सिरोपिजिआ बल्बोसा | हमारा देश जैव विविधता से भरा हुआ है। हमारे जंगलों में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं जिनका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवा बनाने में किया जाता है, लेकिन कई वनस्पतियों के बारे में जानकारी के अभाव में ये विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। पिछले कुछ दशकों में करीब 1500 ऐसी वनस्पतियों की पहचान की गई हैं, जो लुप्त होने की कगार पर हैं। अगर इन्हें बचाने की पहल नहीं की गई, तो ये अमूल वनस्पतियां हमेशा के लिए अपना अस्तित्व खो देंगी। ऐसी ही एक वनस्पति है सिरोपिजिआ बल्बोसा। इसे खडूला, टिलोरी और पाताल तुम्बी नाम से भी जाना जाता है। ये पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। मगर अब ये अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है, ऐसे में जागरुकता फैलाकर इस पौधे का उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है।
सिरोपिजिआ बल्बोसा है झाड़ीनुमा पौधा
सिरोपिजिआ बल्बोसा जीवस मूल रूप से झाड़ीनुमा, लताओं का समूह है। ये पौधे एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया व कलेरी द्वीप में पाए जाते हैं। इसकी 50 प्रजातिया हैं, जिसमें से 28 भारत में मिलती हैं। इनमें से सिरोपीजिया स्पाइरोलिस संकटग्रस्त प्रजाति है, जबकि सिरोपीजिया बल्बोसा, दुर्लभ पौधों की श्रेणी में आता है। सिरोपीजिया बल्बोसा एस्क्लीपिडेसी कुल का सदस्य है और ये मुख्य रूप से पश्चिमी घाटों में पाया जाता है।
सिरोपिजिआ बल्बोसा पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में पाया जाता है। ये पूरे साल उगने वाला सीधा पौधा है, जो ट्यूबरयुक्त झाड़ी है। इसके फूल आकर्षक होते हैं और दलपुंज के नीचे आधार पर बाल होते हैं। इस पौधे को हर्बल विशेषज्ञ ‘निम्माकी गाड’ के नाम से जानते हैं। इसकी लंबाई 50 सेंटीमीटर तक होती है। इसमें संकुचित ट्यूबर्स और उल्टी पत्तियां होती हैं। इसमें अंकुर और फल मई से अक्टूबर के बीच निकलते हैं।
सिरोपिजिआ बल्बोसा का कैसे किया जाता है इस्तेमाल
सिरोपिजिया प्रजाति के कई पौधों की जड़ों का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। इसकी जड़ों में सिरोपिजीन एल्केलोड होता है। सिरोपिजिया स्पाइरोलिस की ट्यूबर्स जड़ों में स्टार्च, ग्लूकोज़, गोंद, एलबुमिनोइड, फैट, कच्चे रेशे होते हैं। इन सबका उपयोग पारंपरिक रूप से आयुर्वेद में किया जाता है। डायरिया, दस्त, पोषक टॉनिक आदि बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
सिरोपिजिया की जड़ के पाउडर में कार्बोहड्रेट, फिनॉल, स्टीरराइड्स, एल्केलोइड, ग्लिकोसाड्स, फ्लेवेनोइड्स, नेनिन व सेपोनिन होता है, जो आयुर्वेदिक दवा बनाने में काम आता है। इसके जलीय एल्कोहलिक सत् का उपयोग यूरोलिथिएसिस नामक रोग के उपचार में किया जाता है।
इतनी उपयोगी वनस्पति दुर्लभ पौधों की श्रेणी में आ चुकी है, इसकी वजह है जंगलों का अंधाधुंध दोहन, जागरुकता की कमी और कमजोर बीज अंकुरण। ऐसे में ज़रूरी है कि किसानों को विलुप्त होती दुर्लभ वनस्पतियों की जानकारी दी जाए और उनके उत्पादन और विपणन से जुड़ी ज़रूरी बातें बताई जाएं ताकि जैव विविधता को बचाने के साथ ही किसानों की आमदनी भी बढ़े।
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