मिर्च एक प्रमुख नगदी फसल है। फिलहाल हमारे देश में करीब 7,92,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मिर्च की खेती की जा रही है, जिससे 12,23,000 टन मिर्च प्राप्त होती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में देश के कुल उत्पादन की 80 प्रतिशत मिर्च उगाई जाती है। चूंकि, इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है, इसलिए किसानों के लिए इसकी खेती फ़ायदेमंद है। मगर मिर्च की खेती को कीटों व रोगों से हानि पहुंच सकती है, इसलिए इनका वैज्ञानिक प्रबंधन ज़रूरी है।
मिर्च में लगने वाले प्रमुख कीट
थ्रिप्स- मिर्च में लगने वाले इस कीट का वैज्ञानिक नाम सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड है। यह कीट शुरुआती अवस्था में ही मिर्च के पौधों की पत्तियों व अन्य नरम हिस्सों से रस चूस लेता है, जिसकी वजह से पत्तियां मुड़कर नाव के आकार की हो जाती हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पहले एक किलो बीज में 5 ग्राम थायोमिथम्जाम डालकर उपचारित करें। इसके अलावा, रासायनिक नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1.5 मि. ली. 1 लीटर पानी मे मिलाकर छिडकाव करें।
सफ़ेद मक्खी- इस कीट को वैज्ञानिक भाषा में बेमिसिया तवेकाई कहते हैं। यह कीट छोटे व बड़े दोनों तरह के पत्तों की निचली सतह में चिपककर उसका रस चूस लेते हैं। इस कीट से बचाव के लिए कीट की संख्या के आधार पर डाईमिथएट की 2 मि.ली. मात्रा 1 पानी मिलाकर छिड़काव करें। यदि कीट का असर ज़्यादा है तो 15 लीटर पानी में 5 ग्राम थायमेथाइसम 25 डब्लू जी को पानी में मिलाकर छिड़कें।
माइट- इस कीट के असर से भी पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। आकार में यह बहुत छोटा होता है और पत्तियों की सतह से रस चूसता है। इससे पौधों को बचाने के लिए नीम की निबोंली के सत का 4 प्रतिशत तक छिड़काव करें। इसके अलावा, एक लीटर पानी में 2.5 मि.ली. डायोकोफालया 3 मि.ली. ओमलाइट मिलाकर पौधों पर छिड़कें।
मिर्च में लगने वाले प्रमुख रोग
आर्दगलन (डेम्पिंग ऑफ)- मिर्च के पौधों में लगने वाला यह आम रोग है, जिसके असर से पौधों का सही विकास नहीं हो पाता है। उनका आकर छोटा व ज़मीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ जाता है। इसके असर से पौधे बिल्कुल कमज़ोर हो जाते हैं और फिर मर जाते हैं। इससे बचाव के लिए मिर्च की नर्सरी उठी हुई क्यारी पद्धति से तैयार करनी चाहिए, जिससे जल निकास ठीक तरह से हो। बुवाई से पहले थाइरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करें।
श्याम वर्ण (एन्थ्रोक्लोज)- इस रोग के कारण पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां गिरने लगती हैं। साथ ही इसके असर से पौधों की शाखाएं ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं। इसकी रोकथाम के लिए 15 दिनों के अंतराल पर एक लीटर पानी में 2 ग्राम मैन्कोजेब या जाईनब का घोल बनाकर 2 से 3 बार छिड़कें।
पर्ण कुंचन व मोजेक विषाणु रोग- पर्ण कुंचन रोग के कारण पौधों की पत्तियां सिकुड़कर छोटी हो जाती हैं और उस पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। जबकि मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर हल्के या गहरे पीले धब्बे बन जाते हैं। रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधे को उखाड़कर जला दें और इसे आगे फैलने से रोकने के लिए एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर डाइमिथोएट 30 ई.सी मिलाकर छिड़काव करें। नर्सरी तैयार करते समय बुवाई से पहले ज़मीन में प्रति वर्गमीटर में 8 से 10 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी मिलाएं। कीट व रोग प्रबंधन के साथ ही समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण भी ज़रूरी है।
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