाले छोटे कीट के रूप में दिखता है। इससे प्रभावित होने पर पत्तियों पर क्लोरोटिक धब्बे दिखते हैं और बाद में पत्तियां पीली हो जाती हैं।
कीट प्रबंधन
- सफेद मक्खी कीट को रोकने के लिए ज्वार, रागी, मक्का आदि के साथ फसलचक्र अपनाएं।
- सफेद मक्खी से ग्रसित पत्तियों को पौधों से हटाकर इकट्ठा करें, जो पत्तियां कीटों की वजह से झड़ गई हों, उन सबको नष्ट कर दें।
- रासायनिक प्रबंधन के लिए एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एसपी 100 ग्राम/हेक्टेयर और क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 1250 मि.ली./हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें।

कटुआ कीट
- इस कीट का लार्वा लाल सिर के साथ गहरे भूरे रंग का होता है। मिट्टी के कोकून में प्यूपा होता है। कैटरपिलर 2-4 इंच की गहराई पर मिट्टी में रहता है। कैटरपिलर पौधों को आधार पर काटते हैं और बढ़ते पौधों की शाखाओं या तनों को काटते हैं।
कीट प्रबंधन
- गर्मी में गहरी जुताई करें।
- वयस्क कीटों को प्रकाश जाल द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
- रासायनिक प्रबंधन के तहत क्विनालफॉस 25 ई.सी./1000 मि.ली./हेक्टेयर और प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी./1500 मि.ली./हेक्टेयर का इस्तेमाल करें।

एफिड
- निम्फ और वयस्क कीट के पेट मे कॉनकल्स के साथ गहरा रंग होता है। इससे प्रभावित होने पर बरसीम के पत्ते गहरे रंग के एफिड्स से ढक जाते हैं। पुष्पक्रम डंठल और वयस्क फली और काली चींटी के साथ शहद का स्राव होता है।
कीट प्रबंधन
- इंडोक्साकार्ब 15.8 प्रतिशत एससी 333 मि.ली./हेक्टेयर के हिसाब से और 2 प्रतिशत नीम के तेल का इस्तेमाल करें।
लीफ माइनर
- इस कीट के अंडे सफेद चमकदार, लार्वा गहरे रंग के सिर वाला और वयस्क कीट भूरे रंग का होता है। वयस्क लार्वा शुरू में पत्तियों में छेद करते हैं। मेसोफिल का आहार लेते हैं और पत्ती पर छोटे भूरे रंग के धब्बे बनाते हैं। दूर से देखने पर खेत ‘जला ‘हुआ’ दिखता है।
कीट प्रबंधन
- डाइमिथियेट 30 ई.सी. 660 मि.ली./हैक्टर या मैलाथियान 50 ई.सी. 1.25 लीटर/हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें।

फंफूद से होने वाले रोग
तना सड़ना
- ये रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम फंगस की वजह से होता है। इस कवक के स्क्लेरोटिया मशीनरी, पशुओं, बहते पानी और बीजों के ज़रिए खेत में पहुंच जाते हैं। फंगस तने के मूल हिस्से पर हमला करता है और सड़न पैदा करता है।
रोग प्रबंधन
- रोगमुक्त फसल के बीज का इस्तेमाल करें।
- बाविस्टिन के 0.1 प्रतिशत घोल का जनवरी और फरवरी में 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें और बार-बार सिंचाई न करें।
जड़ सड़न
- बरसीम में रूट रॉट एक जटिल रोग है, जो तीन सबसे अधिक रोगजनकों कवक राइजोक्टोनिया सोलानी, फ्यूजेरियम मोनिलोफोर्मे और स्क्लेरोटिनिया बटाटिकोला की वजह से होता है। पौधों के रोगग्रस्त होने का पहला लक्षण है कि अनुकूल परिस्थितियों में भी पौधों की एक या दो शाखा मुरझाकर गिर जाती है। जड़ सड़न रोग के अधिक प्रकोप से पौधे का घनत्व और हरे चारे की उपज कम हो जाती है।
रोग प्रबंधन
- 2-3 साल का फसल चक्र और गर्मी में गहरी जुताई करें। कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से बीज उपचार करें।

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- डेयरी उद्योग (Dairy Farming): क्यों दूध उत्पादन क्षेत्र में फ़ार्म रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है?जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
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