मोती की खेती में लागत से लेकर सीप तैयार करने तक, आमदनी का गणित जानिए ‘किसान विद्यालय’ चलाने वाले संतोष कुमार सिंह से
एक मोती कम से कम 200 रुपये में बिकता है, कई गुना ज़्यादा भी मिल सकती है कीमत
संतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती (Pearl Farming) की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी और फ़ील्ड में काम कर रहे हों।
संतोष कुमार सिंह आज कृषि क्षेत्र से लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका दावा है कि कृषि से जुड़ा ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिनकी जानकारी उन्हें न हो। पौधरोपण, मुर्गी पालन, मछली पालन, डेयरी फ़ार्मिंग, मोती की खेती, पौधों का रखरखाव, हर चीज़ की जानकारी वो निःस्वार्थ होकर लोगों को देते हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग में बतौर टेक्नॉलजी मैनेजर भी अपनी सेवाएं दी हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि कृषि एक ऐसा सेक्टर है, जिसमें कई संभावनाएं हैं। इन्हीं में से एक है Pearl Farming यानी कि मोती की खेती। संतोष कुमार सिंह ने मोती की खेती से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी हमारे पाठकों के लिए साझा की। इस लेख में आगे हम आपको मोती की खेती के बारे में बताएंगे।
खेती में कैसे रखा कदम?
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर ज़िले के तारेम गाँव के रहने वाले संतोष कुमार सिंह आर्थिक तंगी के कारण 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई आगे ज़ारी नहीं रख पाए। खेती-किसानी में उनका शुरू से रुझान था तो वो इसी क्षेत्र में लग गए। कुछ साल बाद कृषि विषय से बीएससी, एमएससी की डिग्री ली। संतोष कुमार सिंह बताते हैं कि उन्होंने नौकरी करने के बजाय कृषि को ही चुना। इसका कारण था कि अपने क्षेत्र के किसानों का विकास कर उनकी आमदनी में इज़ाफ़ा करना।

उजड़े बागों को संवारा, पानी सरंक्षण पर किया काम
संतोष कुमार सिंह एग्री क्लिनिक और एग्री बिज़नेस सेंटर (AC&ABC) स्कीम के तहत एक मंझे हुए एग्रीप्रेन्योर (Agripreneur) हैं। बैंक ऑफ़ बड़ौदा से पांच लाख की वित्तीय सहायता लेकर उन्होंने फ़ार्मर ट्रेनिंग सेंटर ‘किसान विद्यालय’ की शुरुआत की। उन्होंने पाया कि उनके क्षेत्र में कई एकड़ ज़मीनें बंजर होती जा रही हैं। पुराने बाग उजड़ते जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बाग को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने आठ से 10 ज़िलों में कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत करीबन ढाई लाख पेड़ लगवाए। संतोष कुमार सिंह को प्यार से लोग ‘पौधेवाला बाबा’ के नाम से भी बुलाते हैं।
उन्होंने किसानों को आम, नींबू और बेर जैसी कई फलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा सिंचाई के लिए पानी की समस्या को दूर करने के लिए जल सरंक्षण की योजनाओं पर भी काम किया। कई जगह खेत में ही तालाब बनवाएं, ताकि बारिश का पानी इकट्ठा हो सके। इससे किसानों की पानी की समस्या दूर हुई। भूजल स्तर में सुधार हुआ। फ़ार्म पॉन्ड से सहूलियत ये होती है कि जब सिंचाई करनी होती है तो पानी खोजना नहीं पड़ता। समय से फसलों की सिंचाई हो जाती है।
संतोष कुमार ने बताया कि ‘किसान विद्यालय’ में उनके पास स्किल्ड और प्रोफ़ेशनल 23 लोगों की टीम है। उनके सहयोग से लोगों को खेती-किसानी की बारीकियों, इससे जुड़ी जानकारियां, लोगों को जा-जाकर बताते हैं। लोग उनसे सीधा संपर्क करते हैं और वो फ़्री में ही लोगों को कंसल्टेंसी देते हैं। आज उनके खुद के ज़िले अंबेडकर नगर के 40 हज़ार से ऊपर किसान उनसे जुड़े हुए हैं। देवरिया और आजमगढ़ के भी 5 से 7 हज़ार किसान उनसे लगातार संपर्क में रहते हैं।
मोती की खेती अपने आप में है एक बड़ा सेक्टर
मोती की खेती को लेकर संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि इसमें काफ़ी अच्छा स्कोप है। एक ऐसा वक़्त था जब वो गंभीर बीमारी की चपेट में भी आए। उनका अग्नाशय (Pancreas) खराब हो गया था। कैंसर की स्टेज पर पहुंच गया था। उस वक़्त 30 से 32 लाख का खर्चा आया। संतोष सिंह बताते है कि अगर मोती की खेती से वो नहीं जुड़े होते, तो इतना खर्चा उठाना उनके बस की बात ही नहीं थी।
मोती की खेती कैसे होती है? जानिए संतोष कुमार सिंह की टिप्स
संतोष कुमार ने बताया कि अगर आप 10 बाय 10 का गड्ढा बना रहे हैं तो उसमें हज़ार से 1200 सीप पाली जा सकती हैं। साथ ही दूसरी फ़सल के तौर पर 200 मछलियां भी आप पाल सकते हैं। मोती की खेती की फसल 18 महीने में तैयार हो जाती है। मीठे पानी में मोती की खेती की जाती है। 18 महीनों में अगर 1200 सीपों की अच्छे से देखरेख की जाए तो महीने के कम से कम ढाई लाख सीधा आपकी जेब में आएंगे। साथ ही मछलियों को लोकल बाज़ार में बेचकर अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं।
लागत में कितना आता है खर्च?
संतोष कुमार सिंह बताते हैं कि अगर किसी ने नदी-नाले से सीप इकट्ठा किए हैं, तो एक सीप को तैयार करने की लागत 20 रुपये के आसपास आती है। अगर आप सीप कहीं से खरीद कर ला रहे हैं तो ये लागत 60 रुपये हो जाती है। यानी 1200 मोती तैयार करने की लागत करीबन 72 हज़ार रुपये होगी।
सीप को कैसे करें तैयार?
लाए गए सीपों को बाहर 10 घंटे के लिए 6 इंच पानी में रख दें। धूप और हवा लगने के बाद सीप का ऊपरी कवच और मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं। मांसपेशियां ढीली होने के बाद सीप की सर्जरी कर सीप के अंदर सांचा डाल दें। यह सांचा जब सीप को चुभता है तो वो उस पर अपने अंदर से निकलने वाला एक तरल पदार्थ छोड़ता है, जिसको नेकर कहा जाता है। जैसे-जैसे सीप से नेकर निकलता रहता है, सीप जमता जाता है यानी कि हार्ड होता जाता है। फिर 12 से 18 महीने में मोती तैयार हो जाता है। 12 महीने में कच्चा मोती बनता है तो 18 महीने में वही मोती हार्ड हो जाता है।
बाज़ार में कितने में बिक जाता है मोती?
संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि दुनिया का ऐसा कोई बैंक नहीं है, जो 18 महीनों में आपके पैसों को चार गुना कर दे। मोती की खेती में ये मुमकिन है। एक साधारण मोती भी बाज़ार में 200 रुपये से कम का नहीं बिकता। डिज़ाइनर मोती की कीमत भी करीब 5000 रुपये पहुंच जाती है। वहीं न्यूक्लियस मोती की कीमत तकरीबन 2 करोड़ रुपये तक भी जाती है।

मोती की खेती (Pearl Farming) में एक बार जमे तो फिर मुनाफ़ा ही मुनाफ़ा
संतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी भी फ़ील्ड में काम कर रहे हों। संतोष कुमार दावा करते हैं कि पर्ल फ़ार्मिंग (Pearl farming) एक ऐसा सेक्टर है कि एक बार इसमें जम जाएं तो आप किसी और दूसरे काम को करेंगे ही नहीं।
संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि खेती-किसानी घाटे का सौदा नहीं है, बशर्ते मेहनत और जुनून होना चाहिए। पेड़-पौधों की सेवा कीजिए, गौपालन करिए। खेती को अपनाइए, इससे भागिए मत। जी-जान से मेहनत करेंगे तो पैसा ज़रूर मिलेगा। 2500 वर्ग फ़ीट क्षेत्र से ही आप महीने का लाख रुपये कमा सकते हैं।
कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया
खेती-किसानी के क्षेत्र में उनके योगदान को सराहते हुए संतोष कुमार सिंह को उत्तर प्रदेश के बेस्ट एग्रीप्रेन्योर का सेकंड अवॉर्ड, राज्य में भांग उत्पादन क्षेत्र में थर्ड अवॉर्ड और हैदराबाद में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यक्रम में भी उन्हें अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
ये भी पढ़ें: जानिए, रत्नगर्भा मछली की ‘मीन मुक्ता’ (Fish Pearl) को क्यों नहीं मिला महँगे रत्न मोती जैसा दर्ज़ा?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- औषधीय पौधे गिलोय की खेती किसानों के लिए अच्छी आमदनी का बड़ा ज़रिया, ले सकते हैं ट्रेनिंग और सब्सिडीगिलोय बेल की तरह फैलने वाला एक पौधा है। गिलोय की खेती में ज़्यादा मेहनत और खर्च नहीं है। आयुर्वेदिक औधषि बनाने वाली कंपनियों में इसकी बहुत मांग है। सेहत के लिए बेहद गुणकारी गिलोय को आप आसानी से अपने घर के बाहर भी उगा सकते हैं। खेत में मेड़ बनाकर या दूसरे पेड़ों के आसपास भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
- Gerbera Farming: जरबेरा फूल की खेती से इन ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अपना बिज़नेस, जानिए इस फूल की ख़ासियतजरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।
- Millets Farming: बाजरे की खेती में रिज फेरो तकनीक का इस्तेमाल किया, उत्पादन भी बढ़ा और आमदनी भीआमतौर पर किसी भी फसल की अच्छी खेती के लिए अच्छी बरसात ज़रूरी है, मगर बाजरे की खेती कम बरसात वाली जगह में ज़्यादा फलती-फूलती है। बाजरे की फसल गर्म इलाकों और कम पानी वाली जगहों पर अच्छी तरह होता है।
- जानिए कैसे मांगुर मछली पालन छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए बेहतरीन आमदनी का ज़रिया बन रहा हैमीठे पानी की मांगुर मछली की बाज़ार में काफ़ी मांग है और ये पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। ऐसे में मांगुर मछली पालन और इसकी हैचरी यानी बीज उत्पादन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- Blue Oyster Mushroom: जानिए ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती करने का सरल तरीका और लागत-मुनाफ़े का गणितपौष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण मशरूम की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा ज़रिया मिल गया है। मशरूम की एक नई किस्म हैं ब्लू ऑयस्टर मशरूम जिसे बहुत ही कम लागत के साथ आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
- जैविक खाद: कभी रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले रंजीत सिंह ने क्यों चुनी Organic Fertilizers की राह? जानिए कैसे बनाएं खादजैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। गाय का गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करती है, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।
- उन्नत कृषि तकनीक: आर्थिक तंगी के चलते नहीं कर पाए 12वीं के बाद पढ़ाई, अब 8 लाख रुपये तक की आमदनीज़्यादा ज़मीन और सारी सुविधाओं के बावजूद भी किसानों को यदि खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती है, तो इसकी वजह है उन्नत तकनीक की कमी। उन्नत कृषि तकनीक के इस्तेमाल से ही राजस्थान के एक किसान ने सफलता की ऐसी मिसाल पेश की है, कि अब उनकी गिनती अपने इलाके के प्रगतिशील किसानों में होती है।
- एकीकृत कृषि: झूम खेती पर निर्भर थे किसान, सही तकनीक के इस्तेमाल से मिली तरक्कीमिज़ोरम के आदिवासी इलाकों में खेती की पारंपरिक तकनीक यानी झूम खेती लोकप्रिय है, मगर इससे न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती है, बल्कि वनस्पतियों को जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मिज़ोरम के किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।
- औषधीय पौधे सिरोपिजिआ बल्बोसा के बारे में जानते हैं आप? इसकी खेती के कई फ़ायदेशहरीकरण, जागरुकता की कमी और वनस्पतियों के दोहन के कारण कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं में से एक है सिरोपिजिआ बल्बोसा। औषधिय गुणों से भरपूर इस पौधे की खेती से जैव विविधता को बचाए रखा जा सकता है।
- बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक से Fish Farming करना हुआ आसान, कम पानी कम जगह में बढ़िया उत्पादनमछली पालन अतिरिक्त आमदनी का अच्छा ज़रिया है, लेकिन जिन इलाकों में अच्छी बरसात नहीं होती वहां नदी, तालाब व जलाशयों में मछली पालन करने में कठिनाई आती है। ऐसी जगहों के लिए बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक अच्छा विकल्प है।
- सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनीपारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।
- गन्ने की खेती में करें प्राकृतिक हार्मोन्स का इस्तेमाल, पाएँ दो से तीन गुना ज़्यादा पैदावार और कमाईइथ्रेल और जिबरैलिक एसिड जैसे पादप वृद्धि हार्मोन्स के इस्तेमाल से सिंचाई और अन्य पोषक तत्वों की ज़रूरत भी कम पड़ती है। हालाँकि, यदि सिंचाई और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिले तो पैदावार अवश्य ज़्यादा होता है, लेकिन इससे खेती की लागत बेहद बढ़ जाती है। गन्ने की पैदावार कम होने का दूसरा प्रमुख कारण कल्लों का अलग-अलग समय पर बनना भी है। यदि कल्लों का विकास एक साथ हो तो वो परिपक्व भी एक साथ होंगे तथा उनका वजन भी ज़्यादा होगा, उसमें रस की मात्रा और मिठास भी अधिर होगी। लिहाज़ा, गन्ने की खेती में यदि कल्ले बेमौत मरने से बचा जाएँ तभी किसान को फ़ायदा होगा।
- मोती की खेती में लागत से लेकर सीप तैयार करने तक, आमदनी का गणित जानिए ‘किसान विद्यालय’ चलाने वाले संतोष कुमार सिंह सेसंतोष कुमार कहते हैं कि किसी और काम को करते हुए आप मोती की खेती (Pearl Farming) की शुरुआत कर सकते हैं। फिर चाहे आप पहले से कोई नौकरी कर रहे हों, डेयरी बिज़नेस में हों या किसी और फ़ील्ड में काम कर रहे हों।
- जानिए सब्जियों की खेती में दिल्ली से हिमाचल गया युवा कैसे बना मिसाल, अच्छी नौकरी छोड़ी अपनाई खेतीसब्ज़ियों की खेती अगर सही तरीके से और वैज्ञानिकों की सलाह से की जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के किसान रमेश कुमार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़ खेती को पेशा बनाया।
- एकीकृत कृषि को अपनाकर आप कैसे ले सकते हैं फ़ायदा? रिटायर्ड फौजी का रहे लाखों की कमाईअगर इंसान में कुछ करने की चाहत हो, तो उम्र या हालात कोई मायने नहीं रखते। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड फौजी नसीब सिंह, जो 78 साल की उम्र में भी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से लाखों की कमाई कर रहे हैं।
- अनार की फसल पर लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का ऐसे किया प्रबंधन, अनार उत्पादकों की बढ़ी आमदनीफलों में अनार काफी महंगा मिलता है और सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यह खून बढ़ाने में मददगार है। कर्नाटक के तुमकुरू जिले में अनार की अच्छी पैदावार होती है, मगर पिछले कुछ सालों से यहां के किसान अनार में लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से परेशान है जिससे फसल की बहुत हानि होती है। मगर कृषि विज्ञान केंद्र ने अब इसका भी हल निकाल लिया।
- Potato Planter Machine: पोटैटो प्लांटर मशीन क्यों है आलू की खेती में फ़ायदेमंद? जानिए इसकी ख़ासियत और दामपहले हाथ से ही आलू की बुवाई की जाती थी, जो किसानों के लिए एक धीमी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हुआ करती थी। अब एडवांस पोटैटो प्लांटर की मदद से आलू की बुवाई की प्रक्रिया सहज हो गई है।
- Poultry Farming: मुर्गी पालन के लिए चुनी उन्नत नस्ल, जानिए कैसे अंडमान के इन किसानों की तकदीर बदल रहा ‘वनराजा’कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है या बहुत कम ज़मीन हैं, तो उनके लिए मुर्गी पालन आमदनी का बेहतरीन ज़रिया है। लेकिन इसके लिए सही नस्ल और वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी ज़रूरी है।
- Makhana Farming: मखाने की खेती आप कई तरह से कर सकते हैं, जानिए इससे जुड़ी सभी बातेंमखाने की खेती के लिए गर्म मौसम और पानी की भरपूर उपलब्धता ज़रूरी है, तभी तो तालाब और पोखर वाले इलाके में इसकी खूब खेती होती है। इसकी खेती की कई उन्नत तकनीकें कृषि संस्थानों ने सुझाई हैं। क्या हैं वो तकनीकें? जानिए इस लेख में।
- परवल की खेती (Pointed Gourd): जानिए परवल की उन्नत किस्मों के बारे में, बाज़ार में अच्छा चल रहा परवल का भावपरवल की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। क्या इसका दाम है? देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे इसकी खेती जाती है? परवल की खेती से जुड़ी है कई अहम बातों के बारे जानिए।