धनिये की खेती (Coriander Farming): नकदी फसलों के लिहाज़ से धनिया एक ऐसा उत्पाद है जिसकी हर घर में रोज़ाना खपत होती है। धनिया पत्ती सब्ज़ियों का अभिन्न अंग है तो धनिया के बीज एक ऐसा मसाला है जो ज़्यादातर पकवानों में इस्तेमाल होता है। दरअसल, पत्ती हो या मसाला, धनिया में एक ऐसा खुशबूदार और वाष्पशील तेल पाया जाता है, जिससे भोजन के ज़ायक़ा पर चार चाँद लग जाता है। इसीलिए बाज़ार में हर मौसम में हरी धनिया की माँग रहती है।
मसालों के रूप में धनिया के बीजों का जितना इस्तेमाल होता है, उतना ही पिसी धनिया या धनिया पाउडर की माँग रहती है। धनिये में फाइबर, कैल्शियम, कॉपर, आयरन, विटामिन-ए, विटामिन-सी, विटामिन-के और कैरोटिन जैसे उपयोगी तत्व पाये जाते हैं। इसके दो-चार बीज रोज़ चबाने से मधुमेह के मरीज़ों को फ़ायदा होता है।
बागवानी में धनिये की खेती
धनिये को पूरे देश में पैदा किया जाता है। देश में धनिये की दर्ज़न भर से ज़्यादा किस्मों की खेती होती है। धनिया की फसल को तैयार होने में ढाई से साढ़े तीन महीने लगते हैं। लेकिन किसानों को इसकी बुआई के करीब महीने भर बाद से ही इसकी हरी पत्तियों को बेचने से आमदानी होने लगती है।
हालाँकि, धनिया की अलग-अलग किस्मों की पैदावार और इससे मिलने वाले लाभ का अलग होना स्वाभाविक है। आसानी से उगने और पनपने की खूबियों की वजह से धनिया को गाँवों के अलावा शहरों के किचेन गार्डेन की क्यारियों में भी अक्सर उगाया जाता है। इसकी भीनी-भीनी खुशबू की वजह से शहरों में लोग अपने घरेलू गमलों में भी शौकिया तौर पर धनिया उगाकर खुश होते हैं।
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धनिये की खेती के लिए जलवायु
धनिये की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त होती है। इसके लिए अम्लीय गुणों वाली किसी भी तरह की ज़मीन अनुकूल होती है। इसे हल्की सर्दी और तेज़ धूप वाला मौसम खूब भाता है। ज़्यादा ठंड के दिनों वाले पाला से इसे तकलीफ़ होती है। तेज़ गर्मी के मौसम में हल्की छाया वाली जगहों पर धनिया की अच्छी उपज पायी जा सकती है।
धनिये की खेती की लागत और मुनाफ़ा
धनिया की खेती सस्ती है। इसकी प्रति हेक्टेयर लागत क़रीब 15 हज़ार रुपये बैठती है और लागत निकालने के बाद किसान प्रति हेक्टेयर 50 से 60 हज़ार रुपये कमा लेते हैं। धनिया उत्पादक किसानों को ऐसी किस्म चुननी चाहिए जिससे पत्तियों और बीजों दोनों का ही अच्छा उत्पादन हो।
बीज और पत्तियाँ, दोनों से सम्पन्न किस्मों की फसल अपेक्षाकृत ज़्यादा वक़्त में तैयार होती है। शुरुआत में इसकी पत्तियाँ काटकर बेची जाती हैं और बाद में बीज। वैसे धनिया की ऐसी भी किस्में हैं जो या तो ज़्यादा पत्तीदार होती हैं या फिर जिनके बीजों में सुगन्धित तेल का अधिक अंश पाया जाता है।
धनिया की उत्तम किस्में
- बेहतर बीज वाली – आर सी आर 435, सिम्पो एस 33 और आरसीआर 684
- ज़्यादा पत्तियों वाली – आर सी आर 728, ए सी आर 1 और गुजरात धनिया- 2
- पत्ती-बीज दोनों में उम्दा – जे डी-1, पंत हरीतिमा, आर सी आर 446 और पूसा चयन- 360
खेत की तैयारी
धनिया की बुआई से पहले खेत की ऐसी जुताई और हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे मिट्टी भरभुरी हो जाए और उसमें नमी भी बनी रहे। जुताई के दौरान गोबर की खाद के इस्तेमाल से भी उपज अच्छी मिलती है। सब्ज़ियों में इस्तेमाल होने वाली धनिया पत्ती की उपज के लिए गर्मियों में भी इसकी खेती बढ़िया मुनाफ़ा देती है। जबकि मसालों के लिए धनिया हासिल करने वाले किसानों को इसकी खेती के लिए 15 अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में बुआई करनी चाहिए।
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यदि खेत में नमी ज़्यादा हो प्रति हेक्टेयर पर 15 से 20 किलो बीज डालना चाहिए। लेकिन यदि नमी कम हो तो बीज को मात्रा 25 से 30 किलो तक होनी चाहिए। बुआई से पहले फसल को रोगों से बचाने के लिए बीजों का उपचार अवश्य कर लेना चाहिए। बुआई से ऐने पहले बीजों को उसे हल्का रगड़कर उसे दो भागों में तोड़ लेना चाहिए।
ख़ास हल से बुआई को कतारों में करना भी फ़ायदेमन्द साबित होता है। कतारों के बीच की दूसरी करीब एक फ़ीट होनी चाहिए और एक से दूसरे बीज के बीच की दूरी 4-5 इंच तक बेहतर रहती है। बीजों को मिट्टी की सतह से करीब दो इंच नीचे ही बोना चाहिए। अधिक गहराई में बुआई होने पर ज़्यादातर बीज अंकुरित नहीं हो पाते। इससे किसान को नुकसान होता है। धनिया की खेती में उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी की ज़रूरत के मुताबिक ही होनी चाहिए।
फसल की सिंचाई
कम नमी वाले खेत में बुआई करते ही सिंचाई करनी चाहिए, जबकि ज़्यादा नमी वाले खेत में सिंचाई तभी करें, जब इसकी ज़रूरत महसूस हो। आमतौर पर धनिया की पूरी फसल के दौरान करीब 5 बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। धनिया की उपज को खरपतवार से नुकसान होता है, क्योंकि इसका पौधा खुद ही छोटे आकार का होता है। इसीलिए अच्छी उपज पाने के लिए गुड़ाई-निराई और रोग नियंत्रण के प्रति ख़ास सावधानी रखनी चाहिए।
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धनिया के रोग
चेपा – चेपा के कीट हरे और पीले रंग के होते हैं। ये धनिया की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें सूखा देते हैं। चेपा रोग हल्की गर्मी के साथ फैलता है। गोमूत्र को नीम के तेल में मिलकर छिड़कने से इसका घरेलू उपचार हो जाता है।
उकठा, लौंगिया और भभूतिया – ये तीनों ही कवक (फंगस) जनित रोग हैं। उकठा पीड़ित पौधे कुछ ही दिनों में सूखकर तबाह हो जाते हैं। लौंगिया के मामले में धनिया का तना सूज जाता है, उसमें गाँठे बनने लगती हैं और उसके बीज भी विकृत हो जाते हैं। भभूतिया की मार से धनिया की पत्तियों पर सफ़ेद रंग दिखने लगते हैं। इससे जल्द ही पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती हैं। इन रोगों के लक्षण दिखते ही विशेषज्ञ से परामर्श लेकर उपयुक्त कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए।
फसल की कटाई और सफ़ाई
धनिये की खेती में फसल की कटाई के समय हरी पत्तियों के लिए पत्तियों के बड़े होने के साथ ही धनिया की कटाई करते हैं। ये कटाई कई बार हो सकती है। जबकि बीज वाली कटाई के लिए पौधे की पत्तियों से पीला पड़कर झड़ने और पौधे पर बनी डोडी का रंग हरे से चमकीला भूरा होने तक इन्तज़ार किया जाता है। कटाई में यदि ज़्यादा देर हो जाए तो बीज का रंग खराब होने लगता है और उपज का दाम कम मिलता है।
कटाई के बाद धनिया के बीजों को धूप में सुखाकर और उसके डंठलों वग़ैरह की अच्छी तरह से सफ़ाई करके ही उपज को बाज़ार में पहुँचाना चाहिए, वर्ना अच्छा भाव नहीं मिलता।
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