हरी मिर्च और लाल मिर्च दोनों का ही इस्तेमाल भारतीय व्यंजनों में ज़ायका व तीखापन बढ़ाने के लिए किया जाता है। हरी मिर्च तो सेहत के लिए भी फ़ायदेमंद मानी जाती है। हरी मिर्च की खेती मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में की जाती है। भारत में 7.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मिर्च की खेती की जाती है। मिर्च की मांग हमेशा बनी रहती है, इसलिए किसान मिर्च की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं, लेकिन इसके लिए खेती की वैज्ञानिक तकनीक अपनाने के साथ ही, अच्छी किस्मों का चुनाव करना भी ज़रूरी है। ऐसा इसलिए ताकि फसल अधिक हो और वह रोग व कीटों के प्रकोप से बच सके। किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से ही ICAR-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू ने मिर्च की 5 उन्नत किस्में विकसित की है, जो अधिक उत्पादन देने के साथ ही कीटों से भी सुरक्षित है।
मिर्च की उन्नत किस्में
ICAR-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू ने मिर्च की 5 उन्नत किस्में, अर्का तेजस्वी, अर्का यशस्वी, अर्का सान्वी, अर्का तन्वी और अर्का गगन विकसित की है। अर्का तेजस्वी और अर्का यशस्वी सूखी मिर्च के लिए अच्छी है। जबकि अर्का गगन हरी मिर्च उत्पादन के लिए उताम है। जबकि अर्का तन्वी और अर्का सान्वी हरी और सूखी दोनों मिर्च के उत्पादन के लिए बेहतर है।
मिर्च की उन्नत किस्मों की ख़ासियत
अर्का गगन किस्म की मिर्च के पौधे मध्यम आकार के होते हैं और इससे प्रति एकड़ 80 से 100 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
अर्का तन्वी से भी प्रति एकड़ 100 क्विंटल हरी मिर्च और 30-35 क्विंटल सूखी मिर्च का उत्पादन हो सकता है।
अर्का सान्वी से भी प्रति एकड़ 100 क्विंटल हरी मिर्च और 30-35 क्विंटल सूखी मिर्च का उत्पादन हो सकता है।
अर्का तेजस्वी और अर्का यशस्वी से प्रति एकड़ 30-35 क्विंटल सूखी मिर्च प्राप्त हो सकती है।
रोग मुक्त मिर्च की किस्में
मिर्च की ये सभी किस्में कई रोगों से सुरक्षित है यानी किसानों को अब कीट व रोगों से फसल के खराब होने का डर नहीं रहेगा और उपज भी अच्छी होगी। मिर्च की ये उन्नत किस्में पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल) रोग से भी सुरक्षित है, जो कि एक वायरस से फैलता है। इस रोग के कारण मिर्च की पत्तियां मुड़ जाती हैं और पीली पड़ने लगती है।
पत्तियों का साइज़ भी छोटा हो जाता है और पौधे पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते। इस रोग के कारण मिर्च उत्पादकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि ICAR-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू द्वारा विकसित मिर्च की पांचों उन्नत किस्में लीफ कर्ल प्रतिरोधी है। इस वजह से किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग भी कम करना पड़ेगा। इस तरह से खेती की लागत कम और मुनाफ़ा बढ़ेगा।
मिर्च की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
मिर्च की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है, ज़्यादा ठंड या गर्मी वाले इलाकों में इसकी अच्छी फसल नहीं होती। इसकी खेती के लिए ऐसी बलुई व दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में हो और पीएच मान 6-7 के बीच हो। इसकी फसल साल में 3 बार लगाई जा सकती है। बरसात की फसल के लिए जून-जुलाई में बुवाई करनी चाहिए। सर्दियों की फसल के लिए बुवाई सितंबर-अक्टूबर में और गर्मियों की फसल के लिए फरवरी-मार्च में बुवाई करनी चाहिए।
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