मशरूम एक बेहद पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। इसकी ख़ूब माँग है और ये ख़ासा महँगा बिकता है। इसीलिए देश के ज़्यादातर राज्यों में प्रगतिशील किसान मशरूम की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं। छोटे और सीमान्त किसानों के लिए भी मशरूम की खेती के लिए ज़रूरी संसाधन जुटाना और इससे अपनी कमाई बढ़ाना मुश्किल नहीं है। इसीलिए इस तबके के किसानों का रूझान भी मशरूम की खेती की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है।
ऐसे किसानों के लिए प्रशिक्षण और तरह-तरह की सब्सिडी की योजनाएँ भी सरकारों की ओर से चलायी जा रही हैं। इसका लाभ उठाने के लिए मशरूम की खेती में दिलचस्पी रखने वाले किसानों को अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि अधिकारियों से सम्पर्क करना चाहिए।
भारत में मशरूम की 5 प्रजातियाँ हैं ज़्यादा प्रचलित
मशरूम की खेती और इसका प्रोसेसिंग उद्योग लगाने के लिए अनेक सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थानों की ओर से प्रशिक्षण कार्यक्रम भी संचालित किये जाते हैं। दरअसल, मशरूम की खेती में हाथ आज़माने से पहले इसकी बारीकियों के बारे में जानना बेहद ज़रूरी और उपयोगी है, क्योंकि वैसे तो दुनिया भर में मशरुम की क़रीब 10 हज़ार प्रजातियों को खाने लायक माना गया है, लेकिन मशरूम की लाभदायक खेती के लिए क़रीब 70 प्रजातियों को ही उम्दा पाया गया है। इनमें से भी भारतीय जलवायु को देखते हुए सफ़ेद बटन, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम, दूधिया मशरुम, पैडीस्ट्रा मशरुम और शिटाके मशरुम नामक प्रजातियों को ही खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
प्रोसेस्ड मशरूम का ही करें सेवन
मशरूम की ज़्यादातर प्रजातियाँ सीधे सेवन के लायक नहीं होतीं। इनमें पाये जाने वाले जहरीले तत्व को ख़त्म करने के लिए प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) बहुत ज़रूरी है। अलबत्ता, कुछ प्रजातियाँ ऐसी ज़रूर हैं जिनका सेवन उच्चस्तरीय प्रोसेसिंग के बग़ैर भी किया जाता है। लेकिन आम लोगों के लिए ऐसी प्रजातियों के मशरूम की पहचान करना ज़रा मुश्किल है। इसीलिए प्रोसेस्ड मशरूम का ही सेवन करना सबसे सुरक्षित और लाभदायक माना गया है। प्रोसेसिंग की दूसरी प्रमुख वजह ये है कि मशरूम में 85 से 90 फ़ीसदी तक पानी होता है और इसी वजह से ये जल्दी सड़कर ख़राब हो जाते हैं। जबकि प्रोसेस्ड मशरूम लम्बे वक़्त तक ख़राब नहीं होता। इसीलिए बाज़ार में इसका दाम भी अच्छा मिलता है।
मशरूम प्रोसेसिंग प्लांट
मशरूम की खेती करने वाले आम किसानों के लिए के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाना आसान नहीं है। क्योंकि प्रोसेसिंग अपने आप में एक पूरा उद्योग है। इसे उद्योग की तरह ही चलाने की ज़रूरत पड़ती है। मशरूम प्रोसेसिंग प्लांट को कच्चे माल के रूप में जिस मशरूम की ज़रूरत पड़ती है, उसे वो मशरूम उत्पादक किसानों या मंडियों से ख़रीदते हैं। यदि मशरूम के ढेर सारे किसान आपस में मिलकर अपना प्रोसेसिंग यूनिट लगा और चला सकें तो इनके लिए सोने पे सुहागा वाली कमाई वाली दशा पैदा हो सकती है। इस काम को सहकारी क्षेत्र के अलावा FPO (Farmers Producer Organization) बनाकर भी किया जाता है। इसे भी सरकार ख़ूब प्रोत्साहित कर रही है।
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किसान ख़ुद कैसे करें मशरूम की प्रोसेसिंग?
फ़िलहाल, मशरूम की प्रोसेसिंग करने वाले ज़्यादातर प्लांट शहरी इलाकों में ही हैं। शायद इसलिए भी, क्योंकि शहरी इलाकों में बिजली की उपलब्धता, परिवहन और मार्केटिंग की सुविधाएँ जुटाना अपेक्षाकृत आसान होता है। लेकिन दूसरी ओर, जो किसान मशरूम की पैदावार करते हैं यदि वो ख़ुद भी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से मशरूम को ख़रीदकर लाकर फिर उसका इस्तेमाल करना आसान और व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।
कैसे काम करती हैं मशरूम की प्रोसेसिंग यूनिट?
मशरूम की धुलाई: कच्चे माल के रूप में खेतों से प्रोसेसिंग प्लांट में मशरूम के पहुँचने के बाद सबसे पहले इन्हें स्टेनलेस स्टील के टबों में डालकर ख़ूब हिला-डुलाकर धोया जाता है। इन टबों में सादे पानी के साथ पोटेशियम मेटा बाई सल्फेट (KMS) का घोल बनाकर डाला जाता है। मशरूमों की अच्छी तरह से धुलाई इसलिए ज़रूरी है ताकि उस पर लगे कम्पोस्ट खाद के अंश पूरी तरह से अलग हो जाएँ। दरअसल, इससे आगे की प्रोसेसिंग के लिए मशरूम के साथ कोई भी अन्य कण या (foreign particle) नहीं जाना चाहिए। किसान KMS को बाज़ार से खरीदकर ला सकते हैं और अपने घरों में रख सकते हैं।
मशरूम की ब्लांचिंग: धुलाई के बाद मशरूम की ब्लांचिंग (blanching) की जाती है। ब्लांचिंग का मतलब है मशरूम को गर्म करना या उबालना। इसके लिए धुले हुए मशरूम को उबलते पानी में 8-10 मिनट तक रखा जाता है। ऐसा करने से मशरूम के ऊतकों या tissues में मौजूद हवा बाहर निकल जाएगा, उनमें चल रही एंजाइम क्रियाएँ (Enzyme activity) थम जाएगी और मशरूम की ग्रोथ (विकास) रूक जाएगी। मशरूम के प्रोसेसिंग प्लांट में बॉयलर (boiler) में भाप पैदा करके इसे पाइप लाइन के ज़रिये उन टबों में भेजा जाता है, जहाँ मशरूम की ब्लांचिंग हो रही होती है। लेकिन किसान यदि अपने घरों में इस प्रक्रिया को करने के लिए बड़े भगौने में मशरूम को उबाल सकते हैं।
सही ब्लांचिंग की पहचान: ब्लांचिंग करने के बाद मशरूम को खौलते पानी के टब से निकालकर छान लेते हैं। फिर इसे ठंडा करने के लिए ठंडे पानी वाली एक दूसरे टब में डाल देते हैं। ठंडा करने ये विधि ही मशरूम को काला या भूरा पड़ने से बचाती है। ठंडा करने की इस प्रक्रिया से ये भी पता चल जाता है कि ब्लांचिंग का काम सही ढंग से हुआ है या नहीं? क्योंकि यदि ब्लांचिंग सही ढंग से हुई होगी तो जिन मशरूमों को गर्म पानी के टब से निकालकर और छानकर, ठंडे पानी के टब में डाला गया होगा वो पूरी तरह से टब के पेंदे या तलहटी पर डूबे हुए नज़र आएँगे। और यदि ब्लांचिंग में कसर रहेगी तो ऐसी मशरूम पानी में डूबेगी नहीं, बल्कि तैरती रहेगी।
किसानों के लिहाज़ से देखें तो मशरूम की घरेलू प्रोसेसिंग का काम यहीं पूरा हो जाता है। इसके बाद किसानों के ठंडे हो चुके मशरूम को पानी से निकाल लेना चाहिए। इसके बाद मशरूम का जैसे चाहें वैसे सेवन कर सकते हैं। अगले दो-चार दिनों के लिए तो इसे प्लास्टिक की थैलियों में पैक या सीलबन्द करके भी रख सकते हैं। लेकिन यदि ज़्यादा दिनों तक इसी मशरूम को सेवन के लायक बनाये रखना है तो फिर प्रोसेसिंग की बाक़ी प्रक्रिया को पूरा किया जाना बेहद ज़रूरी है।
मशरूम की ग्रेडिंग: ब्लांचिंग से निकले मशरूम को ठंडे पानी के टब में भी 8-10 मिनट तक ही रखते हैं। फिर इसे छानकर निकाल लेते हैं और ग्रेडिंग करने वाली शेकर (shaker) मशीनों के हवाले कर देते हैं। ये मशीन एक तय चाल पर हिलते हुए एक छन्नी का काम करती है जिसमें सबसे ऊपर प्रीमियम या ए-ग्रेड का मशरूम अलग होता है तो बीच में रेगुलर साइज़ वाला और सबसे नीचे छोटे-छोटे मशरूम। प्रीमियम क्वालिटी वाली बड़ी मशरूम को तंदूर में भूनकर या पकाकर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जबकि छोटी आकार वाली मशरूम का ज़्यादातर इस्तेमाल होटलों और रेस्तराँ में होता है।
ग्रेडिंग के बाद आमतौर पर 10% उत्पाद प्रीमियम ग्रेड का मिलता है, 80% मात्रा रेगुलर ग्रेड की प्राप्त होती है और बाक़ी बचा 10% होता है स्मॉल ग्रेड का मशरूम। प्रोसेसिंग प्लांट में मशरूम की ग्रेडिंग के बाद शॉर्टिंग या छँटाई का काम किया जाता है। इसके ज़रिये टूटे हुए मशरूमों या जिसका स्टेम (stem) और टॉप (top) अलग हो गया हो, उसे छाँटकर बाहर निकाल देते हैं। छँटाई के बाद हासिल हुआ मशरूम पैकेज़िंग के उपयुक्त हो जाता है।
मशरूम की पैकेजिंग: ग्रेडिंग और शॉर्टिंग के बाद आमतौर पर मशरूम की पैकिंग 400 ग्राम के वजन की यूनिट में की जाती है। हालाँकि, इसे छोटे-बड़े यूनिट्स में भी किया जा सकता है। प्रोसेस्ड मशरूम को आमतौर पर टिन के डिब्बों में पैक करते हैं। क्योंकि इन्हें अभी और कई प्रक्रियाएँ पूरी करनी होती हैं। बहरहाल, पैकेजिंग यूनिट के हिसाब से टिन के डिब्बों में वजन करके जितना मशरूम डाला जाता है, उतनी ही मात्रा में ब्राइन भी डालते हैं। ये ऐसा घोल होता है जिसमें 2% साल्ट या नमक और 0.2% साइट्रिक एसिड होता है।
डिब्बों की एग्ज़ास्टिंग: ब्राइन डालने के बाद मशरूम के डिब्बों की एग्ज़ास्टिंग (exhausting) की जाती है। इस प्रक्रिया के तहत डिब्बों को 8 से 10 मिनट तक भाप यानी स्टीम के ज़रिये 85 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। ताकि डिब्बों में वैक्यूम या हवा-विहीनता बन सके। ऐसा करने से मशरूम की सेल्फ़ लाइफ़ बढ़ जाती है और वो महीनों तक ख़राब नहीं होते तथा सेवन के लायक बने सकते हैं। एग्ज़ास्टिंग के बाद डिब्बों पर ढक्कन लगाकर उसे सील करते हैं।
डिब्बों का स्टेरिलाइजेशन: मशरूम के सील बन्द डिब्बों की आख़िरी प्रोसेसिंग को स्टेरिलाइजेशन (Sterilisation) कहते हैं। ऐसा करना इसलिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि सारी प्रोसेसिंग के बाद भी यदि डिब्बों में कोई हानिकारक जीवाणु बचा रह गया हो तो अब वो भी नष्ट हो जाए। स्टेरिलाइजेशन के लिए सील बन्द डिब्बों को क़रीब 55 मिनट के लिए एक ख़ास चैम्बर में रखकर करीब 116 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है।
इस दौरान स्टेरिलाइजेशन चैम्बर में 15 प्वाइंट या bar का प्रेशर रखा जाता है। इस दौरान ख़ास ख़्याल रखा जाता है कि स्टेरिलाइजेशन चैम्बर में तापमान कम या ज़्यादा नहीं हो। क्योंकि यदि तापमान कम रहा तो स्टेरिलाइजेशन ठीक से नहीं होगा और यदि ज़्यादा हुआ तो डिब्बे में मौजूद मशरूम जल जाएगी। उसका रंग काला या भूरा पड़ जाएगा।
डिब्बों की पैकिंग: स्टेरिलाइजेशन चैम्बर से निकालने के बाद मशरूम के सीलबन्द डिब्बों को फिर से ठंडे पानी के टब में डालकर सामान्य तापमान पर लाया जाता है, ताकि स्टेरिलाइज़ेशन के दौरान चैम्बर की गर्मी से मसरूम के पकने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उसे ठंडा कर लिया जाए। इस तरह, ठंडे हो चुके डिब्बों की सफ़ाई और ब्रॉन्ड की लेवलिंग वग़ैरह करके उन्हें कार्टन में पैक करके मार्केटिंग के लिए बाज़ार में भेजा जाता है।
(सभी चित्र ‘गोल्डेन क्राउन’ मशरूम से साभार)
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