मशरूम की खेती से जुड़ी, मध्य प्रदेश के एक किसान की रोचक और प्रेरणादायी कहानी। खेती के लिए ज़मीन न हो और कोई रोज़गार का भी साधन न हो, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के युवकों के पास आमदनी के न के बराबर विकल्प होते हैं। ऐसी ही कुछ परिस्थिति का सामना मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के रहने वाले सुभाष विश्वकर्मा को भी करना पड़ा। 12वीं पास सुभाष विश्वकर्मा के पास न ज़मीन और न ही रोज़गार था।
2 हज़ार रुपये की लागत से शुरू किया मशरूम का उत्पादन
बैतूल स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने भूमिहीन किसानों के लिए मशरूम की खेती पर एक ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित किया था। इस ट्रेनिंग सेशन में सुभाष विश्वकर्मा ने भी हिस्सा लिया। उन्हें कम लागत में मशरूम की खेती करने को लेकर जानकारी मिली। मशरूम उत्पादन में बेहतर स्वरोजगार के अवसरों को देखते हुए सुभाष ने मशरूम की खेती करने का फैसला किया। दो हज़ार रुपये की लागत के साथ सुभाष ने अपने घर पर ही ढिंगरी मशरूम/ऑएस्टर मशरूम (Oyster Mushroom) का उत्पादन शुरू कर दिया। कम कीमत पर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान केंद्र ने सुभाष को स्पॉन (मशरूम के बीज) उपलब्ध कराए। बैग रखने का ढांचा वैज्ञानिकों की देखरेख में बनाया गया।

मशरूम उत्पादन में मिला अच्छा परिणाम
सुभाष को उनकी कड़ी मेहनत और कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन का अच्छा परिणाम मिला। दिसंबर और मार्च 2013 के बीच प्रति दिन के हिसाब से 3 से 5 किलो मशरूम का उत्पादन हुआ। उन्होंने पाथाखेड़ा और सारनी कोयला खदान क्षेत्रों में ताजे मशरूम 100-120 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे।
मुनाफ़े से बढ़ा मनोबल
मशरूम उत्पादन में प्रति किलो उन्हें 35 रुपये की लागत आई। इस तरह से उन्हें पहली बार में ही महीने का 9 हज़ार रुपये का सीधा मुनाफ़ा हुआ। इससे सुभाष का मनोबल बढ़ा और अब वो अपने इस बिज़नेस को और आगे ले जाने के लक्ष्य में लग चुके हैं। सुभाष कहते हैं कि उन्हें ये जानकर गर्व होता है कि लोग उन्हें बतौर एक ऐसे युवक की तरह देखते हैं, जिसने अपना समय बर्बाद नहीं किया। अपने पैरों पर खड़ा होने का रास्ता चुना।

ढिंगरी मशरूम से जुड़ी कुछ अहम बातें
ढिंगरी मशरूम की खेती पूरे साल में 5 से 6 बार की जा सकती है। ये मशरूम ढाई से तीन महीने में तैयार हो जाता है। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80 से 90 प्रतिशत की नमी ढिंगरी मशरूम की खेती के लिए सबसे सही मानी जाती है। आसानी से उपलब्ध होने वाले भूसे में ढिंगरी मशरूम की खेती की जा सकती है। इसकी फसल ढाई से तीन महीने में तैयार हो जाती है।
10 क्विंटल भूसे में ढिंगरी मशरूम की उत्पादन लागत करीब 25 हज़ार रुपये पड़ती है। इससे करीबन 48 हज़ार रुपये की मशरूम हो सकती है। फसल के एक चक्र से लगभग 23 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा कमा सकते हैं। ऑयस्टर मशरूम 120 रुपए प्रति किलोग्राम से लेकर एक हज़ार रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक जाता है। ऑयस्टर मशरूम का दाम उपज की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

युवाओं को भा रही मशरूम की खेती
युवाओं के लिए मशरूम उत्पादन में रोज़गार की बेहतर संभावनाएं हैं। मशरूम की पोषक गुणवत्ता और औषधीय गुणों की वजह से इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इस लिहाज़ से ये एक बढि़या व्यवसाय साबित हो सकता है। इस व्यवसाय में युवाओं और किसानों की रूचि भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।
मशरुम की खेती में ज्यादा समय देने की जरुरत भी नहीं पड़ती है। झोपड़ी या कच्चे मकान में मशरूम की खेती आसानी से की जा सकती है। ध्यान रखें कि मशरूम की खेती की शुरुआत कर रहे हैं तो किसी कृषि वैज्ञानिक या मशरूम उत्पादन के जानकार की निगरानी में ही इसकी शुरुआत करें ताकि नुकसान की आशंका कम हो।
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